soi takdeer ki malikayen-41 books and stories free download online pdf in Hindi

सोई तकदीर की मलिकाएँ - 41

 

सोई त

41


सरोज ने देवर का चेहरा गौर से देखा । वहाँ गहरा प्रेम औऱ दृढ विश्वास साफ दिखाई दे रहा था । सरोज डर गयी । उसने पंजाबी जाटों के इश्क , उस इश्क के चलते बदले और बदले के लिए की गई हत्याऔं के सैंकङों किस्से सुने थे । उसके अपने मायके में रहने वाले बराङों को जैसे ही बहन के किसी लङके के साथ प्रेम संबंध का पता चला , बहन और उसके उस तथाकथित प्रेमी को कुल्हाङी से काट डाला और खुद दोनों का सिर हाथ में उठाए जाकर थाने में पेश हो गये । और वो गाँव के ही संधुओं के लङके वरिंदर ने मात्र शक में ही अपनी बीबी की हत्या गला घोंट कर कर दी थी । जमीन और जोरू के लिए ये जट्ट कभी भी किसी की भी हत्या कर सकते थे और हत्या करते हुए एकबार भी अंजाम के बारे में नहीं सोचते । ये सुभाष किसी सरदार की ब्याहता से मिलने के लिए उसके घर जाकर रहने के मनसूबे बना रहा था । इश्क और मुश्क कभी छिपाए छिपते हैं क्या ? जैसे ही वह उस सरदार की हवेली में जाकर रहने लगेगा , उस घर के सब लोगों पर उसका इश्क उजागर हो जाएगा । ये जयकौर अपने पति की आँखों में धूल झोंक कर कैसे और कितने दिन सुभाष से इश्क लङा पाएगी । कौन ऐसा अनखीला पति होगा जो पत्नि के इस तरह के संबंधों को मन से स्वीकार कर लेगा । और ये लङका अपनी मौत से दोस्ती करने जा रहा था ।
सुन तू कहीं नहीं जा रहा । यहीं रहेगा घर वालों की नजरों के सामने । मैंने तुझे कहीं नहीं जाने देना ।
जाना तो होगा भाभी , मैंने जयकौर को वचन दिया है कि एक दो दिन में कपङे वगैरह लेकर लौट आऊँगा ।
तू समझ क्यों नहीं रहा , वहाँ उसकी ससुराल है । एक घरवाला भी है । बाकी के रिश्तेदार भी होंगे । तेरी वहाँ क्या हैसीयत होगी । ऐसे रिश्ते बहुत दूर तक नहीं निभते । जल्दी ही कोई न कोई पंगा पङ जाएगा ।
सुभाष थाली में हाथ धोकर उठ गया था । उसने भाभी की ओर देखा और चुपचाप सिर झुकाए बाहर निकल गया ।
सुन ओए । सुन तो सही - सरोज उसे पुकारती ही रह गयी । सास ने उसे इस कदर घबराए हुए देखा तो वहीं बैठे बैठे आवाज दी – क्या हुआ बहु । इस कदर बेचैन क्यों है ? क्या कर दिया इस लङके ने ?
सरोज सास को सारी कथा सुनाना चाहती थी पर सामने कमरे में उसकी बुआ सास अधलेटी इधर ही देख रही थी तो उसने अपनेआप को रोका - कुछ नहीं माँ । ये सुभाष इस बेटैम बाहर निकल गया है इसलिए टोक रही थी कि इतनी रात गये कहाँ चल दिया ।
करमजीत ने सुख का सांस लिया – तू भी न बहु । तूने तो मुझे डरा दिया था । गया होगा यहीं गली के मोङ तक । दो चार यार दोस्तों को मिल आएगा । हाल चाल पूछ आएगा । हँस बोल कर थोङी देर में लौट आएगा । तू भी दो कौर खा ले फिर चौंका समेट कर लेट जा । सुबह से काम पर लगी है । तेरी दही मैं जमा दूँगी ।
दही तो मैं ने जमा दी माँ । तेरा बेटा आ जाए तो रोटी भी खा लूँगी । तब तक ये बरतन साफ कर लेती हूँ ।
सरोज ने बरतन और बरतन रखने का टोकरा लाकर नल के पास रखे और पीढे पर बैठ कर बरतन राख से मलने लगी । बरतन रगङते हुए भी उसका ध्यान सुभाष में ही लगा था । कैसी बेवकूफी करने जा रहा था यह लङका । घर वालों को सारी बात बताए या न बताए । बताए तो कितनी बताए । बताए बिना कोई चारा नहीं । साल होने वाला है उसे ब्याह कर इस घर में आए हुए । इस घर के लोगों से उसे मोह हो गया है । खास कर इस सुभाष से । उसका दोस्त , मीत , छोटा भाई , देवर जो कह लो । एक करीब का रिश्ता बन गया है इसके साथ । हर काम में मददगार रहा है अब तक । उसे इस तरह मुसीबत की ओर बढते कैसे देख सकती है वह । बरतन धुल मंज गये थे । उसने टोकरा लाकर चौंके में रख दिया । सास की चारपाई उठा कर कमरे में बुआ सास की चारपाई के पास ही बिछा दी । पानी का गिलास लाकर बुआ को पकङाया – लो बुआ दवाई ले लो ।
तब तक रमेश आगया था और उसके साथ ही सुभाष भी । सुभाष गरदन झुकाए अंदर अपनी चारपाई की ओर बढ गया । रमेश हाथ मुंह धोने जा रहा था कि सरोज ने पूछा – इसे कहां से पकङ कर ले आए ।
खाल की पुली पर अकेला बैठा था । मुझे सामने से आते देखा तो साथ चल दिया । पता नहीं इसे क्या हुआ है । एकदम चुप्पा हो गया है । पूरा दिन खोया खोया रहता है । जब से बुआ के घर से आया है , अजीब सा नहीं हो गया । रोटी तो खिला दे इसे । ऐसे ही अंदर जाकर लेट गया ।
रोटी तो इसे खिला दी मैंने । रोटी खा कर ही बाहर घूमने गया था ।
फिर ठीक है । रमेश हाथ मुंह धोकर चौके में ही चला आया । सरोज ने थाली सीधी की । कटोरे में सब्जी डाल कर कङछी भर देसी घी डाला और रोटी थाली में रख कर एक साबुत प्याज भी डाल दिया । रमेश ने थाली अपने सामने खींची और रोटी खाने लगा ।
सुनो हम सुभाष का ब्याह कर दें ।
रमेश के हाथ मुंह तक कौर ले जाते जाते वही रुक गये ।
तू रिश्ता ला रही है क्या अपने मायके से । यों अचानक उसके ब्याह की चिंता तुझे कैसे हो गयी । कुछ कहा क्या सुभाष ने ।
सुभाष ने तो कुछ नहीं कहा और मेरे मायके में तो अभी शादी लायक कोई लङकी बची नहीं कि मैं रिश्ते की बात चलाऊँ ।
फिर आज .. ऐसा क्या हो गया
देख लेना , तेरा भाई रांझा बन के किसी हीर के घर बांसुरी बजाता हुआ भैंसें चराने पहुँच जाएगा । देखता नहीं आजकल कैसे खोया खोया सा घूमता रहता है ।
हां वह तो मैं भी देख रहा हूँ । अब पहले जैसा हँसता खिलखिलाता नहीं है । चल कल देखते हैं कोई लङकी । दिन निकलते ही बस अड्डे पर जाकर बैठ जाऊँगा । किसी लङकी को देखते ही उससे रिश्ते की बात चला लेंगे । - रमेश कहते कहते ठहाका मार कर हंस पङा ।
सरोज बुरी तरह से झेंप गयी । क्या तुम्हें मजाक सूझ रहा है । मैं मजाक नहीं कर रही थी । हमें इसके ब्याह की चिंता करनी चाहिए।
ओए कोई रिश्ता आने तो दे फिर देखते हैं ।
रमेश ने थाली सरका दी और हाथ धोने नलके पर चल दिया । सरोज ने भी रोटी खाई । चौंका चूल्हा संभाल कर वह भी बिस्तर पर टेढी हो गयी । रमेश बुरी तरह से थका हुआ था । बिस्तर में लेटते ही उसकी नाक बजनी शुरु हो गई । देखते ही देखते वह गहरी नींद में खो गया । सरोज अभी और बातें करना चाहती थी । रमेश को हालात की गंभीरता समझाना चाहती थी पर रमेश को निश्चिंत सोते देख कर उसने सोचा कि मैंने इशारा तो कर दिया और क्या कर सकती हूं । सोचते सोचते वह भी नींद में डूब गयी । पूरा परिवार गहरी नींद में सो रहा था । अकेला सुभाष ही इस समय तारे गिन रहा था ।

 

 

बाकी फिर ..

 

 

 

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