सोई तकदीर की मलिकाएँ - 20 Sneh Goswami द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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सोई तकदीर की मलिकाएँ - 20

 

सोई तकदीर की मलिकाएँ 

 

20

 

 

भोला सिंह अब हर पल बेचैन रहता । न उसे रात को चैन आती न दिन में । हमेशा औलाद न होने का दुख उसकी आत्मा पर हावी हो जाता । चरण सिंह और उसके भाई की बातें उसे टिकने न देती । वह अपने मन को बार बार समझाता कि वह अपनी पत्नी से बहुत मोह करता है । उसे कोई तकलीफ नहीं देना चाहता पर संतान तो उसे चाहिए । और अगर कोई भला परिवार उसे इस उम्र में भी अपनी बेटी के लायक समझता है तो ... । तुरंत मन कहता , नहीं चरण केवल उसका मन बहला रहा था वरना यह कोई उम्र है कंगन बांधने , मेंहदी लगाकर मौर पहनने की । पर इतनी जायदाद का क्या होगा ?
इसी बुन सुन में चार दिन बीत गये । भोला सिंह को न रात को चैन थी न दिन को । वह मन ही मन सौ किले बनाता , सौ किले ढहाता । आखिर मन जीत गया । सारी दलीलें हार गयी । सोमवार दिन निकलते ही वह अगले तीन चार दिन वह न जाग पाया , न सो पाया । हर पल औलाद का अभाव उसकी नहाकर तैयार हुआ । उसने कार निकाली और कम्मेआना गाँव की ओर चल दिया । एक बार टटोल कर देखे तो सही कि दोनों भाई क्या कहना चाहते थे । दस बजते बजते वह कम्मेआना पहुँच गया ।
सुखविंदर सिंह यानी सुखा सिद्धु छोटी जोत का किसान था । बहुत अमीर तो नहीं , पर ठीक ठाक गुजर बसर हो जाती थी । चार किल्ले जमीन उसके हिस्से में आई थी । चार भाइयों का परिवार था तो जमीन को चार हिस्सों में बंटना तय था । इस तरह विरासत में मिली चार किल्ले खेती में ही उसे घर का गुजर बसर करना था तो उसने साथ में पाँच भैंसे पाल ली थी । पाँच भैंसों का दूध अछ्छा खासा हो जाता था तो घर जरूरत का ऱख कर बाकी दूध दूधिए को डाल दिया जाता जिससे हर महीने एक मुश्त आमदनी हो जाती । वह उसकी पत्नी , दोनों बेटे सब मिल कर खेती करते , भैंसों की देखभाल करते । दो बेटे थे । चरणा और शरणा । एक बेटी थी जयकुर यानी कि जयकौर । जयकौर शरण से बङी थी और चरण से छोटी । तीनों बहन भाइयों में ढाई तीन साल का अंतर था । गाँव में न तो पाठशाला थी न पढाई का बहुत आग्रह । बहुत कम बच्चे स्कूल जा पाते , वह भी चार - पाँच मील दूर जाना पङता । ज्यादातर बच्चे पैदल स्कूल जाते या फिर साइकिल पर । सुखा की हिम्मत न हुई इन बच्चों को इतनी दूर पैदल भेजने की । इस तरह ये तीनों बहन भाई शिक्षा से वंचित रह गये । पर खेती और पशुपालन के अलावा ये सामाजिकता में माहिर थे । सुखा की पत्नी अमरजीत एक सुघङ गृहणी थी । थोङी आमदनी से ही घर गृहस्थी बङी अच्छी तरह चला रही थी ।
धीरे धीरे बच्चे बङे हुए तो परिवार को इनकी शादी की चिंता हुई । अमरजीत पहले जयकौर की शादी निपटाना चाहती थी तो कई जगह शादी की बात चलाई गयी । पर कहीं भी बात सिरे न चढी । हर जगह लेन देन पर आकर बात अटक जाती । वर का सोने का कङा । दूल्हे की माँ की बालियाँ , ससुर की अंगूठी , मामा की अँगूठी , भाई , बहनों के लिए अँगूठियाँ , रिश्तेदारों के कपङे , कंबल इतना तो करना ही होगा । मोटरसाइकिल , घङी भी देनी बनती है । फिर आए बारातियों के खाने पीने की व्यवस्था भी करनी है तो इतना पैसा कहाँ से आता । इसलिए बात टलती जा रही थी और दोनों पति पत्नी की चिंता लगातार बढ रही थी ।
ऐसे में एक दिन किसी रिश्तेदार ने पक्खी गाँव में एक रिश्ता सुझाया तो दोनों पति पत्नी इस लङके को देखने और उसके माँ बाप से मिलने चल पङे । दोनों बस अड्डे पर खङे बस का इंतजार कर रहे थे कि अचानक दूसरी ओर से आ रही एक ट्रैक्टर ट्राली ने दोनों पति पत्नी को टक्कर मार दी । दोनों पति पत्नी अचानक लगे इस धक्के को सह नहीं पाए और सङक पर गिर गये । ट्रैक्टर चालक तो ट्रैक्टर भगाकर ले गया । आसपास से गुजर रहे लोगों ने दोनों को उठाया । अमरजीत का सिर सङक से टकरा गया था । वह गिरते ही बेहोश हो गयी । सिर से खून बह रहा था । सुखा के टांग की हड्डी टूट गयी थी । लोग भाग कर ट्राली ले आए । दोनों पति पत्नी को तुरंत फरीदकोट ले जाया गया । डाक्टर ने जाँच कर अमरजीत को मृत घोषित कर दिया । सुखे की टाँग का आपरेशन करना पङा । घर में शोक की लहर दौङ गयी । सुखे की हालत खराब हो गयी । पत्नी असमय चल बसी और खुद वह चारपाई से लग गया था । तीन महीने के लिए चारपाई से उठने से डाक्टर ने मना कर दिया । खेती का सारा भार दोनों लङकों पर आ गया । जयकौर सुबह से शाम तक पशुओं के साथ जुटी रहती । घर की हालत दिनों दिन बिगङती जा रही थी । ऐसे में मातम वाले घर में जयकौर की शादी की बात ठंडे बस्ते में चली गयी । जो चार पैसे शादी के लिए जोङ कर ऱखे गये थे , वे कुछ अमरजीत की तेरहवीं पर खर्च हो गये , कुछ सुखे के इलाज पर । वैसे भी घर में मौत हुई थी तो बरसी से पहले कोई शुभकाम कैसे किया जाता ।
अमरजीत की कमी घर में हर पल महसूस की जाती । रिश्तेदार मातमपुर्सी के लिए आते तो अमरजीत की सयानप और समझदारी की तारीफ करते , साथ ही चरण के लिए कोई रिश्ता बताते हुए उसका ब्याह करने की सलाह भी दे जाते । ऐसे ही एक दिन सुखविंदर सिंह की चचेरी बहन आई तो उसने अपनी ननद की बेटी की बात चलाई ।
भाई चरण इस साल इक्कीस साल का हो गया । अब क्या तू उसके बूढे होने का इंतजार कर रहा है । बच्चों की शादियाँ सही समय पर कर देनी चाहिएं । वरना बच्चों के बिगङने में देर नहीं लगती । वैसे भी भाभी के जाने के बाद इस घर को अब एक बहु की जरूरत है । तू हाँ कहे तो मैं बात चलाऊँ । वैसे मेरी बात मेरी ससुराल में कोई नहीं टालता । तू अपना सोच ।
पर कंतो , तेरी भाभी को गये तो अभी सात साढे सात महीने ही हुए हैं । इतनी जल्दी घर में शुभ ...।
भाई मजबूरी भी कोई चीज होती है । तुम लोग ऐसा करो , इस पूर्ममासी को सारे लोग लङकी देख लो । पसंद भी आनी चाहिए । तभी अगली बातें सोचेंगे ।
ठीक है , जैसे तुझे ठीक लगे ।
कंतो को यही सुनना था । वह खुश हो गयी । भाई ने उसकी बात मान ली । ससुराल में उसका मान रह गया । उसे और क्या चाहिए था ।

 

 

बाकी फिर ...