सोई तकदीर की मलिकाएँ - 61 Sneh Goswami द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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सोई तकदीर की मलिकाएँ - 61

 

61

 


दिन धीरे धीरे ऊँचा होने लगा था । सूरज की रोशनी चौगिर्दे फैलनी शुरु हो गई थी । पशुओं की धार निकाली जा चुकी थी । उन्हें चारा डाला जा चुका था । केसर ने नौहरा साफ कर के गोबर पाथ दिया था और अब नलके के पास बैठी सर्फ में कपङे भिगो रही थी । बसंत कौर ने दही बिलो ली थी । मक्खन निकाल कर छन्ने में रख दिया था और अब चूल्हे पर परांठा सेक रही थी । भोला सिंह नहा धो कर रोटी खाने बैठा तो बसंत कौर ने धीरे से बात छेङी – ये सुभाष रात घर आया ही नहीं । रात जोरे का मंजा यहाँ आंगन में डलवा दिया था कि कहीं रात बिरात में आ जाय तो वह उठ कर दरवाजा खोल दे । वह बेचारा यहाँ सारी रात इंतजार करता रहा और यह सारी रात पता नहीं कहाँ भटक रहा था या रब जाने , कहीं गुम हो गया ।
ये जयकौर तो कल दोपहर में ही हवेली आ गई थी तो वह कहाँ रह गया - भोला सिंह के माथे पर बल पङ गये थे । उसने जयकौर को आवाज लगाई – जयकौर !
जयकौर भीतर बिस्तरे तह कर रही थी । उन्हें वहीं छोङ कर वह बाहर चौके में आई – जी ।
कल तू कितने बजे लौट आई थी ।
टाईम तो मैंने देखा नहीं । यही कोई एक डेढ बजा होगा तब । हम इकट्ठे ही गाँव से यहां के लिए निकले थे । ये सुभाष मेरे साथ ही बस से उतरा था । हम इकट्ठे ही पैदल हवेली की तरफ आ रहे थे कि एक लङका उधर से बाईक लेकर इधर गाँव में आ रहा था । सुभाष ने उसे रोक कर मुझे हवेली छोङ देने को कहा । मैं उस लङके के साथ बाईक पर हवेली पहुँच गई । वह पता नहीं , रास्ते से कहाँ गायब हो गया ।
ये तो सही में चिंता की बात थी । लङका हवेली आते आते रास्ते से गायब कैसे हो सकता है । भोला सिंह दो रोटी खा कर उठ गया । उसने खेत में काम करने वाले सभी लङके बुलाए और उन्हें सुभाष को ढूंढने का काम सोंपा । लङके चल पङे । करीब आधे घंटे बाद उन्होंने दो लङकों को भोला सिंह के सामने ला खङा किया – सरदार जी इन दो लङकों ने उसे बस अड्डे की ओर जाते देखा था ।
जी .. जी सरदार जी । हम वहाँ अड्डे पर बैठे थे । वह सामने से तेज तेज चलता हुआ आया था । उसके बाद का हमें पता नहीं । हम वहाँ से वापस गाँव आ गये थे । जब हम वहां से चले थे , तब वह वहीं अड्डे पर खङा था ।
लो खोदा पङाङ और अंदर से निकली चूही वह भी मरी हुई । यह लङका तो दोबारा कम्मेआना चला गया । पर इस बेवकूफ ने बताना तो था कि वह अपने गाँव जा रहा है ।
पर कल ही तो गाँव में मिल कर लौटा था फिर इतनी जल्दी दोबारा गाँव क्यों जाएगा । अगर ऐसी बात थी वहाँ एक दो दिन और रुक कर आ जाता ।
चल आ जाएगा । एक दो दिन रह आएगा तो तसल्ली हो जाएगी ।
भोला सिंह ने जूती पहनी और बाहर चल पङा । गली के मोङ पर ही उसे गाँव का बुजुर्ग भाग सिंह मिल गया । उसने हाथ जोङ कर फतह बुलाई – सतश्री काल चाचा । क्या हाल है तेरा । बहु बेटे तेरा ख्याल तो रखते हैं न .।
जीता रह मल्ला । तेरी लंबी उम्र हो । जवानी माणे । खूब धन दौलत से खेले । सब वाहेगुरु की मेहर है बेटा । हां मैंने सुना , तेरा कोई कामा भाग गया । कितना नुकसान कर गया ?
नुकसान तो कोई नहीं चाचा बल्कि उसके डेढ दो महीने की मजदूरी के पैसे मेरे पास ही रखे हैं । मुझे बिना मिले ही कम्मेआना चला गया माँ से और भाई से मिलने । मुझे मिल कर जाता तो थोङे पैसे ले जाता । खाली हाथ पता नहीं बस के किराए लायक पैसे भी जेब में हैं या नहीं , इस लिए फिक्र हो रही है ।
कम्मेआना ? ये कम्मेआना तो फरीदकोट वाली साइड पर है न । पर वह तो मोगे जाने वाली बस में सवार हुआ था । बस सीधे हरदुआर जा रही थी । मैं वहीं अड्डे पर बैठा बीङी पी रहा था । मैंने उसे अच्छी तरह देखा था । वही था । कुछ परेशान सा दिख रहा था । कुछ कुछ घबराया हुआ भी । मुझे पता होता कि ऐसे बिना बताए जा रहा है तो रोक लेता । जाने ही नहीं देता ।
हरदुआर जाने वाली बस में ? वहां वह क्यों जाएगा भला ?
अब क्यों गया , किससे मिलने गया । वह मैं क्या जानूं । मैंने तो जो देखा , तुझे बता दिया । भाग सिंह अपने रास्ते बढ गया ।
हे भगवान ! ये पहेली तो सुलझने की बजाय और उलझ गई थी । कहां वह यह मान कर शांत हो गया था कि घर पर दो फालतू दिन बिता आने की चाहत में वह अपने घर चला गया होगा पर भाग सिंह की कहानी तो कुछ और ही संकेत दे रही है । वह उल्टे पैर घर लौट आया । आते ही उसने गेजे को बुलाया – सुन ये पाँच हजार ले और कम्मेआना जाकर सुभाष की माँ को दे आ । साथ ही पता लगाने की कोशिश करना कि सुभाष घर पर पहुँचा या नहीं ।
जी सरदार जी । गेजे ने नोट पकङे और कुर्ते की जेब में डाल लिए । हाथ में पकङा परना सिर पर लपेटा और कम्मेआना के लिए चल पङा ।
बसंत कौर ने भोला सिंह की आवाज सुनी तो नीचे चली आई । सरदार घर शाम से पहले तो कभी आता नहीं तो आज क्या हुआ । उसने चौके से लस्सी से गिलास भरा और भोला सिंह को पकङाते हुए पूछा – क्या हुआ जी ।
वो गली के मोङ पर भाग चाचा मिला था । वह कह रहा था कि उसने सुभाष को हरदुआर जाने वाली बस में चढते देखा है । मुझे तो कुछ समझ में नहीं आ रहा , यह कहानी है क्या ।
चाचे को कोई भुलेखा (भ्रम ) हुआ होगा जी , भला सुभाष इस तरह अचानक हरद्वार क्यों जाने लगा ।
मुझे भी यही लगता है । चाचे को पहचानने में कोई भूल हो गई लगती है । मैंने गेजे को कम्मेआना भेजा है ताकि कुछ बात का सिरा परा हाथ आए । सुभाष वहाँ गया या नहीं । और अगर हरद्वार गया भी है तो घर पर मां या भाई को तो बता कर ही गया होगा । गेजा शाम तक आ जाएगा । जयकौर भीतर थी पर कान उसके इधर ही लगे हुए थे । कैसे बताए जाकर कि इस सारे फसाद की जङ में वह है । अगर उस दिन वह डाक्टर से मिलने न जाती तो रिपोर्ट सामने न आती । रिपोर्ट सामने न आती तो सुभाष यूं घबरा कर भागता नहीं । लेकिन वह अपने नैतिक पतन की बात सामने आकर कैसे बोल सकती है ।

बाकी फिर ...