soi takdeer ki malikayen - 63 books and stories free download online pdf in Hindi

सोई तकदीर की मलिकाएँ - 63

 

63

 

हवेली में जिंदगी फिर से सामान्य हो चली थी । दिन पहले की तरह निकलता और छिप जाता । रात पहले की तरह उतरती और अंधेरा बिखेर कर चली जाती । नौकर चाकर पहले की तरह खेत खलिहान में मजदूरी कर रहे थे  । गेजा और जोरा उसी तरह से हवेली की गाय भैंसों की देखभाल कर रहे थे । केसर उसी तरह से हर रोज नौहरा साफ करती , पाथियां , उपले बनाती , बरतन मांजती , कपङे धोती और जब खाली होती तो चरखा कातती । बसंत कौर और भोला सिंह भी पहले की तरह अपनी दिनचर्या में व्यस्त हो चुके थे । सब कुछ पहले जैसा हो गया था ।

इस हवेली में अगर कुछ नहीं बदला था तो जयकौर का मन । वह गहरे अपराधबोध और अवसाद में घिर गई थी । उसे खाना पीना कुछ न भाता । किसी के बोल उसे न सुहाते । किसी काम में उसका मन न लगता । रात को वह सो न पाती और अगर भूले भटके आँख लग भी जाती तो थोङी देर बाद ही डर कर पसीने पसीने होकर उठ बैठती । रमेश के हरिद्वार से खाली हाथ लौट आने के बाद भी उसके मन में एक हल्की सी उम्मीद बाकी थी । वह मन ही मन कहती – वह लौट कर जरूर आएगा । इतने दिनों का प्यार वह कैसे भूल सकता है । खास कर जब उसे पता चल चुका है कि मैं उसकी बेटी की माँ बनने वाली हूँ तो वह मुझसे दूर कैसे रह सकता है । पक्का वह कुछ रोजी रोटी का जुगाङ करने निकला होगा । जैसे ही वह कोई काम धंधा पा जाएगा , हमें लेने आ जाएगा । जरूर वह कोई काम ढूंढ रहा होगा । काम मिल गया तो फिर रहने के लिए कमरा भी तो ढूंढना है । अकेला छङा आदमी तो कहीं भी रह ले पर औरत के साथ सडक पर कैसे रहा जा सकता है । एक झोंपङी ही सही पर घर के नाम पर एक छत तो चाहिए ही चाहिए ।

इसी तरह की बातों से वह अपने मन को बहलाने की कोशिश करती पर दूसरे ही पल और भी गहरी उदासी से घिर जाती । अगर वह न लौटा तो ... । तो वह क्या करेगी । इस गर्भ को लेकर कहाँ जाएगी । अब तो ये पेट दिखी देने लगेगा फिर वह घर और बाहर लोगों को क्या जवाब देगी । वह दिन में कई बार सोचती कि भोला सिंह से या बसंत कौर से अपनी हालत के बारे में बात करे पर उसे ऐसा कोई मौका हाथ ही न आता था । और सबसे बङा सच तो यह था कि उसकी हिम्मत ही नहीं पङती थी , इतनी बङी बात घर में किसी को बताने की । हर दिन बीतने के साथ उसकी हिम्मत जवाब दे रही थी । सुभाष को गये आज पूरा एक महीना हो गया था और अभी तक उसका कोई अता पता नहीं था । घर के लोग उसे लगभग भूल ही चुके थे । कोई अब बातचीत में उसका जिक्र तक न करता था पर जयकौर कैसे भूले । दिनोदिन उसका तनाव बढता जा रहा था । आखिर एक दिन जब माथे की नसें फटने को हो आई । घबराहट चरम पर पहुँच गई तो जयकौर ने एक निर्णय ले लिया । आज आर या पार हो ही जाय ।

सुबह केसर रोज की तरह उठी । उसने नौहरा साफ कर के गोबर के चार तसले पथकन में ले जाकर फेंके और कमरों में झाङू लगाने लगी । झाङू लगाते हुए जब वह जयकौर के कमरे में आई तो जयकौर को सोते देख कर चौंक गई – आज ये जयकौर बहन अभी तक उठी क्यों नहीं । फिर सोचा गरमी हो गई है । हो सकता है गर्मी के मारे रात को देर से सोई हो । जयकौर चारपाई पर पेट के बल ओंधी लेटी हुई थी .। उसका मुँह तकिए से ढका हुआ था । दरी लटक कर जमीन छू रही थी । चादर इकट्ठी हुई पङी थी और पैर चारपाई से नीचे लटके हुए थे । केसर ने उसके पैर ऊपर करने के लिए जैसे ही ऊपर उठाए , तकिया नीचे गिर गया , यह क्या , जयकौर तो दुनिया से दूर जा चुकी थी । उसका ठंडा पैर छूते ही केसर बुरी तरह से चीखी चिल्लाई । उसकी चिल्लाहट सुन कर ऊपर सो रहे भोला सिंह और बसंत कौर चौंक कर जाग गए और झटपट चौबारे से उतरे । नौहरे में दूध दूह रहा गेजा और चारा कुतर रहा जोरा भी भागे चले आए । केसर कोने में खङी डर से थर थर कांप रही थी । बसंत कौर ने आते ही केसर को झंझोरा – क्या हुआ पगली । कोई भूत देख लिया क्या ? इस तरह से बच्चों की तरह से चिल्ला रही है ।

केसर के बोल नहीं फूटे । वह उसी तरह से कांपती हुई आँसू बहाती रही । बसंत कौर ने दोबारा पूछा – कुछ बोल तो सही केसर । ऐसे घबराई हुई क्यों है ? इस तरह सुबह सुबह टसुवे क्यों बहा रही है ?

केसर ने अपनी तर्जनी ऊंगली जयकौर की ओर बढा दी ।

बसंत कौर का ध्यान अब जयकौर की ओर गया – ये इस तरह बेतरतीब होकर क्यों सो रही है । इस तरह से कौन सोता है ।

उसने जयकौर को सीधा करना चाहा पर जयकौर का सारा शरीर तो अकङा पङा था । बसंत कौर ने भोला सिंह को पास बुलाया । दोनों ने नाक के पास उंगली लगा कर देखा । नब्ज टटोली । कहीं जीवन का कोई निशान बाकी नहीं था । आखिर तीनों चारों जनों ने मिल कर जयकौर को बिस्तर समेत धरती पर लिटा दिया । तभी बिस्तर से फाइल गिर पङी । बसंत कौर ने फाइल उठाई – यह तो कोटकपूरा के कटारिया क्लीनिक की फाइल थी । उसने कागज उल्टे पल्टे । एक्स रे देखा और फाइल भोला सिंह की ओर बढा दी ।  उसकी आंखों से सारे परदे एक एक कर हट रहे थे । जयकौर की अचानक शादी , पीछे पीठे सुभाष का संधवा चले आना और हवेली में आकर रहने लगना , शादी के एक महीने बाद दोनों का एक साथ कम्मेआना के लिए जाना और फिर अचानक सुभाष का लापता हो जाना सब कुछ । ये सुभाष तो कायर निकला । वैसे इतना बहादुर बना फिरता था कि रांझे की तरह हीर के घर मजदूरी करने चला आया । आराम से बैठा चूरियां खाता रहा पर जब साथ देने के समय आया तो कायरों की तरह भाग खङा हुआ ।

जोरे का ध्यान जयकौर की बंद मुट्ठी की ओर गया – ये इनके हाथ में क्या है सरदारनी । भोला सिंह और बसंत कौर ने एक साथ उधर देखा । जयकौर की हथेली में कस कर पकङा हुआ एक सफेद रंग का कपङा दिखाई दे रहा था । अब ये क्या है ? भोला सिंह ने आगे बढ कर मुट्ठी खोली और एक दूसरे के चेहरे को विस्मय से देखा ।

 

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