सोई तकदीर की मलिकाएँ - 64 Sneh Goswami द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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सोई तकदीर की मलिकाएँ - 64

 

64

 

 

बसंत कौर चारपाई के पास हैरान परेशान खङी थी । रात तो जयकौर भली चंगी थी । रौटी बनाई सबको खिलाई । दूध समेटा । फिर सब सोने चले गये । रात रात में ऐसा भाना बरत गया । जयकौर ये दुनिया छोङ कर जा चुकी थी , इस बात पर बसंत कौर को विश्वास करना कठिन था पर सच को झुठलाया कैसे जाय । सामने जमीन पर जयकौर लेटी थी अडोल , निश्चल । उसी तरह जैसे पहले दिखती थी । वैसा ही रूप रंग । राई रत्ती भी अंतर नहीं आया था । केसर ने बग्गा सिंह को दोबारा याद दिलाया – सरदार जी इसके हाथ में यह सफेद कपङा कैसा है ? और ये इसे इस तरह मुट्ठी में दबा कर सोई है । बग्गा सिंह ने आगे हो कर हथेली खोलने की कोशिश की पर अकङे हुए हाथ से वह कपङा निकालना इतना आसान काम न था । जोरे ने सरदार को पसीने पसीने हुए देखा तो आगे आया और बग्गा सिंह के पास ही बैठ कर मुट्ठी खोलने में मदद करने लगा । आखिर हथेली खुल गई । कपङा बाहर ले लिया गया । मुट्ठी से कपङा निकाल तो लिया गया पर उसे देखते ही सब बुरी तरह से चौंक गये । इस कपङे में तो कुछ दिन पहले ही गेहूं में डाली जाने वाली दवाई डाल कर अनाज वाले ड्रम में रखी गई थी । अभी भी उसमें दो गोलियाँ इसी कपङे में अटकी पङी थी तो जयकौर ने सल्फास की सारी दवाई खा ली थी । अविश्वास का कोई कारण ही नहीं बचा था । सीधा सादा आत्महत्या का मामला था पर यह ऐसा क्यों करेगी , सबके दिमाग में यही सवाल रह रह कर उठाया जा रहा था फर इस समय तो सबसे जरुरी था अंतिम संस्कार ।
गाँव में सबको खबर कर दी गई और जयकौर के दोनों भाइयों को भी । खबर पाते ही शरण और चरण दोनों भाई चल पङे ।
सुन छोटे , अब भोला सिंह को वह आठ लाख वापस करने पङेंगे क्या जो उसने ब्याह से पहले जमीन खरीदने के लिए उधार कह कर दिये थे ?
वह क्यों वापस करेंगे । और अगर तुझे लगता है कि भोला सिंह इन हालातों में अपना पैसा मांगेगा तो तू दुनियादारी नहीं जानता । मांगने की बेवकूफी कर भी देगा तो हम वहाँ हंगामा कर देंगे । अभी तो इन दोनों की शादी को चार महीने भी नहीं हुए और हमारी लङकी मर भी गई । जेल की चक्की पिसवा दूंगा । हाथ जोङ कर अपनी जान बचाने के लिए पैसे ढेरी कर देगा , देख लेना । चुप रहने की भारी कीमत मिलेगी । आखिर बङे सरदार की इज्जत का सवाल है । अपनी इज्जत के लिए इतना तो वह करेगा ही । करना भी चाहिए ।
छिंदर कौर ने टोका – चुप रहो । पहले वहाँ जाकर वहाँ का माहौल देखना फिर जबान खोलना । कभी कभी बेमतलब की गर्मी नुकसान दे जाती है ।
इसी तरह बातें करते और ख्याली पुलाव पकाते हुए वे संधवा पहुंच गये ।
गांव का बस अड्डा आज सूना पङा हुआ था । पगडंडी और सङक पर भी कोई आदमी दिखाई नहीं दे रहा था ।
शरण को फिर चुहल सूझी – ओए यहाँ तो कर्प्यू लगा है । एक चिडी का बच्चा तक दिखाई नहीं दे रहा । सारे गाँव के लोगों को पुलिस बांध कर तो नहीं ले गई ।
चरण सिंह ने आँख तरेर कर देखा तो वह नजरें घुमा कर दूसरी ओर देखने लगा ।
अंग्रेज कौर ने दुपट्टा माथे से थोङा नीचे खींच लिया – कमबख्तों , तुम्हारी बहन मरी है । उसकी ससुराल जा रहे हो । लोग देखेंगे तो क्या सोचेंगे । जरा सा मुँह तो उदास कर लो ।
तब तक हवेली दिखाई देने लगी थी । छिंदर कौर ने लंबा बैन लेकर दोनों जांघों पर जोर से हाथ मारा – ए मेरी लाडो से पाली मेरी भागो वाली ननदे ।
अंग्रेज कौर ने उसके पूछे तुक मिलाई – ए मेरी रंगले पीढे पर बैठने वाली भागो वाली ननदे ।
ये दोनों ऐसे ही विलाप करती हुई आंगन में जयकौर की लाश के पास पहुंच गई और देर तक वहाँ लाश के पास बैठ बैन करती रही । गाँव की औरतों ने दोनों को चुप कर कर पानी का गिलास पकङाया और चाय ले आई ।
अब सब लोग तो आ गये । चलो अब नहलाने धुलाने की तैयारी करो ।
गांव से शरीके की औरतें तुरंत नहाने का जुगाङ करने लग पङी । आँगन में चारपाई टेढी करके उस पर चादर डाल दी गई । दो औरतें पानी की बाल्टी ले आई । दही और सरसों का तेल मल मल कर जयकौर को नहलाया गया । लाल सुर्ख जोङा पहना कर जब उसे अरथी पर लिटाया गया तो उसका रूप निखर आया । तभी शरण की आवाज गूंजी – तुम लोगों ने मेरी बहन को मार दिया । मैं एक एक को देख लूँगा । न बीमार न शिमार । ऐसे कैसे अचानक मर सकती है मेरी बहन । पक्का तुमने कुछ किया होगा । लोग समझाने लगे । सयाने बनो । क्यो बहन की मिट्टी पलीत करते हो । अमन चैन से दाह संस्कार हो जाने दो ।
शोर बसंत कौर ने भी सुना । उसने किसी को भेज कर दोनों भाइयों को अंदर सभात में बुलवाया । दोनों भाई जैसे भी हो बङी सरदारनी और अब इस छोटी सरदारनी का दबदबा मानते थे । इसलिए बिना कोई चू चपङ किए भीतर चले आए । बंसत कौर ने दोनों को भीतर आकर कुछ देर शांत होने दिया फिर बोली – हाँ भाई मैं भी मानती हूँ , जयकौर कल रात तक बिल्कुल ठीक थी फिर रात अचानक ही वह हो गया जो नहीं होना चाहिए था । कारण हमें ङी उसके जाने के बाद पता चला । बतो ऐसे में हम क्या करें ।
कहते कहते उसने डा. कटारिया की रिपोर्टें उनके सामने रख दी ।
ये क्या हैं – असमंजस में पङ चरण ने कहा ।
ये जयकौर की रिपोर्टें हैं । जिस दिन कम्मेआना गई थी , उस दिन की । असल में उसे कम्मेआना जाने का तो बहाना था , वास्तव में वह डाक्टर को दिखाने ही गई थी । तब उसे चार महीने होने वाले थे । इस बात के सामने आते ही वह तुम्हारी गली का लङका है न सुभाष वह जयकौर को संधवा के अड्डे पर छोङ कर भाग गया । हमने उसे बहुत ढूंढा । रमेश और जोरा भी उसे कहाँ कहाँ ढूढने नहीं गये पर उसका पता नहीं चला । पता नहीं जिंदा भी है या नहीं । कहीं मर खप न गया हो । यह जयकौर उसका इंतजार कर रही थी । जब डेढ महीने तक भी नहीं आया तो सल्फास खा ली रात को । हमें तो सुबह पता चली यह सारी कहानी । वह लङका महीने से ज्यादा ही यहाँ रहा होगा पर हमने तो कुझ गलत सोचा ही नहीं । अब तुम बताओ , पुलिस को शिकायत करनी बनती है या नहीं । लिखवाओ तो साथ में यह भी लिखवा देना कि जयकौर w/0 सुभाष कुमार । सफाइल पर यहीं तो लिखा है और डाक्टर के अस्पताल के कागजों में भी ।
दोनों भाइयों का चेहरा विवर्ण हो गया । यह सब सच इस तरह से सामने आएगा , यह तो उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था ।
चरण बसंत कौर के पैरों में गिर गया – हमें माफ कर दो सरदारनी । हमें तो इस लङकी की यह करतूतें बिल्कुल पता ही नहीं थी । कुल कलंकिनी निकली यह लङकी । बिरादरी में कहीं मुँह दिखाने लायक नहीं छोङा इस लङकी नें हमें । उस लङके को जिंदा नहीं छोङना हमने ।
बसंत कौर ने चरण के कंधे पर हौले से हाथ रख दिया ।

शेष फिर ...