कोट - उपन्यास
महेश रौतेला
द्वारा
हिंदी उपन्यास प्रकरण
अच्छी-खासी ठंड है। मैं पैतालीस साल बाद उस मकान में हूँ जहाँ अपने विद्यार्थी जीवन में रहता था। अलमारी खोलता हूँ तो उसमें टका मेरा कोट पड़ा है। कुछ बेतरतीब सी लिखी कविताओं की एक कापी भी है। मैं ...और पढ़ेको निकालता हूँ।वह मुझे जादुई एहसास देता है। मैं उसे पहन लेता हूँ और अतीत के साये में घूमने लगता हूँ। कोट कहीं-कहीं पर हल्का सा फट चुका है। लेकिन उसके साथ एहसास जीवन्त लग रहे हैं। इतने में मेरा हाथ कोट की जेब में जाता है और एक कागज का पन्ना हाथ में आता है। मैं कागज को पढ़ने लगता हूँ।
कोट-१अच्छी-खासी ठंड है। मैं पैतालीस साल बाद उस मकान में हूँ जहाँ अपने विद्यार्थी जीवन में रहता था। अलमारी खोलता हूँ तो उसमें टका मेरा कोट पड़ा है। कुछ बेतरतीब सी लिखी कविताओं की एक कापी भी है। मैं ...और पढ़ेको निकालता हूँ।वह मुझे जादुई एहसास देता है। मैं उसे पहन लेता हूँ और अतीत के साये में घूमने लगता हूँ। कोट कहीं-कहीं पर हल्का सा फट चुका है। लेकिन उसके साथ एहसास जीवन्त लग रहे हैं। इतने में मेरा हाथ कोट की जेब में जाता है और एक कागज का पन्ना हाथ में आता है। मैं कागज को पढ़ने
कोट-२कोट को लिए मैं मैदान की सीढ़ियों पर बैठ जाता हूँ। झील से आती चंचल हवायें धीरे-धीरे मन की उधेड़बुन में पसरने लगीं। इसी बीच मुझे ताई जी द्वारा बतायी बातें याद आ गयीं। वह कहा करती थी कि ...और पढ़ेजी जब अपनी बहिन से मिलने गरुड़ जाया करते थे तो कोट और धोती पहन कर जाते थे। बीच में आठ मील का घना जंगल पड़ता था। ताऊ जी अन्य सामान के साथ हाथ में दही की ठेकी लेकर जाते थे। जब वे पहाड़ के शिखर से नीचे उतरते तो जंगल और घना दिखता था। धीरे-धीरे उनके हाथ की ठेकी
कोट-३जो कोट मेरे हाथ में था उसे मैंने वर्षों पहना था। उससे एक और याद लिपटती मुझे मिली।हमारे गाँव से बीस मील दूर, घने जंगल के बीच एक प्यार की चादर होने की बात हम प्रायः सुनते थे। ...और पढ़ेचादर का अस्तित्व कब तक रहा, यह किसी को पता नहीं था। लेकिन लोगों में उसकी आस्था बन चुकी थी और साथ-साथ परंपरा भी चल पड़ी थी, उसके प्रभाव को मानने की।तीर्थ स्थलों की तरह वह भी मन को शान्ति प्रदान करता था। लोगों की मान्यता थी कि जब किसी परिवार में अधिक झगड़े होने लगते थे या अशान्ति छाती थी
कोट-४ कोट लिये मुझे अपने बचपन के कोट की याद आ गयी। हमारे गाँव में जाड़ों में बहुत ठंड होती थी। कभी-कभी बर्फ भी गिरती थी। प्राथमिक विद्यालय में ठंड के दिनों में कोट पहन कर जाते थे। मेरे ...और पढ़ेभाई मुझसे लगभग चार साल बड़े थे। हम आपस में लड़ाई झगड़ा करते रहते थे। पिटाई मेरी ही होती थी लेकिन मैदान छोड़ने की आदत मुझे नहीं थी। एकबार ईजा ( माँ) ने हमारे कोट साथ-साथ धोकर सुखाने डाल दिये। दोनों कोट एक ही कपड़े के बने थे। शाम को मुझे कपड़े उठा कर लाने को कहा गया। मैं कपड़े उठा
कोट-५कोट लेकर में धीरे-धीरे झील के किनारे पहुँच गया। स्थान वही था जहाँ हम दो दोस्त विद्यार्थी जीवन में प्रायः खड़े होते थे। जहाँ हम मनुष्य की परिकल्पनाओं से लेकर ईश्वर की सृष्टि तक की बातें करते थे। समय ...और पढ़ेजाना था वह चला गया और आने वाले समय की आहट हमेशा बनी रहती है। मेरे दोस्त के बाल कुछ सफेदी लिये थे। वह अक्सर कहा करता था, इससे आकर्षण कम होता है। वहाँ तीन लड़कियां रैस्टोरेंट में प्रायः दिखती थीं। उसमें से एक हमारी कक्षा में पढ़ती थी। दो कला संकाय की थीं। दृष्टि प्रायः उस ओर जाती थी।
कोट-६चश्मेवाला व्यक्ति मेरे घर आ जाता है। मैं कोट को खूँटे से टांक देता हूँ। उसकी जेबों को टटोलता हूँ। दरवाजा बन्द कर हम बातें करने लगते हैं। रात को दो बच्चे लगभग ५ वर्ष की आयु के दरवाजा ...और पढ़ेहैं। कहते हैंबाबू जी दरवाजा खोलो। मैं अन्दर से कहता हूँ,"यहाँ चश्मे वाला आया है। बातें कर रहा है।"वे आश्चर्य से कहते हैं," चश्मेवाला" । मैं कहता हूँ हाँ वह खाना खा रहा है। वे सशंकित हो दूसरे कमरे में चले जाते हैं। थोड़ी देर बाद फिर आते हैं और पूछते हैं चश्मेवाला चला गया क्या? मैं कहता हूँ वह
कोट भाग -७"मैंने कुछ नहीं कहातुमने कुछ नहीं कहा,पर प्यार हो गया।"मैं पत्र लिखता था और उसे कोट की जेब में रख देता था कि कल सुष्मिता को दे दूँगा। लेकिन जब उससे मिलता था तो सोचने लगता ...और पढ़ेअभी नहीं कल दूँगा। पत्र को क्वार्टर में आकर फिर संपादित करता और उसे आधा कर देता और कोट की जेब में रख देता। इस बीच गीता बीच में आ जाती। गीता को समझने का प्रयत्न करता उसकी बातों का अनुसरण करने लगता और पंद्रह-बीस दिन अच्छी पढ़ायी कर लेता। फिर कुछ दिन बाद गीता का ज्ञान भूल जाता और अयारपाटा
कोट -८" मैं पृथ्वी सा घूमता रहामानो सूरज की परिक्रमा करता रहा,शाम आते-आते अगली सुबह की कल्पना करने लगा।"कोट पहना,संपादित कागज जेब में है या नहीं उसे देखा। वाक्य को दो-तीन बार पढ़ा। एक जादुई अहसास मन को हो ...और पढ़ेथा। मेरा आवास जंगल के बीच था, अतः अचानक राजा दुष्यंत का कथानक दुबक कर मेरे मन में आ गया। दुष्यंत और शकुंतला का वर्णन महाभारत के आदि पर्व में है। दुष्यंत जंगल में शिकार करते समय अपने साथियों से बिछुड़ गये थे। और शकुंतला से उनकी भेंट होती है जो प्यार में बदल जाती है। शकुंतला ऋषि विश्वामित्र और
कोट-९मैंने बच्चों से कहा जब तक चश्मे वाला नहीं लौट आता हिमालय से, तुम्हें एक कहानी सुनाता हूँ। बच्चों ने उत्सुकता में कान खड़े कर लिये। मैंने कहा, सुनो-"बहुत रात हो गयीचलो, कहानी कहें,एक था राजाएक थी रानी,सपनों में ...और पढ़ेसाधु आया,भिक्षा में उसनेराज्य उनका मांगा।बहुत रात हो गयीचलो, कहानी कहें,साँप फिर आयापुत्र भी खोया।गरीब थी रानीश्मशान में राजा,सत्य के लियेयह सत्य की कहानी।बोलो, वह राजा कहाँ से आया?राज्य फिर लौटा,पुत्र भी मिला,एक था राजाएक थी रानी।महल थे अनोखेराम से थे वे पहले,बोलो, वह राजा कहाँ से आया?"वे बोले पता नहीं। मैंने कहा मैं बताता हूँ-"राजा हरिश्चन्द्र हमारे इतिहास के
कोट-१०एक रात चश्मेवाला अचानक मेरे कमरे में प्रकट हुआ। उसने मेरे से पूछा," तुम्हारा कोट कहाँ है?" मैंने अलमारी से निकाल कर उसे कहा ये है। उसने कोट लिया और स्वयं पहन लिया। मैंने कहा कोट बहुत मैला ...और पढ़ेलेकिन परिश्रम और प्यार का प्रतीक है। पसीने की गंध इसमें आ रही होगी। पगडण्डियों में तेज चलने पर ,पहाड़ियों में चढ़ने पर, खेतों में काम करने पर अक्सर पसीना निकल जाता था जिसकी गंध कोट में बैठ जाती थी।बर्फ की फाँहें कोट के ऊपर जब-तब गिरकर अनिर्वचनीय दृश्य उत्पन्न करते थे। चश्मेवाला बोला अपने हाथ दिखाओ मैंने उसे हाथ दिखाये।
कोट-११कलम विद्यालय का चित्र खींच रही थी। छोटा विद्यालय फिर बड़ा विद्यालय। पचास साल के बाद अपनी स्मृतियों की गठरी लिये, एक पूर्व वरिष्ठ प्रोफेसर अपने राजकीय विद्यालय में जाना चाहती हैं,कुछ क्षण अतीत में बिताने। क्या पता वहाँ ...और पढ़ेऔर सुकून मिले! कोविड-१९ के कारण विद्यालय बन्द है। वह विद्यालय के प्रधानाचार्या से अनुरोध करती हैं और वह अनुरोध मान कर स्कूल खुलवा देती हैं। प्रेषित फोटो के साथ वह अपने राजनैतिक विचारों के साथ कक्षा में बैठी एक फोटो भी भेजती हैं सोशियल मीडिया पर। टिप्पणियां में कहा गया है विद्यालय के रंगों में साम्य नहीं है। स्कूल
कोट -१२ मैं आँख मूँदे बिस्तर पर लेटा था। आँख खुली तो चश्मेवाला सामने खड़ा था । उसने लम्बा कोट पहना था। उसमें लम्बी-लम्बी जेबें थीं। कोट की जेब से उसने दो पत्र निकाल कर मुझे दिये। १.आज ...और पढ़े वरिष्ठ पेड़ देखा।तना उसका मोटा था।डालियां झुकी हुई। फूल उस पर आते हैं पर कम। फल भी पहले से कम ठहरते हैं। गर्मी, सर्दी और बर्षा का अनुभव उसे है।सांसें लेता है और सांसें छोड़ता है ,आक्सीजन के रूप में।उसके बगल में एक छोटा पेड़ उग आया है।दोनों की दोस्ती हो गयी है।वरिष्ठ पेड़ उसे अपने अनुभव बताता है। कि कितनी बार वह कटा
कोट-१३मैंने कोट पहना और बचपन के अदृश्य प्यार से अभिभूत होने लगा। मेरे पास में दो छोटे बच्चे बैठे थे उन्हें मैं उत्तराखंड में प्रचलित और लोकप्रिय लोक कथा सुनाने लगा-"एक बूढ़ी महिला थी। उसकी एक बेटी थी। बहुत ...और पढ़ेबाद उसकी शादी दूर गाँव में हुयी।दोनों गाँवों के बीच में घनघोर जंगल पड़ता था जिसमें शेर,चीता,तेंदुआ, हाथी, घुरड़, भालू ,बन्दर, लंगूर और लोमड़ी आदि जंगली जानवर रहते थे।जब बहुत समय हो गया तो बुढ़िया का मन बेटी के पास जाने को हुआ। ममता ऐसी शक्ति है जो असंभव को भी संभव कर देती है।जंगली जानवरों का डर उसे डिगा
कोट-१४ चश्मेवाला उत्तरांचल के बर्फीले स्थानों से लौटा है। उसे मैं वहाँ के हरेला त्यौहार( हर्याव) के बारे में बताता हूँ, साथ में बच्चे भी सुनते हैं। बच्चों को पता नहीं है जो मेरे साथ बैठा है, वह चश्मेवाला ...और पढ़ेमैं आरम्भ करता हूँ- "जी रया, जागि रया, यो दिन यो मास भेटनै रया। (जीते रहना, जीवन्त/ जागते रहना,यह दिन ,यह महिना भेटते रहना) ----- गंग ज्यु पाणि तक अमर रैया।" संक्षिप्त में कहा जाता है- "जी रया, जागि रया, गंग ज्यु पाणि तक अमर रैया।( जीते रहना, जीवन्त/ जागते रहना, गंगा जी के जल तक अमर रहना)।" बचपन में
कोट-१५अभी-अभी दिन खुला हैस्नेहिल चिड़िया डालियों पर फुदक रही है।आसमान की नीलिमा मोहक लग रही है। मैंने अपने दोस्त से कहा," मैंने सुबह सपने में भगवान श्री राम और श्रीकृष्ण देखे।" उसने कहा ऐसा कैसे हो सकता है,हो ही ...और पढ़ेसकता है। पूजा-पाठ मैं करता हूँ और दिखायी तुम्हें देते हैं। तुम तो रोज मन्दिर भी नहीं जाते हो।फिर मैंने कहा ईजा-बाज्यू( माता-पिता) भी दिखे थे। तो बोला हाँ मुझे भी दिखी ईजा।लगता है पितर नाराज/क्रोधित हैं। मैंने बोला नाराज क्यों होंगे! उन्हें दिखना भी अच्छा है।उसने बोला लोक मान्यता यही है।उसने कहा चलो बैठो देखते हैं हमें हमारा "डीएसबी,
कोट-१६मैं नियमित रूप से वर्षों से दूरदर्शन पर रंगोली देखता हूँ। मैं कोट को कसकर पकड़े था। उस दिन एक गाना आ रहा था-"प्यार के लिएचार पल कम नहीं थे,कभी हम नहीं थे,कभी तुम नहीं थे...।"दस साल में तकनीकी ...और पढ़ेइतना अधिक हुआ है कि चिट्ठी का अस्तित्व लगभग समाप्त होने को है।संचार माध्यम इतने त्वरित हो गये हैं कि संवेदनाएं सिमट सी गयी हैं।हाय,पर मिलते हैं और हाय, पर ही विदा हो जाते हैं।बचपन में महिलाओं को प्यार से गले मिलते देखता था। वे गले मिलते समय कहते थे," भ त्ते भलि ह र छे (बहुत अच्छी हो रही
कोट-१७नैनीताल:तल्लीताल,नैनीताल से नैना चोटी को ज्यों ही देखा, तो बहुत दूर लगी। जबकि दो बार पढ़ाई करते समय उस पर चढ़ा हूँ। उम्र की सीमा को अनुभव कर रहा हूँ। मैं बैठे-बैठे नैनीताल का बदलता स्वभाव देख रहा हूँ।धुंध ...और पढ़ेघिरना, साफ होना। झील के ऊपर तक आना, फिर साफ होना।पर्यटन अपनी धुन में।नाव वाले अपनी जीविका की तलाश में। फोटो लेने वालों की घूमती दृष्टि। थोड़ी देर में घना कोहरा। मैं वहीं खड़ा हूँ जहाँ प्यार को समझने जानने का प्रयास किया था। जूते पालिस करने के लिए मोची के सामने हूँ। वह बीस रुपये में पालिस करने की
कोट-१८मैं बच्चों को कहता हूँ कि कल चश्मेवाला आया था। उसने तुम्हें बताने के लिए मुझे एक कहानी कही और कहा कि बच्चों को अवश्य सुनाना। कहानी का शीर्षक"राजकुमार-राजकुमारी" बताया।एक राजकुमार था,जो झील के किनारे घूमता था।झील में बड़ी-बड़ी ...और पढ़ेतैरा करती थीं। वह बड़े चाव से मछलियों की गतिविधियां देखता रहता था। मछलियों का संसार उसे अद्भुत और विस्मयकारी लगता था। झील में नावों का आना-जाना लगा रहता था। एक बार राजकुमार का राजपाट छीन गया था।एक दिन एक राजकुमारी उसे झील के किनारे मिली।राजकुमारी से उसे प्यार हो गया था।दोनों एक-दूसरे को चाहने लगे थे।राजकुमार उदास रहता था
कोट-१९मैं २०१७ में नैनीताल आया था। और झील के चिंताजनक कम जल स्तर को देखकर लिख बैठा था-झील की जुबानी एक कहानी:"प्रिय, मैं तुम्हारी याद में सूखे जा रही हूँ।कहते हैं कभी सती माँ की आँखें यहाँ गिरी थीं।नैना ...और पढ़ेका मंदिर इसका साक्षी है। कभी मैं भरी पूरी रहती थी।तुम नाव में कभी अकेले कभी अपने साथियों के साथ नौकायन करते थे।नाव में बैठकर जब तुम मेरे जल को छूते थे तो मैं आनन्द में सिहर उठती थी।मछलियां मेरे सुख और आनन्द की सहभागी होती थीं।बत्तखों का झुंड सबको आकर्षित करता था। "वक्त" फिल्म का गाना" दिन हैं बहार