कोट - २६ महेश रौतेला द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कोट - २६

कोट-२६

थोड़ा खो जाएं:(२०१८)

०८.०९.२०१८ को नन्हे बच्चों के स्कूल किडजी में जाना हुआ, अनायशा के स्कूल में। अनायशा दो साल तीन महीने की थी। उस दिन स्कूल दादा-दादी,नाना-नानी दिवस अर्थात ग्रांड पेरेंट्स दिवस मना रहा था।सभी वरिष्ठ नागरिक थे उनके साथ उनके नन्हे नाती-नातिन। उनके लिए तीन कार्यक्रम रखे गये थे। एक खेल में 12 गिलास थीं, उनके पीछे तले पर १,२,३ लिखे थे, गिलासों को तस्तरी में लगाना था और उनमें अपने अनुमान से एक, दो और तीन गोटियां डालनी थी।एक मिनट में यह करना था। फिर खेल कराने वाली अध्यापिका पता लगाती थी, किस गिलास में सही गोटियां डली हैं। जिसने सबसे अधिक सही गोटियां डाली होतीं, वह जीत जाता। सभी बड़़े उत्साह से और मनोयोग से खेल रहे थे और जीतने वाले के लिए तालियां बजा रहे थे।
दूसरे खेल में एक से बीस तक गिनती बारी बारी से पढ़नी थी, लेकिन पाँच, दस, पंद्रह और बीस नहीं कहना था। बीस के बाद फिर एक से उसी क्रम में जल्दी-जल्दी बोलना था। जो पाँच, दस, पंद्रह और बीस बोल जाता था, वह आउट हो जाता था। अन्त तक जो रह जाता ,वह विजयी हो जाता था। और जीत पर बहुत खुश होता था।
तीसरे खेल में संगीत बजता था और गेंद जल्दी-जल्दी अगले व्यक्ति को देनी होती थी, जहाँ पर संगीत बन्द होता था, जिसके हाथों में गेंद होती उसे टोकरी से चिट निकालना होता था और उसमें लिखे गीत को गाना होता था, यदि गीत न आता हो तो अपने मन से कोई गीत या भजन गाना होता था। सभी ने पुराने गाने ही गाये या भजन। दो महिलाओं ने भजन गाये जिनका भाव था," हे कृष्ण तुम पृथ्वी पर आना, राधा को साथ में लाना। हे राम तुम धरती पर आना, सीता जी को साथ में लाना।"
एक बुजुर्ग ने गाया," पल-पल दिल के पास, तुम रहती हो--।" दूसरे ने," याहू, चाहे तुम मुझे जंगली कहो---।" एक स्वर था," ओ मेरी जोहर जबीं, तुझे मालूम नहीं---। दूसरा स्वर था," रात बाकी , बात बाकी ---।"
मेरा पास जब गेंद रूकी तो मैं असमंजस में पड़ गया कि क्या गाया जाय। फिर मुझे याद दिलायी गयी और स्वर निकले," हे, नील गगन के तले, धरती का प्यार पले,
ऐसे ही जग में आती हैं सुबहें, ऐसे ही शाम ढले---।" यह गाना मैंने बचपन में एक पथिक के ट्रांजिस्टर रेडियो पर सुना था। तब मैं पेड़ में फल तोड़ रहा था और खा भी रहा था। वह काफल का पेड़ था। विशाल डालियों वाला। उसकी झुकी डालियों पर सरलता से बच्चे चढ़ सकते थे और खट्टे-मीठे काफलों का स्वाद लेते थे। तोड़े काफलों को थैली में या कोट की जेब में रखते थे,दूसरों के लिए।
फिर बगल से स्वर फूटा," कभी, कभी मेरे दिल में ख्याल आता है---।" और ," ये दोस्ती हम नहीं छोड़ेंगे---।" सब बहुत दूर निकल गये थे बचपन में।और कार्यक्रम का उद्देश्य भी यही था।
अन्त में चार साल की लड़की ने गाया," आजकल तेरे-मेरे प्यार के चर्चे ,हर जबान पर---।" तो सभी बुजुर्ग ठहाका लगा कर हँसने लगे। इसके बाद ,राष्ट्रीय गान के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।
सभी वरिष्ठ नागरिकों में बचपन दौड़ रहा था। अतीत को साकार करने का आयोजकों का यह प्रयास अत्यंत सफल रहा था।

** महेश रौतेला