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कोट - ६

कोट-६

चश्मेवाला व्यक्ति मेरे घर आ जाता है। मैं कोट को खूँटे से टांक देता हूँ। उसकी जेबों को टटोलता हूँ। दरवाजा बन्द कर हम बातें करने लगते हैं। रात को दो बच्चे लगभग ५ वर्ष की आयु के दरवाजा खटखटाते हैं। कहते हैं
बाबू जी दरवाजा खोलो। मैं अन्दर से कहता हूँ,"यहाँ चश्मे वाला आया है। बातें कर रहा है।"

वे आश्चर्य से कहते हैं," चश्मेवाला" । मैं कहता हूँ हाँ वह खाना खा रहा है। वे सशंकित हो दूसरे कमरे में चले जाते हैं। थोड़ी देर बाद फिर आते हैं और पूछते हैं चश्मेवाला चला गया क्या? मैं कहता हूँ वह हाथ धो रहा है और दाँत मल रहा है। बच्चे कहते हैं," उससे कहो हमारा ब्रश और दन्त मंजन प्रयोग न करे।" मैंने कहा वह अपना लाया है। वे चले जाते हैं।
दूसरे दिन चश्मेवाला आता है और दो छोटे फूल लाता है। बच्चे कहते हैं हमको कमल और गुलाब के बड़े फूल चाहिए। कल वह छुट्टी पर है, मैंने कहा। परसों लायेगा। वे विश्वास कर लेते हैं। जब चश्मेवाला नहीं आया तो मैंने कहा वायरस के कारण नहीं आ रहा है।

बच्चे बालकोनी में पपीता देखते हैं। पूछते हैं कौन लाया इसे। मैंने कहा चश्मेवाला। वे बोलते हैं चश्मेवाला तो बहुत अच्छा है। मैंने कहा वह डंडा भी रखता है अपने पास। जब बच्चे कहना नहीं मानते हैं तो पिटायी करता है। बच्चे यह सुनकर सहम जाते हैं।
रात को मैं अपने कमरे में जाता हूँ। बच्चे बाहर से पूछते हैं चश्मेवाला आया है क्या? मैंने कहा हाँ। वह एक कागज पर कुछ लिख रहा है। वह तुमसे भी कह रहा है अ आ, क ख और गिनती लिखो। बच्चे लिखने चले जाते हैं। वे लौटते हैं तो मैं कहता हूँ वह अभी-अभी गया है। कागज पर लिख कर कोट की जेब में रख गया है। मैं कोट की जेब से कागज निकाल कर उन्हें दिखाता हूँ जिस पर लिखा है-

"यादों को तुम कुछ मत कहना

यादों को तुम कुछ मत कहना
जब पगडण्डी से आहट ले लूँ ,
विद्यालय से पाठ चुरा लूँ ,
नदियों में जनम मिला दूँ ,
घर-घर की दिवार पकड़ लूँ ,
सीढ़ियों से आवाज लगा दूँ ,
वक्त से जन्म - वार पूछ लूँ |

यादों को तुम कुछ मत कहना
जब देश पर चर्चा छेडूँ ,
इतिहास पर मन को धो दूँ ,
नालन्दा को मानक मानूँ ,
तक्षशिला को छू कर आऊँ ,
प्यार को सौ - सौ बार पकड़ लूँ ,
आँसुओं से क्षण को धो लूँ ,
वृक्षों की छाया में आऊँ ,
झीलों का साहचर्य थाम लूँ ,
पहाड़ों का आध्यात्म जान लूँ ,
आसमान के ध्रुव को देखूँ |

यादों को तुम कुछ मत कहना
जब तेरे हाथ मुझ तक आवें ,
मेरे शब्द तुम तक जावें ,
जब मोड़ों से मुड़ जाना हो ,
होठों से जब हँस लेना हो ,
खिली साँस पर रूक जाना हो ,
टेड़ी - मेड़ी द्रुत गति की इन ,
यादों को तुम कुछ मत कहना | "

बच्चे पूछते हैं यह चश्मेवाला भूत है क्या? मैं कहता हूँ वह अमर पुरुष है। बच्चे कहते हैं तो वह भगवान जी हैं!

* महेश रौतेला

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