कोट - १६ महेश रौतेला द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कोट - १६

कोट-१६

मैं नियमित रूप से वर्षों से दूरदर्शन पर रंगोली देखता हूँ। मैं कोट को कसकर पकड़े था। उस दिन एक गाना आ रहा था-
"प्यार के लिए
चार पल कम नहीं थे,
कभी हम नहीं थे,
कभी तुम नहीं थे...।"
दस साल में तकनीकी परिवर्तन इतना अधिक हुआ है कि चिट्ठी का अस्तित्व लगभग समाप्त होने को है।संचार माध्यम इतने त्वरित हो गये हैं कि संवेदनाएं सिमट सी गयी हैं।हाय,पर मिलते हैं और हाय, पर ही विदा हो जाते हैं।बचपन में महिलाओं को प्यार से गले मिलते देखता था। वे गले मिलते समय कहते थे," भ त्ते भलि ह र छे (बहुत अच्छी हो रही है।)। इस बीच अलग समाचार भी मिलते हैं। कल अखबार में पढ़ा कि चीन में एक पति बर्षों से अपनी बिस्तर पकड़ी बीमार पत्नी की सेवा और देखभाल कर रहा है। पति की अभी उम्र चौरासी साल है। उसकी पत्नी जब बीस साल की थी तब उसे कुछ ऐसी बीमारी हो गयी थी कि वह असहाय हो गयी थी।पति तब कोयले की खान में काम करता था। उसनेअपनी नौकरी छोड़, पत्नी की देखभाल में अपना जीवन लगा दिया।
सन् 2015 में मेरे पड़ोस में बूढ़े पति-पत्नी रहते थे। लगभग पचहत्तर साल उनकी उम्र होगी। पत्नी अंधी हो गयी थी। बच्चों को उनकी कोई चिंता नहीं थी। एक ही शहर में सब रहते थे। आधुनिक जीवन की भाग-दौड़ में सब व्यस्त थे।पत्नी, पति से पूछती थी," तुम्हें कुछ हो गया तो मेरी देखभाल कौन करेगा?" पति के पास कोई उत्तर नहीं है, सिवाय एक दूसर को टकटकी लगाकर देखने की मुद्रा के। लेकिन विधि को कुछ और ही स्वीकार था। पत्नी ने जब यह चिन्ता व्यक्त की थी उसके तीन साल बाद उसका देहान्त हो गया था और चिन्ता का अन्त। पति अब अकेला रहता है।
अप्रैल-मई 2021 में कोविड-19 महामारी ने वीभत्स रूप धारण खर लिया था। लाखों लोग इस महामारी के शिकार हो गये थे। बहुतों ने अपनों को खोया था। दोस्त और सहकर्मी बिछुड़ गये थे। अस्पतालों में रोगियों को जगह नहीं मिल पा रही थी। समाचार आ रहे थे, श्मशान और कब्रों में लाइन लगी थी। शव अस्पताल से सीधे श्मशान घर ले जा रहे थे। घर के तीन-चार लोग ही अन्त्येष्टि क्रिया में सम्मिलित हो सकते थे। कहीं-कहीं जहाँ जगह मिल रही थी, वहीं दाह संस्कार कर दिया जा रहा था। शवों को गंगा जी में भी बहते पाया था लोगों ने,ऐसे समाचार थे।
एक परिवार के पाँच सदस्यों को कोविड-19 हुआ था।इसमें पति-पत्नी भी थे जो वरिष्ठ नागरिक थे। पत्नी को अस्पताल में भर्ती करना पड़ा था। उसकी सांसें टूटने लगी थी। तीस दिन वह आक्सीजन पर रही, आईसीयू में। परिवार के सभी सदस्य उसके प्राणों के लिए मन्नतें मांग रहे थे। पति ने ईश्वर से कहा," मेरी आयु के पंद्रह साल दे दीजिये, मेरी पत्नी को, हे ईश्वर।" वह धीरे-धीरे ठीक होने लगी। ईश्वर ने पति की आयु से प्राण दिये या अपने हिसाब से,पता नहीं। पति ने मन ही मन शिवजी के ऐतिहासिक मन्दिर में जाने का वचन भी लिया जो देवभूमि में स्थित है। मान्यता है कि शिवजी के इस मन्दिर में जो कुछ भी माँगा जाता था वह पूर्ण हो जाता था । धीरे-धीरे कुछ लोग इस शक्ति का दुरुपयोग करने लगे तो इस शक्ति को शिवजी ने निष्प्रभावी कर दिया।
इन सब बातों को सोचते, समझते और अपनी अनुभूतियों को कसते, मैं गुनगुनाता हूँ-
"प्यार के लिए
चार पल कम नहीं थे,
कभी हम नहीं थे,
कभी तुम नहीं थे...।" ---

* महेश रौतेला