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कोट - २१

कोट-२१
कोट के पास एक पत्र पड़ा था। मैंने उसे उठाया उस पर पड़ी धूल को झाड़ा। साथ में एक पन्ने में लिखा था मैंने जो,वह भी साफ-साफ दिख रहा था-
जब सपना टूटता है प्यार का
धड़ाम से
जब सपना कटता है प्यार का
कड़ाक से,
जब सपना गिरता है प्यार का
धड़ाम से
जब सपना घिसता है प्यार का
धीरे-धीरे,धीरे
घर खाने को दौड़ता है शनैः-शनैः, शनैः।
"भोर जब सन्नाटा लाता है
प्यार में आती है खटास,
रास्ते टूटते हैं जहाँ-तहाँ से
जैसे बाघ खा जाता है बकरी को
प्यार का नहीं दिखता नामोनिशान।"
चिट्ठी में लिखा था," मौसम अच्छा है। ठीक-ठाक नौकरी अभी तक नहीं मिली है। मन नहीं लग रहा है। तुम बेरोजगारी के दर्द को नहीं समझोगे। हाँ, वह मिली थी। तुम्हारे बारे में पूछ रही थी। बहुत उदास लग रही थी।"
मैं तब उससे मिलने के लिए बहुत उत्सुक रहता था। नैनीताल अपने आप में एक स्वप्निल नगर है जब तक उचित काम-काज आपके पास है जैसे पढ़ाई-लिखाई, व्यापार, रोजगार या सेवानिवृत्ति के बाद का जीवन आदि अर्थात कुछ न कुछ व्यस्तता हो। झील के चक्कर लगाना मेरे जैसे प्रकृति प्रेमियों को बहुत सुहाता और आह्लादित करता है। झील का एक चक्कर लगाते फिर सहपाठियों के साथ कुछ देर बैठ लिये। मैं उन्हें सुनाता था देखो, मैंने बना लिया कोहरे सा मन,उसमें बैठी है एक लड़की, श्यामली- सलोनी। मुझे देखती, कहती कुछ नहीं जैसे आकाश हो मौन। देखना ही बहुत होता है दोस्तो। बहुत हैं जिन्हें कोई देखता ही नहीं। जहाँ मन बसता है उधर ही आँखें घूमती हैं। रास्तों पर प्रतीक्षा जीवन्त होती है। कोई आय और वातावरण को सुगंधित कर दे। मन को ठहरा दे जैसे मन्दिर में ठहरता है ध्यान। फिर हम बटोरते हैं बाँहें, स्वच्छता के लिए, पवित्रता का आचमन करने के लिये। एक क्षितिज बनाता हूँ जहाँ उदय और अस्त घटता रहता है।
दोस्तो अपनी बात पूरी नहीं करूँगा। कल भी तो है।
मैं पत्र को बार-बार देखता हूँ। उस पंक्ति को जिसमें लिखा है," तुम्हारे बारे में पूछ रही थी।" इतना छोटा वाक्य मेरे लिए अथाह महत्वपूर्ण हो गया था। जैसे "ऊँ नमोभगवते वासुदेवाय नमः" हमारे लिए होता है।
घटनाएं मेरे दिमाग में पंक्तिबद्ध होने लगी। बहुत बारिश होती है,बहुत बर्फ गिरती है साथ में बहुत प्यार होता है।निकल गये ना दिन जैसे निकल जाते हैं प्राण।
नचिकेता ने यमराज से जो प्रश्न किये थे उसकी सहेली ने मुझसे उसी प्रकार प्रश्न पूछे थे-
"प्यार क्या है?
यह अटल है क्या?
यह दुख क्यों देता है?
सच्चा प्यार भावात्मक होता है क्या?
राधा, श्रीकृष्ण के प्यार अस्मरणीय और अद्भुत क्यों बन गया?
प्यार मरता है या नहीं!
प्यार के समुद्र का तैराक कौन है?
प्यार का आत्मा से क्या संबंध है?"
अब मैं घूमते-घामते आ गया हूँ पुस्तकालय में। उस पुस्तकालय में जिसके बारे में मुझसे मेरे पहले साक्षात्कार में पूछा गया था," आपके कालेज के पुस्तकालय में कितने "रिसर्च जर्नलस" आते हैं? मैंने कुछ देर सोचा फिर उत्तर दिया," पाँच-छ:।" तो इंटरव्यू बोर्ड का एक सदस्य बोला "बस"। हमारे यहाँ एक सौ पचास जर्नलस हैं। मुझे आश्चर्य हुआ था। तब में रिसर्च जर्नलस के बारे में कुछ नहीं जानता था शायद। इन सब बातों के बीच, मेरा चयन हो गया था।
मैं नगर की दिवारों के अन्दर ही था। धुँध और कोहरा मुझमें छाया रहता था। फिर सूर्योदय सा कुछ हुआ लेकिन नियुक्ति पत्र आने में बहुत देर हो रही थी और मैं डाक देखने तल्लीताल एक चक्कर अवश्य जाता था,भोर के तारे की खोज में।

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