कोट - २७ महेश रौतेला द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कोट - २७


कोट-२७

बात १९७३-७५ की है। तब कक्षा में लड़कियों से लड़के बातचीत नहीं करते थे। यह एक सामाजिक परंपरा जैसी थी तब। हमारी कक्षा में तब मात्र तीन लड़कियां हुआ करती थीं। भौतिक विज्ञान प्रयोगशाला में हम प्रयोग किया करते थे। एक बार उनमें से किसी एक का रूमाल प्रयोगशाला में छूट गया था। वे प्रयोगशाला छोड़कर जा चुके थे। मेरा प्रयोग देर तक चला। मैंने रूमाल उठाया और मैडम( प्रवक्ता -भौतिक विज्ञान) को रूमाल देते हुये कहा," मैबम,यह लड़कियों का रूमाल है।" मेरा इतना कहना था कि मैडम बोली," तो उनको दे दो।" मैंने रूमाल कोट की जेब में घुसाया और सीढ़ियों से उतरा। सीढ़ियां लकड़ी की थीं। मैं सीधे उनके पास गया। वे तीनों एक साथ रहती थीं। कारिडोर में खड़ी थीं। मैंने जेब से रूमाल निकाल कर कहा," आप लोगों का रूमाल है ये।" एक लड़की बोली," हाँ,मेरा है।" दो सालों में लड़कियों से यही प्रथम और अन्तिम बातचीत थी। अब एक धुँधला चित्र ही याद है। रूप-लावण्य था जैसा अन्य सहपाठी बताते हैं। लगभग तीस साल बाद मुझे उनमें से एक लड़की मिली,मल्लीताल में। उसने मुझे पहिचान लिया। वह बोली," वह समय कितना अच्छा था,डीएसबी में। मैंने कहा तब तो बातें हुआ नहीं करती थीं। उसने कहा तब भी बहुत सुन्दर और अच्छा था।अनुभूतियां तो आन्तरिक होती हैं।रूमाल देना मुझे अब भी याद है।"
समय ने परंपरायें बदली हैं। मैं २०२२ में आ चुका हूँ। हल्द्वानी से शाम नौ बजे की वोल्वो में बैठा हूँ। चालक और सहचालक बातें कर रहे हैं। बोल रहे हैं कावड़ियों के कारण बस का रास्ता बदल दिया गया है। एक यात्री ने पूछा," दिल्ली कितने बजे पहुँचेगी बस?" वे बोले," कह नहीं सकते।जाम बहुत मिल रहा है आजकल। कल आठ बजे पहुँची थी। बस, पुलिस द्वारा तय मार्ग पर ही जायेगी।" यात्री चिन्तित हो गया। बोला," मेरी फ्लाइट छूट जायेगी। सुबह ही चला जाता तो ठीक था।" फिर वह अपनी उड़ान( फ्लाइट) समायोजित करने में लग गया। मैं जिस सीट पर था उसके ठीक पीछे एक लड़की बैठी थी। वह फोन पर एक लड़के से बात कर रही थी। कह रही थी अरे,तुम आये नहीं नैनताल। रामनगर में क्या कर रहे थे?" लड़का शायद कुछ स्पष्टीकरण दे रहा था, उसकी आवाज सुनायी नहीं दे रही थी। वह फिर बोली मैं अभी गुरुग्राम जा रही हूँ। एक तारीख को मैंने वहाँ ज्वाइन करना है। अरे, तुझे विश्वास नहीं हो रहा है,मैं सही कह रही हूँ।----।
दिल्ली से कैब कर लूँगी। उधर से लड़के ने कुछ कहा। वह बोली," अरे, मिश्रा तू मुझे अपना मित्र समझता है तो गुरुग्राम आ जा। वहाँ मेरी नयी जीवन शैली होने वाली है। तू देखता रह जायेगा।
किसी की शादी में जाने के कारण तू नैनताल नहीं आ पाया। इसलिए भेंट नहीं हो पायी। आ जाता तो अच्छा होता। ---।
आज मेरा सोमवार का उपवास है। सावन का महिना चल रहा है। तू क्या समझता है! मैं पूरी पडिताईन हूँ।----।
नैनताल के दिन अब अतीत हो जायेंगे। मालरोड, टिप इन टोप,स्नोव्यू, मल्लीताल, तल्लीताल,नैनादेवी,हनुमानगढ़ी,मालरोड, ठंडी सड़क आदि सब याद बन जायेंगे। होटल,रेस्टोरेंटों की चाय,पकवान आदि याद आयेंगे। झील का अतुलनीय सौंदर्य कभी दूर नहीं हो पायेगा।----।
तुझे पता है, अशीष, रुचि को मोटरसाइकिल में घुमा रहा था। मुझे अनदेखा कर रहा था। रुचि ने मुझे देखा। वह मुस्करायी। जब रुचि ने देखा तो अशीष ने भी देखा ही होगा। ऐस हो ही नहीं सकता है कि उसने नहीं देखा। अनदेखा कर रहा था। मैं हाय कैसे बोलती। मैं माँ के साथ थी। मल्लीताल से तल्लीताल आ रही थी। माँ मुझे छोड़ने आ रही थी। मैं भी आशीष को फोन नहीं करनेवाली हूँ, अब।उधर से लड़का कुछ बोला। वह फिर बोली,"
अरे, मिश्रा ज्यादा स्मार्ट मत बन। गुरुग्राम में मैं पहले जैसी नहीं रहूँगी जैसी तूने नैनताल में मुझे देखा था। मैं अलग व्यक्तित्व की लड़की हो जाऊँगी/ आई विल बी डिफरेंट पर्सन।
बस द्रुत गति से चल रही थी। फोन में सिंगनल आ-जा रहे थे। वह बार-बार हलो,हलो कर रही थी। फिर बोली," तू शादी की पार्टी का आनन्द ले।सिंगनल चला गया शायद।या तू बोल नहीं रहा है?" फिर वह सो गयी। बस साढ़े सात बजे आनन्द विहार पहुँची। उसने कैब की और चली गयी। मैंने भी कैब की और अतिथि गृह आ गया।

** महेश रौतेला