कोट - २८ महेश रौतेला द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • अनोखा विवाह - 10

    सुहानी - हम अभी आते हैं,,,,,,,, सुहानी को वाशरुम में आधा घंट...

  • मंजिले - भाग 13

     -------------- एक कहानी " मंज़िले " पुस्तक की सब से श्रेष्ठ...

  • I Hate Love - 6

    फ्लैशबैक अंतअपनी सोच से बाहर आती हुई जानवी,,, अपने चेहरे पर...

  • मोमल : डायरी की गहराई - 47

    पिछले भाग में हम ने देखा कि फीलिक्स को एक औरत बार बार दिखती...

  • इश्क दा मारा - 38

    रानी का सवाल सुन कर राधा गुस्से से रानी की तरफ देखने लगती है...

श्रेणी
शेयर करे

कोट - २८

कोट-२८
दिल्ली अतिथि गृह से निकल। सड़क पर धीरे-धीरे टहल रहा था। एक स्थान पर एक बिल्डिंग बन रही थी। मजदूर काम के बाद इकट्ठा बैठे थे। एक मजदूर की अपनी पत्नी से कहासुनी हो रही थी,किसी बात पर। वह पत्नी को मारने गया तो पत्नी भाग कर अन्य मजदूरों के पीछे चली गयी। वह सड़क पर आया और फिर लौटा और एक ईंट उठा कर पत्नी को दे मारा। पत्नी ने ईंट आता देख अपने को बचा लिया। फिर वह उसे मारने आगे बढ़ा तो अन्य मजदूरों ने बीच बचाव किया। और पत्नी को पीछे जाने को बोला। इतने में उनकी दृष्टि मुझ पर पड़ी। मुझे लगा वे कुछ झिझक से गये।उसका पति एक रिक्शे में बैठ कर वहाँ से चला गया।
आनन्द विहार से आठ बजे हल्द्वानी के लिये राजकीय बस थी। उसका सह चालक बहुत ही कर्तव्यनिष्ठ था। चुस्तदुरुस्त और अच्छे डीलडौल का नौजवान था। वह सवारी भरने के लिए "हल्द्वानी,हल्द्वानी,हल्द्वानी" बोले जा रहा था। वह चाह रहा था कि बस सवारियों से भर जाय। साधारण बस वाले को भी वह अपनी बस दूर लगाने को बोल रहा था। उसे बोला," तुम लोग समझते नहीं। कितनी बार कहा है, यहाँ पर नहीं लगाओ। आप लोग सुनते ही नहीं।" साधारण बस के ड्राइवर ने सुना नहीं और वह बस खड़ी कर चाय पीने चला गया। वह फिर "हल्द्वानी, हल्द्वानी, हल्द्वानी" की धुन में सावारियों का ध्यान खींचने लगा। बस लगभग भर चुकी थी। ठीक समय से बस चली। कावड़ियों के कारण कहीं-कहीं पर बस का रास्ता बदला गया था। राजमार्ग पर खाना खाने के लिए सहचालक ने ड्राइवर से बस मोड़ने को कहा, ढाबे की ओर। ड्राइवर ने कहा आगे से चलेंगे। बस आगे पहुँची तो वहाँ पर पुलिस ने रास्ता बन्द कर दिया था। तो सहचालक बोला," ये बुजुर्ग लोग ,जवानों की सुनते ही नहीं। मैंने पहले ही कहा था, बस को मोड़ने को।" फिर बस एक किलोमीटर आगे जाकर पीछे आयी,ढाबे पर। हल्द्वानी पहुँच कर कार में बैठा तो एक बाबा जी आये। बोले सावन का महिना चल रहा है। कुछ दान करो। मैंने उन्हें दस रुपये देने लगा तो उन्होंने नहीं लिये। मैंने कहा ," मैं दस रुपये ही दूँगा। लेना है तो लीजिये।" उन्होंने दस रुपये ले लिये। और बोले यह फूल ले लो आशीर्वाद मिलेगा शिवजी का। फूल लेने के लिये मैंने हाथ आगे बढ़ाया। उन्होंने फूल मेरे हाथ में रखा और बोले मुट्ठी बाँध लो। फिर बोले मुट्ठी खोलिये। मैंने मुट्ठी खोली तो हाथ में फूल के स्थान पर कांच का त्रिशूलनुमा चिह्न था। मैंने थोड़ा सोचा इस चमत्कार के विषय में, फिर बोला," बाबा जी आप इसे रख लीजिए।" और उन्होंने उसे ले लिया। तभी बारिश आरम्भ हो गयी और वे आगे चल दिये।
हल्द्वानी रोडवेज स्टेशन पर मेरा मोबाइल फोन डिस्चार्ज होने को था। चार्जिंग के कुछ पाइंट ठीक थे और कुछ खराब। ठीक पाइंट पर फोन यात्री अपना फोन चार्ज कर रहे थे। मैंने उनके स्टाफ कमरे में पूछा," मैं अपना फोन चार्ज कर सकता हूँ यहाँ।" उन्होंने कहा कर लीजिए। थोड़ीदेर में एक व्यक्ति वहाँ आया। बोला," मेरा फोन खो गया है। बाहर चार्जिंग पर लगा रखा था।" फिर बोला चाय के लिए कुछ दीजिएगा। मैंने दस रुपये उसे दिये और वह चला गया। कुछ देर बाद पुलिस का एक सिपाही वहाँ आकर बैठ गया। उसके पीछे वह आदमी भी आया और पुलिस वाले को बोला," मेरा फोन खो गया है।उसे ढूंढये।" पुलिस वाला बोला," मैं कहाँ ढूंढू?" वह बोला," आपकी ड्यूटी क्या है? आपको ढूंढना होगा।" पुलिस वाला बोला आपको ठीक से रखना चाहिए था फोन। मैं इतने लोगों की चैकिंग नहीं कर सकता। आप थाने में अपनी रिपोर्ट लिखाइये। थानेदार से बात कीजिए।" वह व्यक्ति कमरे से बाहर चला गया। पुलिस वाला मुझे बोला," पी- खाकर आया है। और बेकार की बकवास कर रहा है।"

* महेश रौतेला