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Yashvant Kothari लिखित उपन्यास वैश्या वृतांत | हिंदी बेस्ट उपन्यास पढ़ें और पीडीएफ डाऊनलोड करें

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वैश्या  वृतांत  द्वारा  Yashvant Kothari in Hindi उपन्यास

वैश्या वृतांत - उपन्यास

Yashvant Kothari Verified icon द्वारा हिंदी प्रेम कथाएँ

(424)
  • 19.6k

  • 15k

  • 125

देह व्यापार.विवेचन इनसाइक्लोपेडिया ब्रिटानिका के अनुसार देह व्यापार का अर्थ है मुद्रा या धन या मंहगी वस्तु और षारीरिक सम्बन्धों का विनिमय। इस परिभापा में एक षर्त ये भी है कि वह विनियम मित्रों या पति पत्नी के अतिरिक्त ...और पढ़ेगणिका के बारे में वात्स्यायन ने लिखा है.गणिकाएंए चतुरए पुरुपों के समाज मेंए विद्वानों की मंडली में राजाओं के दरबार में तथा सर्वसाधारण में मान पाती है। प्राचीन भारत में वेष्याएं थीए उसी प्रकार हीटीरा यूनान में तथा जापान में गौषाएं थी। वेष्या के पर्यायों में वारस्त्रीए गणिकाए रुपाजीवाए षालभंजिकाए षूलाए वारविलासिनीए वारवनिताए भण्डहासिनीए सज्जिकाए बन्धुराए कुम्भाए कामरेखाए पण्यांगनाए वारवधूए कम पढ़ें

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वैश्या -वृतांत

(121)
  • 10.4k

  • 3.5k

देह व्यापार.विवेचन इनसाइक्लोपेडिया ब्रिटानिका के अनुसार देह व्यापार का अर्थ है मुद्रा या धन या मंहगी वस्तु और षारीरिक सम्बन्धों का विनिमय। इस परिभापा में एक षर्त ये भी है कि वह विनियम मित्रों या पति पत्नी के अतिरिक्त ...और पढ़ेगणिका के बारे में वात्स्यायन ने लिखा है.गणिकाएंए चतुरए पुरुपों के समाज मेंए विद्वानों की मंडली में राजाओं के दरबार में तथा सर्वसाधारण में मान पाती है। प्राचीन भारत में वेष्याएं थीए उसी प्रकार हीटीरा यूनान में तथा जापान में गौषाएं थी। वेष्या के पर्यायों में वारस्त्रीए गणिकाए रुपाजीवाए षालभंजिकाए षूलाए वारविलासिनीए वारवनिताए भण्डहासिनीए सज्जिकाए बन्धुराए कुम्भाए कामरेखाए पण्यांगनाए वारवधूए कम पढ़ें

वैश्या -वृतांत - 2

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अथातो दुष्कर्म जिज्ञासा (बलात्कार :एक असांस्कृतिक अनुशीलन ) यशवंत कोठारी जैसा की आप सब जानते हैं आज का युग बलात्कार का युग है है. अत:जो बलात्कार का चमत्कार नहीं कर सकता वो जीवन में कुछ नहीं कर सकता. ...और पढ़ेएक शब्द ने थ्री इडियट्स फिल्म को हिट कर दिया.उत्तर आधुनिक काल के बाद उत्तर सत्य काल आया है जो वास्तव में बलात्कार, दुष्कर्म ,जोरजबर दस्ती का युग है. ये सब काम दबंग, शक्तिशाली और हिंसक मानसिकता वाले ही करते हैं.बलात्कार केवल शारीरिक ही नहीं होता, मानसिक, आर्थिक सामाजिक व् वैज्ञानिक भी होता है.राज नेता सत्ता के साथ बलात्कार करता कम पढ़ें

वैश्या -वृतांत - 3

(30)
  • 1.1k

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ढाई आखर प्रेम का यशवन्त कोठारी प्रेम के बारें में हम क्या जानते है ? प्रेम एक महत्वपूर्ण भावनात्मक घटना हैं। प्रेम को वैज्ञानिक अध्ययन से अलग समझा जाता हैं। कोई भी शब्द इतना नहीं पढ़ा जाता ...और पढ़ेजितना प्रेम, प्यार, मुहब्बत। हम नहीं जानते कि हम प्रेम कैसे करते है। क्यों करते है। प्रेम एक जटिल विषय हैं। जिसने मनुष्य को आदि काल से प्रभावित किया है। प्रेम और प्रेम प्रसंग मनुष्य कि चिरस्थायी पहेली है। प्रेम जो गली मोहल्लों से लगाकर समाज में तथा गलियों में गूंजता रहता है। प्रेम के स्वरूप और वास्तविक अर्थ के कम पढ़ें

वैश्या -वृतांत - 4

(24)
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अश्लीलता के बहाने यशवन्त कोठारी अश्लीलता एक बार फिर चर्चा में है। मैं पूछता हूं अश्लीलता कब चर्चा में नहीं रहती। सतयुग से कलियुग तक अश्लीलता के चर्चे ही चर्चे है। आगे भी रहने ...और पढ़ेपूरी संभावना है। यह बहस ही बेमानी है। श्लीलता आज है कल नहीं मगर अश्लीलता हर समय रहती है। अश्लीलता बिकती है उसका बाजार है, श्लीलता का कोई बाजार नही है। इधर एक साथ कुछ ऐसी फिल्में दृष्टिपथ से गुजरी जिनके नाम तक अश्लील लगते हैं। जिस्म, मर्डर, फायर, नो एन्ट्री, हवस, गर्लफेण्ड, खाहिश, जैकपाट, हैलो कौन है, तौबा कम पढ़ें

वैश्या वृतांत - ५

(19)
  • 525

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स्त्री +_ पुरुष = ?  यशवन्त कोठारी प्रिय पाठकों ! शीर्षक देखकर चौंकिये मत, यह एक ऐसा समीकरण है जिसे आज तक कोई हल नहीं कर पाया। मैं भी इस समीकरण का हल करने का ...और पढ़ेप्रयास करूंगा। सफलता वैसे भी इतनी आसानी से किसे मिलती है। सच पूछो तो इस विषय को व्यंग्य का विषय बनाना अपने आप में ही एक त्रासद व्यंग्य है। पिछले दिनों एक पत्रिका में एक आलेख पढ़ रहा था-बेमेल विवाह । बड़ी उम्र की स्त्री और छोटी उम्र के पति या रईस स्त्री और गरीब पति। इस आलेख में कम पढ़ें

वैश्या वृतांत - 6

(13)
  • 457

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कुंवारियों की दुनिया पिछले कुछ वर्षों में महानगरों तथा अन्य शहरों में कुंवारी काम काजी महिलाओं का एक नया वर्ग विकसित होकर सामने आया है । वैसे कस्बों और गांवो मे आज भी इस प्रकार की सामाजिक ...और पढ़ेकी कल्पना नहीं की जा सकती है । पढ़ी लिखी, सुसंस्कृत और नौकरी पेशा यही है इमेज कुंवारी लड़कियों की । वह अकेली रहती है, बाहर आती जाती है, अकेली यात्रा करती है और फैसले भी शायद खुद करने में समर्थ है । हर महिला अनेक प्रकार के दबावों को झेलती है, तथा लगातार खड़े रहने के लिये संर्घषरत कम पढ़ें

वैश्या वृतांत - 7

(12)
  • 316

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स्त्री प्रजाति के खत्म होने का खतरा ष् क्या एक दिन संपूर्ण विश्व से स्त्री प्रजाति के खत्म हो जाने का खतरा शुरू हो जायेगा क्या भारत में स्त्रियों कि संख्या पुरूषों के मुकाबलें में निरंतर गिर रही है ...और पढ़ेक्या पुरूषों के मुकाबलें कम होती स्त्रियों के कारण समाज और जीवन में भयानक परिवर्तन आ सकतें है ये कुछ प्रश्न है जो आजकल बुद्धिजीवियों को सोचने को मजबूर कर रहे है आइये पहलें आंकडों की भाषा देखें।भारत में 1901 में 10,00 पुरूषों के मुकाबलें में 872 स्त्रियां थी जो अब 1981 में 821 रह गयी हैै। और शायद अगली कम पढ़ें

वैश्या वृतांत - 8

(15)
  • 391

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छेड़छाड: एक प्रति -शोध प्रलाप  यशवन्त कोठारी आज मैं छेड़छाड़ का जिक्र करूंगा। छेड़छाड़ हमारी सांस्कृतिक विरासत है, जिसे बेटा बिना बाप के बताए भी सीख और समझ जाता है। मुछों की रेख आई नहीं कि लड़का ...और पढ़ेसंबंधी अध्ययन में उलझ जाता है और यह लट तब तक नहीं सुलझती, जब तक कि लड़के विशेष की शादी विशेष नहीं हो जाती। कुछ मामलों में यह शादी नामक घटना या दुर्घटना हवालात में भी संपन्न होती है। साबुन की किसमों की तरह छेड़छाड़ की भी कई किसमें होती है। जैसे बाजारू छेड़छाड़, घरेलू छेड़छाड़, दफ्तरी छेड़छाड़, फिल्मी छेड़छाड़ कम पढ़ें

वैश्या वृतांत - 9

(15)
  • 331

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औरत: कथाएँ और व्यथाएँ यशवन्त कोठारी (1)दहेज वे आपस में एक दूसरें को प्यार करते थे । (क्योंकि करने को कुछ नहीं था) वे एक दूसरे के बिना नहीं रह सकते थे । (बिना नहीं रह सकने ...और पढ़ेमतलब अकेले रहने से है.... अकेलेपन से बचने हेतु वे साथी बदल लेते थे) समय आने पर मां-बाप ने लड़के की शादी दहेज के लिए कर दी । लड़का दहेज स्वीकार करने के अलावा कर क्या सकता था लड़की अधिक लालची परिवार में गयी। दहेज की मांग को लेकर स्टोव फटा और लड़की चल बसी । लड़के कम पढ़ें

वैश्या वृतांत - १०

(11)
  • 282

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घर –परिवार –कथाएं –व्यथाएँ-लघुकथाएं १ -संदूक एक घर में आयकर वालों का छापा पड़ा. अधिकारी ने सब छान मारा .अंत में एक संदूक दिखा ,बूढी माँ ने अनुनय की इसे मत खोलो ,मगर संदूक खोला गया .उसमे कुछ ...और पढ़ेरोटियों के टुकड़े थे ,जो माँ के रात-बिरात काम आते थे.आयकर अधिकारी रो पड़ा. ००००००० २--स्मार्ट बहू काम वाली नहीं आई थी ,सास ने जल्दी उठ कर सारा काम निपटा दिया.कुछ दिनों बाद फिर ऐसा ही हुआ.बहु कार लेकर गई अपनी सहेली के यहाँ से काम वाली को का र में बिठा कर लाई,काम कराया और वापस का र से कम पढ़ें

वैश्या वृतांत - 11

(9)
  • 280

  • 280

चलो बहना सब्जी लायें यशवन्त कोठारी ‘आज क्या सब्जी बनाऊं ? यदि आप पति हैं तो यह वाक्य हजारों बार सुना होगा और यदि आप पत्नी हैं तो यह प्रश्न हजारों बार पूछ़ा होगा। यदि दोनो ही नहीं ...और पढ़ेतो आपकी सूचनार्थ सादर निवेदन है कि दाम्पत्य जीवन के महाभारत हेतु ये सूत्र वाक्य है। जो दाम्पत्य जीवन के रहस्यों से परिचित हैं , वे जानते हैं कि सब्जी क्या बनाउं से शुरू हो कर यह महाभारत कहां तक जाता है। खुदा का शुक्र है कि विज्ञान की प्रगति के कारण सब्जी लाने का कार्य आजकल साप्ताहिक रूप से कम पढ़ें

वैश्या वृतांत - 12

(8)
  • 270

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दाम्पत्य में दरार के बढ़ते कारक यशवंत कोठारी तब मैं विद्यार्थी था। कालेज में एक प्रोफेसर हमें पढ़ाती थीं। अचानक एक दिन सुना कि उन्होंने आत्महत्या कर ली। कुछ समझ में नहीं आया। धीरे धीरे रहस्य की परतें ...और पढ़ेवे विवाह के 25 वर्पों के बाद अपने नाकारा पति से समन्वय करते करते थक-हार कर प्राण दे बैठी। बच्चे बड़े और समझदार हो गए थे। चाहती तो बड़े आराम से तलाक से उस नाकारा पति से छुटकारा पा सकती थी। उसके पति 25 वर्पों से उनकी कमाई पर जिन्दा थे। अचानक उम्र के इस मोड़ पर एक 45 वर्पीय कम पढ़ें

वैश्या वृतांत - 13

(3)
  • 194

  • 217

ऐसे स्वागत कीजिए जीवन की सांझ का यशवंत कोठारी देश में इस समय करोडो लोग ऐसे हैं जिनकी आयु 60 वर्प या उससे अधिक है। बड़े बूढ़ों का इस देश में हमेशा ही सम्मान और आदर रहा ...और पढ़ेलेकिन बदलते हुए सामाजिक मूल्य, टूटते हुए परिवार और बढ़ता हुआ ओद्योगिकरण हमारी इस महत्वपूर्ण सामाजिक इकाई पर कहर ढा रहे हैं। समाज और परिवार में इन बूढ़ों की स्थिति कैसी है, उनकी मानसिक दुनिया कैसी है वे अपने जमाने और आज की पीढ़ी के बारे में क्या सोचते हैं ? अक्सर आपने पार्कों में, बगीचों और शा कम पढ़ें

वैश्या वृतांत - 14

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  • 303

  • 257

दामाद: एक खोज यशवन्त कोठारी अपनी साली की शादी में जाने का मेरा कोई विचार ही नहीं था। सोचता था कि पत्नी अपनी दोनों बच्चियों को लेकर चली जाएगी और सब काम सलटा कर आ जाएगी। ...और पढ़ेपत्नी का आग्रह बड़ा विकट था; आग्रह क्या, आदेश ही था दोनों लड़कियाँ जवान हो गई हैं और उनके लिए दूल्हा ढूँढ़ने का यह एक स्वर्णिम अवसर था। आखिर मैंने हार मानी और साथ जाने के लिए कार्यालय से छुट्टी ले ली। जी.पी.एफ. से कुछ ऋण लिया, साली की लड़की के लिए एक अच्छा सा गिफ्ट लिया और चल पड़ा कम पढ़ें

वैश्या वृतांत - 15

(5)
  • 152

  • 169

लक्ष्मी बनाम गृहलक्ष्मी यशवन्त कोठारी दीपावली के दिनों मे गृहलक्ष्मियों का महत्व बहुत ही अधिक बढ़ जाता है, क्योंकि वे अपने आपको लक्ष्मीजी की डुप्लीकेट मानती हैं । लक्ष्मी और गृहलक्ष्मी दोनों खुश हो तो दिवाली है, ...और पढ़ेतो दिवाला है, और जीवन अमावस की रात है । सोचा इस दीपावली पर गृहलक्ष्मी पर एक सर्वेक्षण कर लिया जाये क्योंकि अक्सर मेरी गृहलक्ष्मी अब मायके जाने की धमकी देने के बजाय हड़ताल पर जाने की धमकी देती है । क्या इस देश की गृहलक्ष्मियों को हड़ताल पर जाने का कोई मौलिक अधिकार है ? और यदि है कम पढ़ें

वैश्या वृतांत - 16

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  • 135

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हिरोइन पर लिखने के फायदे यशवन्त कोठारी वे वर्षों से साहित्य के जंगल में अरण्यरोदन कर रहे थे, किसी ने घास नहीं डाली। यदा-कदा किसी लघु पत्रिका में उनकी कोई कहानी-कविता छप जाती, जिसे कोई नहीं पढता ...और पढ़ेवे पाठकों की तलाश में काफी समय तक मारे-मारे फिरते रहे । कुछ समझ नहीं पा रहे थे कि पाठक क्या पढ़ते हैं या पाठक उन्हें क्यों नहीं पढ़ते । आखिर पाठक चाहता क्या है ? वे अक्सर पूछते । जब सब तरफ से फ्री हो जाते तो वे अक्सर मेरे पास आ बैठते और कहते- ‘यार आजकल कम पढ़ें

वैश्या वृतांत - 17

(5)
  • 201

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कुंवारी कन्याओं का कुवांरा पर्व-साँझी-- यशवन्त कोठारी राजस्थान, गुजरात, ब्रजप्रदेश, मालवा तथा अन्य कई क्षेत्रों में सांझे का त्यौहार कुंवारी कन्याएं अत्यन्त उत्साह और हर्ष से मनाती हैं। श्राद्धों के प्रारम्भ के साथ ही याने आश्विन मास के कृष्ण ...और पढ़ेसे ही इन प्रदेशों की कुंवारी कन्यांए सांझा बनाता शुरू करती हैं जो सम्पूर्ण पितृपक्ष में चलता है।घर के बाहर, दरवाजे पर दीवारों पर कुंवारी गाय का गोबर लेकर लड़कियां विभिन्न आकृतियां बनाती है। उन्हें फूल पत्तों, मालीपन्ना सिन्दूर आदि से सजाती है और संध्या समय उनका पूजन करती है। संजा के समय निम्न गीत गाया जाता हैं।संझा का पीर कम पढ़ें

वैश्या वृतांत - 18

(9)
  • 251

  • 433

शरद ऋतु आ गयी प्रिये ! यशवन्त कोठारी हां प्रिये, शरद ऋतु आ गयी है। मेरा तुमसे प्रणय निवेदन है कि तुम भी अब मायके से लौट आओ ! कहीं ऐसा न हो कि यह शरद ...और पढ़ेपिछली शरद की तरह कुंवारी गुजर जाए। बार बार ऋतु का कुंवारी रह जाना, स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है- ऐसा सयानों का कहना है। जब कभी ऋतुवर्णन के लिए साहित्य खोलता हूं तो मुझे बड़ा आनन्द आता है। इस प्रिय ऋतु के बारे में कवियों ने काफी लिखा है, और बर्फ की तरह जमकर लिखा है। जमकर लिखने वालों में कम पढ़ें

वैश्या वृतांत - 19

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  • 241

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कहानी डबल बेड की  यशवन्त कोठारी वैसे मेरी शादी काफी वर्षो पूर्व हो गई थी। उन दिनों डबल बेड का रौब दाब राज-महाराजाओं तक ही था। हर शादी में बेड आने का रिवाज नहीं था। आजकल ...और पढ़ेनववधू के साथ ही डबल बेड आ जाता है। इसे बनवाने की समस्या अब नहीं आती। मगर मेरे साथ समस्या है क्यों कि तब डलब बेड साम्यवादी नहीं हुआ था जनाब। एक रोज पत्नी ने कह दिया, ‘‘अब तो एक बेड बनवा ही डालो। पूरे मोहल्ले में एक हमारे पास ही डबल बेड नहीं है। मुझे तो बड़ा बुरा लगता कम पढ़ें

वैश्या वृतांत - 20

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चलो बहना सब्जी लायें यशवन्त कोठारी ‘आज क्या सब्जी बनाऊं ? यदि आप पति हैं तो यह वाक्य हजारों बार सुना होगा और यदि आप पत्नी हैं तो यह प्रश्न हजारों बार पूछ़ा होगा। यदि दोनो ही नहीं ...और पढ़ेतो आपकी सूचनार्थ सादर निवेदन है कि दाम्पत्य जीवन के महाभारत हेतु ये सूत्र वाक्य है। जो दाम्पत्य जीवन के रहस्यों से परिचित हैं , वे जानते हैं कि सब्जी क्या बनाउं से शुरू हो कर यह महाभारत कहां तक जाता है। खुदा का शुक्र है कि विज्ञान की प्रगति के कारण सब्जी लाने का कार्य आजकल साप्ताहिक रूप से कम पढ़ें

वैश्या वृतांत - 21

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  • 468

अंधकार से प्रकाश की और यशवन्त कोठारी जैसे जैसे रात गहराती जाती है , वैसे वैसे अन्धेरा बढ़ता जाता है और जैसे जैसे अन्धकार बढ़ता जाता है , वैसे वैसे प्रकाश के महत्व का पता ...और पढ़ेजाता है । अमावस्या की निविड़ अन्धकार वाली रात्रि ही तो दीपावली की रात्रि है , घोर अन्धकार पर प्रकाश के साम्राज्य को स्थापित करने वाली रात्रि । अन्तहीन अन्धेरा एक दीपक के मामूली प्रकाश से दुम दबाकर भाग जाता है , मगर आज कहां है वो दीपक , जो अन्धकार को प्रकाश में बदल दे । आज चारों ओर कम पढ़ें

वैश्या वृतांत - 22

(9)
  • 221

  • 407

बीबी मांग रही वाशिंग मशीन यशवन्त कोठारी दीपावली पर नया खरीदना एक परंम्परा बन गयी है और जमाने की रफ्तार बड़ी तेजी से बदल रही है। पहले के जमाने में घर परिवार के अपने कायदे-कानून हुआ ...और पढ़ेथे, मगर शहरीकरण तथा उपभोक्तावादी संस्कृति ने सब कायदे-कानूनों को ताक पर चढ़ा दिया है और रह गयी है एक नंगी भूख जो सीधे भोगवाद की ओर ले जाती है। घर-परिवार सीमित हो गये। छोटे परिवार सुखी परिवार हो गये और इन सुखी परिवारों के अपने-अपने दुःख हो गये। मोहल्ले-पड़ौसी समाप्त हो गये। नदी, तालाब, घाट पर कपड़े धोने की कम पढ़ें

वैश्या वृतांत - 23

(9)
  • 177

  • 368

सूट की राम कहानीयशवंत कोठारी ज्यों ही सर्दियां शुरू होती हैं, मेरे कलेजे में एक हूक-सी उठती है, काश मेरे पास भी एक अदद सूट होता, मैं भी उसे पहनता, बन ठन कर साहब बनता और सर्दियों की ठंडी, ...और पढ़ेहवाओं को अंगूठा दिखाता । ज्योंही दूरदर्शन वाले तापमान जीरो डिग्री सेंटीग्रेड हो जाने की सूचना देते, मैं सूट के सब बटन बन्द कर शान से इठलाता । मगर अफसोस मेरे पास सूट न था । आज से बीस बरस पहले शादी के समय ससुराल से एक दो सूट प्राप्त हुए थे, मगर जैसे-जैसे बिवी चिड़चिड़ी होती गई, सूट के कम पढ़ें

वैश्या वृतांत - 24

(7)
  • 189

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ऐसे स्वागत कीजिए जीवन की सांझ का देश में इस समय करोडो लोग ऐसे हैं जिनकी आयु 60 वर्प या उससे अधिक है। बड़े बूढ़ों का इस देश में हमेशा ही सम्मान और आदर रहा है, लेकिन बदलते हुए सामाजिक ...और पढ़ेटूटते हुए परिवार और बढ़ता हुआ ओद्योगिकरण हमारी इस महत्वपूर्ण सामाजिक इकाई पर कहर ढा रहे हैं। कम पढ़ें

वैश्या वृतांत - 25

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प्राचीन भारतीय दर्शन व संस्कृति में अहिंसा को सर्वोपरि स्थान दिया गया है । जैन धर्म का यह मुख्य सिद्धान्त है । जैन साहित्य में 108 प्रकार की हिंसा बताई गई है । हिंसा को अहिंसा में बदलने की ...और पढ़ेको मानवता कहा गया है । बौद्ध धर्म में भी अहिंसा को सदाचार का प्रथम व प्रमुख आधार माना गया है । अहिंसा परमो धर्मः कहा गया है। रमण मर्हिर्ष ने अहिंसा को सर्वप्रथम धर्म माना है । अहिंसा को अल्बर्ट आइन्सटीन, जार्जबर्नांड शा, टाल्स्टाय, शैली तथा अरस्तू तक ने अपने विचारों में उचित और महत्त्वपूर्ण स्थान दिया है। कम पढ़ें

वैश्या वृतांत - 26

(3)
  • 56

  • 209

अहिंसा और करुणा भारतीय संस्कृति एवं वागंमय के प्रमुख आधार रहे हैं। बिना करुणा के भारतीय चिन्तन धारा का विकास संभव नहीं था। वास्तव में करुणा जीवन का अमृत है। साधना का प्रकाश है। जिस व्यक्ति के मन में ...और पढ़ेनहीं है, वह नर हो ही नहीं सकता । जीव मात्र के प्रति करुणा मानव जीवन की सफलता के लिए आवश्यक है । प्राचीन भारतीय ऋषियों, मुनियों, ज्ञानियों, तपस्वियों ने परम—पिता को करुणा—निधान कहा है । साहित्य, संस्कृति, कला सभी में करुणा—रस को प्रधानता दी गई है। कम पढ़ें

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