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नारी के दर्द को अभिव्यक्त करता है व्यंग्य

यशवंत कोठारी

नारी के दर्द को अभिव्यक्त करता है व्यंग्य

श्रीमती शैलजा माहेश्वरी ने अपनी इस पुस्तक में हिंदी व्यंग्य में नारी की भूमिका का विस्तृत विवेचन प्रस्तुत किया है.घर परिवार ,बाहर की दुनिया ,नौकरी स्वयं का व्यवसाय हार क्षेत्र में नारी की समस्याओं को जिन व्यंग्यों में उकेरा गया है उन पर लेखिका ने गहरा शोध किया है ,उन समस्याओं को समझा है और विश्लेषित किया है.आलोचना के क्षेत्र में नारी वाद की स्थापना नहीं हुई है.हिंदी आलोचना में स्त्री का पक्ष नहीं सुना गया.व्यंग्य में तो स्त्री -लेखन या महिला व्यंग्य कारों का लेखन ही बहुत कम है फिर एक महिला द्वारा आलोचना पुस्तक लिखा जाना बहुत ही प्रशसनीय है. इस क्षेत्र में नए लोगों को और आगे आना चाहिए

हिंदी व्यंग्य में पुरुषों का बोलबाला है इस सांचे को तोड़ने का सफल प्रयास किया गया है.सच पूछा जाय तो व्यंग्य व्यंग्य होता है स्त्री व्यंग्य या पुरुष व्यंग्य नहीं ,हाँ महिलाओं ने भी व्यंग्य लिखे हैं और शानदार ,धारदार लिखे हैं वैसे भी घर गृहस्थी में महिलाओं के ताने कितने मारक होते हैं इसे हर पुरुष जानता है.द्रोपदी के एक वाक्य -अंधे का पुत्र अँधा ने महाभारत की नींव रख दी .ननद ,भोजी,सास बहु के व्यंग्य बाण जैसे जहर बुझे तीर.

महिला व्यंग्यकार किसी आन्दोलन का परिणाम नहीं है,.मात्रा के बजाय महिलाओं ने क्वालिटी का काम किया है .सरोजनी प्रीतम की हंसिकाएं भी खूब पढ़ी गयीं .

नयी महिला व्यंग्यकारों में चेतना भाटी ,अलका सिंग्तिया ,भारती पाठक,गरिमा सक्सेना ,पूजा दुबे ,ऋचा माथुर .आदर्श शर्मा ,समीक्षा तेलंग , अर्चना चतुर्वेदी,अनीता भारती, विभा रश्मि,सुनीता शानू ,जय श्री शर्मा,नीलम कुलश्रेष्ट ,पुष्प लता कश्यप ,निशा व्यास ,लक्ष्मी शर्मा ,मीरा जैन ,कुसुम knapczyk ,प्रभा सक्सेना वीना सिंह,रेनू सैनी ,डा निर्मला जैन ,उषा गोयल ,डा शशि मिश्र ,कांता राय ,पूनम डोगरा ,नीलम जैन,अर्चना सक्सेना , कुसुम शर्मा ,सीमा जैन ,विदुषी आमेटा व कई अन्य अच्छा लिख रही हैं,व्यंग्य लेखन में वे एक उज्जवल भविष्य की और अग्रसर है.,

सूर्य बाला जी ने बहुत व्यंग्य लिखे हैं,उनकी व्यंग्य की पुस्तकें आई है ,शैलजा जी ने विस्तार से उन पर लिखा है.शांति मेहरोत्रा ने भी काफी लिखा है. अलका पाठक की पुस्तक -किराये के लिए खाली है भी छपा है.आशा रावत की पुस्तक - हिंदी निबंध -स्वतंत्रता के बाद भी पाठ नीय है.डा.शांता रानी ने हिंदी नाटकों में हास्य तत्व पुस्तक लिखी है.समीक्षा तेलंग की व्यंग्य पुस्तकें भी पठनीय है .अर्चना चतुर्वेदी का व्यंग्य उपन्यास गली तमाशे वाली बहु चर्चित हुआ वे सम्मानित पुरस्कृत हैं.स्नेहलता पाठक भी अच्छा लिख रही है वे भी उत्तर प्रदेश हिंदी संसथान से समाद्रत है.चेतना भाटी की पुस्तक-दुनिया एक सरकारी मकान है भी व्यंग्य में पढ़ी गयी.उनकी अन्य पुस्तक दिल है हिन्दुस्तानी भी खूब सराही गयी.

लगे हाथ हिंदी मंचीय कविता पर नारी पर भी चर्चा कर लेनी चाहिये .विमलेश जी की चार लाईना का का आइडिया लेकर सुरेन्द्र शर्मा ने नाम और नामा दोनों कमा लिया.काका हाथरसी ने भी नारी को ले कर मंच पर खूब सुनाया ,गोपाल प्रसाद व्यास ने भी सलवार,साड़ी और साली को खूब भुनाया आजकल की फूहड़ता की कोई चर्चा नहीं करूंगा.प्रेम और श्रंगार का मंच पर खूब प्रयोग हो रहा है.संचालक व कवयित्री की नोकझोक भी खूब चल रही है.आजकल यू tube पर पुष्प जीजी भी धूम मचा रही है.कोमेडी के क्षेत्र में भी कई महिलाएं आई है .लेकिन यह क्षेत्र अलग है . पत्नी की बीमारी को लेकर भी काफी व्यंग्य लिखे गए हैं.महिला व्यंग्यकार राजनीती पर भी लिख रही हैं.

काफी समय से हिंदी व्यंग्य का पाठक हूँ .अन्य भाषाओँ की रचनाएँ भी पढता रहता हूँ .उर्दू,गुजराती , मराठी ,अंग्रेजी व राजस्थानी में भी पढने के प्रयास किया है.पिछले कुछ वर्षों में हिंदी में नई पीढ़ी कमाल का लिख रहीं है.यहीं हाल अन्य भाषाओँ में भी है.टेक्नोलॉजी भी अपना कमाल दिखा रही है. नयी तकनीक के हथियार के साथ लोग हुंकार भर रहे हैं ,पुरानों को कोई पढने की आवश्यकता नहीं समझता .पुराने लोगों ने बहुत मेहनत की,आजकल फटाफट का ज़माना है.शरद जोशी ने कुछ समय ही नौकरी की फिर फ्री लान्सिंग,परसाई जी ने भी नौकरी कम समय ही की फिर उम्र भर लिखते पढ़ते ही रहे. उस पीढ़ी के लोगों को लिखने पढने की जो आज़ादी मिली वो नई पीढ़ी को उपलब्ध नहीं है. कोई यदि आज यह कहता है की मैं पूरी आज़ादी से लिख रहा हूँ तो खुद को धोखा दे रहा है. मैंने भी नौकरी की और व्यंग्य पढने - समझने की कोशिश की .परसाई जी घोषित मार्क्सवादी थे ,प्रगतिशील लेखक संगठन से जुड़े थे,शरद जोशी जी एक बार जनवादी संगठन से जुड़े मगर ज्यादा नहीं .अन्य कोई लेखक किसी लेखक संगठन में है या नहीं नहीं जानता. कई बार सोचता हूँ आज परसाई या शरद जोशी होते तो वर्तमान परिस्थितियों पर क्या लिखते,कैसा लिखते और क्यों लिखते ?लेकिन इन काल्पनिक प्रश्नों से क्या होना जाना है.लतीफ़ घोंघी का मूल्यांकन होना बाकी है किसी दिन वे सब के साथ मुख्य धारा में होंगे.अशोक शुक्ल ने उपमाओं में नारी को लेकर काफी साफ सुथरा लिखा है .

रविन्द्रनाथ त्यागी के लेखन का प्रिय विषय ही युवतियाँ रहा है .शरद जोशी ने राजनीती पर ज्यादा लिखा परसाई जी भी सावधानी के साथ महिलाओं पर लिख ते रहे.

श्रीलाल शुक्ल के राग दरबारी में भी महिला पात्र है.यशवंत कोठारी के व्यंग्य उपन्यास में भी नारी पात्र है.अभी एक व्यंग्य उपन्यास कवि सम्मेलनों पर आया है .कुछ लेखक अपनी रचनाओं में लगातार गाली का प्रयोग कर के नारी जाती का अपमान भी कर रहे हैं इस पर भी विचार किया जाना चाहिए.

महिला लेखन में विट है ह्यूमर है, आइरनी कटाक्ष,,पंच आदि सब है. रचनाओं का कलेवर विशाल नहीं है, लेकिन इन रचनाओं में अनुभव भी झलकता है. हवा में व्यंग्य का व्याकरण, काव्यशास्त्र , सौन्दर्य शास्त्र , सपाट बयानी जैसे भारी भरकम शब्द तारी नहीं हुए थे . ये नहीं है की टीवी के सामने बैठ जाओ और घटना को लक्ष्य कर के कुछ भी लिख मारों महिला व्यंग्य लेखन एक संजीदा काम है .वे लोग इसे अच्छे से कर रही हैं.

महिलाओं का प्रिय विषय मोहल्ला,पड़ोस होता है.रिश्ते नाते भी वे खूब समझती हैं .व्यंग्य -लोचन पुस्तक में डा.सुरेश महेश्वरी ने रीतिकालीन कवियों में मार्फत उपालम्भ के रूप में महिलाओं द्वारा किये जाने वाले व्यंग्य को विस्तार दिया है.इसी प्रकार व्यंग्य चिन्तना और शंकर पुणताम्बेकर विषयक पुस्तक में भी काफी विस्तार से व्यंग्य की चर्चा है.डा.बालेन्दु शेखर तिवारी ने भी अपने विचार दिए हैं.

किसी भी रचना में शिल्प,भाषा और कथ्य तीनों ही महत्त्व पूर्ण होते हैं आज का महिला व्यंग्य लेखन इस पर खरा उतरता है.

समीक्षा तेलंग की पुस्तकें -कबूतर की केट वाक व जीभ अनशन पर है..बीकानेर की मंजू गुप्ता के संपादन में भी एक पुस्तक आई है.

कुछ लोग पत्नी को ही टारगेट करते रहते हैं उनका लेखन भी फलता फूलता रहे .हास्य के अधिकांश लतीफे पति पत्नी पर आधारित होते हैं आजकल कोमेडी के नाम पर फूहड़ हास्य चल रहा है. अपनी रचनाओं में अपशब्दों का स्त्री वादी स्वर भी खूब फल फूल रहा है जो विचारणीय है .

विदुषी लेखिका ने पुस्तक में हिंदी व्यंग्य ,नारी की संकल्पना ,नारी की समस्याएं ,व्यंग्य साहित्य में नारी के विविध आयाम,नारी जाग्रति , व नारी व्यंग्यकारों की भूमिका का विषद विवेचन प्रस्तुत किया है .यह पुस्तक हिंदी व्यंग्य में नारी के योगदान पर गंभीर प्रस्तुति है.

मैं पुस्तक की लेखिका डा.शैलजा मा हेश्वरी ,उनके पति डा.सुरेश मा हेश्वरी व प्रकाशक के प्रति आभार व्यक्त करता हूँ.

पुस्तक के नवीन संस्करण की बधाई व शुभ कामनाओं के साथ -यदि कोई नाम रह गया है तो अग्रिम क्षमा .

यशवंत कोठारी

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