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वैश्या -वृतांत

देह व्यापार.विवेचन

इनसाइक्लोपेडिया ब्रिटानिका के अनुसार देह व्यापार का अर्थ है मुद्रा या धन या मंहगी वस्तु और षारीरिक सम्बन्धों का विनिमय। इस परिभापा में एक षर्त ये भी है कि वह विनियम मित्रों या पति पत्नी के अतिरिक्त हो। गणिका के बारे में वात्स्यायन ने लिखा है.गणिकाएंए चतुरए पुरुपों के समाज मेंए विद्वानों की मंडली में राजाओं के दरबार में तथा सर्वसाधारण में मान पाती है।
प्राचीन भारत में वेष्याएं थीए उसी प्रकार हीटीरा यूनान में तथा जापान में गौषाएं थी। वेष्या के पर्यायों में वारस्त्रीए गणिकाए रुपाजीवाए षालभंजिकाए षूलाए वारविलासिनीए वारवनिताए भण्डहासिनीए सज्जिकाए बन्धुराए कुम्भाए कामरेखाए पण्यांगनाए वारवधूए भोग्याए स्मरवीथिकाए वारवाणि आदि षब्दों का प्रयोग हुआ है।
रोमन युल्पियन के अनुसार वेष्या उसे कहते हैं जो धन के लिए अपना ष्षरीर कई पुरुपों को बिना चुनाव किए अर्पण करें।
फ्रान्सीसी विद्वान गेटे के अनुसार वेष्या वह है जो स्त्री.पुरुप सम्बन्धों को आर्थिक लाभ के रुप में देखे।
वार्टनए वांगर तथा रिचर्ड आदि विद्वानों ने भी इसी प्रकार से वेष्याओं को परिभापित किया है।
दामोदर गुप्ता के ग्रन्थ कुट्टनीमतम् के अनुसार सज्जनों का आचरणए दुप्टों का व्यवहारए मनुप्यों की रुचीए चतुर पुरुपों का परिहासए कुलटाओं के व्यंग्यए गुरु गंभीर विपयए कामषास्त्र की ज्ञाताए धूर्ताे को ठगने की कला में माहिर होना वेष्याओं के लिए आवष्यक है।
अमरकोप के अनुसार अप्सराएं स्वर्ग की वेष्याएं हैं। ऋग्वेद में उर्वषी का वर्णन है। यजुर्वेद में स्वर्ग की वेष्याओं का वर्णन है तथा रामायण व महाभारत में भी वेष्याओं का वर्णन है। तन्त्रों के ग्रन्थों में भी देह व्यापार का वर्णन है। बौद्ध काल में भी वेष्याएं थीए जैन ग्रन्थों में भी वेष्याओं का वर्णन है। संस्कृत के ग्रन्थों में भी वेष्याओं का विषद वर्णन आया है। मृच्छ कटिकम् नाटकए दरिद्र चारुदत्तए मुद्राराक्षसए आदि नाटकों में वेष्या.चरित्रों का वर्णन है। कालिदास ने मेघदूत में देवदासियों का जिक्र किया है। षिषुपाल वध में भी वेष्या वर्णन है।
समर्थ दिपिका नामक ग्रन्थ में वेष्याओं को षुभ षकुन के रुप में स्वीकार किया है।
स्कन्द पुराण के अनुसार स्वर्ग की अप्सराओं तथा पृथ्वी के मनुप्यों के समागम से वेष्याओं की उत्पत्ति हुई। पंचचूर्णा नामक अप्सरा की कोख से पहली वेष्या पैदा हुई। बौद्ध काल में आम्रपाली तथा षलावती जैसी प्रसिद्ध वैष्याएं थी। गुप्त काल में भी वेष्यावृत्ति थी। कौटिल्य ने अपनी पुस्तक में वेष्यावृत्ति का विषाद वर्णन किया है।
परसियों की धार्मिक पुस्तक जिंदा अवेस्ता में भी इनका वर्णन है। ईसा मसीह वेष्याओं को भी उपदेष देते थे।
वात्स्यायन के काम सूत्र के अनुसार वेष्याएं तीन प्रकार की हैं 1ण्गणिका 2ण्रुपाजीवा और 3ण् कुम्भदासी। इनमें से प्रत्येक उत्तमए मध्यम तथा अधम हो सकती है।
वेष्याओं के अन्य प्रकारों में पहाड़ी पातरए डोमिनीए पेरवीए गोयगिरनी देवदासीए गंधारीए नटनीए विपकन्याए आदि होती है। देवदासी दक्षिण के मन्दिरों में यल्लमा देवी की सेवा करने वाली वेष्याएॅंह ै।
संयुक्त राप्टसंघ की एक रिपोर्ट के अनुसार 1970 तक 25 लाख वेष्याएं थीए जबकि एक अन्य सर्वेक्षण के अनुसार इनकी संख्या 2से तीन करोड़ है। यूरोपीय देषों के अलावा बेरुत और हांगकांग में औरतों की खरीद और बिक्री का काम चलता है। महिलाओं की अन्तराप्टीय परिपद के अनुसार 1950.1975 तक 75 लाख औरतें बेची गई थीं। स्पेन में 29ए000 चकला घर पंजीकृत है। राजस्थान में धोलपुर में वेष्याओं की हाट लगती है।
भारत में वेष्याएं प्रमुख षहरों में देह व्यापार करती है। दिल्ली का श्रद्धानन्द बाजार बम्बई का फारसि राड़ए कालाबाए कलकत्ताए कानपुरए आगरा आदि देह व्यापार के बडे बाजार है।
अनेकों कारणों के बावजूद वेष्या वृत्ति निरन्तर बढ़ रही है और आदिकाल से अनादिकाल तक चलती रहेगी। भारत में पतिता उद्धार सभा तथा अन्य संगठनों ने लाइसेंस प्रणाली द्वारा इस व्यापार को जायज करार देने की मांग की है। उनकी मान्यता है कि वेष्याएं दलालोए ग्राहकोए पुलिस द्वारा सताई जाती है। पष्चिम जर्मनी में वेष्याओं को लाइसंस जारी कर दिए गये हैं। वेष्यावृत्ति को लाइसेंस के बजाए पुनर्वास कार्यक्रमों की आवष्यकता है जो हमारी सामाजिक जरुरत है। वास्तव में वेष्यावृत्ति एक जटिल मानसिक घटना है। कोई नहीं कह सकता कि कोई लड़की वेष्या क्यों बन जाती है और क्यों बनी रहती है। हमारे देष में ऐसे सैंकड़ों अंचल हैं जहां पर सामाजिक रुढ़ियोंए परम्पराओं और आर्थिक कारणों से यौन.षेपण से तंग आकर लड़किया वेष्याएं बन जाती है।
अधिकांष वेष्याएं यह स्वीकार करती है कि इस व्यापार में आने का कारण आर्थिक थाए बूढ़े मां.बापए या भाई बहनों की जिम्मेदारीए नौकरी नहीं मिलनाए भूखए बीमारी और बेरोजगारी से तंग आकर लड़कियां इस व्यापार में आती है।
पैसे के आकर्पण के साथ ही प्राकृतिक कारण भी हो सकते हैं। एक कालगर्ल के अनुसार वह तो समाज की सेवा कर रही है वे नहीं होती तो बहू.बेटियों का रहना मुष्किल हो जाता।
समाज विज्ञानियों के अनुसार कुछ सामाजिक कारण भी होते हैंए जो लड़कियों को इस व्यापार की ओर धकेलते है। वास्तव में वैष्यावृति एक अनोएाी या अजूबी घटना नहीं होकर सामाजिक आर्थिक कारणों का परिणाम है।
सच पूछा जाय तो विज्ञान के अनुसार मानव याने होमोसेपाइन्स क्लास मेमेलिया का सदस्य है और इस क्लास के प्रमुख लक्ष्णों में एक लक्षण पोलीगेमी है। अर्थात् मनुप्य। नर या मादा प्रकृति के अनुसार बहु सहवासी हैए अब सामाजिक मर्यादाएंए नियम कानून उसे कहां तक बांध पाते हैं. यह एक अलग प्रष्न है। पोलीगेमी वेष्यावृति का आधार माना गया है।
इस व्यापार में दलालों की एक अलग संस्कृति है। वे एक समानान्तर सरकार के स्वामी हैं जो वेष्याओं के लिए ग्राहक लाते हैं। और अपना कमीषन लेते हैं। कालगर्लए सोसाइटी गर्लए सामान्य वेष्याएं सभी इन पर निर्भर करती हैं। अतः इनकी दुनिया में ये ही सब कुछ हैं।
उन्नीसवीं षताब्दी के सामाजिक परिवर्तनोंए ओद्योगीकरण तथा मषीनीकरण ने मानव जीवन को बदल दिया। घर से दूर नौकरी की तलाष में भटकते मानव ने महा. नगर में बड़े पैमाने पर इस धन्धे को पनपने में मदद की।
वेष्यावृति के साथ ही मेल प्रोप्टीट्यूषन तथा समलैंगिक सम्बन्ध भी अनैतिक है और इस व्यापार से जुड़े हुए हैं। अब कुछ देषों में सम लैंगिक सम्बन्धों को कानूनन मान्यता हैं इसी प्रकार वेष्याओं का भी वर्णन मिलता है। कुछ वर्पाे पूर्व गुजरात में फ्रेंडषिप एक्ट के अन्तर्गत समूह में महिलाओं को आमोद.प्रमोद हेतु रजिस्टर किया जाता था।
देह व्यापार के बाजार में सांकेतिक षब्दों का प्रचलन होता हैं।
वेष्याओं के डेरों की अलग.अलग सांकेतिक बोली होती थी और व्यापार के समय इन षब्दों का प्रयोग किया जाता है।
वेष्याओं से स्वास्थ्य सम्बन्धी खतरे भी बहुत हैं। यौन रोगों तथा रतिजन्यरोगों तथा एड्स का खतरा वेष्याओं से बहुत ज्यादा है। इसके अलावा गर्भधारण करना या एमटीपी या डीण्एनण्सीण् भी इनके स्वास्थ्य के लिए एक खतरा है। कुप्ट रोगभी वेष्याओं में मिलता है।
द्वितीय विष्वयुद्ध के पहले फ्रांस में रतिरोगों के कारण ही वेष्यावृति पर रोक लगा दी गई। वेष्याओं का नियमित मेडिकल चेकअप ही इसका एक मात्र समाधान है।
यौन व्यापार दुनिया का प्राचीनतम व्यवसाय है। एक आवष्यक बुराईए जो समाज के षरीर पर एक भद्दा नासूर हैए केंसर हैए मगर आवष्यक है।
ये बदनाम बस्तियों के वासीए ये गन्दीए आवारा गलियों के राही है। सभ्यता के प्रारम्भ से लगा कर आज तक इनका स्वरुप कब.कब बिगड़ाए बना और फिर बिगड़ा।
एक प्रसिद्ध चिन्तक के अनुसार सभ्यता का इतिहास वेष्यावुति का इतिहास है। वास्तव में यह एक कटु सत्य है। इस दूसरी औरत को क्या इतिहास से अलग रखा जा सकता है। क्या यह व्यापार हमारे एहसासोंए नजरियों का व्यापार नहीं हैए जो हम एक सेक्स के लोग दूसरे सेक्स के प्रति रखते हैं।
यह आष्चर्य मिश्रित खेद का विपय है कि समाज का इस व्यापार के प्रति रुख हमेषा एक जैसा रहा है। निन्दनीयए अनैतिक और दुर्गन्धयुक्त। फ्रांस में वेष्याओं को आनन्द की पुत्रियां कहा गया है। षायद यही सब से ठीक विषेपण है।
1ण् गायन 2ण् नृत्य 3ण् वाद्य 4ण् चित्रकला 5ण् विषेपच्छेय 6ण्चावलादिसो चौक पूरना 7ण् पुप्प रचना 8ण् रंजन कला 9ण् गच तैयारी 10ण् सेज सजाना 11ण् जल तरंग 12ण् जल. क्रीडाएं 13ण् मित्र योग 14ण् माला गूंथना 15ण् फूल गूंथना 16ण् नेपथ्य प्रयोग 17ण् दांतएषंख आदि से वेष रचना 18ण् गंध.युक्ति 19ण् भूपण योजन 20ण् जादू के खेल 21ण् कौचमार 22ण् हाथकी सफाई 23ण् पाकषस्त्र 24ण् सिलाई कला 25ण् डोरों कारवेज 26ण् वीणा वादन 27ण् पहेलियां बुझाना 28 अंताक्षरी 29ण्पद्य रचना 30ण् पुस्तक वाचन 31ण् नाटक कला 32ण् काव्य कला 33ण् बेंत की बुनाई 34ण् तक्षकर्म 35ण् बढ़ई का काम 36ण् वास्तु कला 37ण्रत्न परीक्षा 38ण् धातु कला 39ण् मणिरागाकर ज्ञान 40ण् वृक्षायुर्वेद योग 41ण् युद्ध विधि 42ण् मालिष कला 43ण् सांकेतिक भापा 44ण् गूढ़ बातचीत 45ण् देष.भापा ज्ञान 46ण् पुप्प षकटिका 47 साथ पढ़ाना 48ण् मानसी 49ण् काव्य क्रिया 50ण् स्माण रखना 51ण् छेद का ज्ञान 52ण् रचना परीक्षा 53ण् ठग विद्या 54ण् द्यूत विद्या 55ण् पासे खेलना 56ण् बाल क्रीडा 57ण् वस्त्रगोपन 58ण् प्षु साधना 59ण् विजय दिलाना 60ण् व्यायाम.षिकार कला।
वेष्याओं के बारे में जो प्रसिद्ध ग्रन्थ है उनमें वात्स्यायन के कामसूत्र के बाद कवि दामोदर गुप्ता का कुट्टनीमतम् है। इस ग्रन्थ में कवि ने वेष्या.समाज का बड़ा विषद चित्रण किया है। इसे पढ़कर वेष्या के जीवनए समाजए परम्पराओं के बारे में काफी जानकारी मिलती है। इस पुस्तक में मालती नामक वेष्या के माध्यम से कुट्टनी चरित्र को विस्तार से समझाया गया है। कवि ने वेष्याओं की तुलना चुम्बक से की है जो लोहे की तरह पुरुप को अपनी ओर खींचकर उसका सब धन हरण कर लेती है। इनके ग्रन्थों के अलावा कला विलासए दषकुमार चरित भी वेष्याओं से सम्बन्धित है।
विष्व की सभी भापाओं के साहित्यकारों ने वेष्याओं पर लिखा है और लिपिबद्ध साहित्य के साथ ही वेष्याएं एक षाषवत विपय बन गई। ऐतिहासिक आलेखों से लगाकर वेदोंए उपनिपदों आदि में वेष्या वर्णन मिलता है। कालान्तर में कथा साहित्य का षाषवत विपय देह व्यापार बन गया। ब्रह्म वैवर्त पुराणए गरुण पुराण में भी वेष्यावृति का उल्लेख है।
कथा सरित सागर में क्षेमेन्द्र ने वेष्यावृति का वर्णन किया है। मध्य युग में गणिकाएं श्रृंगार और रीतिकालीन नायिकाएं बन गई। फ्रांसीसी लेखक ब्रोतोलए अंग्रेजी लेखक जॉन क्लोलैंड ने भी अपनी कलम इस व्यापार पर चलाई है। एमोलजोला का उपन्यास नानाए कुप्रिन का यामाए चेखवका पाषाए बालजक का डाल स्टोरीजए मोंपासाए गोर्की की रचनाएं भी प्रसिद्ध हुई। मेंगी लिखकर स्टीफेन क्रेन प्रसिद्ध हुए।
बीसवीं सदी में सआदत हसन मंटोए इस्मत आपाए हेनरी मिलनए अल्बटों मोरादियाए विलियम सरोयांए आर्थर कोस्लरए कमलेष्वरए पर्लबकए गुलाम अब्बासए जैनेन्द्र कुमारए आबिदसुरतीए अमृत लाल नागरए हेनरी मिलरए यष्पाल आदि ने भी इस वृत्ति को आधार बनाकर रचनाएं लिखी हैं जो काफी प्रसिद्ध हुई। नागर जी की ये कोठे वालियां एक प्रामाणिक ग्रन्थ है।
धन्धा कॉल गर्ल्स का
आधुनिक समाज में वेष्याओं को तीन समूहों में बांटा गया है। पहली वे हैं जो गलीए चौराहोंए बस स्टेण्डोंए रेलवे स्टेषनों पर अपने ग्राहक ढूंढती हैं। दूसरी चकले वाली और तीसरी कॉलगर्ल्स या सोसाइटी गर्ल्स। जो बड़े समाज में षान से घूमती हैं। पहली प्रकार की वेष्याओं की कीमत बहुत कमए जबकि कॉलगर्ल्स एक सीटिंग के हजारों वसूल करती हैं। सुरा सुन्दरी की मदद से सत्ता और सरकार के काम निकालते हैं और वे सत्ता के भेद तक निकाल लाती हैं। कीलर और प्रोफ्यूमों कांड के बारे में कौन नहीं जानता। राजधानी दिल्लीए महानगर बम्बई और प्रान्तीय राजधानियों में कॉलगर्ल्स का धन्धा खूब पनप रहा है।
पिछले कुछ दषकों में यह व्यापार एक बहुत ही अहम् व्यापार बन गया है। सत्ताए राजनीतिए धन और पष्चिम से आई मुक्त यौन सम्बन्धों की हवा ने इस व्यापार को हवा दी है। कॉलगर्ल्स के ग्राहक बहुत सम्पन्न व्यापारीए नेता या अफसर होते हैं। इनके पास कारए टेलीफोनए बंगला होता है और बड़े होटलों से आर्डर पर माल भेजा जाता है।
दूसरी बड़ी लड़ाई के बाद समाज में एक नवधनाढ्य वर्ग पनपाए जिसके लिए सफलता ही सब कुछ थी। इस वर्ग में निचले तबके से आए लोगों ने अपनी संस्कृति छोड़ कर पष्चिम की संस्कृति अपनायी। सत्ताए सरकार में काम निकालने के लिए इस पीढ़ी ने कॉल गर्ल्सए सुरा सुन्दरी तथा खओ.पीओ और मौज करो की संस्कृति ने क्लब ए बारए होटलए रेस्टाए फ्लेटों की एक नई दुनिया का विकास किया। इनकी देखा देखी अन्य लोगों ने भी नकल की। पैसा कहां से आए। आसान तरीका महीने में एक या दो व्यापार की सीटिंग। और पांच सौ से पांच हजार रुपयों तक की प्राप्ति। मम्मीजए आन्टीज का एक ऐसा जाल चारों तरफ बिछा कि मत पूछिए और परिणाम कॉलगर्ल्स का विकास।
एक सर्वेक्षण के अनुसार अकेली दिल्ली में 20ए000 कॉनगर्ल्स हैं जिनमें से आधी उच्च वर्ग और संभ्रान्त परिवारों से आती हैं। कम वेतन पर काम करने वाली अध्यापिकाएंए सेल्स गर्ल्सए नर्सए क्लर्क सभी हैं इस व्यापार में।
करोल बागए दक्षिण दिल्लीए पहाड़गंजए कनाट प्लेसए कर्जन रोड़ए मंडीहाउस आदि स्थानों पर कॉलगर्ल्स हैं।
अक्सर बड़े होटलों में कमरे बुक होते हैंए कभी कभार पकड़े भी जाते हैं तो कुछ नहीं होता।
बम्बई में भी हालात ऐसे ही है। यहां पर कॉलगर्ल्स की संख्या पचास हजार से ज्यादा है। प्रति 10 कार्यषील महिलाओं में से कम से कम एक अवष्य अस व्यापार में है। गेस्ट हाउसोंए वातानुकूलित षहरों में यह धन्धा खूब चल रहा है।
दूरदर्षनए मॉडलए विज्ञापनए फिल्मए कलाए रंगमंच तथा अन्य व्यावसायों से जुड़ी लड़कियां उच्च स्तर की कॉल गर्ल्स हैं। संभ्रान्त परिवारों के ग्राहक होते हैं। सम्पन्न परिवारों की विवाहित महिलाएं षारीरिक सुख के लिए कॉल गर्ल्स बनती हैं। कोलाबाए कफपरेडए बांदरा तथा वर्किंग वूमेन होस्टलों में ये आसानी से उपलब्ध है।
फिल्मों में असफल लड़कियां या अपना कैरियर बनाने को बेताब लड़कियां आगे जाकर कॉल गर्ल्स फिर चकलावासी बन जाती हैं। दलाल उन्हें चकले पर चढ़ाकर ही दम लेते हैं।
कलकत्ता में भी यही स्थिति है। लखनउए पटनाए भोपालए जयपुर भी इस धन्धे में पीछे नहीं है।
देवदासी प्रकरण
कर्नाअक में येल्लम्मा देवी को प्रति वर्प सैंकडा़ेंक न्याओं को समर्पित करके देवदासी बना दिया जाता है। प्रारम्भ ये पूज्य थी मगर आजकल इनकी हालत धार्मिक मान्यता प्राप्त वेष्याओं की है। समाज के दौलतमंद लोग इसके यौवन को लूटकर बुढ़ापा आते ही भीख का कटोरा थमा देते हैं।
भारत में इस प्रथा का जन्म आर्याे के प्रवेष से पूर्व हुआ था। तीसरी षताब्दी में प्रारम्भ इस प्रथा का मूल उद्देष्य धार्मिक था। चोल तथा पल्लव राजाओं के समय देवदासियां संगीतए नृत्य तथा धर्म की रक्षा करती थी। 11 वीं षताब्दी में तंजोर में राजेष्वर मंदिर में 400 देवदासियां थीं। सोमनाथ मंदिर में 500 देवदासियां थी। 1930 तक तिरुपतिए नाजागुड में देवदासी प्रथा थी।
देवदासियों की 2 श्रेणियां थीं.
1ण् रंग भोग 2ण् अंग भोग। दूसरी श्रेणी की देवदासियां मंदिर से बाहर नहीं जाती थीं।
वेलमा देवी को समर्पित करने की रस्म षादी की तरह ही थी। कन्या की उम्र 5.10 वर्प की होती है। कन्या का नग्न जुलूस मन्दिर तक लाया जाता है। उसकों फिर देवदासी के रुप में दीक्षित किया जाता है।
समर्पण के बाद ये देवदासियां मंदिर और पुजारियों की सम्पत्ति हो जाती है। जब तक जवान है तब तक भोग्या और जवानी के उतरते ही उसी मंदिर के बाहर भिखारी का रुप।
धर्म और वेष्या
ऐसे कई स्थान है जहां वेष्याओं ने मंदिर बनाएं हैंए धर्म के प्रति आस्था प्रकट की है। वे अपने धर्म के प्रति पक्की होती है। मंगलवार को हनूमानजी के प्रति आस्था व्यक्त करती है। व्रत रखती हैए धन्धा नहीं करती है। मुसलमान वेष्याएं नमाजए रोजा की पाबन्द होती है। पूनम का व्रत भी हिन्दू वेष्याएं रखती हैं। वेष्याओं का एक धर्म यह भी है कि वे एक की होकर दूसरे के पास नहीं जाती। वसन्त सेना का उदाहरण ऐसा ही है वह राजा के साले के पास नहीं जाकर चारुदत्त के पास गई।
वेष्याएं और समाज
समाज में वेष्याओं को उचित सम्मान हर काल में रहा है। वे राज सभा और षाही जुलूसों का एक आवष्यक अंग समझी जाती थी।
प्राचीनकाल में इनका सामाजिक महत्व तो था हीए वे राजनीतिक कार्याे में भी मदद करती थी। कोटिल्य ने अपने ग्रन्थ के प्रथम अधिकरण के चौवालीसवें प्रकरण में गणिकाध्यक्ष का वर्णन किया है और लिखा है कि गणिकाध्यक्षको एक प्रधान गणिका और 2 सहायिकाएं रखनी चाहिए। वेष्यसएं संधि.विग्रह में प्रयुक्त होती थी। विप कन्याओं के रुप में वे षत्रु का नाष करती थी। बाद के काल में राजाए महाराजाए नवाब तथा श्रेप्ठिवर्ग के लोग अपने बच्चों को तहजीबए संस्कार तथा दुनियादारी सिखाने के लिए वेष्याओं के पास भेजते थे। अच्छी गणिकाएं इन बच्चों को अपने पुत्रों की तरह षिक्षा.दीक्षा देती थीं और समाज में समादृत होती थीं।
स्वतन्त्रता आन्दोलन में भी कई वेष्याओं ने अत्यन्त महत्वपूर्ण योगदान किया था। असहयोग आंदोलन के दिनों में हुसना बाई की अध्यक्षता में एक सभा हुई। जिसमें हुस्नाबाई ने भारत को गुलामी से मुक्ति के लिए प्रयास करने का आह्वाहन किया।


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यशवन्त कोठारीए 86ए लक्ष्मी नगरए ब्रह्मपुरी बाहरए जयपुर . ९४१४४६१२०७

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