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बिकने का मौसम

व्यंग्य

बिकने का मौसम

यशवंत कोठारी

इधर समाज में तेजी से ऐसे लोग बढ़ रहे हैं जो बिकने को तैयार खड़े हैं बाज़ार ऐसे लोगों से भरा पड़ा हैं,बाबूजी आओ हमें खरीदों.कोई फुट पाथ पर बिकने को खड़ा है,कोई थडी पर ,कोई दुकान पर कोई ,कोई शोरूम पर,तो कोई मल्टीप्लेक्स पर सज -धज कर खड़ा है.आओ सर हर किस्म का मॉल है.सरकार, व्यवस्था के खरीदारों का स्वागत है.बुद्धिजीवी शुरू में अपनी रेट ऊँची रखता है ,मगर मोल भाव में सस्ते में बिक जाता है.आम आदमी ,गरीब मामूली कीमत पर मिल जाते है.वैसे भी कहा है गरीब की जोरू सबकी भाभी.कोई भी खरीद सकता है ,या मुफ्त में बाई वन गेट वन फ्री. खरीदार नदी ,नाले पहाड़, सड़क झीलें,इमान,कुर्सी सब खरीद सकता है.देखते देखते गाँव शहर सब बिक गए.बड़ी मछली छोटी मछली को खरीद कर खा जाती है.यह सब इसलिए की बिकना एक फेशन है .क्या करता यार सही कीमत मिल गयी तो बिक गया वाला संतोषी भाव चेहरे पर आ जाता है.बैठे ठाले के इस चिंतन को मैंने आगे बढाया .सही विक्रय मूल्य मिल जाये तो कौन नहीं बिकना चाहेगा.बाज़ार से गुजरा हूँ खरीदार नहीं हूँ वाला समय चला गया.बिकने की ख़बरें अक्सर आती रहती हैं.फलां बिक गया यार.खरीदार सोचता है सस्ते में मिल गया तो ले लिया.स्टोर में पड़ा रहेगा ,वक्त जरूरत काम आएगा.

खरीदने के मामले में हम सब मुफ्त का मॉल चाहते हैं आलू प्याज़ के भाव में सेव अनार चाहते हैं .पुराने ज़माने में जो मिल जाता खरीद लिया जाता अब मामला थोडा पूंजीवादी खुली अर्थ व्यवस्था का है.लोग हत्या ,आत्म हत्या बलात्कार,योन शोषण तक खरीद लेते हैं ,और अपने ड्राइंग रूम में सझा लेते हैं.कल देखा एक नेताजी ने टिकट ख़रीदा ,आपनी पहली पत्नी को दिया फिर दूसरा टिकट ख़रीदा अपनी दूसरी पत्नी को दिया ,फिर तीसरा टिकेट ख़रीदा और राज्य सभा में घुस गए कर लो क्या करते हों ?चुनाव में गरीब एक थेली में बिक जाता है.एम एल ए मंत्री पद पर बिक जाता है,कुछ एम एल ए मिल कर सरकार गिराने में बिक जाते हैं तो दूसरे सरकार बनाने में बिक जाते हैं.

हर आदमी टेग लगा कर घूम रहा है.बस सही कीमत मिल जाय.लोग फेरी लगाने को तैयार है हमें खरीद लो.सत्ता के गलियारे से लगाकर फूटपाथ पर माल ही माल.जन पथ से राज पथ तक संसद से सड़क तक टेग वाले खरीदार ढूंढ रहे हैं.बेरोजगार नौकरी के लिए बिकने को तैयार है.अस्मत चंद सिक्कों के लिए बिक जाती है.नौकरी में प्रमोशन के लिए भी टेग लगाना पड़ता है.जब टेग से काम नहीं चलता तो मुखोटे लगाने पड़ते हैं,असली चेहरा छुपाना भी एक कला है .हिंदी साहित्य में तो यह आम है.आजकल संस्कृति का टेग लगाकर बिकने के दिन है.खंड खंड बिकने के पाखंड का समय है यारों.

कल साहित्यकारजी मिल गए ,अकादमी अध्यक्ष बनने का टेग लगा कर घूम रहे थे ,बोले यार इस रेट पर बिकने को तैयार खड़ा हूँ,सरकार ध्यान ही नहीं दे रही.एक पहाड़ी महाकवि दिखे छाती पर बड़ा सा टेग था-अकादमी पुरस्कार के लिए बिक सकता हूँ ,मगर अकादमी सुनती ही नहीं ,क्या करे. एक व्यंग्यकार मिले फाउंडेशन सम्मान का टेग लगा कर घूम रहे थे ,मगर मामला फिट ही नहीं हो रहा था. एक बंदा पद्म पुरस्कार का टेग किये घूमता पाया गया.एक बंदी राज्य सभा का टेग लगा कर घूम रही हैं.एक पत्रकार मिले बंद गले में टेग था विदेश यात्रा पर बिकूंगा.एक अन्य पत्रकार संपादक का टेग लगाये घुमते पाए गए. मगर सेठजी ने कोई ध्यान नहीं दिया.एक अन्य मुख्यमंत्री के सलाहकार बनने का टेग लगा कर कोशिश में हैं. छोटे लोग किसी समिति में घुसने का टेग लगा कर घूम रहे हैं.धूर्त लोग जेब में कई टेग रखते हैं जैसा मौका हो टेग निकाल कर लगा लेते हैं चेनल वाले अपने टेग व् निष्ठा बदलते रहते हैं जब जैसी सरकार हो वैसा टेग लगा लेते हैं.कवि कहानीकार का टेग लगाकर घूम रहा है और कहानीकार उपन्यास लिखे बिना ही उपन्यासकार के रूप में बिकने को तैयार खड़ा है. आजकल जनवादी प्रगतिवादी राष्ट्र वादी का टेग लगा कर घूम रहे हैं बस व्यवस्था ध्यान दे दे. बिकना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है.खरीदारों आओ अभी ऑफ़ सीजन है सस्ते में मिल रहा हूँ फिर ना कहना खबर ना हुईं. विकास और विलास के लिए बिकना जरूरी है,नहीं तो विनाश हो जाता है.कई लेखक घोस्ट लेखक का टेग लगा कर घूम रहे हैं. बिकने का टेग लगाने से यदि गिरना पड़े तो गिरों यारों बिकना जरूरी है.कार्पोरेट दुनिया सबसे बड़ी खरीदार है . बिको जल्दी जल्दी बिको.अपना अपना टेग संभालो.नाटक कार फिल्म लेखक का टेग लगा कर घूम रहा है.एक गरीब लेखक बड़े प्रकाशक के यहाँ से छपने का टेग लगाकर घूम रहा है.प्रकाशक घास ही नहीं डाल रहा.राजधानी वासी लेखक सत्ता की मलाई का टेग लगाकर घूम रहे हैं ,बस अंतिम बार मलाई मिल जाय .

हम सब बिकने को तैयार खड़े हैं बस सही कीमत मिल जाय.इस लेख के छपने पर मुझे बिका हुआ माना जाय.

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यशवंत कोठारी,८६,लक्ष्मी नगर ब्रह्मपुरी बाहर जयपुर-३०२००२

मो-९४१४४६१२०७

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