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वैश्या वृतांत - 15

लक्ष्मी बनाम गृहलक्ष्मी

यशवन्त कोठारी

दीपावली के दिनों मे गृहलक्ष्मियों का महत्व बहुत ही अधिक बढ़ जाता है, क्योंकि वे अपने आपको लक्ष्मीजी की डुप्लीकेट मानती हैं । लक्ष्मी और गृहलक्ष्मी दोनों खुश हो तो दिवाली है, नहीं तो दिवाला है, और जीवन अमावस की रात है ।

सोचा इस दीपावली पर गृहलक्ष्मी पर एक सर्वेक्षण कर लिया जाये क्योंकि अक्सर मेरी गृहलक्ष्मी अब मायके जाने की धमकी देने के बजाय हड़ताल पर जाने की धमकी देती है । क्या इस देश की गृहलक्ष्मियों को हड़ताल पर जाने का कोई मौलिक अधिकार है ? और यदि है तो यह अधिकार किसने, कब और क्यों दिया ?

लक्ष्मीजी तो पुरूष पुरातन की वधु है, उनका चंचला होना स्वाभाविक भी है और आवश्यक भी है । मगर सामान्य गृहलक्ष्मी हड़ताल की बात करें तो मन में संशय पैदा हो जाता है आखिर वे चाहती क्या हैं । अपनी गृहलक्ष्मी से पूछा तो वे भभक पड़ीं ।

क्या आराम का अधिकार केवल पुरूषों की ही जागीर है । हम लोग आराम नहीं कर सकतीं । मैंने विनम्रता पूर्वक निवेदन किया ।

आराम करना आपका जन्म सिद्ध अधिकार है, मगर दीपावली के शुभ मौके पर यह अशुभ विचार । वे फिर क्रोध से बोल पड़ीं ।

तुम तो लक्ष्मी के वाहन के लायक भी नहीं हो । मगर फिर भी सुनों ।

सारे साल हम काम करते हैं । अब अगर दीपावली पर दो दिन आराम करना चाह रहे हैं तो तुम्हारा क्या बिगड़ जायेगा । फिर हम कोई बोनस, डी.ए. तो मांग नहीं रहे हैं, केवल आराम की बात कर रहे हैं ।

मगर देवीजी आराम तो हराम है ।

तो बस इसे हराम की कमाई ही समझो और तुम जानते हो हलाल से हराम की कमाई का महत्व बहुत ज्यादा है ।

वो तो ठीक है मगर काली लक्ष्मी रूठ गई तो सब गुड़ गोबर हो जायेगा ।

अब काली रूठे या सफेद । हम तो भई चले हड़ताल करने ।

यह कहकर देवीजी तो आराम करने चली गयीं । मैंने फिर एक अन्य गृहलक्ष्मी से आराम और हड़ताल पर विचार जाने ।

वे पढ़ी लिखी थीं । सब्जी खरीद रही थीं । टमाटर पर कददू रख रही थीं और खील बाताशांे पर दीपक रख कर सुखी हो रहीं थी ।

मेरा प्रश्न सुनकर पहले मुस्कराई, फिर अधराई और अन्त में कोयल की तरह कूक पड़ी ।

भाई साहब । ईश्वर आपके मुंह में घी-शक्कर डाले नेकी और पूछ पूछ कर, अरे भाई यहां तो दफ्तर से छुट्टी तो घर में पिसों । घर से छूटो तो दफ्तर में फाईलों में सर खपाओ । दोनों से छूटों तो पति और बच्चों के मामले देखो । अगर कहीं दुनिया में नरक है तो वो औरतों के भाग्य में ही है, भाई साहब ।

मैंने दिलासा देने की गरज से कहा-अगर आप कुछ दिनों के लिए हड़ताल पर चली जाएं तो ।

भई वाह मजा आ गया क्या ओरिजिनिल आइडिया है । मगर एक बात बताओ भाई साहब ।

ये भाई सहाब । भाई साहब । शब्द सुनते-सुनते मेरे कान पक गये थे सो मैं भाग खड़ा हुआ ।

इस बार सोचा एक गृहलक्ष्मा से बात करें । सुनते ही वो तमक कर बोल पड़े । अमां यार तुम भी निरे मूर्ख हो । गृहलक्ष्मियां अगर काम नहीं करेगी तो हम सब खायेंगे क्या ? तुम पूरे देश के घरों की व्यवस्था बिगाड़ने का षडयंत्र कर रहे हो देखो मुझे लगता है तुम्हारे पीछे किसी विदेशी एजेन्सी का हाथ लगता है । देखो प्यारे चुपचाप घर जाओ, एक दीपक जलाओ और गृहलक्ष्मी के हाथ की बनी चाय पीकर सो जाओ ।

लेकिन मुझे तो गृहलक्ष्मियों के जीवन के सर्वेक्षण का बुखार चढ़ा हुआ था । सो मैं उस गृहलक्ष्मा की नेक राय क्यों मानता । मैंने सर्वेक्षण करने वालों की तरह दो सेंटीमीटर मुस्कान चेहरे पर चिपकाई और सर्वेक्षण के अगले दौरे हेतु कुछ ऐसे लोगों को पकड़ा जो रोज गृहलक्ष्मियों को भुगतते हैं और आठ-आठ आंसू रोते हैं ।

सबसे पहले मैंने शहर के मिनी बसों के कण्डक्टरों से पूछा-गृहलक्ष्मी के बारे में तुम्हारे क्या विचार हैं ?

जो गृहलक्ष्मी बिना हील-हुज्जत के पूरे पैसे दे देती है, वही गृहलक्ष्मी अच्छी है जो झिकझिक करती है, मैं उसे रास्ते में ही उतार देता हूं और तुम पैसे निकालो ।

मैंने कण्डक्टर को पैसे दिये और उतर गया ।

बस कण्डक्टर से अपमानित होकर जब मैं नीचे उतरा तो एक आलीशान भवन के सामने एक आदमी खड़ा था मैं समझ गया यह बिल्डिंग बैंक की होगी और यह आदमी हर्षद मेहता की श्रेणी का । मैंने विनम्रतापूर्वक पूछा ।

गृहलक्ष्मी के बारे में आप क्या सोचते हैं ? वो धीरे से बोला ।

अपनी गृहलक्ष्मी के अलावा सब गृहलक्ष्मियां अच्छी लगती हैं ।

ये कहकर वो हो हो कर हंसने लगा मैं भी उसके साथ हंसने लगा फिर हम दोनो हंसने लगे । अब मैंने पूछा-

बैंक में जो गृहलक्ष्मियां आती है, उनके बारे में आप क्या सोचते है यदि वे हड़ताल कर दे तो ?

देखो दोस्त लॉकर खोल कर खुला छोड़ जाये वही गृहलक्ष्मी अच्छी होती है । और फिर यदि बैंको में हड़ताल हो तो देश के कामकाज का क्या होगा । वैसे गृहलक्ष्मी हड़ताल करे यह तो बात ठीक नहीं ।

यह ज्ञान लेकर मैं घर आ गया ।

इधर घर की गृहलक्ष्मी किराने वाले को महंगाई पर शषण सुनाकर आई थी और देश, सरकार, दूकानदार आदि को कोस रही थी । सोचा दूकानदारों से भी गृहलक्ष्मियों के बारे मेूं पूछना चाहिए । सभी दूकानदारों ने एक स्वर में कहा जो गृहलक्ष्मी बिना भाव ताव किये सामान खरीदकर ले जाती है, वही गृहलक्ष्मी श्रेष्ठ होती है । ऐसा व्यापार लक्ष्मी का कहना है ।

लेकिन गृहलक्ष्मी सर्वेक्षण प्रकरण में जब तक हारी बिमारी नहीं हो तो सर्वेक्षण का मजा ही क्या सो एक वैधराज से पूछा ।

रोगी गृहलक्ष्मियों से आप कैसे निपटते हैं ?

बस जरा-सी सहानुभूति, कुछ आत्मीयता और फिर वे खुलकर सास, ननद, जेठानी, देवरानी के किस्से सुनाने लग जाती हैं ।

अच्छा फिर उनके रोग का क्या होता है ?

रोग केवल मन की भड़ास निकालने का होता है । भड़ास निकली और सब कुछ ठीक हो जाता है । फीस मिलती है सो अलग ।

यदि गृहलक्ष्मी हड़ताल कर दे तो ?

वैधजी यह सुनकर बेहोश हो गये । वैधजी को छोड़कर एक रिक्शे वाले से पूछा ।

प्यारे भाई गृहलक्ष्मी के बारे में क्या सोचते हो वो छूटते ही बोला ।

चौपड़ से चौपड़ तक 2 रूपये लगेंगे काहे की लक्ष्मी और काहे की गृहलक्ष्मी चलना है तो चलो नहीं तो अपना रास्ता नापो । रिक्शावाले से बचते बचाते गृहलक्ष्मियों की चिंता करते सोचा किसी विधुर से भी राय कर लूं । एक विधुर मिला बोला ।,

ईश्वर बचाये गृहलक्ष्मी से । बड़ी मुश्किल से जान छूटी है । मेरी गृहलक्ष्मी तो स्थायी हड़ताल पर है । तुम अपनी खैर मनाओ और चाहो तो मेरी बिरादरी में शामिल हो जाओ । मगर मेरे ऐसे भाग्य कहां ।

लगे हाथ एक कुंवारे से भी पूछा बैठा । भाई गृहलक्ष्मी के बारे में आप क्या सोचते हो ।

लड़का नयी उमर का था मसें भीग रहीं थीं, मूंछे निकल रही थीं बोल पड़ा ।

गृहलक्ष्मी मैं क्या रखा है अंकल ! कोई लक्ष्मी पुत्री हो तो बताओ मैं समझ गया यहां से बचो ।

लेकिन अभी मेरा काम बाकी था सोचा भारतीय संस्कृति में गृहलक्ष्मी को ढूंढू मगर वहां तो सब गृहलक्ष्मियां लक्ष्मीजी की आरती में व्यस्त थीं । हड़ताल पर जाने की धमकी देने वाली गृहलक्ष्मी भी लक्ष्मीजी की पूजा अर्चना कर रही थी ।

सब सोच मैंने भी गृहलक्ष्मी की शरणम् गच्छामि होना ही उचित समझा । सो हे पाठक ! इस लक्ष्मी पूजन पर अपनी गृहलक्ष्मी को भी सम्मान दें और सुखी रहंे ।

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यशवन्त कोठारी

86, लक्ष्मीनगर ब्रह्मपुरी बाहर

जयपुर 302002, फोन 09414461207

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