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वैश्या वृतांत - 27

वैश्या वृतांत

यशवन्त कोठारी

क्षमा: मानवता का सर्वोच्च धर्म

भारतीय संस्कृति में क्षमा-दान को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है । प्राचीन वैदिक साहित्य, पौराणिक साहितय में क्षमा कर देना सबसे बड़ा भूषण माना गया है जो क्षमा नहीं कर सकता उसमें मानवता की कमी है । क्षमा मांगना कठिन हो सकता है, मगर क्षमा करना उससे भी कठिन होता है । लेकिन क्षमा कर देने पर जो आत्मिक सुख, मानसिक संतोष मिलता है, वह अनिर्वचनीय है, अनन्त है । क्षमा सभी धर्मों में महत्त्वपूर्ण मानी गई है । यदि धरती से क्षमा हट जाए तो क्या होगा ? सर्वत्र, जीवन रक्तरंजित हो जाएगा । पृथ्वी हिंसा का दूसरा नाम हो जाएगा । सब जगह जंगल राज हो जाएगा । व्यक्ति एक-दूसरे को मारने पर उतारू हो जाएगा और मानवता नष्ट हो जाएगी । जीवन के प्रति मोह का त्याग है क्षमा । मनुष्यता जिन गुणों से विभूषित होकर प्रतिष्ठा पाती है, उनमें क्षमा सबसे ऊपर है । क्षमा के बिना जीवन अधूरा और अहंकार युक्त हो जाता है । अंग्रजों में भी ‘सारी’ शब्द का बड़ा प्रचलन है, जो क्षमा या प्रार्थना का ही एक रूप है । एक प्रसिद्ध विचारक के अनुसार मनुष्य जानवर है, यदि उसमें क्षमा का गुण नहीं है । वास्तव में क्षमा मनुष्य को सच्चा मानव बनाती है ।

सभी धर्मों में क्षमा को सर्वोपरि स्थान दिया गया है । क्षमा को न केवल सभी धर्मों में स्वीकार किया गया है बल्कि उसे आम व्यवहार में लाने के लिए धर्माचार्यों, संतों,मुनियों.गुरुओं संन्यासियों, महाराजाओं तक ने अपने-अपने तरीके से प्रयास किए हैं।भगवन विष्णु को भृगु ऋषि ने लात मारी मगर प्रभु ने क्षमा कर दिया ,कृष्ण ने शिशुपाल के सो अपराध क्षमा कर दिए मगर १०१वा अपराध करने पर क्षमा नहीं किया सजा दी.

पर्यूषण पर्व पर क्षमा का विशेष महत्त्व है । इस पर्व काल में क्षमा को आचरण में उतारा जाता है । व्यवहार में लाया जाता हैं । हर जीव से क्षमा मांगी जाती है । चैरासी लाख जीवों से क्षमा याचना, यहां तक कि पेड़-पौधों से भी क्षमा याचना की जाती है । क्षमा मांगने से कोई छोटा नहीं हो जाता ।

सब ‘जियो और जीने दो’ की महान् परम्परा के वाहक बन जाते हैं । जैन धर्म में क्षमा वाणी को एक पर्व, उत्सव के रूप में मनाया जाता है । क्षमा के महत्त्व का वैज्ञानिक अनुषीलन किया गया है । क्रोध, दुःख एक ऊर्जा है जो जीव को जलाती है और यदि क्षमा का सहारा हो तो ऊर्जा सकारात्मक काम में बदल जाती है । वास्तव में जैन समाज में क्षमा अपने आचरण, सम्यक् जीवन दर्शन, सम्यक् चारित्रिक व्यवहार से अपने भीतर पैदा की जाती है । एक स्व का विकास होता है जो निजता में क्षमा का एक विराट संसार पैदा करता है । और सम्पूर्ण विष्व उसमें क्षमा पाता है, क्षमा देता है, क्षमा को महसूस करता है ।क्षमा सब के लिए है , क्षमा दान महादान है, लेकिन अहंकारी, घमंडी तथा नीच को क्षमा का फल नहीं मिलता है । जो अहंकार क्षमा याचना नहीं करने देता, उसे क्षमा का अधिकार नहीं दिया जा सकता । उसे तो उसका अहंकार नष्ट कर देगा । कभी-न-कभी उसे नष्ट होना है, क्षमा उसके लिए कोई प्रभाव नहीं छोड़ पाएगी, अतः अहंकारी को क्षमा नहीं दंड और अन्त में क्षमा । क्षमा शाष्वत धर्म है । क्षमा को जैन धर्मों की तरह ही अन्य धर्मों में भी महत्त्व दिया गया है । सनातन हिन्दू धर्म में भगवान् आशु तोष महान् क्षमा देने वाले हैं । वे संसार के गरल को स्वयं पीने वाले हैं और क्षमा के साथ-साथ अहंकार को नष्ट करने की शक्ति भी रखते हैं । धर्म में अपने पापों की स्वीकृति भी क्षमा का ही एक रूप है, ईष्वर के सामने अपनी गलतियों को स्वीकार करके क्षमा मांगना । यहूदी धर्म, इस्लाम धर्म तथा ईसाई धर्म सभी में क्षमा को पर्याप्त महत्त्व दिया गया है । ईसा मसीह ने तो अपने हत्यारों तक को क्षमा किया ।पर्युषण महा पर्व के अवसर पर –तस्स मिच्छामी दुक्खडम उचारे.

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यशवन्त कोठारी

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