Mukhbir book and story is written by राज बोहरे in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Mukhbir is also popular in सामाजिक कहानियां in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
मुख़बिर - उपन्यास
राज बोहरे
द्वारा
हिंदी सामाजिक कहानियां
मैंने इस बार शायद गलत जगह पांव रख दिया था। पांव तले से थोड़ी सी मिट्टी नीचे को रिसकी थी, जिससे हल्की सी आवाज हुई। मुझे लगा, मेरी गलती से शोर पैदा हो रहा है। अभी हाल गालियां सुनने को मिलेंगी.....हो सकता है कि एकाध धप्पा भी खा जाऊं । सो मैं डर गया । मेरी झिझकती निगाह रघुवंशी पर गई । वह शांत दिख रहा था। मैं निश्चिंत हुआ, यानी कि हम सब सुरक्षित थे ।
डकैतों की तलाश में निकले एक दल ने दो ऐसे मुखबिर साथ ले लिए जो पहले इसी डाकू की पकड़ ने रहे और उन्हें डाकू के सारे ठौर ठिकाने मालूम थे। डकैतों और पुलिस वालों का व्यवहार ...और पढ़े सतर्कता लगभग एक जैसी थी।
पिछली रात करसोंदा-कलां गांव में सुरेश रावत के बड़े भाई गणेश रावत को रात ग्यारह बजे श्यामबाबू घोसी ने घर से बुलाके गांव के बाहर ले जाकर बड़ी बेदर्दी से मार डाला था । सुरेश के साथ ...और पढ़ेजाने के लिए एक भी आदमी तैयार नहीं हुआ -, डाकू सिंगराम रावत की वजह से वैसे ही कृपाराम नाराज चल रहा है रावत विरादरी से बैठे-ठाले डाकुओं से कौन बैर बांध ले । सुरेश को पता लगा कि बागियों की खोज में जंगलों में घूम रही एक टुकड़ी करसोंदा-कलां में रूकी हैं तो वह नंगे पैरों हमारे दल के पास भागा चला आया था ।
चंबल की कहानी।पुलिस की सर्चिंग टुकड़ी को कुछ सुराग मिला तो वे उत्साह में हैँ। दरअसल चंबल में लंबे समय के बाद कोई बीहड़ में कूदा है, नए जमाने का डकैत है ! डकैतों और पुलिस वालों ...और पढ़ेव्यवहार और सतर्कता लगभग एक जैसी थी। दोनों मुखबिर की हालत खराब , वे पुलिसिया गाली गुफ्तार और बेइज्जती से दुःखी प्रायः पुराने दिन याद करते थे ।
दिन में समूह के बीच सुरक्षित चलते वक्त तक जरा-जरा सी आवाज पर हमारे बदन में फुरफुरी आ जाती थी, फिर तो इस वक्त रात के अंधेरे में असुरक्षित लेटे हम सब थे। मुझे ऐसे कई हादसे याद आ ...और पढ़ेथे जिनमें बागियों या नक्सलियों ने इस तरह किसी इमारत में मकाम किये लेटी पुलिस टीम को डायनामाइट लगा के उड़ा दिया था। इसलिए जहां भी जरा सा खटका होता मैं ही नहीं जाग रहा हर सिपाही एक पल को चौंक उठता।
लल्ला पर मुझे बेहद तरस आता है, पिता के इकलौते लड़के, पिता एक जाने माने कथा वाचक थे, संगीत में डुबाकर जब वे माकिर्मक कथाऐं सुनाते तो सुनने वाले का दिल फटने फिरता, यही जादू सीखना चाह रहे थे ...और पढ़ेपंडित, सो उन्होने न तो पढ़ाई मे ध्यान दिया न ही खेती बारी में ।... और दोनों ही उजर गये । खेती पर गांव के अड़ियल गूजर ने अपनी भैंसों का तबेला बना लिया और रोज रोज कथा में जाने के कारण स्कूल जाना बंद हो गया, और धीरे धीरे तीस साल के हो बैठे लल्ला महाराज ।