मुख़बिर - 13 राज बोहरे द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

मुख़बिर - 13

मुख़बिर

राजनारायण बोहरे

(13)

दूध का केन

हम लोग पहाड़ी से नीचे उतरे । सामने की पंगडंडी से दूधवालों की चार-पांच साइकिलें आती दिख रही थीं । बागी उन्हे देखकर रूके, तो दूधियों की तो हालत ही खराब हो गयी । डरते कांपते वे दूर ही रूक गये थे । श्यामबाबू ने आवाज देकर उन्हे आश्वस्त किया -‘‘ डरो मत सारे हो, हमाये ढिेंग आओ और बस दूध पिला दो ।‘‘

मैंने देखा कि दूध का केन खुलते ही बागी दूध पीने के लिए भूखे टूट पड़े । कल से हम देख रहे थे कि दूध-घी के लिये बागी लोग सदा ही भूखे रहते हैं ।

सबसे पहले बागियों ने जी भर के दूध चसका । फिर दरियादिली दिखाते हुये हम अपहृतां को भी दूध पीने की अनुमति दे दी ।

हम सबने भी अघा के दूध पिया । अब दूधिये मुक्त थे-इस निर्देश के साथ कि उनकी बोटी-बोटी काहे न कट जाये, पुलिस को वे कभी न बतायेंगे कि कृपाराम घोसी कभी उनसे मिला भी था कृपाराम ने आसमान में चमकते सूरज को देखकर दिशा का अनुमान लगाया और दक्षिण दिशा की ओर बढ़ लिये ।

चलते-चलते मुझे लगा कि लल्ला कुछ अनमना सा है । मैंने सबको सुनाते हुये उससेे जरा ऊंची आवाज में पूछा-‘‘ काये पंडतजी, तबियत बिगरि रही है का ?‘‘

रूआंसा सा होते हुये लल्ला बोला-‘‘ गिरराज भैया, मरे जा रहे हैं । बुखार चढ़ि आयो ।‘‘

‘‘ मक्कर मति बनाय सारे । ऐसो बुखाार उतारेगें कि झंझटई मिटि जायेगो ।‘‘ श्यामबाबू बीच में कूद कर लल्ला को डांटते हुये बोला, तो लल्ला रो ही पड़ा । लेकिन वहां कौन बैठा था जो उसे पुचकारता या रोने से रोकता ! मैं भी गूंगा बना चलता रहा । बाकी अपहृत भी चुप रहे ।

मैंने थोड़ी देर बाद हिम्मत करके कृपाराम से चिरौरी की -‘‘ मुखिया तिहाई इजाजत मिले तो आसपास के काउ गाम में से दवाई ले आवें हम !‘‘

‘‘ दवाई !‘‘

‘‘ अब हारी-बीमारी तो लगी ही रहतु है ! आज लल्ला पंडित बीमार है, कल हम है सकत, परसों कोऊ औऱ मतलब जो कै कछू दवाई अपन को संग में रखिवो चाहिये।‘‘

‘‘ तै जानत है दवाई के नाम ?‘‘

‘‘हां काम चलाइवे के लाइक तो खूब जान्तु हैं !‘‘

‘‘तो ठीक है, कल दूधियन ते मंगाइ लेंगे ।‘‘

‘‘कलि नौ तो जे लल्ला पंडित मरि जायेंगे ।‘‘

‘‘अरे ऐसे ना मरि रहे !‘‘ निरपेक्ष भाव से मुझे समझाते हुये कृपाराम हंसा और उसने लल्ला की पीठ पर एक जोरदार धौल जमा दी । लल्ला कराह के रह गया । कृपाराम ने उसका बदन छुआ तो उसे सचमुच बुखार महसूस हुआ । उसने पूरी टीम को रूकने का इशारा किया ।

मैंने देखा कि कृपाराम को जड़ी-बूटियों का भी पर्यांप्त ज्ञान है, वह एक मिनट तक खड़ा-खड़ा कुछ विचार करता रहा फिर उसने आसपास की वनस्पति को देखना आरंभ किया और यहां से वहां तक ढूढ़ता चला गया । यकायक एक झाड़ी में से कुछ पत्ते तोड़े, उन्हे मसला फिर मुंह में रख लिया, और चुभलाने लगा ।

अगले ही पल उसने वे पत्ता थूक दिये और लम्बू ठाकुर की ओर देख कर उन्हे हुकुम किया -‘‘ जल्दी से जा बेल के कछू पत्ता तोरि ले रे ठाकुर, और आग जलाइ के तनिक सो काढ़ो बनाइ ले, सारे ।‘‘

काढ़ा पीते वक्त लल्ला कभी आंख मूंदता और कभी नाक सिकोड़ कर बुरा सा मुंह बना रहा था । फिर वह करवट लेकर आंख मूंद कर लेट गया था । मैं उसके पास जा बैठा और उसके सिर पर हाथ फेरने लगा था ।

दस मिनट में ही दवा का असर दिखने लगा । लल्ला को गहरा पसीना छलछला आया । पहले तो वह परेशान सा रहा फिर जब बुखार भी उतरता सा दिखा तो वो निश्चिंत होने लगा ।

कृपाराम भी खुश दिखा।

लल्ला के माथे पर हाथ फेरते हुये वह बोला-‘‘पंडत, हम पाप तो करि रहे हैं, तेये जैसे भले आदिमी को अपने संगे घसीटि के । पै हमायी मजबूरी है । छमा करिये रे लला !‘‘

लल्ला की आखें भीग उठीं, दिल हलकान हो गया और वह कृपाराम का हाथ अपने दोनों हाथों में पकड़ के सुबकियां भर कर रो उठा । वातावरण भारी हो चला था ।

श्यामबाबू बड़ा निर्मम है । उसने इस भावुकता को तोड़ा-‘‘ चलो, अब सबि लोग तनिक जल्दी डग धरि लो । दो दिन हम सुरपुरा में आराम करेंगे ।‘‘

मन मारके लल्ला भी उठा और सबके पीछे-पीछे धीमे कदमों से चल पड़ा अलबत्ता लल्ला के सिर पर रखी वजनदार पोटली अब कालीचरण के सिर पर थी ।

लल्ला पंडित सचमुच बड़े नाजुक हैं । अभी पुलिस पारटी के साथ हम लोगों ने बीहड़ की ऊंची नीची पहाड़ियों और भरकों में भटकना शुरू किया था तो थकान के मारे पहले ही दिन लल्ला को बुखार आ गया था । रस्ता चलते मैंने इसकी सूचना रघुवंशी को दी तो वह खीझ उठा था-‘‘ यह आदमी सचमुच बड़ा हरामी है साला । जरा सी मेहनत पड़ी कि फैल जाता है, कभी बुखार चढ़ा लेगा तो कभी रोटी के लिये रोयेगा ।‘‘

टीम के क्वार्टर मास्टर ने लल्ला पंडित को दो-गोली पानी से निगलने को दीं तब, और पांचेक मिनट विश्राम भी किया था सबने । तब भी गोलियों की वजह से लल्ला पंडित का बुखार उतर गया था और दरोगा ने तुरंत ही सबको मार्च करने का हुकम दे दिया था ।

सुरपुरा गांव में कृपाराम के गिरोह के आने की पहले से ही सूचना थी शायद, क्योंकि जब हम पहुंचे सबके लिये खाना बन रहा था । गांव के स्कूल के अहाते में बैठे कई लोग हमारा इंतजार कर रहे थे । कृपाराम के पहंचने पर वे लोग बड़े खुश हुये और उनने पूरे गिरोह से भुजा भरके भेंट-क्वारें की। कृपाराम उनसे बच्चों, भाई-बंधुओं, रिश्तेदारों और समधियों तक की कुशल क्षेम पूछता रहा ।

गांव वाले कृपाराम की मुख्य पंसंद जानते थे शायद । एक पढ़ा-लिखा सा आदमी अपने हाथ में ग्वालियर से छपने वाले भास्कर, जागरण, नवभारत, आचरण और ऐसे तमाम दूसरे दैनिक साप्ताहिक अखबारों का पुलिन्दा लिये खड़ा था, जब सबसे बातचीत निपट गई तो वह कृपाराम से बोला-‘‘ मुखिया, जि हैं तिहाई वारदात के बाद के अखबार । सब मंगाय लये कस्बा ते ‘‘

कृपाराम की आंखें चमक उठीं उसने बड़े उत्साह से वो पुलिंदा अपने हाथ में ले लिया फिर अकड़ के गर्व से गरदन तान ली । वह उत्सुकता से आंखें फैलाते हुए वे सब अखबार फैला-फैला कर देखने लगा । फिर शायद कुछ याद आया तो मुझसे बोला-‘‘ मोटा लाला, बांच तो तिहाये अखबार वारे हमारे लाने का छाप रहे हैं ?‘‘

मैंने अखबारों का पुलिंदा हाथ में लिया और अपने पास रख लिया । फिर एक एक अखबार उठा कर जोर से पढ़ने लगा ।

एक अखबार में खबर इस तरह थी-

घोसी गिरोह ने छै लोग अगुवा किये: पुलिस को बड़ी चुनौती

मुड़कट्टा की घाटी /चम्बल /(निप्र) एक लम्बे समय से चुपचाप रह कर समय काट रहे कृपाराम गिरोह ने एक बड़ी वारदात को अंजाम देकर न केवल अपनी उपस्थिति प्रकट की है बल्कि इससे पुलिस को भी एक चुनौती फेंक दी है । कल सुबह मुड़कट्टा की घाटी से नीचे उतरती एक बस को रोककर कृपाराम ने बस की सवारियों को दो घंटे तक खूब लूटा और छै सवारियों को अगवा भी कर लिया है, मजे की बात यह है कि यह छहों सवारियां सवर्ण जाति की हैं । पुलिस के सामने इन सवारियों को छुड़ाने की समस्या एक बड़ी चुनौती के रूप में आकर उपस्थित हुई है, देखना है कि अवर्ण-सवर्ण के आपसी द्वंद्व में उलझे इस अपहरण कांड से पुलिस किस तरह निपटती है ।

एक अन्य अखबार में समाचार इस प्रकार था ।

सवर्ण जातियों के खिलाफ घोसी ने बिगुल फंका: छह सवर्ण अपहृत

मुड़कट्टा की घाटी /चम्बल /(डाक संवाददाता) चम्बल की घाटी में युगों से चली आ रही वर्ग सघर्ष्। की लड़ाई अब वर्ण संघर्ष में बदलती दिखाइ्र दे रही है । सवर्णो के उत्पीड़न की वजह से बीहड़ में कूदने वाले बागी कृपाराम घोसी ने सवर्ण जातियों के खिलाफ एक बार फिर युद्ध का बिगुल फंूक दिया है । मुड़कट्टा की घाटी से गुजर रही एक नियमित बस को रोक कर कृपाराम गिरोह ने कल तड़के बस में सवार उन छै सवर्ण लोगों को अपहृत कर लिया जो दुर्भाग्य से बस में यात्रा कर रहे थे । चूंकि कृपाराम सवर्ण लोगों के खिलाफ है, इस कारण अपहृत लोगों की जान खतरे में है । अपहृतों की वापसी उनके परिजनों द्वारा चुकायी जाने वाली फिरौती या कृपाराम की दया पर निर्भर है, अन्यथा पुलिस के मुखबिर तंत्र की नाकामयावी इसी से प्रकट होती है कि वह अपहरण के बीस घंटे बाद तक घटनास्थल पर नही पहुंच सकी ।

इस घटना से कई मुददे उभर कर आये हैं-पहला तो ये कि कृपाराम घोसी का मुखबिर तंत्र पुलिस के मुखबिर तंत्र की तुलना में ज्यादा ताकतवर है, तभी वह पिन-प्वाइंट सूचना प्राप्त करके अपहरण कर जाता है । दूसरा यह कि राजनीति में पिछड़े और दलित वर्ग के उदय होने के अंदाज में चंबल के डाकू वर्ग में भी अगड़े पिछड़े वर्ग का संघर्ष्। अपनी जड़ जमाने लगा है । मजे की बात यह है कि सवर्ण कही जाने वाली जातियों का एक भी डाकू इस वक्त चम्बल घाटी में मौजूद नही है, इसलिए इस अपहरण के बदले में घोसियों के अपहरण की कोई संभावना मौजूद नहीं है। इस वक्त चम्बल में पिछड़े ओैर दलित वर्ग के गिरोहों का एक छत्र राज्य कायम हो चुका है ।

तीसरे अखबार ने इस खबर को चुनाव कार्य से जोड़ते हुूए कुछ अलग ढंग से छापा था-

चुनाव परिदृश्य मे नया मोड़: घोसी गिरोह ने प्रचार शुरू किया

मुड़कट्टा की घाटी /चंबल / चुनाव परिदृश्य में घोसी गिरोह ने एक नये मोड़ को अंजाम दिया है, एक पार्टी विशेष के पक्ष में प्रचार शुरू करते हुए डाकू कृपाराम घोसी ने लोगों को गोलबंद करना शुरू कर दिया है। उसके इस अभियान का विरोध कर रहे विरोधी दल के छह कार्यकर्ताओं को उसने भरी बस से अपहृत कर लिया है। इस घटना के एक प्रत्यक्ष दर्शी ने बताया कि अपहृत लोगों को जानवर की तरह हांक कर ले जाने से पूर्व्र बस की सवारियों से कृपाराम ने बाकायदा अपने दल के पक्ष में नारे लगवाये । इस घटना से प्रकट होता है कि डाकू लोग अब राजनीति में प्रवेश के लिये तत्पर है । राजनीति वेत्ताओं का कहना है कि आरंभ में अपने राजनीतिक आकाओं के लिए काम करने के बाद वे समय आने पर धूमधाम से राजनीति में प्रवेश करेंगे । इस बात में कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिये कि चंम्बल घाटी में हथियार लेकर पुलिस के आगे आगे जान की चिंता में भाग रहे इन डाकुओं को हम आने वाले युग में पुलिस के पीछे पीछे किसी जनप्रतिनिधि के रूप में शान से सफर करते पायेंगे ओैर हमारे संविधानवेत्ता इस बेतुके परिवर्तन ओैर बेतुकी वर्ग क्रांति के लिए कुछ न कर पायेंगे, बल्कि इस अकल्पनीय दृश्य को देखकर वे अपना सिर धुनते नजर आयेंगे।

इस घटना को अलग-अलग नजरिये से छपने वाली खबरों और बाद की पुलिस कार्यवाही से भरे अखबार बांचते फिर उसकी प्रतिक्रिया सुनते देर रात हम लोग स्कूल के अपने बिस्तर पर पहुचे । रोज के क्रम से अपहृतां के पांव में जंजीर बांधी गई, और सब सो गये ।

कृपाराम और श्यामबाबू का इस तरह अपने बारे में छपी अखबार की खबरों के प्रति बेतहाषा मोह देख कर मुझे अखबारो में छपी यह संभावना सच लग रही थी कि वे दोनों जल्दी ही राजनीति में दखल देना शुरू कर देगे ।

मुझ को चुप देखकर रघुवंशी ने टोका -‘‘कहा सोच रहो है मोटा लाला, अब आगे का किस्सा सुना।‘‘

और मैं दुबारा शुरू हो गया ।

मेहमान

तब आधी रात हुई होगी कि यकायक तेज रोशनी से पूरा अहाता भर उठा । किसी वाहन की हैड-लाइट रोशनी थी वो । बागी बड़ी कच्ची नींद सोते थे सो जब तक हमलोग उठते, तब तक तो कृपाराम और उसके सारे साथी जाग कर लेटे ही लेटे अपनी बंदूकें संभ्ंल कर पोजीशन ले चुके थे ।

उधर से आवाज आई -‘‘ कृपाराम, गोली मत चलइयो, हम हैं मास्टर !’’

‘‘ पहले उजाला बंद करो !’’ कृपाराम संशय में था शायद ।

वाहन की हैड लाइट बंद हुयी और उधर से एक छाया सी प्रकट हुयी, कृपाराम ने ऊंची आवाज में उस आदमी से बोला-‘‘ मास्टर, तुम को कैसे पता लगा कि हम यहां है ? तुम कैसे आ गये ?‘‘

‘‘ तुम्हारी खबरें तो अखबारन से पता लग जातु हैं मुखिया !‘‘

वह व्यक्ति बहुत निकट आ चुका था और बड़ा निश्चिंत दिख रहा था, पर गिरोह अभी भी संशंकित था । बिलकुल निकट आने पर कृपाराम ने पूरी तरह उसे पहचाना तो वह उठा और उसे अपने पास ही बिठा लिया -‘‘ कोई धोखा तो नहीं है मास्टर ?‘

मास्टर शायद झल्ला उठा था, सो बोला -‘‘ अब तुम्हई सोच लो । तनिक देर में पुलिस आई जा रही है, सो जांचते रहियेा, हम तो चले ।‘‘

‘‘ मास्टर तुम गुस्सा जल्दी खाय जात हो । अब बोलो का बात है ?‘‘

‘‘ पुलिस ने इस बार राजस्थान की पुलिस के साथ मिल के तुम्हे घेरवे की तैेयारी करी है, सो घंटा दो घंटा में यहां छापा परिवे वारो है । हम जीप लाये हैं, चलो निकरि चलो जल्दी से ।‘‘

फिर तो जैसे बिजली सी चमकी। बागियों की फुर्ती देखते ही बनते थी उस वक्त। आनन-फानन में सारी पोटलियां बांधी गयी और जीप में लाद दी गयीं, और हम सब लोग जीप में जा लदे । जीप की भीतर की मंदी सी रोशनी में हम सबने मास्टर को देखा-सांवला सा गठीले बदन का, पचासेक साल का मास्टर नामक वह आदमी अपनी छोटी-तराशी सी तीखी मूंछों, और बसंती रंग के बड़े से साफे के कारण तगड़ा आदमी दिखता था, लेकिन गर्दन के दुबलेपन से उसके कमजोर शरीर का सहज अहसास हो जाता था । मैं अंदाज लगाने लगा, कि यह आदमी मास्टर क्यों कहा जाता है ? या तो यह पहले किसी स्कूल का मास्टर रहा होगा, या फिर बदमाशी का मास्टर रहा होगा शायद । जो भी हो, इस वक्त तो यह बागियों का संरक्षक और निकट संबंधी सा दिख रहा है ।

तीन घंटे की तूफानी यात्रा के बाद गाड़ी रूकी, तो हमने देखा कि हम किसी बस्ती से दूर जंगल में बसी खिरकारी के आंगन में खड़े हैं । चारों ओर दस-दस फिट ऊंची चहार दिवारी से घिरी वह इस वक्त सन्नाटे में डूबी थी-मानों उसमें आदमियों का नहीं भूत-प्रेतों का निवास हो ।

हम छहों को बन्दूकों के घेरे में बड़े ऐहतियात से भीतर ले जाया गया । भीतर ही नहीं बल्कि सीधे तहखाने में ले जाया गया हमे । एक खूब बड़ा सा हॉल था वह, जिसे शायद जेलखाने के उद्देश्य से ही बनाया गया था । ऊपर रोशनदान बने थे और एक कोने में बना था बाथरूम-लेट्रिन ।

हम लोग जाकर नीचे ज़मीन पर बैठ गये । जीप में तीन घंटे तक झुके झुके बैठे रहने के कारण हम सबकी कमर अकड़ गयी थी । जब छहों अकेले हुये तो लंबी सांस लेते हुये हम लोग जमीन पर पसर गये । हम सबकी आंखों में नींद मड़राने लगी थी, थकान के कारण ।

दिन भर ऐसे ही सोते-जागते बीता । शाम को हमे जो खाना मिला वह रूखा-सूखा, स्वादहीन और बासा खाना था ।

वो रात बड़ी बैचेनी में बीती । आगे क्या होगा, क्या यहां बंद रहकर ही लम्बा समय बिताना होगा हमे ! प्रश्न रात भर परेशान करते रहे हमे । न नींद आ रही थी, न बदन में भीतर तक प्रवेश कर चुकी थकान से राहत मिल रही थी । लगातार दो दिनों से चालीस-चालीस किलोमीटर तक चलना पड़ रहा था हमे ।

सुबह हम लोग जबरन जगा दिये गये । बंदूक ताने खड़ेे अजय के बाजू में खड़ा श्यामबाबू हमे लातों से रोंद रहा था-‘‘ सुन लेओ रे तुम लोग, सारे ऐसे घोड़े बेच के मत सोवो । यहां मालिक नहीं हो, गुलाम हो तिम। वो तो किस्मत बारे हो के मास्टर की खिरकारी में आराम करोगे ! नहीं तो कोई ऐसे घर में बिड़े होते कै हंगवे-मूतवे तरस जाते । हमि तो जा रहे हैं इते से । तुम याद राखियों, कै इते तुम्हारी हर हरकत पर मास्टर की नजर रहेगी । सो चुपि चापि समय काटियो और बिनको हुकम मानियो, नहीं तो मास्टर हमते भी ज्यादा ज़ालिम है । बिना कहे ही गोली माद्देगो ।‘‘

अजय और श्यामबाबू के जाने के बाद कृपाराम नीचे उतरा, उसके हाथ में एक पोटली थी । वह पोटली उसने मेरी ओर उछाल दी

मैंने पोटली खोली, उसमें बासी कूसी रोटी गंधा रही थीं, जेसे किसी दावत के बाद पततलनों से उठाई गई जूठन हो।

अब कृपाराम ने अपनी बगल में दबा रखा अखबारों का एक पुलिंदा निकाला और हमारे सामने ही बैठते हुए मुझसे बोला-‘‘ देख तो रे लाला, तुम्हारी तलाश में पुलस का-का ठठ करम कर रही है ! तनिक बांच के सुना, कै कहा-कहा मर्दानगी दिखा डारी उनने ।‘‘

मैने अखबार पढ़ना आरंभ किया । एक में लिखा था-

पुलिस ने घोसी गिरोह पर षिकंजा कसा: रेत खदान पर छापा

गिदवारी, मंगलवार ( निप्र ) मुड़कट्टा की घाटी से एक बस से छै लोगों को अगुवा करके बीहड़ में चम्पत हुए कृपाराम घोसी गिरोह की तलाष में चम्बल रेंज की पुलिस पूरी तैयारी से बीहड़ में जुट गई है । गिरोह की तलाष में एक रेत खदान पर छापा मारा गया हैे, जहां बागी कभी-कभार आकर आसरा लिया करते थे ।

उल्लेखनीय है कि यह रेत खदान कृपाराम के एक रिष्तेदार द्वारा खनिज विभाग से ठेका लेकर चलाई जा रही है, और चम्बल नदी के उन घाटों से भी यह ठेकेदार रेत निकाल रहा है, जिनका ठेका किसी को नही दिया गया है, अर्थात जो खदान गवर्नमैंट क्वेरी के रूप में लोक निर्माण विभाग, ग्रामीण यांत्रकी, लोक स्वास्थ्य यांत्रकी और जल संसाधन ( सिंचाई ) विभाग के लिए आरक्षित की गई है । ठेकेदार ने नदी के किनारे ही अपना एक बड़ा कैम्प बना रखा है, जिसमें कई डम्फर, टेक्टर और टक खड़े रहते है। ठेकेदार के दर्जनों कर्मचारियों के अलावा वाहनों के चालक और क्लीनर मिला कर वक्त इस कैम्प में एक सैकड़ा से ज्यादा आदमी मौजूद रहते है, जो हर बक्त गैर कानूनी हथियारों से लैस रहते है। इस कारण आम आदमी और सरकारी कारिन्दे वहां पहुंचने में हिचकते है। पुलिस ने रेत खदान के इस ठेकेदार के कैम्प से भारी असलहा और सरकारी खनिज से भरे कई वाहन जप्त किये है । लेकिन इतनी कवायद का पुलिस को कोई लाभ नहीं मिला, कृपाराम गिरोह पिछले कई महीनों से इस जगह पर नहीं आया है । इस कारण हताषा में घिरे पुलिस दल ने लगभग एक दर्जन आदमियों को अपने साथ बिठा लिया है और चार वाहन भी कैम्पस से उठाकर थाने में खड़े कर दिये है।

एक दूसरे अखबार में पुलिस की मषक्कत का एक दूसरा आयाम लिखा गया था-

घोसी गिरोह की तलाष में चरवाहे पकड़े: पुलिस की सर्च आरंभ

मर्दनसिंह का पुरा, मंगलवार । लम्बे सन्नाटे के बाद एक जोरदार वारदात करके सनसनी फैलाने वाले कृपाराम घोसी गिरोह की तलाष में पुलिस ने सर्च आरंभ कर दी है । पुलिस के तमाम आला अधिकारी अपने आफिस छोड़कर जंग्रलों में रात बिता रहे है और कृपाराम घोसी गिरोकह को इस तरह तलाष कर रहे है जैसे वह रूप् बदल कर कहीं छिप गया हो । जंगल और बीहड़ों में स्वछंद विचरने वाले चरवाहों से पुलिस दल ने सघन पूछताछ आरंभ कर दी है, और सन्देह होने पर चार चरवाहों को अपने साथ पुलिस की गाड़ी में बिठा लिया है । बताया जाता है कि यह सारी कार्यवाही देखने-दिखाने के लिए की जा रही है, ताकि जनता और पत्रकारों को उपयुक्त जवाब दिया जा सके । क्योंकि कृपाराम घोसी के आमने-सामने पड़ जाने पर पुलिस के छोटे कर्मचारीयों में इतना आत्मबल नहीं है कि वे इनकांउटर में भाग ले सके, इसलिए दिखावा करना जरूरी हो गया है । पुलिस उस दिषा में कभी नहीं जा रहीक है जिस दिखा में गिरोह के होने की खबर हो, इस कारण ऐसे अभियानो से गिरोह दूर रहा पुलिस को उसकी परछांई भी पाना मुष्किल होगा ।

एक अन्य अखबार इस काम में पुलिस की कार्यवाही पर कोई भी सन्देह नहीं कर रहा था-

घोसी गिरोह का सफाया होगा: पुलिस अफसरों ने दृड़ता से सौगन्ध ली

ग्वालियर, मंगलवार ;( कार्यालय संवाददाता ) चम्बल रेंज के आईजी ने आज यहां आयोजित एक उच्चस्तरीय बैठक में अपने अफसरों को प्रेरित किया कि वे बिना किसी संकोच और भय के कृपाराम घोसी गिरोह के खिलाफ कमर कस के डाकुओं के विनाष के लिए जुट जायें । अब अपना लक्ष्य कृपाराम घोसी का सफाया करना है, इसमें मै न तो कोई हीला-हवाली सहन करूंगा न कोई छुट्टी जा सकेगा । हमको अपने बड़े अफसरों और जनप्रतिनिधियों को जवाब देने में कठिनाई होती है, इस वजह से आप लोग भी अब पुराने सारे किस्से भूल जायें और इस कमीने बागी से दो-दो हाथ करने के लिए सौगंध खा लें । इस बैठक के बाद पुलिस के इंसपेक्टर व दूसरे अधिकारी बड़े जोष-खरोष के साथ बाहर निकले हैं और पूरी तैयारी के साथ बीहड़ों केी ओर प्रस्थान कर गये हैं । लगता है इस बार कृपाराम गिरोह की आफत आ गई है और अब वह या तो यह इलाका छोड़ देगा या फिर मारा जायेगा ।

मैं देर तक कृपाराम को उन अखबारों से खबरे बांच कर सुनाता रहा जिन्हे सुनकर वह प्रसन्न और आत्मगर्वित होता रहा। फिर उठ कर गुनगुनाते हुये वहां से चला गया ।

कृपाराम के जाने के बाद हमारी नजरें आपस में मिलीं तो लगभग सिसकारी लेने के अंदाज में लंबी सांस भरी सबने ।

लल्ला पंडित ने ‘हरिओम तत्सत’ कहते हुए खाना आरंभ किया तो रोबोट की तरह हम सबके हाथ-मुंह चलने लगे । रोटी कई दिन बासी थीं उसके कौर कौर में सड़ांध की वजह से पतले तार से चलने लगे थे इस कारण भीतर जाने के बजाय हर कौर मुंह से बाहर को आ रहा था । लेकिन यहां न कोई इच्छा चलनी थी, न स्वाद, सो जैसे तैसे करके हमने कल की तरह रोटियां निगलीं । हर आदमी की खुराक की तुलना में आधा खाना था वह, लेकिन यहां यही खाना हमे खुदा की बड़ी रहमत सा दिख रहा था ।

अभी जागे देर भी नही हुयी थी कि खाना खाने के बाद हमे फिर से नींद आने लगी, और हम सब जहां बैठे थे वहीं आड़े होने लगे ।

लल्ला पंडित को जाने क्या सूझा कि वह लेटे लेटे ही गुनगुनाने लगा-

प्रात समय रवि भक्ष्य लियो तब तीनहि लोक भयों अधियारों ।

ताहिं सो त्रास भयो जगको यह संकट काहूं से जात न टारो ।।

देवनि आय करी विनती प्रभु बेगिब हरो यह कस्ट हमारो ।

को नहीं जानत है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो ।

मेरी इच्छा हुयी कि लल्ला पंडित को टोक दूं, लेकिन यह सोचकर मैं चुप रहा कि अगर उनको ईश्वर का इस तरह स्मरण करने से आत्मबल मिलता हो तो क्या हर्ज है ?

हमारा पहला दिन चुपचाप बीता था, लेकिन भोजन के बाद हम सब आपस में बतियाने लगे । पहले परिचय हुआ, फिर दोस्ती हुयी और फिर तो हम सबकी आपस में खूब घुटने लगी ।समय काटने के लिए हमने एक दूसरे से अपने अपने किस्से सुनाने का अनुरोध किया तो सबसे पहले रामकरन आरंभ हुआ ।

रामकरन बोला-जैसे गाव लोग अपने ढोरों के लिए गांव की जमीन से अलग एक खास जमीन को चारे के लिए चरोखर छोड़ देते हैं, वैसे ही नेता लोग अपने चेलो-चमचों के लिए सहकारिता से जुड़ी समितियों और सहकारी बैकों को चरोखर मानके चरने के लिए छोड़ देते हैं ।

मुझसे रहा न गया, मै बोला-‘‘ अरे भैया, अब तो चरोखर भी सुरक्षित नही है, चरोखर जैसी बंजर जमीन भी अब नेताओं के लिए वोट की बड़ी पैदावार करने लगी हैं । हमारा एक नेता तो चरोखर के भी पट्टे बांटने लगा है अब!‘‘

लल्ला पंडित से रहा न गया, -‘‘ तै गिरराज, चलत बैल में आर गुचाउत, अरे लाला कहानी तो चलन दे आगे ।‘‘

मै मुस्करा के चुप रह गया तो रामकरन ने किस्सा वढ़ाया ।

--------