ताश का आशियाना - उपन्यास
Rajshree
द्वारा
हिंदी फिक्शन कहानी
सिद्धार्थ शुक्ला 26 साल का नौजवान सरल भाषा में बताया जाए तो बेकार नौजवान। इंजीनियरिंग के बाद एमबीए करके बिजनेस खोलना चाहते हैं जनाब! बिजनेस के तो इतने आइडिया इनके पास है जितने की पिताश्री के सिर पर बाल ...और पढ़ेहै। थक चुके है बेचारे अभी तक, कब तक बेटे का बोझ उठायेंगे? सिद्धार्थ को अपने नये आईडिया लोगों के सामने रखने का एक शौक और ताश का आशियाना बनाने का दुसरा,पिछले 12 साल से बना रहे हैं। अपनी छोटी सी रूम में जगह ना होने के कारण उस आशियाने को जगह भी मिली तो खिड़की के पास पूरा कमरा अंधकार में कहीं गुम
सिद्धार्थ शुक्ला 26 साल का नौजवान सरल भाषा में बताया जाए तो बेकार नौजवान। इंजीनियरिंग के बाद एमबीए करके बिजनेस खोलना चाहते हैं जनाब! बिजनेस के तो इतने आइडिया इनके पास है जितने की पिताश्री के सिर पर बाल ...और पढ़ेहै। थक चुके है बेचारे अभी तक, कब तक बेटे का बोझ उठायेंगे? सिद्धार्थ को अपने नये आईडिया लोगों के सामने रखने का एक शौक और ताश का आशियाना बनाने का दुसरा,पिछले 12 साल से बना रहे हैं। अपनी छोटी सी रूम में जगह ना होने के कारण उस आशियाने को जगह भी मिली तो खिड़की के पास पूरा कमरा अंधकार में कहीं गुम
मन एक दूसरे से मिल चुकी थे, मन की गंदगी एक आलिगंन के साथ ही धुल गई थी।इस पल का सिद्धार्थ को कब से इंतजार था। चित्रा ने भी बिना हिचकिचाते हुए सिद्धार्थ को गले लगा लिया।दोनों जब आलिंगन ...और पढ़ेपाश से दूर हुए तो सिद्धार्थ के आंखों में खुशी के आंसू थे और चित्रा के आंखों में अजीब सी बेचैनी। आंखें बंद करो। क्यों? चित्रा ने पूछा मुझे लगा ही था, तुम आंखें बंद नहीं करोगी। अभी भी विश्वास नहीं ना मुझ पर। सिद्धार्थ ने मजाक उड़ाते हुए चित्र की आंखों पर रेशमी फिता बांध दिया और उसका हाथ पकड़ उसको अपने कमरे
दिल टूटने का आवाज नहीं होता पर ताश का आवाज आना तो लाजमी था। आवाज सुनाई दी गंगा देवी को जो पिछले 20 मिनट से हाथ में गीले कपड़ों की बाल्टी धर दरवाजे पर टूक लगाए खड़ी है।अंदर से ...और पढ़ेकुछ गिरने की आवाज आई, बाकी सब तो अंधेरे में कहीं गुम था। आवाज से गंगा देवी को अपने बेटे की करतूत के लिए गालियां नहीं आ रही थी बल्कि उन्हे बिना बताए सब पता चल गया था।दिल टूटने का आवाज ताश के पत्तों ने कहीं दबा दिया था।मां को कैसे पता चला? या मां को कैसे पता चल जाता
यह कहानी यहीं खत्म हो जाती अगर ठीक एक साल पहले टॉप 10 ट्रैवल ब्लॉगर में सिद्धार्थ का नाम नहीं आता। सिद्धार्थ को बचपन से घूमने फिरने का फोटोग्राफी करने का बहुत शौक था।15 अगस्त, 26 जनवरी, हाई स्कूल ...और पढ़ेऑफ हमेशा से ही सिद्धार्थ एक निवेदक था उसका ही फायदा शायद उसे हुआ होगा। बंजारो का आशियाना” नाम से एक बुक 2016 में प्रकाशित हुई जो काफी बेस्ट सेलर साबित हुई।यूट्यूब के चैनल “सिद्धार्थ का सफर” को 15 मिलियन से भी ज्यादा सब्सक्राइबर थे। सिद्धार्थ एक बार फिर अपने मिट्टी में वापस आया, जिसका नाम बनारस है।
आज चित्रा ने सब खाली कर दिया जो भी गुबार था वो फट गया। उसका भी मन अब रेत की तरह हल्का होकर उडने लगा। “इसलिए तो उस दिन रोका नहीं तुम्हे?” एक निर्मोही पर दिल में काटे चुभोने ...और पढ़ेहँसी के साथ बोला। उसदिन चित्रा की सच्चाई बताने पर बस सिद्धार्थ शांत एक पुतला बनकर बिना हिले डुले बैठा रहा। उसने चित्रा को कुछ नहीं बोला, नाहीं चिल्लाया नाहीं उससे फालतू सवाल जवाब किए क्योंकि कमेंटमेंट उनके रिश्ते को लागू ही नहीं थे।
ऐसा नहीं था चित्रा की कोई दोस्त नहीं थे। She is topper student. बादामी आकार की आंखें, काले लंबे बाल, उसकी दो चोटियां और घुटनों तक पहने मोज़े, गोरी त्वचा और उसमें भी पढ़ते डिंपल्स। हमारे स्कूल ...और पढ़ेकाफी बच्चों को खास कर लड़कों को काफी पहले ही स्त्री और पुरुष भगवान ने किस कारण और वजह से बनाए है यह बात पहले ही पता चल गई थी। यह उनकी आंखों से पता चल जाता था। पर मेरे लिए चित्रा और मेरा रिश्ता दोस्त के अलावा और आगे कभी बढ़ा ही नहीं। चित्रा का एक लड़की होने के बावजूद दोस्त बनने का एक
मुझे तब लगा वो अचानक से कन्फेशन से घबराई होंगी। जैसे 2 साल पहले मेरा हाल था उसी प्रकार उसका भी वही हाल था, पर जब वह 12वीं के बाद बिना बताए दिल्ली चली गए तब मुझे खटका। प्रकाश ...और पढ़ेकहा वह तुझ से लव नहीं करती है। पर मुझे कभी ऐसा महसूस नहीं हुआ। शायद वो भी जिम्दारिया, दोस्ती, सपने इनमें दब चुकी थी। पापा ने 12वीं में 80 मिलते ही कुछ ना सोचते हुए, तुम्हें इंजीनियरिंग करना होगा। क्योंकि उनके ऑफिस में एक क्लर्क का बेटा इंजीनियरिंग कर आर्किटेक्ट बन चुका था। मेरी एक भी नहीं चलने दी मैं
चित्रा और शायद मेरी शायद कम ही बातें हुई।उसी बीच में अपने ऑफिस कलीग्स के साथ में मसूरी घूमने गया।ट्रेन से जब नीचे उतरे तब मुझे लगा जैसे मैं एक अलग जगह हूं, सारे विचार कहीं खो ...और पढ़ेगए थे।पहाड़ों को हरियाली ने ऐसे गोद में लिया था मानो मां अपने बच्चे को हवा, पानी से बचाकर सुरक्षित रख रही हो।वह भी अपनी मां से उतना ही लिपटा हुआ था मानो दोनों अगर बिछड़ गए तो शायद उनका अस्तित्व कहीं खो जाएगा। केंमटी फॉल जब हम पहुंचे पहाड़ों की गोद से झरना बह रहा था। और नीचे लोग अपने परिवार के
उसे दिल आज भी नही भुला पाया।चित्रा के जाते ही, सात दिन के अंदर मैंने बनारस छोड़ दिया।अगर नहीं छोड़ता तो या फिर पागल हो जाता नहीं तो, आवारा आशिक। मैं दोनों ही बनने की फिराक में नहीं ...और पढ़ेअपनी कंपनी में रेजिक्नेशन लेटर देकर अपने फंड में जो कुछ भी पैसे थे। उसे लेकर निकल गया, एक सफर पर। पता नहीं था कहां जाऊंगा?पता नहीं था रास्ते कितने छोड़ आया हूं, मंजिल तो काफी दूर थी, हवा भी गुस्ताखी से भरी हर निशान मिटाये जा रही थी, वापस लौट जाने के। आखिरकार कहीं जगह हाथ में आया वह काम किए।उसी जगह शंकर त्रिपाठी
यहां रोज आते हो तुम? एक सवाल की शक्ल देखने के लिए सिद्धार्थ पीछे मुड़ा। सॉरी.. तुमने तो कोई गलती की ही नहीं। तड़ाक से जवाब आया। मैं तुम्हें यहां ...और पढ़ेदेखती जब भी देखती हूं, तब लगता है यही के हो, लेकिन जिस तरह यहां की खूबसूरती में खो जाते हो, इससे लगता है की नए हो। सिद्धार्थ उस लड़की के इतने बातों के बावजूद एक शब्द भी बोल नहीं सका। गर्लफ्रेंड है तुम्हारी? सॉरी अरे फ़िरसे सॉरी! बिना गलती के सॉरी कभी नहीं बोलना चाहिए। नहीं... सिर्फ इतना जवाब सिद्धार्थ दे पाया। फिर ठीक है, Myself रागिनी भारद्वाज. भारद्वाज साडिस के मालिक की बेटी
शाम 6:30 बजे के पहले ही सिद्धार्थ घाट पर आ चुका था।श्रद्धालु भक्त, वहां के रहिवासी, पंडित सब घाट पर पहुंच चुके थे, उसमें सिद्धार्थ भी शामिल था। आरती शुरू हो गई आरती की धुन में कहीं खो ...और पढ़ेथा सिद्धार्थ। देखती हूं कल वैसे भी बिजी हूं। सिद्धार्थ की आंखें खुल गई। वो नहीं आई। सिद्धार्थ के बात में एक फैसला नहीं बल्कि एक निराशा जान पड़ रही थी।सिद्धार्थ के कंधे पर किसी ने हाथ रखा।सिद्धार्थ पीछे मुड़ा। रागिनी खड़ी थी। आह!!हमेशा पीछे से आकर डराना क्या आदत है तुम्हारी? आदत!? हमेशा? आदत तो बहुत बड़ी बात होती है। एक बार लगती है, तो
(लंबा अध्याय)सिद्धार्थ रागिनी को इतनी रात कहा लेकर जाए समझ नहीं पा रहा था। रागिनी तुम्हारे घर का पता बताओ, मै तुम्हे छोड़ देता हु। हम में राही प्यारे के हमसे कुछ ना बोलिए, जो भी प्यार से ...और पढ़ेहम उसी के हो लिए। रागिनी पूरी तरह नशे में धुत है, इसका अंदाजा सिद्धार्थ ने लगा लिया था। कहा लेकर जाता वो रागिनी को? यहाँ भी तो नहीं छोड़ सकता था। एक लड़की को इस हालत में घर मे पेश करे ऐसे तो भारतीय संस्कारो को उलंघन हो जाता।आखिरकर निष्कर्ष निकला वो उसे पास के किसी लॉज़ पर लेकर जाएगा।वह पहुचे स्वप्नसुंदरी लॉज पर।पहुचते
बनारस की वो मनमोहक सुबह, गंगा के शितल जल से सुर्य स्नान करके खुदकी दमकती शक्ल पूरे वाराणसी को दिखा रहा था।दूसरी तरफ आ ! मेरा गला रागिनी का गला पूरी तरह सूख रहा था अब कुछ देर ...और पढ़ेगला स्वर्ग सिधार जाता।रागिनी का आक्रोश सुनते ही, सिद्धार्थ की जो भीक मिली नींद थी वह भी टूट गई।अब तक सिद्धार्थ रागिनी के साथ उसके बगल में ही सोया था यह उसे समझ नहीं आया लेकिन जैसे ही चादर सिर से हटी रागिनी कंठ दान देकर चिल्ला उठी। How dare you? और इतना कहते ही, एक किक कृतज्ञता का आभार प्रकट करने
तुषार सिद्धार्थ का एकमेव दोस्त जो उसे समझता है, जानता है।तुषार क्रिष्णा स्वामी का बेटा और बालन स्वामी का पोता था किसी जमाने में बालन स्वामी के पास १२ एकर जमींन थी।दो बेटे राजन स्वामी और कृष्णा स्वामी, राजन ...और पढ़ेको पढाई लिखाई में कुछ ज्यादा रूचि नहीं थी फिर भी दाँट-दपट के बालन ने उसे १० तक पढाई करवाई।राजन मन का भोला पंडित अपने छोटे भाई कृष्णा से बेहद प्यार करने वाला।राजन को भले ही रूची न हो पर कृष्णा को पढाई में रूचि होने के कारण १० के बाद गाव के बाहर जाकर चेन्नई विश्वविद्यालय से उसने सॉफ्टवेयर
मुझे बहुत भूख लगी है। रागिनी अपने मुंह का पाउट बनाते हुए बोली। घर जाकर खा लेना। सिद्धार्थ ने बस एक रुखासा जवाब दिया, जो रागिणी को बिल्कुल पसंद नही आया। कंजूस मैने तुम्हारे 3200 बचाए और ...और पढ़ेमुझे ब्रेकफास्ट तक नही करा सकते। सिद्धार्थ उसे what the fuck लुक से देखने लगा।रागिनी सिर्फ सिद्धार्थ का हाथ पकड़ हाथो में लेकर हिलाने लगी। प्लीज!! ठीक है। या!! रागिनी ख़ुशी से खील उठी।सिद्धार्थ सिर्फ उसे देख मुस्करा दिया।दोनो ने नत्थूलाल की दुकान पर आलु कचोरी खाई।बिस्लरी की पानी की बोतल हाथ में पकड़ दुकान से बाहार निकले। कहा जा रही हो? सिद्धार्थ ने बिना किसी भाव के
रागिनी भारद्वाज श्रीकांत भारद्वाज और वैशाली भारद्वाज की छोटी बेटी और भारद्वाज परिवार के दो पुश्तों में एक लौती बेटी।रागिनी का आगमन मतलब लोगो के लिए कोई खुशियों से कम नहीं था।भारद्वाज खानदान को भी था और भारद्वाज गारमेंट ...और पढ़ेसाड़ीझ के फैक्ट्रिस के कामगारों को भी, सबको रागिनी की जन्मदिन का बोनस जो मिला था।रागिनी को उम्र की दस साल तक वो सब खुशियां मिली, जिसे सिर्फ सपने में जीकर कर छोड़ दिया करते है।उसकी सब खुशियां मानो कही खो सी गई जब भारद्वाज गारमेंट्स को करोड़ों का नुकसान उठाना पड़ा।उन्होंने सब पैंतरे आजमाए लेकिन कुछ नही हुआ। फिर
रागिनीरागिनी पूरी तरह भारद्वाज परिवार के बारे में भुल चुकी थी।उसे लगा कि वो अपनी छोटीसी जिंदगी अपने मौसी के साथ काट देंगी।और इसके बारे में वो हमेशा याद दिलाती रहती।"याद रखना मासी हमे एक साथ जिंदगी भर रहना ...और पढ़ेमौसी हस देती।"हसो मत मासी, प्रोमिस कर रहना है, मतलब रहना है।वरना मैं रो–रो कर दिल्ली 6 को सोने नहीं दूंगी।""हा बाबा! प्रोमिस" मौसी हंसी संभालते हुए कह देती।लेकिन शायद भगवान भी रागिनी की इस बात को हसी में ही ले रहे थे। देवकी को सिर में दर्द शुरू हो गया, पहले पहले गोलियां लेने से तुरंत चला जाता इसलिए
रागिनी खुदके अतीत से ही जाग उठी। बाहर श्याम हो चुकी थी। "मैं इतने देर तक सोती रही?" पहला सवाल रागिनी के मन में यही उठा। कभी–कभी नींद थक जाने पर नही लगती जब लगती है तब हम इतना ...और पढ़ेजाते है की उठने का मन नहीं होता। जैसे एक ही नींद में उसने पूरे हफ्ते की नींद बहा दी हो।रागिनी का सिर भारी हो चुका था, फिर भी वो उठी और फ्रेश होकर पेट का आसरा ढूंढने रूम से बाहर चल पड़ी।वैसे भी सुबह के कचोरी पर ही थी वो, दोपहर के खाने में जो बखेड़ा खड़ा हुआ उसके
गंगा रागिनी से बात करने के बाद रिक्शा में बैठी। सूरज अपने परमसीमा पर पहुंचने की कोशिश में था। सूरज गंगा की गोदी से ऊपर आया तब से लेकर सूरज सिर पर नाचने तक गंगा बाहर थी। इसलिए बिना ...और पढ़ेसोचे उन्होंने रिक्शा लेना ठीक समझा। यह कोई 25 मिनट में घर पहुंच जाती रिक्शा की मदद से।घर जाकर बहाना भी तो बनाना था, जो परिस्थिति के अनुकूल हो।लेकिन अभी भी मन कुछ महीने पहले अतीत को ही कुरेद रहा था। रागिनी का सिद्धार्थ के जिंदगी में आना कोई दैवी- चमत्कार नहीं था। शास्त्री जी के चेले–सुपुत्र देवधर शास्त्री।बाप के
दोनों घर पहुंचे रागिनी को लगा घर में अपरिचित व्यक्ति की उपस्थिति देखते हुए बहुत बड़ा हंगामा होगा लेकिन सब उसके विपरीत हुआ।वैशाली ने बड़े आदर से प्रतीक्षा का स्वागत किया।खाने के समय खाना खिलाया चाय के समय चाय ...और पढ़ेशाम को जब दोनों पुरुष घर वापस आए, तब चर्चा विशेषण चालू हो गया।"नाम क्या है तुम्हारा?" श्रीकांत ने पूछा।प्रतीक्षा ने डरते–डराते हुए जवाब दिया, "जी, प्रतीक्षा सरपोत्तदार।""रागिनी को कैसे पहचानती हो?""जी, कुछ साल पहले मेरे पापा का दिल्ली ट्रांसफर हुआ था, तब हम आजू बाजू में ही रहते थे।""क्या करते हैं तुम्हारे पिताजी?" अब यह सवाल प्रताप ने दागा
वहा से चारो निकल गए।शास्त्री जी अपने अपमान से तमतमा उठे थे, श्रीकांत ने शास्त्री जी के पूरे परिवार का उद्धार एक ही बैठक में जो कर दिया था।कुछ दिन तक इस विषय में कोई बात नही हुई।तब नवरात्रि ...और पढ़ेपर्व चालू थे, सब बनारस में एक नया जोश भर चुका था।रागिनी अपनी मां वैशाली के साथ मां दुर्गा के मंदिर में गई थी।उसकी मां थाल लेकर पूजा करने मंदिर के अंदर गई थी।वो बाहर ही अपनी स्कूटी से सटकर खड़ी थी की तभी एक औरत उसके पास आई।"जी कुछ चाहिए आपको?" पहले तो रागिनी ने उस औरत को पहचाना
"हम दोनों कहां जा रहे हैं इतनी सुबह सुबह?""मैंने तुम्हें बताया तो था।""मुझे एक शॉर्ट फिल्म फेस्टिवल में डॉक्युमेंट्री सबमिट करनी है, उसके काम से ही जा रहे हैं।""तों फिर हम दोनों क्यों जा रहे हैं?" जनरली भारत में ...और पढ़ेजाता है कि हमेशा जब भी कभी लड़का लड़की को मिलने बुलाता है तो लड़की अपने दोस्त को भी अपने साथ लेकर जाती हैं। यही काम फिलहाल प्रतीक्षा कर रही थी। दोनों कुछ ही देर में, काशी मंदिर के पास पहुंच चुके थे। प्रतीक्षा ने ऑटो वाले को पैसे दिए,रागिनी भी उसके साथ ही थी। उसने देखा, एक लाल जैकेट
रागिनी और सिद्धार्थ लस्सी पीने के बाद घर की तरफ निकले।दोनो के बीच कोई बातचीत ना होती देख"क्यों क्या हुआ?" सिद्धार्थ ने पूछा।"कुछ भी तो नही बस रागिनी ने उसी अंदाज में जवाब दे दिया।""आज बहुत शांत शांत हो।""तुम्हे ...और पढ़ेतो पसंद नही ना मेरी बकबक औरप्रतिक्षा है ना! मैं बोलूं या ना बोलूं इससे थोड़ी फरक पड़ता है।""Are you jealous""मैं क्यों जेलस हु भला?"सिद्धार्थ हस दिया और इसी बात पर रागिनी मुंह फुलाकर बैठ गई।सिद्धार्थ कुछ बोले या ना बोले उसे रागिनी की चुप्पी खटक रही थी।"नाराज हो?" सिद्धार्थ ने चिंता भरी आवाज में पूछा।"मैं नाराज नहीं हु। (रागिनी