Tash ka aashiyana - 21 books and stories free download online pdf in Hindi

ताश का आशियाना - भाग 21

वहा से चारो निकल गए।
शास्त्री जी अपने अपमान से तमतमा उठे थे, श्रीकांत ने शास्त्री जी के पूरे परिवार का उद्धार एक ही बैठक में जो कर दिया था।
कुछ दिन तक इस विषय में कोई बात नही हुई।
तब नवरात्रि के पर्व चालू थे, सब बनारस में एक नया जोश भर चुका था।
रागिनी अपनी मां वैशाली के साथ मां दुर्गा के मंदिर में गई थी।
उसकी मां थाल लेकर पूजा करने मंदिर के अंदर गई थी।
वो बाहर ही अपनी स्कूटी से सटकर खड़ी थी की तभी एक औरत उसके पास आई।
"जी कुछ चाहिए आपको?" पहले तो रागिनी ने उस औरत को पहचाना नहीं लेकिन फिर उस औरत ने खुद बोलना शुरू किया।
"कैसी हो बेटा?"
"मै ठीक हु।" रागिनी ने झिझकते हुए जवाब दिया।
रागिनी का असमंजस देख वह औरत बोली, "मैं गंगा, गंगा शुक्ला सिद्धार्थ की मां।"
अचानक रागिनी की आंखें बड़ी हो गई, "क्या चाहिए आपको? आपका तो बेटा शादी नहीं करना चाहता!"
"हा मुझे पता है, लेकिन मैं तुमसे आखिरी मुलाकात चाहती हूं।"
"मुझसे आप क्यों मिलना चाहती हैं?"
वैशाली का मंदिर से आते देख सिर्फ औरत ने एक पर्ची सामने कर दी।
"इस पते पर आ जाना यह मेरी रिक्वेस्ट है।"

सिद्धार्थ की मां गंगा मंदिर से चले जाने के बाद रागिनी ने बहुत सोचा की वो सच में गंगा से मिले या ना मिले पर फिर बहुत सोच–विचार के बाद उसके अविचल मन ने मन बना ही लिया।
रागिनी बताए गए अनुसार पार्क में पोहची।
पार्क में सिर्फ दो तीन छोटे बच्चे झूले पर झूल रहे थे।
मां बाप छाव में बैठ कुछ बाते कर रहे थे।
कुछ बनारस यूनिवर्सिटी के छात्र वहा मोबाइल पर वीडियो देख थोड़ा टाइमपास कर रहे थे तो थोड़ी ज्यादा ही दूर बैठे लड़का लड़की बाते कर रहे थे।
"आपने मुझे यहा मिलने को क्यो बुलाया ?"
रागिनी ने सामने बैठे गंगा पर सवाल दागा।
"पहले बैठो।" गंगा ने बड़े सलीके से कहा।
रागिनी थोड़ा झिझकते हुए बैठ गई।
"उस दिन जो कुछ भी हुआ उसके लिए मैं माफी मांगना चाहती हू।"
रागिनी की भौहे और माथा भ्रम से सिकुड़ उठे, फिर अचानक दिमाग में जवाब स्ट्राइक होते ही उसने मुस्कान के साथ बात आगे रखा।
"अरे! इसके लिए माफी मांगने की क्या जरूरत है? अगर आपका बेटा मुझसे शादी नही करना चाहता था तो उसके पीछे उसके कुछ कारण होगे। इसमें हम किसी पर जबरदस्ती तो नहीं कर सकते।"

"हा तुम्हारी बात बिल्कुल सही है, इसके पीछे कारण है। लेकिन इसके बावजूद मैं चाहती हु, तुम दोनो का रिश्ता आगे बढ़े।"
"ये आप क्या कह रही है! हम दोनो अब तक मिले भी नही हम दोनो यह तक नहीं जानते की एक दूसरे के लिए परफेक्ट है भी या नहीं फिर भी..."
अब रागिनी थोड़ा चिड़चिड़िसी हो गई थी।
"और अगर आपको आपके बेटे की शादी करनी है तो मुझसे ही क्यों?" रागिनी आंखो में आग लेकर बोल उठी।
"क्यो की मुझे पता है तुम मेरे बेटे के लिए सौ टक्का सही हो।"
"मुझे पता है तुम मुझे पागल समझ रही होगी, लेकिन पहले मेरी बात बस एक बार सुनलो अगर तुम्हे फिर भी लगे की मेरा फैसला गलत है तो मैं तुम्हे कभी परेशान नहीं करूंगी।"

सिद्धार्थ चित्रा नाम की एक लड़की से प्यार करता था।
चित्रा जाते हुए पीछे सिद्धार्थ को अकेला बना गई।
इसके जाने तक सब ठीक था, सिद्धार्थ का प्यार भले ही बचपना था लेकिन सिद्धार्थ जैसे इंसान के लिए जीने का जरिया था।
चित्रा के जाते ही उसने खाना पीना छोड़ दिया, अचानक कभी रात में उठकर चिल्लाने लगता। उसे लगता की वो चित्रा के बिल्कुल लायक नही है इसलिए चित्रा उसे छोड़कर चली गई। धीरे–धीरे हमने उसे हमसे और खुद से दूर जाते देखा।
"एक बार रात में उठकर इन्होंने देखा वो छत से कूदने की कोशिश कर रहा है।
पूछने पर वो कहने लगा, उसे छत से कोई आवाज दे रहा है और कह रहा है वो उसके सारे प्रोब्लम ठीक कर देगा लेकिन उसके लिए उसे उसके पास जाना होगा।
इन्होंने उसे समझाने कोशिश की, वहा कोई नही है लेकिन वो नहीं माना।
रूम में बंद करने पर भी चीखता रहा चिल्लाता रहा।
उस दिन हम दोनो पूरी रात नही सोए। यही देखते रहे की कही वो फिर से कुछ ऐसा वैसा करने की कोशिश ना करे।
हम दोनो ने सोचा एक बार उसे किसी अच्छे डॉक्टर को दिखाएंगे,लेकिन उसके पहले ही वो कही चला गया।
"यह सब आप मुझे क्यों बता रही है?" रागिनी ने सवाल दागा।
जब वो इतने सालो बाद वापस आया है, तो वो हमारा सिद्धार्थ नही है। नाही वो किसी के साथ अपनी जिंदगी बाटना चाहता है।
उस दिन भी जब वो घर आया तो अपने इस नाकामी पर बहुत रोया, उसे शादी कर किसी भी लड़की की जिंदगी बर्बाद नही करनी। उस दिन कितनो सालो बाद वो रोया है अपनी किस्मत पर।
बीमारी एक इंसान को ले डूब सकती है, लेकिन इंसान की जिंदगी को नही।
गंगा ने एक गहरी सास ली।
मैं यह नही चाहती की तुम हमारी घर की बहु बनो में बस यह चाहती हू की तुम सिद्धार्थ को यह अहसास कराओ की एक लड़की, एक कमरा, एक टूटे हुए सपने और अपनी वो कभी न ठीक होने वाली बीमारी के आलावा भी एक दुनिया है, जिसे उसने अंदर कही दबकर रखा है और पागलों की तरह दरबदर घूम यह जता रहा है की वो अपनी जिंदगी खुल कर जी रहा है।
और अगर ऐसा करते हुए अगर तुम दोनो को एक को दूसरे की पहेली सुलझ पाती दिखाई दे तो फिर तुम पर है तुम दुनिया मैं चाहे जो भी फैसला लो मैं तुम्हारे साथ हू।
और अगर तुम दोनो में बात आगे नही बढ़ी तो मैं सिद्धार्थ के शादी की जिद्द हमेशा के लिए छोड़ दूंगी।
रागिनी ने कुछ वक्त के लिए सोचा उसे लगा वो कुछ सोच ही लेंगी पर दिमाग ने जैसे काम करना बंद कर दिया हो।
वो क्यों माने? क्या जरूरत है उसे ? वो बिंदास लंदन जा सकती है यह अनुरोध ठुकराके।
पर उसको एक मां की आंखे बैचन कर रही थी जो काफी आस से उसके तरफ देख रही थी।
जिन्हे लगता था की आतंरिक दिमाग की डॉक्टर, उनके बेटे की बाहरी बीमारी पल भर में सुधार देंगी।
वही उम्मीद उनकी आंखो मे थी, जो कुछ सालो पहले रागिनी ने मार दी जब उसे लगा वो कितनी भी चिल्लाए उसकी कोई नही सुनने वाला।
'इतना भी बड़ा क्या नुकसान होने वाला है। उसे मैं परखूंगी और कुछ नही लगा तो फिर लंदन चली जाऊंगी।'
यही विचार दिमाग में रख उसने गंगा से पूछा "आपका बेटा दिखता कैसे है?"
उन्होंने फोन निकाला, और रागिनी के सामने कर दिया।
रागिनी ने फोन हाथ में लिया, फोन लॉक नही था।
सिद्धार्थ ने मुझे बर्थडे पर दिया था मुझे बहुत ज्यादा चलाना नहीं आता बस एकाआधा यूट्यूब देख मनोरंजन कर लेती हू।
Birthday के दिन उसने खुदकी और मेरी फोटो खींची थी वो होगी इसी में।
रागिनी ने गैलरी खोली सिर्फ पूरे एल्बम में एक ही फोटो थी इसलिए ज्यादा मशक्कत करने की जरूरत नही पड़ी।
पर लड़के का चेहरा देखते ही उसकी अंदर दबी हुई यादें फिर से जग गई।

"ए लड़की उठ, बेहोश मत हो।"
"डॉक्टर!! डॉक्टर प्लीज इसे बचाओ।" (स्ट्रेचर पर उसे लेटाया गया।)
" मै मर जाऊंगी।"
"नही तुम्हे कुछ नही होंगा, नरेशजी (भगवान महादेव) सब ठीक कर देंगे।"
सिद्धार्थ वही था जिसने उसके साथ हुए हादसे से उसे बचाया था।
(ठीक होने पर वार्ड रूम में आया पहला शक्श जिसने उसका हाथ पकड़ा और उसे हौसला दिया।)
"हम दोनो एक दूसरे को नही जानते मुझे नही पता यह तुम्हारे साथ किसने किया पर अब तुम्हे धीरज से काम लेना होंगा। चाहे लोग कुछ भी कहे खुद पर यकीन करना होंगा की तुम कमजोर नही, तुम दुनिया में वो हर एक खुशी हासिल कर सकती हो जिसकी तुम्हे चाहत है। एक हादसा तुम्हारे कदम नही रोक सकते।"

"मुझे नहीं पता कि हम फिर कभी मिलेंगे भी या नही और अगर मिले भी तो एक दूसरे को याद भी रहेंगे या नहीं। पर अगर तुम भूल गई तो मैं तुम्हे याद दिलाऊंगा मैं तुम्हें बस इससे बेहतर स्थिति में देखना चाहता हु, खुश देखना चाहता हु।"
"रागिनी! रागिनी! तुम पहचानती हो, सिद्धार्थ को?"
रागिनी को गुम देख गंगा ने उत्कटता से पूछा।"
"नही।"
"यह मेरा बेटा है, सिद्धार्थ जिसके बारे में बात कर रही थी, वो जगह जगह जाकर वीडियो शूटिंग करके रोजीरोटी कमाता है।"
रागिनी ज्यादा ध्यान ना देते हुए, गंगा से सवाल पूछा।
"कहा मिलेगा आपका बेटा?"
"कल वो अस्सी घाट पर चित्रा से मिलने जाने वाला है। वो अपने मायके आई है और उसने सिद्धार्थ को मिलने बुलाया है।"
" बेटा तुम्हे कोई जबरदस्ती नहीं पर बस तुम मेरे बेटे को ठीक करा दो, उस लड़की के चंगुल से छुड़ा दो बस!"
गंगा हाथ जोड़कर निवेदन करने लगी।
"कोशिश करूंगी।" सिर्फ इतना ही बोल पाई वो।
"तुमने क्यो उसकी मदद करने को हा कहा? तुम तो जानती भी नही उसे।" प्रतिक्षा ने रागिनी की कहानी को बीच में ही काटा
"वो..." एकाएक रागिनी की बोलती बंद हो गई।
आखिर क्यों उसने हा किया था।
"इंसानियत।" रागिनी यह जवाब प्रतीक्षा को दे रही थी या खुदको वो खुद ही असमंजस में थी।
"इंसानियत! विश्वास करना मुश्किल है पर तुम कह रही हो तो मान लेती हु।"
"चल फिर आगे बता क्या हुआ?"

( इस भाग का सीधा संबंध भाग 10 से है।)
सिद्धार्थ अस्सी घाट पर बैठा था, अपने ही विचारो में गुम।
रागिनी पीछे से आई, उसने सिद्धार्थ को देखा।
रागिनी ने मैसेज डाला, "मैं यहां पहुंच चुकी हु।"
'यहां से वापस चली जाऊं?' रागिनी ने मन में ही सोचा
सिद्धार्थ अपने ही ख्यालों में गुम था, वातावरण उदासीन था।
"शायद पहला प्यार सिर्फ हो जाता है।"
यह बात सुनते ही रागिनी ठहर गई, कुछ सोचकर एक हल्की सी मुस्कान फैल गई उसके चेहरे पर फैल गई।
रागिनी जैसा ही था सिद्धार्थ भले ही आगे बढ़ा हो पर अतीत को साथ लेकर चल रहा था। जिंदगी किसी के साथ बाटना उसे बोझ लगता था। मानो किसी के साथ जिंदगी बाटने से दिल का वो कोना जिंदगी भर के लिए ऐसे व्यक्ति के नाम पर हो जिसके साथ हमे सास लेना भी बोझर लगता है।
"ठीक कहा तुमने पहला प्यार सिर्फ हो जाता है।"
सिद्धार्थ अपने ख्यालों की नदियां पार कर एक पतली सी आवाज के साथ बाहर निकला।

"क्या मैं यहां बैठ सकती हूं?" सिद्धार्थ ने कुछ जवाब नहीं दिया। लड़की तभीभी सिद्धार्थ के बाजू में बैठ गई।
"यहां रोज आते हो तुम?" एक सवाल की शक्ल देखने के लिए सिद्धार्थ पीछे मुड़ा।

"सॉरी?"

"तुमने तो कोई गलती की ही नहीं।" तड़ाक से जवाब आया।

"मैं तुम्हें यहां रोज देखती जब भी देखती हूं, तब लगता है यही के हो, लेकिन जिस तरह यहां की खूबसूरती में खो जाते हो, इससे लगता है की नए हो।"

सिद्धार्थ उस लड़की के इतने बातों के बावजूद एक शब्द भी बोल नहीं सका।
सिद्धार्थ की चुप्पी रागिनी को भले ही खल रही थी पर आगे बातचीत बढ़ानी जो थी तो उसने डायरेक्ट छलांग मारी।
"गर्लफ्रेंड है तुम्हारी?"

"सॉरी!"
सिद्धार्थ का मुखमंडल देख, रागिनी जोरजोरसे हंसना चाहती थी लेकिन उसने खुद को रोक लिया।

"अरे फ़िरसे सॉरी! बिना गलती के सॉरी कभी नहीं बोलना चाहिए।" रागिनी को सिद्धार्थ का रवया ज्यादा पसंद आ रहा था।

"नहीं।" सिर्फ इतना जवाब सिद्धार्थ दे पाया।

"फिर ठीक है, Myself रागिनी भारद्वाज."
सिद्धार्थ ने कोई ध्यान ना देते देख रागिनी थोड़ा बिथर गई।
सिद्धार्थ को याद नहीं था, रागिनी के बारे में।
यह बात उसे थोड़ा बहुत दिल मे छलनी कर गई थी।
सिद्धार्थ सिर्फ गंगा नदी की तरफ देख रहा था।

"भारद्वाज साडिस के मालिक की बेटी हु, अच्छा खासा कमा लेती हूं। एक मेल फ्रेंड की तलाश में हूं, जिसके गले में एक बार में ही जाकर वरमाला बांध सकूं।"

"मैं तुमसे नाही शादी कर सकता हूं, ना ही दोस्ती।
'सच में तुम्हे याद नही मैं कोण हू, तुमने कहा था हम मिलेंगे, तुम मुझे भूल कैसे सकते हो?' कितने तो भी शब्द बाहर आने के लिए मचल रहे थे लेकिन सब जबान पर आकर रुक रहे थे।
लेकिन जैसे ही सिद्धार्थ का प्रोमिस उसे याद आया वो मुस्करा दी, 'मैं तुम्हे नही तुम मुझे भूल गए हो।'
रागिनी की हंसी देख सिद्धार्थ नाक–भौह सिकुड उसे देखने लगा.
सिद्धार्थ की शक्ल देख, रागिनी ने ठहाका लगा दिया
"ओ माय गॉड! गे हो क्या?"

सिद्धार्थ उसके बात पर चौक उठा।

"तुम्हें पता है मैं कौन हूं?"

"कौन हो? वैसे मैं इंडिया के प्रेसिडेंट को तक नहीं जानती।"

"जनरलनॉलेज विक है मेरा, आधे वक्त पागल खाने में जो रहती हूं।"

"हं!!!" सिद्धार्थ इस वाक्य पर चौका। अभी लग रहा था मानो वो बातों में इंटरेस्ट लेने लगा था।

"I'm neurophysiologist From Harvard university."

"हे भगवान!" सिद्धार्थ ने अपने सर पर हाथ मार लिया।

"क्या हुआ? भगवान को क्यों याद कर रहे हो?"

"मेरी किस्मत में सारे डॉक्टर ही क्यों है?" सिद्धार्थ फुसफुसाया,पर रागिनी को सब सुनाई दिया।

"ओह! तो तुम्हारे घर में सभी डॉक्टर है। अच्छा है तबीयत खराब होने पर खुद की ही दवाइयां ले लो।" इतना बोलकर रागिनी एक बार फिर हँस दी।

सिद्धार्थ के होठों के ऊपर पीसते हुए दांत और गुस्से से भरी आंखें देख उसका ठहाका एकाएक बंद हो गया।

"तुम कितना बोल रही हो पता है तुम्हें?" रागिनी उदास होते हुए, "मैं बहुत बोलती हूं ना!? हा मैं बहुत बोलती हूं। इसलिए बचपन में जब भी काफी बोलती थी, तो लोग या फिर बोल ही नही पाते, या फिर क्या बोलना है ये बीच में ही भूल जाते।"
रागिणी देवकी के साथ बिताए गए पल को याद कर उदास हो गई। वही तो उसकी सुख दुख की साथी थी।
जिसके साथ वो बिना झिझक अपने दिल की बात रख सकती थी।

"सॉरी!"
सिद्धार्थ का सॉरी सुन, रागिनी मंत्रमुद्घ हो गई।

एक बार अपने दुख को भुलकर हंसते हुए सिद्धार्थ को चिढ़ाने लगी- "सॉरी बोलते रहोगे,तो शादी के बाद गलती ना होने पर भी बीवी को सॉरी ही बोलना पड़ेगा।"

सिद्धार्थ अच्छा खासा पक चुका था, रागिनी की बातों से। "क्या चाहिए तुम्हें? पॉकेट में से वॉलेट निकाल उसने ₹500 आगे किया, यह लो और पीछा छोड़ो मेरा।"

"काफी अमीर टाइप के आदमी लगते हो। सीधा ₹500 का नोट सामने रख दिया। वैसे वॉलेट मैं फोटो प्रेमिका है ना? बोलो!बोलो !" सिद्धार्थ को कोनी मार कर, वह मजाकिया तरीके से पूछने लगी।

एकाएक सिद्धार्थ का लटका हुआ मुंह देख, "ब्रेकअप हो गया क्या?" यह सवाल कम जवाब ज्यादा था पर सिद्धार्थ को इसबारे में थोड़ी पता था।
सिद्धार्थ को फिर से चुप देख,"मेरा भी अब तक 2 लोगों के साथ हुआ है।"

"तुमने कभी सच्चा प्यार किया ही नही होंगा।" रागिनी ठहाका मारकर हंसने लगी।

पर फिर से सिद्धार्थ का वहीं सड़ा-फटा चेहरा देख वो चुप होकर बोली- "एक से हुआ था, मैंने उसके साथ सोने से मना कर दिया तो मुझे छोड़कर दूसरे तितली पर बैठ गया।"

"और दूसरा?"

यह दो शब्द फूटते ही रागिनी ने भौहों के ऊपर उचकाते ते हुए, "इंटरेस्टेड हा..!"

सिद्धार्थ ने फिर से मुंह गंगा की तरफ कर लिया।

"दूसरा अमेरिकन था। प्रैक्टिस में मेरे साथ ही था बस बाते- शाते फिर प्यार पर जब शादी की बात आयी तो नाही उसके परिवार वाले राजी थे, नाही मेरे, कुंडली मे प्रोब्लेम था।"

"और अब तुम बताओ।"

"इतनी कॉम्प्लिकेटेड नहीं है मेरी स्टोरी।" गंगा में दूर तक पत्थर का निशाना साधते हुए बोला।

"जिस लड़की से प्यार करता था उसकी 5 साल पहले शादी हो गई।"
"5 साल पहले? और तूम अभीभी उसकी फोटो लेकर घूम रहे हो, उसके पति को पता चल गया तो भर रस्ते में फोड़ देगा।" रागिनी अब मजाक भी गंभीरता से कर रही थी।
"तुम मजाक उड़ा रही हो? नहीं मैं सीरियस हूं।"
रागिनी ने तड़ाक से स्टेटमेंट पास किया। हा वो सच में सीरियस थी। उसे पहली बार लग रहा था सिद्धार्थ को थेरपी की नही, एक हतोड़े की जरूरत है उसके सिर पर मारने के लिए।
'5 साल सीरियसली! लड़की ने अपने पति के साथ सब कर भी लिया और यह उसी की माला जप रहा है।' लेकिन फिर भी अपने भावनाएं पर नियंत्रण रख उसने बात संभाल ली।

"वैसे मैं समझ सकती हूं, प्यार में दोनों को बराबर नुकसान होता है, बेचारी वह भी यही महसूस कर रही होंगी।"
एक बार फिर शांति फैल गई।
उसे पता था वो बहुत देर से बिना बताए घर के बाहर थी,
इस कारण उसे जल्दी घर जाना लाजमी था।
लेकिन फिर भी उसे सिद्धार्थ के साथ इस पल को खोना नही था।
"कल मिलोगे यहां गंगा आरती के समय?"

"नही मुझे टाइम नही है।"
रागिनी को इस बात पर कोफ्त महसूस हुई फिर भी वो बिना कुछ कहे वहा से चल दी ठीक है, "शायद हमारा सफर यही तक था।"
रागिनी वहा से जाने लगी लेकिन मन में, 'रोको मुझे रोक लो इडियट!'

"ठीक है, कल मिलते है।"
रागिनी का चेहरा खिल गया लेकिन वो दिखा नही सकती थी की वो उससे मिलने के लिए उतावली है।
"इंट्रेस्टेड हा!"

"ऐसा ही कुछ समझलो।"

"और अगर कल मै यहा नही आयीं तो?"

"तो वैसे भी मै कल यहा मैं आने वाला ही हु।"

"Attitude हा! ऐसा atttitude लड़को को शोभा नही देता।"

"क्या करूँ फिलहाल यही बचा है।"

"ठीक है देखते है कल।" रागिणी इतना कहके वहा से निकल गई।


"तो मिलने गई थी तू?" प्रतीक्षा ने पूछा
"हा गई थी।" रागिनी ने तड़ाक से उत्तर दिया।
"फिर, फिर क्या हुआ?" प्रतिक्षा की आवाज में उत्साह था
"कुछ नही आरती अटेन की और घर चले आए।"
"बस!" प्रतीक्षा का चेहरा एकाएक मुरझा गया।
"हा तो?"
"वैसे तुम्हारी बात पर विश्वास करना तो कठिन है।
लेकिन कहानी अच्छी लगी।
इंसानियत के नाते उस व्यक्ति की मदद कर रही हो जिसने तुम्हें सरेआम रिजेक्ट कर दिया।
सिर्फ उसकी मां की कुछ मेलोड्रामेटिक स्टोरी पर।"

कभी प्रतीक्षा को अपने साथ हुए हादसे के बारे नही बताया था रागिनी ने, बहुत सारी बातें उसे छुपाई थी।
उसके साथ घटित एक भयानक रात और उस रात से सिद्धार्थ का संबंध।
जब कभी हम दोस्ती बनाते हैं तो तीन तरह की बनाते हैं। पहली जो हमे आनंद दे, दूसरी जो जरूरत पूरी करें, तीसरी जो हमें आईने की तरह पढ़ पाए।
रागिनी के लिए प्रतीक्षा ‌ पहले कैटेगरी में आती थी।
प्रतीक्षा के साथ अपना समय बिता उसे आनंद की प्राप्ति हो सकती थी। लेकिन बिना सोचे समझे मन से नग्न होकर अपनी असलियत सामने लाने चूक वो नहीं कर सकती थी। प्रतीक्षा के लिए खुद के पिता के खिलाफ जाना ब्रह्मपाप था। रागिनी तो पूरे परिवार के खिलाफ गई थी‌ उस रात।
उसने उससे, आरती की रात वाली बात भी छुपाई थी।
यह बात उसने सिद्धार्थ की मां को तक अस्सी घाट वाली मुलाकात में नहीं बताई थी।
कभी-कभी कुछ पलों का सुकून सिर्फ खुद का होता है। दूसरों को बता कर वह सिर्फ मैले हो जाया करते हैं। कितने भी लोग उस पल को छू सकते है, बिना उसका एहसास किए अपने–अपने नजरिए से।
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