ताश का आशियाना - भाग 6 Rajshree द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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ताश का आशियाना - भाग 6

ऐसा नहीं था चित्रा की कोई दोस्त नहीं थे। She is topper student. बादामी आकार की आंखें, काले लंबे बाल, उसकी दो चोटियां और घुटनों तक पहने मोज़े, गोरी त्वचा और उसमें भी पढ़ते डिंपल्स।
हमारे स्कूल के काफी बच्चों को खास कर लड़कों को काफी पहले ही स्त्री और पुरुष भगवान ने किस कारण और वजह से बनाए है यह बात पहले ही पता चल गई थी।
यह उनकी आंखों से पता चल जाता था।
पर मेरे लिए चित्रा और मेरा रिश्ता दोस्त के अलावा और आगे कभी बढ़ा ही नहीं।
चित्रा का एक लड़की होने के बावजूद दोस्त बनने का एक और कारण था वो थी मेरी बीमारी मजहब 8 साल का था तो मुझे पहली बार मिर्गी का झटका आया।
इस बारे में सिर्फ दुनिया में चार लोग जानते थे, मेरे माता-पिता और मेरे हिंदी के टीचर शिवानंद गुरुजी और हिस्ट्री टीचर रेखा मैम।
जब मैं बारिश के चलते मां का इंतजार कर रहा था और बाकी सब शिक्षक गण पहले ही घर जा चुके थे लेकिन अगले दिन हिंदी का पेपर था इसलिए शिवानंद गुरुजी और उस दिन हिस्ट्री का पेपर हुआ था, इसलिए पेपर को रोल नंबर से लगाने के लिए रेखा मैम रूक गई थी।
पहली बार तब मुझे एहसास हुआ कि मेरे साथ कुछ गलत हो रहा है और अचानक मेरे शरीर ने खुद पर आपा खो दिया।
जब पूरे 12 घंटे के बाद होश आया तो मेरे पास मेरे पिता बैठे हुए थे। कुर्सी पर ही बैठे बैठे सो गए थे। मै हमेशा से कहता आया हूं की पापा मुझसे प्यार नहीं करते, आज भी कभी-कभी कह देता हूं। क्योंकि पापा प्यार तो करते हैं पर दिखाते कभी नहीं।
पर तब मुझे पता चला कि वो मुझसे की कितना प्यार करते हैं। शिवानंद गुरुजी और मेरी मां उस दिन मुझे हॉस्पिटल लेकर आए थे। दूसरे दिन शिवानंद सरके जगह रेखा मैम पेपर लेने जो आई थी।
चित्रा मेरे लिए स्ट्रेस को कम करने का जरिया बन चुकी थी। उसकी कही गई बातों से लगता था, कि शायद किसी के जिंदगी में तो मैं अहमियत रखता हूं मैं।
चित्रा का जब बर्थडे था तो शायद पूरे क्लास में वह पहली इंसान थी, जिसने मुझे अपने बर्थडे पार्टी पर बुलाया था। उस दिन मैंने दूसरी बार अपनी पिगी बैंक फोड़ी थी। पहली बार जब माँ बहुत बीमार हो गई थी और दवा लाने के लिए पैसे कम पड़ रहे थे और दूसरी बार जब चित्रा का बर्थडे पर उसे गिफ्ट देना था तब।
मुझे सिर्फ इतना पता था लड़कियों को टेडी बेयर बहुत पसंद होते हैं पर मुझे खरीदते वक़्त यह नहीं पता था कि यह सोच काफी और लोगों की भी हो सकती है।
चित्रा के जन्मदिन पर उसे दस टेडी बेयर मिले थे, और ग्यारवा मेरा था। चित्रा गिफ्ट देने वालों से ज्यादा गिफ्ट से परेशान हो चुकी थी। "क्या सिद्धार्थ iam not kid."
"तुम भी टेडीबियर ही लाए हो।"
"तो तुम्हें क्या चाहिए मेरी गुड़िया?" अपने पिता के हाथों में ताश के पत्ते देख उसने ताश के आशियाने की जिद्द कर दी, वह भी एक पत्ता रोज जो गिफ्ट उससे अपने 24 से जन्मदिन पर चाहिए था।

उसके पिता को बचकानी जिद्द लगी शायद मुझे भी। पर कुछ तो था जो मुझ में है यह करने पर मजबूर कर देता था। चित्रा के आंखें आंसुओं से भर चुकी थी।
शायद उसे अपमान सहन नही हुआ था या फिर वो अपने ताश के आशियाने को लेकर बहोत ही गंभीर थी।
उसकी उम्मीद में तोड़ना नहीं चाहता था रोज एक पत्ता बहुत आसान नहीं था पर मुश्किल भी तो नहीं था।
बस मैंने बिना सोचे समझे वह काम करना शुरू कर दिया।चित्रा को इस बारे में मैंने कभी पता नहीं चलने दिया।
वैलेंटाइन डे पर उसे आठवीं से ही रोज मिलना शुरू हो गए थे। लेकिन वह सिर्फ पीले गुलाब ही एक्सेप्ट करती।
इसलिए मैंने कभी उसे रोज देने की हिम्मत ही नहीं की।
क्योंकि धीरे-धीरे कुछ तो था जो मेरे साथ गलत हो रहा था।
चित्रा के मायने मेरे दिल में दोस्त से भी ज्यादा कुछ अलग हो चुके थे।
डरता था कि लोगों की गलत धारनाए कही सच ना हो जाए।
डर, जिज्ञासा के अंदर में छुपी मेरी भावनाए क्या सही है?
चित्रा की छोटी से छोटी बातें मुझे पसंद आने लगी थी अपने ही बताए गए बातों पर खुद ही हंसना, धीरे से ही अपने हात को मेरे हात पर रख देना, बोलते बोलते अचानक अपने बालों को कान के पीछे डाल देना।
वो पल मैंने अब तक अपने दिल में कहीं छुपा के रखे हैं लगता है अगर दुनिया को बता दूंगा तो याद करते वक्त यह पल सिर्फ मेरा है यह हक में खो दूंगा।
मुझे आज भी पता है जब चित्रा के पिता का दसवीं के परीक्षा के दौरान कार एक्सीडेंट हो गया था। जब चित्रा ने यह बात फोन पर सबसे पहले मुझे बताना लाजमी समझा। मेरे माता-पिता को तक यह खबर पता चलते ही हॉस्पिटल पहुंच गए थे वो।
उस दिन लगा मेरा परिवार 3 लोगों का नहीं 6 लोगों का है ।


भावनाएं, फिलिंग कंन्फर्म हो गई थी।
"आई लव चित्रा।" दसवीं की परीक्षा में स्कूल में फर्स्ट आया। सब लोगों ने जाहिर कर दिया बच्चा साइंस लेकर इंजीनियर बनेगा।
किसी ने मुझसे नहीं पूछा मैं क्या चाहता हूं?
चित्रा का पहले से ही डिसाइडेड था उसे डॉक्टर बनना है। आज वह गाइनेकोलॉजिस्ट औऱ पेड़ीट्रीशन है।
अपने पति के साथ पहले एक गवर्नमेंट हॉस्पिटल में काम करती थी। अब उनका खुद का एक मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल है।

ऐसा नहीं है कि चित्रा को डर के मारे मैंने कभी प्रपोज करने की कोशिश नहीं की थी।
12वीं में हमने एक ही कॉलेज में एडमिशन लिया था ताकि मै चित्रा के करीब रह सकू।
चित्रा को बारवी के कुछ आखरी सेशन में मैंने
लाल गुलाब का फूल देकर "आई लव यू चित्रा मैं तुम्हारे बिना नही जी सकता।" यह बोलने हिमाकत कर डाली।
आंखें बंद करके खड़ा रहा सिर्फ मन में था वह जैसे उगल दिया हो।
"बकलोल कहीका!"
आज तक 15 अगस्त, 26 जनवरी, सेंड- ऑफ, मरण दिवस मोहल्ले में किसी की शादी में एंकर सब बना पर उस दिन जुबान ही नही खुल रही थी।
भगवान ने शायद दोस्त कम दिए हो पर बोलने की खूबी जरूर प्रदान कर दी थी।
हमेशा बोलने से पहले मैं आईने के सामने खड़ा रह कर क्या बोलना है इसकी तैयारी कर-कर ही बोलता था।
"चित्रा तुम कितना अच्छा हंसती हो।"
"नही-नही!"
"चित्रा तुमसे बातें करती हो तो वक्त का पता ही नहीं चलता।"
"इंसल्ट कर रहे हो का?"
"अभी फाइनल है, और तुम चुप ही रहो।"
"चित्रा मुझे तुम बहुत पसंद हो, कैन यू बी माय वाइफ"
"अरे -अरे! पहले ही छक्का उड़ा दिए हो।
शाबाश! मेरे लाल थप्पड़ मार देंगी तो रोते हुए मेरे पास ही आएगा।"
"तुम चुप रहोगे।"
मेरे विचार मेरा मन "प्रकाश" जिससे मैं कभी कबार बातें कर लिया करता था। इस वजह से पागलों की श्रेणी में जाकर बैठा था।
1979 में आयी "बलम परदेसिया" नाम की एक भोजपुरी फ़िल्म मैने अपने मौसा के घर देखी थी मेरी मासी भले ही ब्राह्मण हो पर प्यार के चलते उन्होंने शादी एक बिहारी वक्ती से घर वालो के खिलाफ जाकर आकाश चौरसिया से शादी करली। पर उनके पति उनसे बहोत प्यार करते है उन्हें सिर्फ एक बेटी है जो मेरे छोटी बहन से भी ज्यादा बढ़कर है
फिलहाल 15 साल की युवती है जब में बारवी में था तब महज 7 साल की गुड़िया थी।
तब जब मैं समर वेकेशन के लिए मौसा के घर गया था तब देखी थी मैने वो भी पाँच बार तबसे प्रकाश नाम का करैक्टर मेरे दिमाग मे बस गया है। जब बनारस छोड़ने के दो साल बाद मैं अपने मिर्गी के बीमारी के चलते डॉक्टर की सलाह से सायक्याट्रिस्ट के पास गया तो बातो ही बातों में "प्रकाश" का जिक्र सामने आया तब मुझे पहली बार पता चला प्रकाश मेरा प्रतिबिंब है, मुझे जो पता है उसे वही पता है। वो मेरा वो हिस्सा है जो दुनिया से कही छुपा हुआ है। "schizophrenia!"
सुनकर शॉक लगा। पर इतने दिनों से वो मेरे साथ था में कैसे उसे अपने आप से दूर ढकेल सकता था।
जब चित्रा ने साथ छोड़ दिया तब प्रकाश ही मेरे साथ था।
उस दिन मुझे लगा वो अचानक से कन्फेशन से घबराई होंगी। जैसे 2 साल पहले मेरा हाल था उसी प्रकार उसका भी वही हाल हुआ होगा। पर जब वह 12वीं के बाद बिना बताए दिल्ली चली गए तब मुझे खटका।

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सिद्धार्थ जिंदगी मे क्या फैसला लेंगा ?
क्या चित्रा कभी वापस नही आयेगी?
क्या सिद्धार्थ का जीवन यादो मे ही सिमटकर रह जायेगा?