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ताश का आशियाना - भाग 3

दिल टूटने का आवाज नहीं होता पर ताश का आवाज आना तो लाजमी था। आवाज सुनाई दी गंगा देवी को जो पिछले 20 मिनट से हाथ में गीले कपड़ों की बाल्टी धर दरवाजे पर टूक लगाए खड़ी है।
अंदर से सिर्फ कुछ गिरने की आवाज आई, बाकी सब तो अंधेरे में कहीं गुम था। आवाज से गंगा देवी को अपने बेटे की करतूत के लिए गालियां नहीं आ रही थी बल्कि उन्हे बिना बताए सब पता चल गया था।
दिल टूटने का आवाज ताश के पत्तों ने कहीं दबा दिया था।
मां को कैसे पता चला? या मां को कैसे पता चल जाता है? अपने बच्चों के बारे में, मैं एक लेखक होने के बावजूद भी नहीं बता सकती।
"सॉरी" बस यही एक शब्द फूट पाया था चित्रा के मुंह से चित्रा की मुट्ठी अब मुक्त हो गई थी।
प्रैक्टिकल मायने से सोचा जाए तो कितना नुकसान हुआ होगा- "एक टेबल, एक खिड़की, 4383 पत्ते और धूप जिसका कोई खर्चा नहीं लगता।"
सिद्धार्थ कुछ नहीं बोला।
चित्रा इस कहानी का मुख्य किरदार बन गई।चित्रा बस बोलती गई, सिद्धार्थ बस सुनता रहा।
"शेखर इंदिरा गांधी हॉस्पिटल में कार्डियोलॉजिस्ट है, हम मेडिकल कॉन्फ्रेंस में मिले थे। अच्छा कमा लेता है।"
सिद्धार्थ कुछ न बोल पाया, सिद्धार्थ रोया नहीं, चिल्लाया नही, बस आंखे बंद कर खड़ा रहा।
एक-टक उस धूप को महसूस कर रहा था जो बंद खिड़कियों को चीर उसके आंखों पर पड़ रही थी।
अंधेरे के बाद एकाएक उजाले में आंखें रोधं कर झल्ला जाती है, पर सिद्धार्थ कि नहीं हूई शायद 12 साल में कुछ नया महसूस कर रहा था वो।
गला घुट रहा था। सांसे भी बोजर लगने लगी थी।
आंखें रोना भूल गई थी क्या? या उन्हें पता ही नहीं था की दुख होने के बाद आंसू आना लाजमी है?
लेकिन दुख भी किस चीज का होता प्यार भी एक तरफा ही तो था सिद्धार्थ का।
कभी दोनों ने कोई कमिटमेंट नहीं किया था, कभी प्यार नहीं जताया, कभी हाथ में हाथ डालकर नहीं घूमे।
जब सिद्धार्थ ने चित्रा को ट्वेल्थ के बाद 'आई लव यू' कहा, तब चित्रा की मुंह से हा भी नहीं फूटा, और ना भी नहीं। सिद्धार्थ ने चित्रा की खामोशी को उसकी हां समझ लिया।
"शेखर मेरे माता पिता को बहुत पसंद आया, पहले सिर्फ हम दोस्त थे, चित्रा बोल रही थी।" मन में घबराहट, घबराहट की सिद्धार्थ कुछ नहीं बोल रहा था।
चित्रा सब समझ चुकी थी, पर उसमें हिम्मत नहीं थी कि वो सिद्धार्थ को सहारा दे सकें।
उस दिन बाद शुक्ला निवास में किसी ने चित्रा का नाम नहीं सुना।
धूप खिडकयो से छनकर नहीं बल्कि सीधा बिस्तर पर लेट जाती थी, अब छत तक धूप से निखर उठता क्योंकि बस छत तो पहले ताश के परछाई के नीचे दुबका हुआ था।
खिड़की खाली, कमरा खाली, बिस्तर खाली
सिद्धार्थ!?
सिद्धार्थ कहीं चला गया था किसी को इसके बारे में कुछ पता नहीं।
बस एक पेपर पर लिख कर गया
"मैं खुद की तलाश में जा रहा हूं, जहा भी रहूंगा, ठीक हूं। ज्यादा चिंता करने की जरूरत नहीं है।"
चित्रा की शादी आखिरकार शेखर से हो गई।

क्या सिद्धार्थ की कहानी यही खत्म हो जाएगी या और भी कुछ बाकी है।

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