ताश का आशियाना - भाग 23 Rajshree द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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ताश का आशियाना - भाग 23

रागिनी और सिद्धार्थ लस्सी पीने के बाद घर की तरफ निकले।
दोनो के बीच कोई बातचीत ना होती देख
"क्यों क्या हुआ?" सिद्धार्थ ने पूछा।
"कुछ भी तो नही बस रागिनी ने उसी अंदाज में जवाब दे दिया।"
"आज बहुत शांत शांत हो।"
"तुम्हे ही तो पसंद नही ना मेरी बकबक और
प्रतिक्षा है ना! मैं बोलूं या ना बोलूं इससे थोड़ी फरक पड़ता है।"
"Are you jealous"
"मैं क्यों जेलस हु भला?"
सिद्धार्थ हस दिया और इसी बात पर रागिनी मुंह फुलाकर बैठ गई।
सिद्धार्थ कुछ बोले या ना बोले उसे रागिनी की चुप्पी खटक रही थी।
"नाराज हो?" सिद्धार्थ ने चिंता भरी आवाज में पूछा।
"मैं नाराज नहीं हु। (रागिनी ने गुस्से में ही कह दिया था सबसे बड़ा झूठ।) और तुम गाड़ी जरा धीरे से चलाओ वरना मै गिर जाऊंगी।"
"गिर जाओगी?" सिद्धार्थ की इस बात में आश्रय और शरारत थी।
"हा!" रागिनी चिल्लाई।
"फिर पकड़ लो मुझे।" सिद्धार्थ रागिनी की मजा लेने के मूड में था।
किसी को तो भयानक चुप्पी तोड़नी थी।
"बिल्कुल नही।" रागिनी चिल्लाई।
सिद्धार्थ मन में ही मुस्कुराते हुए,"नही! सोच लो।"
"हा सोच लिया बस तुम मुझे घर छोड़ दो।"
"ठीक है जैसी तुम्हारी मर्जी।"
सिद्धार्थ ने रास्ता निकालना शुरू किया।
रास्ता में खड्डा था या खड्डे में रास्ता था पता नही था।
रागिनी पुरी तरह डर चुकी थी। उसने पीछे से गाड़ी को पकड़ लिया था।
सिद्धार्थ, गाड़ी रोको मुझे डर लग रहा है।
"मैने कहा तो, पकड़ लो मुझे।"
"You pervert."
"सिर्फ तुम्हारे लिए।"
अगर हालत कुछ अलग होते तो रागिनी एक लड़की जैसे ही रिएक्शन देती शरम और बटरफ्लाई वाली पर अभी वो अपने जान के लिए दुआ मांगने में व्यस्थ थी भगवान से।
"तुम, जानबूझकर यह सब कर रहे हो।" रागिनी कुढ़ते हुए बोली।
लेकिन सिद्धार्थ का ध्यान सिर्फ रोड पर था। जो स्टंट उसने किया था उसे समेटना भी तो था।
टायर गिट्टी और पत्थरों से घिसकर आवाज कर रहे थे।
जब घर जाने की दिशा और भी बाई दाई हो गई तो डर और भी बढ़ गया।
एक जगह बहुत बड़ा खड्डा था।
रागिनी ने इस बार डर के मारे सिद्धार्थ को कस के पकड़ लिया।
सिद्धार्थ के सफेद शर्ट पर हाथ कसकर बंधे हुए थे उसके।
आंखें बंद थी और सिर लाल जैकेट में टिका हुआ था।
"तुम बेवकूफ हो।"
"ऑटो वाला अच्छे से लेकर आया था हमे।"
"ऑटो वाला? वो ड्राइवर है, मैं ड्राइवर लगता हु तुम्हे।"
"इडियट!" सिद्धार्थ हंस दिया।
"उतरो घर आ गया।"
रागिनी अभीभी सिर गड़ाएं ही बैठी थी और आंखें अभी भी बंद थी।
"उतरती हो या..."
रागिनी बिना कुछ बोले गाड़ी से उतर गई।
उतरते ही वो जाने लगी तो सिद्धार्थ ने उसका हाथ पकड़ लिया।
रागिनी की आंखे पानी से नम हो चुकी थी।
पानी सर–सर ना बह रहा हो फिर भी आंखे नम होना सिद्धार्थ को पश्चाताप दे गया।
"सॉरी आज के लिए।" आवाज मर्दानी गंभीरता और कोमलता का मिश्रण था।
सिद्धार्थ कौनसी चीजों के लिए सॉरी बोल रहा था रागिनी को पता नहीं था फिर भी उसका मन खुशी से झूम उठा था लेकिन चेहरे पर भाव छुपा लिए उसने।
गेट के अंदर जाते हुए, "I hate you."

"I love...." और वो मनहूस कर्कश रस्ते पर चल रहे ड्रिलिंग मशीन की आवाज के सामने सिद्धार्थ की आवाज अनसुनी हो गई।
रागिनी पलटी, "तुमने कुछ कहा।"
"नही तो!" सिद्धार्थ ने जो बात दब चुकी थी उसे फिर से ऊपर लाने की कोशिश नही की।
अपनी शक्ल बना वो वहां से चल दी‌, नक्शी दार बड़े गेट से सटे हुए छोटे गेट से।
सिद्धार्थ बस उसे अंदर जाते हुए देख रहा था।
अगर रागिनी पीछे पलटी होती तो उसने देखा होता सिद्धार्थ की आंखे जीन आंखो में भावनाएं थी, कुछ भावनाएं बोलने से ज्यादा जस्बात।
वो वही जस्बात थे जब बहुत सारे शब्द जुबान पर आकर सिमट जाते हो।
जैसे किसी को पाने की इच्छा शरीर में एक कंपन फैला देती हो जिसे छुटकारा पाना भी चाहता हो दिल और नही भी। सुकून और नशा एक ही जगह आकर खुदको हमे एक ऐसा व्यक्ति बना दे जिसके लिए हर एक इंसान कब से छटपटा रहा है।
रागिनी सिद्धार्थ के लिए वही कुछ बनने की कगार पर थी।
लेकिन सिद्धार्थ को पता था, वो रागिनी के लिए सही नही इसलिए उसने सोच लिया था वो इस सब से दूर रहेगा, रागिनी से दूर रहेगा।
लेकिन भगवान को ही पता है, वो थोड़ी खुदकी मन की होने देता है। विधि का विधान बोलकर हाथ झटक लेता हैं वो।

घर आते ही सिद्धार्थ ने उसका सफेद शर्ट देखा उसपर सिलवटे देख, "बेवकूफ लड़की।"
लेकिन उसके चेहरे पर हंसी थी, एक गुदगुदाहट भरी हंसी। कुछ देर पहले की गई प्रतिज्ञा मानो एक हंसी से ही टूट गई थी।



दूसरी तरफ
तुषार और प्रतीक्षा स्टूडियो में घंटो बिताने के बाद उनका मूवी प्लान बना।
शाम के 6:00 बजे की टिकट उन्होंने ली थी।
पहले तो प्रतीक्षा थोड़ा झिझकी लेकिन फिर वो भी मान गई। शादी से पहले एक बार अपना यूथ आजमा के..... देखना चाहती थी वो जैसे आजकल के कहीं युवक- युवती चाहते हैं।
सीरियसनेस हों ना हो एक्सपीरियंस होना चाहिए।
दोनो ने केदारनाथ की दो टिकिटे ली।
मूवी चली और मूवी चलते-चलते दोनो की कहानी भी चल पड़ी।
एक ही कोक से उन्होंने कोक पिया।
पॉपकॉर्न खाते वक्त जब हाथ एक दूसरे को टच हुए तो प्रतीक्षा और तुषार अकवार्ड नहीं हुए
एक लाली प्रतीक्षा के चेहरे पर थी। उसके अलावा कोई दूसरी भावनाएं नही थी पर एक ही तो दिन हुआ था।
मूवी खत्म होते ही, "खाना खाने चलोगी।"
"वो मुझे घर जाना होगा, रागिनी खामखा परेशान हो रही होंगी।" प्रतिक्षा ने समय की नजाकत समझते हुए बात सामने रखी।
"ठीक है फिर मैं तुम्हें घर छोड़ देता हूं।"
प्रतिक्षा को घर छोड़ते ही वो घर की तरफ निकल पड़ा।
दरवाजा खटखटाते ही गंगा ने दरवाजा खोला ।
"कहां थे तुम अब तक सिद्धार्थ कब का आ चुका है?"
"आज कुछ ज्यादा काम था, स्टूडियो में गया था काम के सिलसिले में।"
"ठीक है हाथ पैर धो ले, खाना लगाती हु।"
"भाई सो गया?"
"हा सो गया वो कब का।"
"कहा घूमता रहता है तू, आए हुए दो दिन हुए नही की पैरो में चाक लग गए है तुम्हारे।"
"एक नयी शॉर्ट फिल्म का काम मिला है उसी चक्कर में घूम रहे है, एक लड़की है प्रतीक्षा सर्पोतादार उसने दिया है।"
"भाई उसमे आवाज लगाने वाले है और फाइनल एडीटिंग मैं कर रहा हु।"
"अरे वाह! तो फिर आज बनारस दर्शन हुए। कहा कहा गए थे दोनो?"गंगा गुस्सा भूल गई।
"दोनो नही चारो।"
"मैं, भाई, प्रतीक्षा और उसकी दोस्त क्या नाम था उसका...."
"पहले मुह में रखा हुआ निवाला चबा तो ले तब तक मैं रोटियां लाती हु।"
गंगा रोटी के डब्बे से रोटी निकालने गयी वैसे ही
"हा!! रागिनी भारद्वाज" तुषार नाम दिमाग में आते ही चहक उठा।
पर गंगा मानो कुछ समय के लिए स्तब्ध हो चुकी थी।
"रागिनी, भारद्वाज साड़ी वाली?" गंगा ने शक बुदबुदाया।
पता नही पर उसकी दोस्त प्रतीक्षा ने बताया तो था की भारद्वाज साड़ीझ और गारमेंट के ओनर है रागिनी के पिता।
रागिनी की बात सुनते ही मानो गंगा यह मान चुकी थी की देवी मां ने उसकी सुन ली है।

गंगा ने तुषार को रोटी परोसी
"और कुछ बताओ।" गंगा ने चहकते हुए पूछा।
"हम आज वीडियो एडिटिंग स्टूडियो में गए थे..."
वो नही रागिनी के बारे में।
"उसके बारे में!"
"हा, वो कैसे चली तुम लोगो के साथ?"
तुषार को यह अटपटा सा लग रहा था।
"कुछ नहीं वो शॉर्ट फिल्म वाली की दोस्त है, इसलिए वो उसे अपने साथ लेकर आयी थी।"
"तो सिद्धार्थ ने उसमे कुछ इंटरेस्ट दिखया"
हा!! तुषार ने मुह खोल आश्चर्य जताया।
"मेरा मतलब है, कुछ बाते हुई दोनों में?"
"हा बस पानी चहिए।"
"पानी चहिए, बस इतनी सी बात!"
"हा रागिनी को जब तीखा तो भाई ने ही पानी ऑफर किया।"
"और, और बता! "
"और कुछ नहीं हम चारो ने लस्सी पी और चल दिए अपने अपने रास्ते। सिद्धार्थ ने ही रागिनी को घर छोड़ा।"
"क्या सच कह रहे हो तुम?" गंगा चहक उठी।
क्या हुआ.... वाक्य काटते हुए गंगा ने तुषार के मुंह में हलवा ठूस दिया।

आप.. क्या हुआ ओप... तुषार मुंह में ठूसे हुए हलवे से ही बातचीत करने की कोशिश कर रहा था।
"मैं ठीक नही खुश हु।"
गंगा तुषार के बाए खड़ी थी वो नीचे झुक बोल उठी, "सुनो।" गंगा को इतनी नजदीक देख वो डर गया।
"आज से तुम्हे दोनों को करीब लाना है।"
तुषार ने अपना बैलेंस पीछे करते हुए, "क्यों..."आवाज की फ्रीक्वेंसी थोड़ा हिली हुई थी।
"क्यों का क्या मतलब है?" तुषार इस जवाब से और भी घबरा गया, "ताकी वो इस घर की बहु बन सके।"
"क्या!?" इस बार फ्रीक्वेंसी ठीक हो चुकी थी कुछ ज्यादा ही ठीक क्योंकि आवाज रेडियो की तरह एडजस्ट करना पड़ रहा था।
"पर क्यों?" इस बार आवाज संदेहजनक था।
"तुम्हारे भाई ने तुम्हे बताया नहीं उसकी शादी के बारे मे?"
"हा, बताया तो था, वो उसे लड़की पसंद नहीं थी।"
"ह!" गंगा के दात पिसते देख, "मेरा मतलब वो भाग गया क्योकि उसे शादी नहीं करनी थी।"
"उसने लड़की के बारे कुछ बताया?"
"नही उसने मुझे कुछ नही बताया।" अभी भी आवाज डर के मारे धीमी थी।
"वो लड़की रागिनी है।"
"क्या?" इस बार का यह दूसरा क्या था और दूसरा शॉक भी तुषार के लिए
"इसलिए तुम्हे उन्हें नजदीक लाना होंगा ताकी वो इस घर की बहु बन सके है।"
"इसमे मैं क्या कर सकता हु, अब भाई ही कुछ कर सकते है। अगर उन्होने उस लड़की को रिजेक्ट किया तो जोर–जबरदस्ती तो नहीं कर सकते न हम उनपर।"
"जोर जबरदस्ती!" अब गंगा का वॉल्यूम बढ़ चुका था।
गंगा अपने हाथो से तुषार के पीठ पर कसकर रेपट लगाते हुए , "जोर जबरदस्ती क्या है इसमे? और तुम्हारे भाई ने कोई रिजेक्ट नहीं किया उसे, सिर्फ एक खत लिखकर भाग गया वो।"
वो तो यह भी नहीं जानता की रागिनी वो लड़की है जो उस दिन रिश्ता लेकर आई थी।
"श्रीकांत जी उस दिन हमारा घर देखना चाहते थे ताकि हम उनकी बेटी को खुश रख पायेगे या भी नहीं यह जान सके, तुम्हारा भाई हमारी इज्जत ले डुबा है।"
"ऐसा नहीं है आंटी, भाई के भी कुछ रीज़न रहे होंगे भाई काफी सुलझे हुए है।"
गंगा फिलहाल यह सुन एक हाथ से कड़छी दूसरे हाथ पर मार रही थी जैसे की और कर ही हो अपनी भाई की तरफदारी कर और फिर देख।
"ओह माय गॉड! भाई को इस बारे नहीं पता?"
तुषार ने खुदकी जान बचाते हुए, एक नकली आश्चर्य जताया।
गंगा के हाथ की कड़छी खुदके हाथ में लेते हुए फिर मिमीयाते स्वर में पुछा, "आपने क्या सोचा है?"
"कुछ नहीं तू उन्हें साथ मिलवाएगा।"
"मैं क्या कर सकता हु?"
"कुछ भी कर लेकिन उन दोनों को अहसास दिला की वो एक दूसरे के लिए ही बने है।"
"और अगर मैं ना कह दू तो?"
गंगा कड़छी एक बार फिर हाथ में लेने जा रही थी की, "क्या आप बार- बार धमकी देती रहती है, ठीक है मैं मुझसे जो बन सका वो करूँगा लेकिन बाकी सब आपके बेटे पर और किस्मत पर है।"
इतना कह वो वहाँ से उठ खडा हुआ।
"अरे! बिना खाए कहा जा रहे हो?"
"आज इतना ही कुछ पचा लिया है की अब कुछ और खाऊंगा तो अपचन हो जाएगा।"