वही सी हर रोज की सुबह होती है।
रागिनी उठती है, उसके बाजू प्रतिक्षा को ना देख उसकी आंखे खुल जाती है।
"कहा हो तुम?" रागिनी ने प्रतीक्षा को पुकारा।
" मैं बाथरूम में हु, आ रही हु।"
इंसान का दिमाग खाली नहीं बैठना चाहता उसे हर वक्त जिज्ञासा की भूख रहती है उसी एक जिज्ञासा को मिटाने के लिए रागिनी ने सुबह सुबह उठ इंस्टाग्राम खोला।
इंस्टाग्राम खोलते ही वह नोटिफिकेशन पर गई।
किसी तुषार@21(फेक Id) से मैसेज आया था।
"हेलो रागिनी जी।"
"वह हम कल मिले थे।"
"मैं सिद्धार्थ के साथ आया था कल।"
"वह आज बॉस प्रतिक्षा के साथ जाने वाले हैं बनारस पर डॉक्यूमेंट्री करने।"
"आज मेरा काम नहीं है।"
" घर बैठ कर बोर हो जाऊंगा। अगर आप मेरे साथ चलेगी, बनारस घूमने तो मुझे हाथी मिल जाएगा।"
"अगर आप फ्री होगी तो कोई जबरदस्ती नहीं।"
यह तुषार के भेजे अलग-अलग मैसेज थे।
तुषार का व्यवहार रागिनी को अश्लील ना लगे इसलिए हर एक मैसेज के साथ तुषार ने बातें क्लेरिफाईड कर दी थी।
रागिनी मैसेज पढ़ते ही सोच में पड़ गई।
रागिनी जाए ना जाए यह विचार कर ही रही थी की प्रतीक्षा बाहर आ गई।
"तुम जा सकती हो।"
"इतनी सुबह सुबह तैयार होकर कहां जा रही हो?"
"तुम्हें पता है ना आज डॉक्यूमेंट्री के लिए जाना है, तुम तो आ ही नहीं रही होंगी।"
रागिनी को बात थोड़ी अटपटीसी लगी।
"आ ही नहीं रही होंगी का क्या मतलब है?"
"कल जो तुम बोर हो गई थी इसलिए मुझे लगा।"
रागिनी बोलना तो बहुत कुछ चाहती थी पर सुबह खराब करने के मूड में नहीं थी वो।
वह अपना बिस्तर समेट के, बाथरूम चली गई।
कुछ देर बाद जब वो वॉशरूम से बाहर आई उसकी नजर प्रतिक्षा पर गई।
बेहत ही सुंदर अनारकली, उस पर पहने झुमके, लिपिस्टिक और आधी सज्जा।
यह सारी चीजे उसके डॉक्यूमेंट्री बनाने के व्याख्यान को खारिज कर रही थी।
"डॉक्यूमेंट्री बनाने के लिए इतना सजना-धजना पड़ता है?"
"सिर्फ डॉक्यूमेंट्री बनाने थोड़ी ना जा रहे हैं, दुर्गा माता के मंदिर और गंगा की आरती अटेंड करने जा रहे हैं थोड़ा तो डिसेंड दिखना पड़ेगा ना!"
रागिनी उसे मुझे तुम पर विश्वास नहीं हो रहा है वाला लुक दे रही थी।
रागिनी खुद भी अपने कपड़े पहनने लगी। उसने सिर्फ एक सफेद कलर का कुर्ता पहना और काली रंग की लेगी। वो तयार हुई की तभी आवाज आई,
"इंपोर्टेड परफ्यूम कहा है?"
"वो क्यों चाहिए तुम्हें?"
"अरे दिन भर यहां वहां घूमते रहेंगे कितना पसीना आएगा ऐसे ही हम गंगा आरती को जाएंगे कितना गंदा लगेगा इसलिए सोचा थोड़ा परफ्यूम मार लूं।"
"पता नहीं मैंने कहा रख दिया।" रागिनी का बेखटक जवाब आया।
"क्या यार! तू भी।" प्रतीक्षा पागलों की तरह उस परफ्यूम बोतल ढूंढने लगी। जैसे उस परफ्यूम में ही उसकी सांस अटक गई हो।
रागिनी को पहली बार प्रतीक्षा का मुंह नोचने की इच्छा हुई।
रागिनी कोई दूध पीती बच्ची तो थी नहीं की उसे प्रतीक्षा के चेहरे की लाली, उसका उत्साह, उसकी यौवन की उत्तेजना इसके पीछे का उद्देश्य समझ ना आए। "प्रतीक्षा को सिद्धार्थ पर क्रश हो गया था।" यह साफ साफ उसकी हरकते जता रही थी।
क्रश,प्यार नही? प्यार कहा साहब! उसमे तो आबाद होना भी बर्बाद होने के समान है।
प्रतीक्षा को परफ्यूम मिलते ही शरीर के हर एक अंग पर बोतल उड़ेल डाली।
"क्या कर रही है प्रतीक्षा? वो बहुत ही इंपॉर्टेंट परफ्यूम है। ऐसे पूरे शरीर पर नही लगाना पड़ता।"
"कितना इंपॉर्टेंट है 400-500?"
"$2000 का है यह परफ्यूम।"
2000?
"बाप रे मैं तो इसे सपने में भी नही खरीद सकती।" प्रतिक्षा ने बेझिझक बात आगे रखी।
रागिनी का मुंह सुबह से ही उखड़ चुका था,
"तुमने ठीक कहा तुम इसे सपने में भी नहीं खरीद सकती इसलिएअगली बार इस्तेमाल करने से पहले 10 बार सोच लेना।"
"रागिनी आज क्या तू गलत साइड से उठी है।" प्रतीक्षा ने किसी भी बात का बुरा नही माना, "चल मुझे अब जाने दे देर हो रही है। सिद्धार्थ जी मेरा इंतजार कर रहे होंगे।"
प्रतीक्षा जिस लज्जा के साथ यह वाक्य कह रही थी, उसी के साथ रागिनी का गुस्से का पारा चढ रहा था।
प्रतीक्षा के जाते ही रागिनी ने बिना कुछ ज्यादा सोचे, निर्णय ले लिया।
" यह मेरा व्हाट्सएप नंबर है।"
"मैं तुम्हें अपने लोकेशन शेयर कर रही हूं। मुझे मेरे घर के पास लेने आ जाना।"
डाइनिंग टेबल पर फिर से एक बार सारा परिवार बैठा हुआ था।
बहुत ही भयानक शांति थी। आवाज थी तो वह किसी के मुंह की, या चम्मच–प्लेटो की।
"तो हो पुरी हो गई तुम्हारी डॉक्यूमेंट्री?"
"नहीं अंकल, अभी बाकी है लेकिन कुछ ही दिन में खत्म हो जाएगी।"
"फिर घर कब जाने के बारे में सोचा है?"
"जी वो…"
"पापा वह दो-तीन दिन में चली जाएंगी वह ज्यादा देर रुकने वाली नहीं है उसे उसकी शादी की तैयारी जो करनी है।"
प्रतीक्षा इस बात से शर्मिंदा हो चुकी थी।
सबको लगा इस बार भी रागिनी प्रतीक्षा का ही साथ देगी पर उसका बदला हुआ रूप सबको अचंभित कर गया था।
प्रतीक्षा का अब ज्यादा खाना उसके अपमान का कारण बन जाता इसलिए वो नाश्ता हो गया यह कारण देकर वहा से उठ गई।
उसने झट से सिद्धार्थ को मैसेज किया।
और उसका इंतजार करते हुए, घर से बाहर चली गई।
कुछ ही देर में सिद्धार्थ की गाड़ी रामजी विला के सामने आकर खड़ी हो गई।
प्रतिक्षा ने सिद्धार्थ को अपना ड्रेस आगे पीछे हिलाते हुए कुछ पूछा। सिद्धार्थ ने मुस्कुराकर कुछ जवाब दिया प्रतिक्षा शर्मा गई और सिद्धार्थ के गाड़ी पर एक साइड बैठ गई।
एक व्यक्ति की छुपी हुई नजर अपनी मस्तिष्क की आंखें भाप ही लेती है, चाहे नजर बुरी हो या अच्छी।
सिद्धार्थ ने पलटकर खिड़की की तरफ देखा।
रागिनी बिना कुछ भाव दिखाएं उस खिड़की में खड़ी थी।
दोनों की आंखों ही आंखों में बातें होने लगी।
सिद्धार्थ ने यह अनुमान लगा लिया की रागिनी ने गुस्से में आकर खिड़की के पर्दे बंद कर दिए होंगे।
दूसरी तरफ
तुषार जब उठा तब उसने पहले जो खोला था वो मैसेज का जवाब ही था।
मैसेज का जवाब मिलते ही वो खुशी से झूम उठा।
झट से 15- 20 min में तयार होकर निकल पड़ा।
बीच में गंगा ने कहा, "इतनी सुबह सुबह कहा जा रहा है?"
दो पराठे हाथ में लेते हुए,
"मिशन।"
"पर कोनसा मिशन?" "सिद्धार्थ वेड्स रागिनी।"
"कब कैसे?" गंगा पूछने जाने वाली ही थी, "अभी टाइम नही आंटी मिशन सक्सेसफुल होते ही पहली खुश खबरी आपको ही दूंगा।"
गंगा खुश हो गई। तुषार पराठे मुंह में ठूंस निकल पड़ा।
कुछ एक घंटे Google के घुमावदार direction के बाद वो पहुंचा रागिनी के घर।
रागिनी के व्हाट्सएप पर कॉल लगाया जो उसमें झट से उठा लिया।
"मैंने आपको मैसेज किया था।"
"हां आ रही हूं।" इतना बोल रागिनी ने फोन रख दिया।
बाइक पर बैठती ही, तुषार ने उत्साह सवाल दागा, "आप कहा…"
"प्रतीक्षा जहां गई वही चलते हैं।"
तुषार ने मन में ही, सोचा मामला गरम लगता है।
रामनगर फोर्ट
सिद्धार्थ और प्रतीक्षा रामनगर किले में पहुंचे
"बाप रे! कितना बड़ा है।"
प्रतीक्षा फोर्ट की लंबी सीढ़ियां चढ़ते वक्त रुकिए ना सिद्धार्थ जी प्लीज मुझे मदद कीजिए।
सिद्धार्थ ने प्रतीक्षा का हाथ पकड़ लिया।
दो व्यक्तियों के बीच में हुआ स्पर्श का आदान-प्रदान दोनो भी व्यक्तियों को महसूस हो ऐसा कुछ नहीं।
प्रतीक्षा शर्म के मारे पानी पानी हो रही थी और दूसरी तरफ सिद्धार्थ सिर्फ एक जेंटलमैन होने का फर्ज निभा रहा था।
दोनों जैसे तैसे कर अंदर गए।
(आप डॉक्युमेंट्री में दिखाया गया इनफॉर्मेटिव पार्ट स्किप कर सकते है कहानी आगे जारी रहेगी।)
प्रतीक्षा ने अपनी डॉक्यूमेंट्री शुरू की।
रामनगर फोर्ट वाराणसी के राजा नरेश का निवासस्थान।
गंगा नदी के पूर्वी तट पर सन 1750 में काशी नरेश बलवंत सिंह के द्वारा रचाया गया था।
रामनगर फोर्ट जिस घाट पर स्थित है उसकी दूसरी और तुलसी घाट स्थित है। हम उसे यहां से देख सकते है। प्रतीक्षा ने एंगल घुमाया और तुलसी घाट की दिशा हो सके उतनी कैप्चर करने की कोशिश की।
तुलसीदास भारत के प्राचीन कवियों में से एक है
जिन्होंने रामचरितमानस और सबसे शक्तिवर्धक मंत्र हनुमान चालीसा लिखी है।
रामचरितमानस में किया गए श्री राम के जीवन का उल्लेख हमे यहां क्वार के महीने में महसूस करने का अवसर प्राप्त होता है 31 दिन तक चलने वाली यह रामलीला इसी फोर्ट में प्रदर्शित की जाति है जो की काफी विश्वप्रसिद्ध है।
अभी यह किला खुदकी वृद्धावस्था में जी रहा है जिसे सहारे की काफी जरूरत है।
रामनगर फोर्ट यहां की संस्कृति को जिंदा रखने की कोशिश कर रहा है लेकिन उस कोशिश में यह पूरी तरह जर्जर हो चुका है। और उस सुबह की याद में बैठा है कि कब कोई आएगा और इस जर्जर बूढ़े को सहारा देगा।
प्रतीक्षा को जितना कैमरा संभालना कठिन जा रहा था उससे भी ज्यादा कठिन जा रहा था उसका ड्रेस संभालना इस कारण उसे चलना तक मुश्किल हो रहा था।
सीढ़ियों से चढ़ना, शूटिंग के वक्त एंगल्स लेना उसे काफी मुश्किल जा रहा था।
दुनिया में ऐसा पहली बार होता है जिस चीज के लिए हम बेताब होते हैं वह चीज मिल जाने पर हमारा ध्यान उस चीज को बरकरार रखने के लिए नहीं बल्कि किसी और आकर्षक चीज पर चला जाता है।
प्रतीक्षा के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था। चाहती तो वो डॉक्यूमेंट्री शूट करना थी लेकिन सिद्धार्थ के प्यार में गिरफ्तार हो वह अपना लक्ष्य भूल चुकी थी।
ऐसा नहीं था कि सिद्धार्थ कुछ दुनिया से अलग बाते करता था बस उसके सोचने का नजरिया काफी अलग था, तथ्य में कल्पना का मिश्रण था।
और इसमें उसका साथ देती थी उसकी आवाज, सिद्धार्थ की आवाज काफी मर्दानी और गहरी थी।
खुदके मनोचिकित्सक (psychiatrist) के कहने पर उसने प्राणायाम भी चालू किया था जिससे कारण वो अपनी vlogging करते समय सांस पर नियंत्रण कर पाता था।
यह सब सिद्धार्थ के लिए आम बाते थी वही दूसरी तरफ प्रतीक्षा इसी आवाज के पीछे घायल हो चुकी थी। सिद्धार्थ के साथ जीवन बिताना उसके शरीर में कंपन दौड़ा रहा था। उस पर भी सिद्धार्थ काफी नामचीन ट्रेवलर्स में से एक था। महीने का लाखो भी कमा लेता था। Hot looks with money का हिसाब लगाके ही उसने सिद्धार्थ को अप्रोच करने के बारे में सोचा था। उसका लक्ष्य पीछे छुट रहा था इस बात की उसको खबर ही नही थी।
कुछ ही देर में ठीक ठाक एंगल लेने पर वह बोल पड़ी, "अभी कहा चले?"
" टाइम हो गया होगा दुर्गा मंदिर चलते है लेकिन उससे पहले किसी रेस्टरोंट में चल कर थोड़ा खाना खा लेते हैं।"
सिद्धार्थ और प्रतीक्षा निकले ही थे की उन्हें दूर से एक गाड़ी उनकी तरफ आते हुए दिखाई दी।
गाड़ी पर तुषार और रागिनी बैठे हुए थे।
रागिनी के दोनों हाथ तुषार के कंधे पर टिके हुए थे।
"तुम दोनों यहां क्या कर रहे हो?" सिद्धार्थ ने नापसंदी वाले स्वर में पूछा।
"हम दोनों बोर हो रहे थे तो सोचा क्यों ना बनारस की घूम लिया जाए इसलिए आए हैं, तुम लोग कहीं जा रहे हैं।" तुषार ने जवाब दिया।
"दुर्गा मंदिर।" सिद्धार्थ ने बेस्वाद होके जवाब दिया।
पर सिद्धार्थ चुप था बस वो तुषार और रागिनी की नजदीकियो से थोड़ा अविचल हो गया था।
प्रतीक्षा ने दोनो की नजदीकियां देख मन में ही रट लिया, "लफंगा कहीका!"
वहीं दूसरी तरफ सिद्धार्थ का मन इस बात से निषेध कर रहा था, की दोनो एक साथ थे।
"चलो ना तुषार यहां क्यों आए हैं?"
"हा!" रागिनी की मिश्री घुलित आवाज सुन तुषार आश्चर्यचकित हो गया।
कुछ देर पहले यही रागिनी थी जिसने गाड़ी जल्दी चलाने का आदेश दिया था।
यह वही रागिनी थी जिसने सिद्धार्थ के पूरे दिन का ब्यौरा मांगा था।
और वो भी यही रागिनी थी, जिसने सिद्धार्थ के गाड़ी के नजदीक आते- आते तुषार से ज्यादा ही नजदीकीया बड़ा ली थी।
लेकिन तुषार ने कुछ बोलना ठीक नहीं समझा।
"जी जरा पहले भाई के लिए रुक जाते है वो जो और जैसे रास्ता लेंगे हम भी उसी रास्ते से चलेंगे।"
"हम फिलहाल दुर्गा मंदिर नहीं जा रहे है कहीं किसी रेस्टोरेंट में खाना खाने जा रहे हैं।" प्रतिक्षा ने तुषार की तरफ़ घृणा भरी नजरो से देख मुंह खोला।
तुषार खुदका ही थूक गटकते हुए, " फिर हम भी चलते है आपके साथ, कैसा लगा आपको विचार रागिनी जी।" वाक्य भले ही एक लय में हो लेकिन डर–डर के बच–बच के बोला गया था।
क्योंकि रागिनी और सिद्धार्थ दोनों की आंखें कुछ अलग ही बातें बयां कर रही थी, मानो एक दूसरे पर आग फेक रही हो बिना कुछ बोले।
"तुमने ठीक कहा एक साथ ही चलते हैं।"
तुषार ने गाड़ी निकाली और सिद्धार्थ ने भी।
गाड़ी अस्सी घाट के एक रेस्टरोन्ट के तरफ चल पड़ी।
सिद्धार्थ और रागिनी के बाए–दाए बैठे थे तुषार और प्रतिक्षा। दोनो एक दूसरे के सामने बैठ पता नही मन ही मन में क्या युद्ध चला रहे थे।
सबने अपने–अपने पसंद का खाना ऑर्डर किया।
खाने के थाली में जैसी चीजें मांगी थी वैसे ही वेटर ने सजा कर रख दी।
"सिद्धार्थ जी आप यह मलाई कोफ्ता ट्राई कीजिए बेहत ही टेस्टी है।"
रागिनी की नजरे दोनों पर टिकी हुई थी। ऐसे टिकी हुई थी मानो पूरी तरह छलनी कर देगी सिद्धार्थ को। सिद्धार्थ ने एक तरफ रागिनी की आंखों को देखा दूसरी तरफ प्रतीक्षा को, शांति बनाए रखने के लिए चम्मच से वह मलाई कोफ्ता उठाकर हाथ से ही खा लिया।
प्रतीक्षा को इस बात से बुरा लगा पर रागिनी को इस बात से परमसुख (ultimate happiness) की प्राप्ति हुई।
अगला स्थान दुर्गा मंदिर
दुर्गा मंदिर या फिर दुर्गा कुंड मंदिर। कहा जाता है, "मां भगवती अद्रुश रूप में यहां विरजमान है।"
इस मंदिर की खासियत यह है कि आदिकाल से यहां स्थित है।
इस मंदिर का इतिहास जाने तो यह मंदिर 1760 में बंगाल के रानी भवानी के हाथो बनाया गया था।
माना जाता है कि यहां देवी मां महिषासुर का वध करने पर यहां ठहरी हुई थी।
इस कारण यहां पे कोई मूर्ति बिठाई नही गई इसलिए यहां मां दुर्गा के मुखवटे और पादुकाओ की पूजा की जाती है।
बीसा यंत्र पर यह मंदिर टीका हुआ एक बेहत ही भव्य मंदिर है।
दुर्गा माता मंदिर घुमने के बाद, तुषार और रागिनी एक वरांडे पर बैठे हुए थे।
प्रतीक्षा की सिद्धार्थ के साथ बनाई जा रही नजदीकिया रागिनी को और भी पागल कर रही थी।
रागिनी को क्या सूझा पता नहीं लेकिन वह तुषार से सटकर बैठ गई।
तुषार घबरा गया, "क्या कर रही हैं रागिनी जी?"
"तुषार…देख रहा है?" आवाज मदहोशी भरी थी।
"कौन… क्या देख रहा है?" तुषार हड़बढाहट में पूछ उठा।
"सिद्धार्थ, वह देख रहा है।"
तुषार ने अपने परिधीय दृष्टि( peripheral vision) से देखा ,"हां देख रहा है।"
"कैसे देख रहा है।" रागिनी कानो में बुदबुदाई।
"खुन्नस भरी नजरों से।"
"मेरे कंधे पर हाथ डालो।"
"क्या!"
"सुनाई नहीं दे रहा, मैंने कहा मेरे कंधे पर हाथ डालो।"
तुषार ने डरते–घबराते हुए हाथ रागिनी के कंधे पर डाला। तुषार अपने फोन में मूवी देख रहा था।
ha… ha… Tushar Rajpal Yadav is best comedian (राजपाल यादव उम्दा कॉमेडियन है।)
"हा… आपने ठीक कहा।" तुषार के माथे पर पसीना नजर आ रहा था।
रागिनी ने जोक सुन ठहाका लगा दिया।
तुषार और रागिनी जिस संलग्नता (engagement) से बैठे थे देखने वाले को यही लगता की रागिनी और तुषार कपल है। एक साथ मूवी देख कर वह अपना क्वालिटी टाइम बिता रहे हैं।
यही एक धोखा सिद्धार्थ को भी हुआ।
सिद्धार्थ तमतमा उठा।
तुषार के पास गया।
"तुषार", "हां भाई?"
" मुझे तुमसे कुछ बात करनी है।" "अभी?"
" हां अभी।"
सिद्धार्थ तुषार को मंदिर को मंदिर के एक
ऐसे कोने में लेकर गया जहां से रागिनी या प्रतीक्षा की नजर उनकी बातचीत पर ना जाएं।
"क्या कर रहा है तू?" सिद्धार्थ ने खीजते हुए पूछा।
"मैं क्या कर रहा हु?"
"यह प्रतीक्षा की दोस्त से नजदीकिया क्यों बढ़ा रहा है?"
"आप रागिनिजी की बात कर रहे है।" तुषार शर्मा रहा था।
"हा, मैं उसी की बात कर रहा हु।" सिद्धार्थ दात पिसते हुए बोला।
"वो, हम शायद उनको पसंद करने लगे है।"
"क्या!" सिद्धार्थ अपनी आवाज पर नियंत्रण खो चुका था। उसका चेहरा पूरी तरह गुस्से से लाल हो गया था।
"रागिनी तेरे टाइप की नहीं है, जो किसी भी रिश्ते को सीरियसली ना लें।" सिद्धार्थ पुरी तरह गरज पड़ा।
"मेरे टाइप की,मेरे टाइप की का क्या मतलब?" तुषार एकाएक ऑफडेंड हो गया।
सिद्धार्थ जान चुका था कि उसने तुषार के मन को हर्ट किया है।
इसलिए उसने अपनी आंखें बंद कर ली आंखें कर उसने अपने बात आगे रखी,"देखो तुषार वह अपने जीवनसाथी से काफी अपेक्षाएं रखती है। तुम उस अपेक्षाओं को पूरा नहीं कर पाओगे।"
तुषार मुंह आड़ा तिरछा बनाके सोचने लगा फिर अचानक टांग खिंचाई करते हुए बोला, "एक दिन की मुलाकात में आपको यह भी पता चल गया की, उन्हें किस टाइप का लड़का पसंद है।"
सिद्धार्थ के लिए यह दांतो तले उंगली दबाने जैसा क्षण था।
उसे तुषार बात को ऐसे घुमाएगा ऐसी आशा नही थी।
"मैं बस उसे देखकर ऐसा बता सकता हु।"
" इतने सालो में मुझे क्या चाहिए यह आपको पता नही चल पाया और बस कल कुछ देर समय बिताने पर आपको उनकी पसंद नापसंद के बारे में पता चल गया।"
"भूल मत में तुम्हारा बॉस हु।"
तुषार हस दिया, "तो मैंने कब आपको गाली दी बॉस अगर आप कहेंगे तो मैं उनसे कोसो दूर रहुगा। उससे पहले मुझे मेरे सवाल का जवाब चाहिए।"
"कोनसा सवाल?"
"क्या आपको रागिनीजी पसंद है?"