ताश का आशियाना - भाग 25 Rajshree द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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ताश का आशियाना - भाग 25

सिद्धार्थ का यह वाक्य सुनते हैं दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। "तुम… यह.. क्या कह रहे हैं हो?" सिद्धार्थ ने हकलाते हुए जवाब पेश किया।

"भाई मैंने पूछा, क्या आपको रागिनीजी पसंद है?"

सिद्धार्थ कुछ भी जवाब देने की स्थिति में नहीं था।

एक तरफ वो रागिनी की तरफ आकर्षित हो रहा था दूसरी तरफ उसकी बीमारी जिंदगी में कोई भी ऐसा कदम उठाने से रोक रही थी जिससे आगे चलकर उसे पछताना पड़ता।

हम बोल सकते है की उसने दिल पर पत्थर रखकर जवाब दिया,"नहीं।"

"फिर आपको मेरे और रागिनी के रिश्ते से कोई प्रॉब्लम नहीं होनी चाहिए, बॉस।" तुषार मिमीयाते हुए बोला।

सिद्धार्थ की आंखें एकाएक बड़ी हो गई,"देखो तुषार, वो ऐसी वैसी लड़की नहीं है उसका परिवार यहां के अमीर घरानो में से एक है तुमने कुछ भी ऐसा वैसा करने की कोशिश की तो वह तुम्हे जिंदा नहीं छोड़ेंगे।"

"मुझे पता है भाई, आप मेरी चिंता कर रहे हो पर डोंट वरी आग एक तरफ से नहीं लगी है।"

सिद्धार्थ को इस संवाद के बाद लगा की रागिनी भी तुषार को पसंद करने लगी है‌।

लेकिन तुषार ने यह शब्द इसलिए ही निकाले थे कि वह रागिनी के बर्ताव और सिद्धार्थ के गुस्से का कारण जानता था और बोले गए वाक्य का यथार्थ यही था, "आग दोनो तरफ से लगी है।"

सिद्धार्थ फनफनाते हुए वहां से निकल गया।

रात हो रही थी।

शाम की चाय पीने चारों, टपरी पर बैठ गए थे।

बहुत ही फेमस टपरी थी वाराणसी की लक्ष्मी टी स्टॉल।

प्रतीक्षा सिर्फ टी स्टॉल में भीड़ देखकर ही हैरान हो गई थी।

इंदौर में उसने यह नजारा कभी नहीं देखा था या फिर उसे कभी दिखाई नहीं पड़ा था।

सिद्धार्थ ने 4 चाय का आर्डर दिया। चाय के साथ खाने के लिए वहां की स्पेशल मलाई टोस्ट मंगवाए। प्रतीक्षा वहां का व्यू ले रही थी।

सिद्धार्थ तुषार और रागिनी की नज़दीकियों से कुछ ज्यादा ही गुस्से में था।

"सिद्धार्थ जी क्या हम यहां का भी इंटरव्यू ले?" प्रतिक्षा चहकते हुए बोल उठी।

यह छोटा सा वाक्य था पर सिद्धार्थ अपनी आपाधापी में यह भूल चुका था कि वह किससे बात कर रहा है।

"क्या है प्रतीक्षाजी आप चाय भी पीने देंगी या नहीं यहां का इंटरव्यू लो वहां का इंटरव्यू लो। एक डॉक्यूमेंट्री ही बनानी हैं कोई 3 घंटे की फिल्म नहीं। वैसे‌ भी आपका ध्यान काम पर कम और अपनी ड्रेस पर ज्यादा है आप ठीक से एंगल भी नहीं ले पा रही।"

ऐसी ही मर्दानी आक्रोश के साथ प्रतीक्षा के आंखों में आंसू आ गए वहां के बैठे लोग उन्हीं की तरफ देख रहे थे।

रागिनी को दिल पर ठंडक तो पहुंची, लेकिन प्रतीक्षा के लिए बुरा लगा क्योंकि वो उसकी दोस्त थी और उसके भी अलावा एक औरत।

"मिस्टर सिद्धार्थ, गलती आपकी है आपने कहा हमें मंदिर और गंगा मां के दर्शन करने जाना है इसलिए किसी का भी ट्रेडिशनल कपड़े पहन कर आना लाजमी है।"

सिद्धार्थ बोलना तो बहुत कुछ चाहता था लेकिन मौके की नजाकत को वह पहले ही बर्बाद कर चुका था लोगों की नजर उस पर टिकी हुई थी इसलिए उसने सिर्फ प्रतीक्षा से सॉरी कहने में ही भलाई समझी।

सारा मामला निपट गया। चारों ने मस्त चाय पी। तुषार थोड़ा चुप-चुप सा हो गया था। सिद्धार्थ भी अपने ख्यालों में गुम था।

रागिनी ने अपने ही टोस्ट का एक टुकड़ा प्रतीक्षा की तरफ सरकाया हुआ था प्रतीक्षा ने मना किया फिर भी रागिनी ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए सिर्फ प्लीज कहा प्रतिक्षा ने वह टुकड़ा मुंह में डाल दिया।

चारों अपने-अपने भावनाओं से जूझ रहे थे।

अब दिन का आखरी डेस्टिनेशन था।

गंगा मां की आरती।

चारों आज थोड़ा पहले आरती में पहुंचे थे।

पहले की सीट पकड़ ली थी चारों ने।

आरती चालू हुई आरती में सब मगन हो गए।

प्रतिक्षा ने इसबार शूटिंग की जिद नहीं की।

सिद्धार्थ की एक और रागिनी बैठी हुई थी, दूसरी और प्रतिक्षा प्रतीक्षा के बाजू में तुषार

5 ब्राह्मण रोज की तरह मगन होकर आरती कर रहे थे। ढोल बजाए जा रहे थे। शंख बज आरती की उद्घोषणा पहले ही हो चुकी थी। धीरे–धीरे लोगो की भीड़ बढ़ती जा रही थी।

गंगा शांत थी, लेकिन वहा बैठे हर एक आदमी का मन अशांत था। बहने वाली गंगा खुद के अंदर हमारे सारी भावनाएं बहा ले जाएगी और एकाएक हमे मोक्ष का अनुभव करा जायेगी यह कितने तो भी लोगो को वहा लगता था। आरती निरंतर चल रही थी।

आरती के साथ कुछ ऐसे सवाल भी थे जो मन के संवाद से ही गंगा को पहुंचाए जा रहे थे।

"हे देवी मां, तेरा बहुत नाम सुना है इंदौर से यहां आने से पहले।

बस कुछ चमत्कार और मेरे पापा को मेरे शादी कराने से रोक दे।

हा यह सच है की मै, अमोल भैया जितनी होशियार नही। भले ही NEET में मेरी कोशिशें नाकाम हो गई हो पर तब भी मैं कुछ और करना चाहती थी और अब भी।

जो सपने मैने तब पाले थे वो आज भी जिंदा है, बस मरने से पहले उन सपनो को जीना चाहती हू मां।

हा मुझे जरूर सिद्धार्थजी से अट्रैक्शन हो गया था पर तूने मेरी आंखे खोल दी और पता चल गया मुझे की यह लक्ष्य के बीच का सबसे बड़ा रोड़ा है। जिस पर चलती तो बर्बाद हो जाती।

बस अब मेरी एक ही इच्छा है की तू मुझे इतनी शक्ति दे की मैं अपने फैसले खुद लेने के लिए आवाज उठा सकू। इस साल नही तो कभी नही मां, कभी नही।"


"हे गंगा मैया एक तरफ गंगा आंटी नाम तो आपके नाम पर है पर काम शैतानी भरे।

उनके दिमाग से दोनो को एक साथ लाने का भूत जा ही नहीं रहा। दूसरी तरफ कुछ अलग ही चल रहा है। मुझे लगा मैं खुद भाई को अहसास दिलाऊंगा यहां अजीब ही सीन चल रहा है।

दो पागल लोगो के बीच फसा दिया है आंटी ने मुझे जो जानते है की वो एक दूसरे को पसंद करते है फिर भी आंख में चोली खेल रहे है। पछतावा हो रहा है इस प्रोजेक्ट के लिए हा बोलने के लिए मां।

बस विनती है तुझे बस, तुम मेरे मासूम से बॉस यह अहसास दिला दे की वो कितना प्यार करते है रागिनीजी से।

ताकि में अपनी आखरी सास लेने से पहले, रोनाल्डो का ऑटोग्राफ, हैरी स्टाइल का कॉन्सर्ट, दीपिका पादुकोण के साथ एक मूवी, एक ही शादी और आखिरी में मेरे बचपन का सपना औरोरा(नॉर्थन लाइट) देख सकू।"


" हे गंगा मैया, मेरी हालत तुझसे छुपी नही है। चित्रा के बाद मैने किसी को नही देखा आंख उठाकर नही देखा लेकिन आज रागिनी मुझे अपनी और खिंचती जा रही है।

आज तक मैने किसी भी लड़की के साथ कोई भी ऐसे संबंध बनाने की कोशिश नही की जिससे आगे जाकर सिर्फ पछतावा ही बचे। पर आज सब पता होने के बावजूद मैं खुदको रोकने में असमर्थ रहा।

जब तुषार ने मुझसे यह सवाल पूछा की क्या मैं रागिनी को पसंद करता हु‌ मेरा जवाब नही था पर सच तो यह है कि मैं रागिनी को किसी के साथ नही बाटना चाहता, उसे अपने अंदर समा लेने की तड़प मुझे पागल बना रही है। उसके हर एक दिन और रातों पर मे अपना हक चाहता हु… ऑफिशियली! लेकिन मेरी बीमारी मुझे जिंदा नहीं रखेगी और एक दिन मैं सब भुलकर मर जाऊंगा यह ख्याल मुझे सारे ख्यालों को हकीकत में लाने से रोकता है। प्लीज देवी मां कुछ कर, और मुझे रास्ता दिखा ताकि मुझे मरते समय कोई मलाल ना रहे।"


"हे भागीरथी, क्या किस मोड़ पर ले आई है तू मुझे।

सिद्धार्थ मेरे जैसा ही है मां, बस उसका सच खुलेआम है और मेरा राज बनकर छुपा दिया गया है।

माइकल के माता पिता को सच्चाई पता चलने पर उन्होंने हम दोनो की शादी तोड़ दी। इसमें मेरा खुदके मां बाप ही शामिल थे पर उन पर गुस्सा करूं भी तो कितना करूं?

आज जब लगता है सब ठीक होगा, हम मेड फॉर इच अदर है तो फिर यह कोनसा खेल खेला जा रहा है।

उस रात के बाद सिद्धार्थ ना सिर्फ मेरे लिए एक जान बचाने वाला सारथी है बल्कि जाने–अनजाने हम एक ही जिंदगी जीने वाले साथी है।

बस आज तुझसे यही गुजारिश है की गंगा आंटी का प्लान सक्सेसफुल हो जाए। मैं सिद्धार्थ को अपना बनाना चाहती हूं क्योंकि जिंदगी में सिद्धार्थ को अपना बनाना ही मेरे राज को बचा के रख सकता है।"


आरती लेने के बाद चारो गाड़ी की तरफ जाने लगे।

प्रतिक्षा धीरे–धीरे आ रही थी।

तुषार ने उसका कैमरा पकड़ लिया था।

गाड़ी जहा पार्क की वहा अंधेरा था, रोशनी थी तो बस घाट की।

इसी बीच सिद्धार्थ रागिनी से बोला, "चलो मैं तुम्हे घर छोड़ देता हु।"

"नही कोई जरूरत नही है। मैं तुषार के साथ चली जाऊंगी। तुम प्रतीक्षा को लेकर घर जाओ।"

सिद्धार्थ दात पिसते हुए, "Everything's gonna be alright Everything's gonna be okay.

It's gonna be a good, good life that's what my therapists say."

सिद्धार्थ का वही एक गीत जो हमेशा गुस्सा अनकंट्रोल ना हो इसलिए बडबड़ता था।

"अब किस बात का गुस्सा आया तुम्हे?" रागिनी खीजते हुए पूछ उठी।

"इस बात का की हम आपको अपने साथ लेकर जा रहे है?" रागिनी ने आवाज की तरफ मुड़कर देखा एक हसी के साथ तुषार ने जवाब दिया था जिसके बाजू कन्फ्यूज प्रतीक्षा खड़ी थी जिसे इस आपाधापी के बारे में जानकारी नहीं थी।

सिद्धार्थ का गुस्सा यह बात सुन और भी बढ़ रहा था।

तुषार ने बातचीत का भाग ना होते हुए भी अनुमान जो सही लगाया था।

"तुषार चलो ना! मैं कितने देर से तुम्हारा इंतजार कर रही थी।"


चारो गाड़ी पर निकल पड़े।

पूरे सफर में सिद्धार्थ का चेहरा उखड़ा हुआ था।

"कल का पूरा खाना बाहर?" रागिनी ने तुषार से सवाल दागा।

"नही हम 4 से पाच बजे तक वापस आ जायेगे, मैं आपको व्हाट्सएप पर जगहें शेयर कर दूंगा।"

यह बात सुनते ही गाड़ी का गुस्से से ब्रेक जोर से लगाया गया जिससे प्रतीक्षा के माथे को हल्की सी चुभन महसूस हुई।

"सिद्धार्थजी क्या हुआ?" प्रतिक्षा ने अपने दबी सी आवाज में पूछा।

"कुछ नहीं बीच में पत्थर आ गया था।"

रागिनी मन ही मन सिद्धार्थ की हालत देख कर हंस दी।

और आग भड़काने के लिए।

"अरे वाह मुझे तो बहुत पसंद आया प्लान।"

"तुम कल मुझे सुबह पिक करने आ जाना।"

"क्यों नहीं आपके लिए कुछ भी।"

तुषार और रागिनी की इस बातचीत के बाद सिद्धार्थ को तुषार से पूरे ट्रिप का प्लान शेयर करने की बात पहली बार खटक रही थी।

चुप सी बैठी प्रतीक्षा और रागिनी को घर छोड़ने के बाद सिद्धार्थ और तुषार घर की तरफ निकल पड़े।

तुषार ने बात करने की बहुत सी कोशिशे कि लेकिन सिद्धार्थ ने मानो गाड़ी हवा में उड़ा ली थी।

भगवान का शुक्र है कि कोई रॉकस्टार बीच में हाथ दिखाने नहीं आया।

सिद्धार्थ घर पहुंचा और बस सीधा अपने कमरे की तरफ बढ़ गया।

"अरे सिद्धार्थ खाना खा ले।"

"नही भूख नही।" सिद्धार्थ ने उखड़े मुंह जवाब दिया।

"तू खायेगा या, तुझे भी भूख नही?"

"अरे जबरदस्त भूक लगी है।"

तुषार ने प्लेट ली आज बैगन का भरता और रोटी चावल बना था।

तुषार ने एक बार फिर खाना खाते हुए पूरे दिन का ब्यौरा दिया।

रागिनी का दिया गया whatsapp no.

उसका सिद्धार्थ को फॉलो करने का ऑर्डर ।

सिद्धार्थ को जलाने की सफल कोशिश और आखिरकार सिद्धार्थ से पूछा सवाल भी।

"मैने भाई से पूछा क्या रागिनीजी आपको पसंद है?"

"सच में! तूने ऐसा पूछा फिर उसने क्या जवाब दिया?"

"क्या जवाब देना था, उन्होंने सीधा नही ऐसा जवाब दिया।"

यह बात सुनकर गंगा को अपने बेटे पर निराशा महसूस हुई।

पर यह जानकर खुशी हुई कि रागिनी सिद्धार्थ को पसंद करने लगी है।

फ़िर भी उन्होंने कहा, "तू हार मत मान दोनो को मिलाने के मिशन में लगा रह।"

तुषार इस बात से, थोड़ा चिड़चिड़ासा हो गया।

लेकिन उसकी जिज्ञासा ने उसके गुस्से को काट डाला।

"आप बुरा नही मानेगी तो एक सवाल पूछे?"

"हा! वो तेरे सवाल पर निर्भर करता है।" गंगा बचते बचाते हुए बोल उठी।

"कोई रागिनी पूरे बनारस में एक ही लड़की तो नही है, जो आप भाई की शादी उससे करने के लिए बैचन हो रहे हो, आप भाई की शादी किसी भी लड़की से करवा सकते हो फिर रागिनी ही क्यों? और दूसरी तरफ भाई तो शादी भी तो नही करना तो फिर क्यों यह जबरदस्ती?"

तुषार की इस बात से गंगा को कोफ़्त (दुःख) महसूस हुआ लेकिन गुस्सा करने के बजाए वो उदास होकर सोफे पर बैठ गई।


एक खत लिखकर जब उसने खुदकी होने वाली शादी तोड़ दी उस दिन हमारा बेहत अपमान हुआ।

उस रात सिद्धार्थ देर रात घर वापस आया....