तीनों का समय समाप्त होने को आया था सजक हो गए तिन्हो|
बाकी दो तो बाहर आ गए लेकिन तुषार वही कुछ देर अपने भाई के साथ बिताना चाहता था।
जो भी चीजे गंगा ने मेल नर्स को दी थी वह कोई सिद्धार्थ के अकेले के हिस्से में आने थोड़ी वाली थी|
वह सब में बाटी जाति और कुछ बचा हुआ सिद्धार्थ को मिलता| उसको वो चीजे मिलने पर भी गोलियों को स्वाद उसे फीका ही तो कर देती| तो उसका लाभ खुद क्यों ना उठाया जाए?
इस बात का कैलकुलेशन पहले से ही नर्स ने कर-कर रखा था कौन सी ऐसी चीज उन्हें रोज-रोज खाने को मिलती।
तो सिर्फ वही व्यक्ति ही क्यों उसका लाभ उठाएं जिस व्यक्ति को उसके स्वाद का पता भी ना चले।
नर्स ने बहुत खुशी के साथ वह चीज खुद के पास रख ली|
नारायणजी डॉक्टर से मिलने अंदर गए।
तुषार वही सिद्धार्थ के पास बैठा रहा।उसने अपने साथ लाई हुई चीज मेल नर्स के साथ थमा सकता था लेकिन यहां के "मोबाइल प्रोहिबिटेड वातावरण" को देखते हुए उसने उस चीज को सिद्धार्थ के कपड़े के अंदर छुपाना ही सही समझा।
"क्या बोले जी डॉक्टर?" गंगा ने डॉक्टर के केबिन से हताश होकर बाहर निकले नारायणजी से पूछा|
"कुछ नहीं सिद्धार्थ की तबीयत ठीक होने में दो से तीन दिन लग जाएंगे। उसके बाद वह उसे बाकी लोगों में शामिल करने की कोशिश करेंगे। वह बोल रहे थे ऐसे मरीजों को वक्त लगता है।"
"वक्त मतलब! 6 महीना काफी नहीं है क्या जी?"
"उन्होंने इस बात की कोई गारंटी नहीं दी है।" नारायणजी बेहत ही खेद के साथ बोल उठे|
"6 महीने में बस वो बोलने लायक इंसान होगा, बाकी सब भगवान के ऊपर है, ऐसा ही कहा क्या डॉक्टर साहब ने ?" गंगाजी ने बात पूरी बताए बगैर ही समजदारी पूर्ण वाक्य पेश किया|
गंगाजी का मन फिर से एक बार रोने लगा। लेकिन वह कितनी दफा रोए। अब तो आंसू भी बाहर निकालना भूल चुके थे मानो। बस दुःख अंदर से दिल को कमजोर कर रहा था|
"चलिए जी चलते हैं? सोच रहे थे माता के मंदिर में मन्नत मांग कर आए। वह सब देखते रहती है। मेरे सिद्धार्थ को भी वही ठीक करेंगी।"
"तुषार कहां है?"नारायण जी ने तुषार की अनुपस्थिति भांपते हुए पूछा।
"वो अपने भाई के साथ कुछ अकेला वक्त बिताना चाहता था। इसलिए हम नर्स बापू की परमिशन मांग उसको अंदर ही छोड़ आए।"
तुषार,तुषार! नारायण जी ने आवाज लगाई
आवाज लगते ही जैसे तुषार के रोंगटे खड़े हो गए।
उसने नारायणजी को जवाब दिया और उसी के साथ लिखना बंद कर दिया और पेन को अपनी जेब में रखा।
उसके बाद जो चीज वह सिद्धार्थ को देने जा रहा था उसे उसके कपड़ों में अंदर तक धकेल दिया, सूटकेस बंद कर दिया और बाहर चला आया।
नारायणजी ने जब तुषार को दो बार आवाज लगाई तब तुषार का जवाब "मैं आता हूं" ऐसा ही सुनाई दिया।
जवाब पाकर नारायणजी ने गंगाजी से कहां, " गाड़ी निकालने जा रहे हैं, तुषार का हो जाए तो उसको साथ लेकर आना।"
इतना बोल वह पार्किंग एरिया की तरफ बढ़ गए।
कुछ देर बाद तुषार बाहर आया, "मिल लिए अपने भाई से?"
"हम्म! अब पता नहीं कब अगली डेट मिले।"
"हां वह बात सही है तुम्हारी, चलो चलते हैं। घर में चलकर दाल बाटी बना देंगे।"
आखिरकार तीनों रिहैबिलेशन सेंटर से निकल गए।
दूसरी तरफ, रागिनी अपने शैक्षणिक स्तर पर आगे बढ़ रही थी।
बहुत जल्द वह अपने इंटर्नशिप खत्म कर ही लेंगी। हो गए, दो प्रीलिम्स में वह टॉप थी।
यह जानकर माइकल भी काफी खुश था।
रागिनी अब धीरे-धीरे सिद्धार्थ के बारे में थोड़ा काम सोचा करती थी।
याद आने पर भी वह खुद को अपनी पढ़ाई में या फिर बाहरी दुनिया में गुम कर देती।
ऐसे कितने तो भी दिन हुए होंगे, जहां उसे लंदन का एक-एक कोना पता चल गया था जो 5 साल लंदन में रहने के बावजूद भी नहीं पता चला था।
जब भी कभी सिद्धार्थ की याद आए तो या फिर पढ़ाई या फिर बाहर टहलने चले जाना, अपने साथी माइकल के साथ।
इस कारण दोनों की दोस्ती और भी गहरी होती जा रही थी।
रागिनी दिन जैसे तैसे कर निकाल देती लेकिन रात कभी उसे सिद्धार्थ का जिक्र भूलने नहीं देती।
क्योंकि कुछ कड़वी यादें उसे अभी भी नींद में परेशान कर उठा देती थी। उसमें से एक गहरी याद तो वह रात थी जिस रात में उसने अपना सब कुछ खो दिया था।
उसी एक दिन के कारण ही आज उसका हाल यह था कि उसकी जिंदगी मौत और जीवन का एक संघर्ष बन चुकी थी।
सिद्धार्थ अगर उसे उस दिन नही बचाता तो शायद वह जिंदा भी ना होती। वह काली यादें जाने अनजाने में ही सही उसे सिद्धार्थ की तरफ खींच लें जाती।
उसके साथ हुए हादसे के बाद 4 दिन में ही पुलिस ने उन बदमाशों को पकड़ लिया और गुनाह कबूल भी करवा लिया था।
लेकिन इस बात से उसके शरीर के जख्म तो भर गए कुछ दिनों में, परंतु मन के जख्म अभी भी नही भर पाए।
उस पर से भी उसे उन लोगों के साथ रहना पड़ा जिन लोगों ने कभी उसे अपना माना ही नहीं।
जिस जिसने उसे अपना माना उसने उसे बीच में ही छोड़ दिया।इस कारण वह विश्वास और अंधविश्वास के घेरे में वह फस चुकी थी।और इतना अंदर धस गई कि शायद आज उसे जिंदा रहने के लिए उन दो टैबलेट्स की जरूरत पड़ती है जो उसे वास्तविकता की पहचान करवाए।
लेकिन वह इन सब में भी हार नहीं मनाना चाहती थी।
सिर्फ सिद्धार्थ ही उसके आगे बढ़ने का मोटिवेशन नहीं था वह बोला गया झूठ भी था जो उसने औरों से छुपा कर रखा था अगर इन दो टैबलेट्स की बात बाहर आ गई तो शायद ही वह कभी डॉक्टर रागिनी ना बन पाए।
दो दिनों में ही खबर आई।
सिद्धार्थ होश में आ गया था।
गंगा जी ने तो यह खबर मिलते ही, भगवान के आगे शक्कर राखी भगवान को धन्यवाद माना।नारायण जी ने डॉक्टर से बात करने की रिक्वेस्ट की।
"पर वो दो दिनों के लिए बाहर किसी काम से गए है।
उसके बाद कर लीजिएगा बात।" ऐसा जवाब आया।
"वो अभी ठीक है, अब थोड़ा हल्का फुल्का खाने को दिए है।गोलियां भी चल रही है। जल्द ही ठीक हो जायेगे सिद्धार्थ आप सिर्फ भरोसा रखिए।"
रिस्पेशनिस्ट के जवाब के बाद, नारायण जी को तसल्ली तो नहीं हुई लेकिन भरोसा था कि सिद्धार्थ अभी ठीक है।
तुषार भी यह जानकर खुश था की, भाई होश में आ गया।
यह बात उसे खाने के टेबल पर पता चली जब, बालू शाही और आदि खाने के दर्शन हुए।
दो दिनों से सिर्फ खिचड़ी खा उसका दिल भी ऊब गया था।
लेकिन, ऐसी अवस्था में खुदके विचार सामने रखना ठीक भी तो नहीं लगता। इस बात का लिहाज होने के कारण वो गटक जाता जो मिले वो।
जो उसके शरीर के लिए पर्याप्त तो नही होता, लेकिन नौकरी की खोज में दिनभर थक हार जाने पर बिना कोई मेहनत किए हुए कुछ मिल जाना भी किसी अमृत से कम नहीं था।
तुषार ने अपने सेविंग के खत्म होने के चलते और यह बात जानते हुए की वो मां बाप को अकेला नहीं छोड़ सकता,उसने बनारस में ही नौकरी ढूंढना शुरू कर दिया था।
मास मीडिया की डिग्री थी उसके पास।और वीडियोग्राफी का बड़ा सा हुनर भी लेकिन उसके बावजूद भी उसे पहली बार निराशा का सामना करना पड़ रहा था।
इंडिया इस नॉट फॉर बिगिनियर।