Domnik ki Vapsi book and story is written by Vivek Mishra in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Domnik ki Vapsi is also popular in प्रेम कथाएँ in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
डॉमनिक की वापसी - उपन्यास
Vivek Mishra
द्वारा
हिंदी प्रेम कथाएँ
वो गर्मियों की एक ऐसी रात थी जिसमें देर तक पढ़ते रहने के बाद, मैं ये सोच के लेटा था कि सुबह देर तक सोता रहूँगा। पर एन उस वक़्त जब नींद सपने जैसी किसी चीज से टेक लगाकर रात काटना शुरू करती है....
फोन की घन्टी बजी। अजीत का फोन था।
कुछ हड़बड़ाया हुआ, ‘भाई, दीपांश का पता चल गया। वो मध्य प्रदेश में शिवपुरी के पास एक छोटे से कसबे, क्या नाम था…, हाँ, नरवर में था’
मैंने आँखें मलते हुए पूछा, ‘था मतलब?’
वो गर्मियों की एक ऐसी रात थी जिसमें देर तक पढ़ते रहने के बाद, मैं ये सोच के लेटा था कि सुबह देर तक सोता रहूँगा। पर एन उस वक़्त जब नींद सपने जैसी किसी चीज से टेक लगाकर ...और पढ़ेकाटना शुरू करती है....
फोन की घन्टी बजी। अजीत का फोन था।
कुछ हड़बड़ाया हुआ, ‘भाई, दीपांश का पता चल गया। वो मध्य प्रदेश में शिवपुरी के पास एक छोटे से कसबे, क्या नाम था…, हाँ, नरवर में था’
मैंने आँखें मलते हुए पूछा, ‘था मतलब?’
उस दिन खंजड़ी बजाते हुए, छाती चीर के दिल में धंस जाने वाली आवाज़ में गा रहे थे, डॉमनिक दादा। उनके पीछे थे रूपल, उत्कर्ष, निशा, हरि और निशांत। साथ में उत्तेजना में और भी कुछ गिनी-चुनी मुट्ठियाँ गीत ...और पढ़ेबोलों के साथ आसमान में उठ रही थीं। यहाँ सवाल गरीबी, बेरोजगारी या भ्रष्टाचार का नहीं था। सवाल जाति, धर्म, या देश में बदलती राजनीति का भी नहीं था। यहाँ सवाल था प्रेम का, प्रेम के अधिकार का, पर यहाँ जैसे उसका हर सोता सूख गया था। उसके बारे में सोच के भी सिहर जाते थे, लोग। महीने भर के भीतर यह तीसरी हत्या थी।
डॉक्टरों के राउन्ड के बाद हम कमरे में दाखिल हुए तो आँखों को विश्वास नहीं हुआ। न डॉमनिक की भूमिका निभाने वाले दीपांश जैसा गोरा रंग, न वे चमकदार दूर से ही बोलती आँखें। ये तो जैसे उससे मिलता-जुलता ...और पढ़ेऔर आदमी था। सिर पर पट्टी बंधी थी। गहरी चोट थी। बहुत खून बह गया था। अभी भी बड़ी हुई दाड़ी के कुछ बालों में खून लगा था। लोगों ने बताया था कि चोट से दिमाग के अन्दरूनी हिस्सों में कितना नुकसान हुआ है, वह कल सुबह सी.टी. स्कैन की रिपोर्ट आने पर ही पता चलेगा।
दीपांश के चेहरे पर शान्ति थी। वह इस एक साल में बहुत बदल गया था। हमें देखते ही हल्के से मुस्करा दिया, वही पुरानी परिचित मुस्कान.
सुबह आँख खुली तो लगा की नींद तो पूरी हुई पर सफ़र की थकान से अभी भी देह टूट रही है। लॉज के जिस कमरे में, हम रात में आके सो गए थे वह उसके पहले माले पर था। ...और पढ़ेकोई खिड़की नहीं थी और दीवारें सीली हुई थीं। शायद इसीलिए हम जागते ही ताज़ी हवा के लिए अपने कमरे से हॉल में आए और वहाँ से उससे जुड़ी बालकॉनी में।
सड़क के दोनों ओर दुकानें, दुकानों के माथे पर लटकते आढ़े-टेढ़े बोर्ड, बोर्डों पर दुनिया ज़हान के विज्ञापन, विज्ञापनों में आँखों में आश्चर्य और चेहरे पर चिर स्थाई मुस्कान लिए झांकती कुछ देश-विदेश की महिलाएं।
अजीत से ‘डॉमनिक की वापसी’ में डॉमनिक का किरदार निभाने वाले दीपांश से मिलने की इच्छा ज़ाहिर किए हुए अभी दो-तीन दिन ही बीते होंगे कि एक रात साढ़े दस-ग्यारह बजे के बीच जब मैं अपने कमरे पर अकेला ...और पढ़ेथा और बड़े उचाट मन से दिल्ली प्रेस से मिली एक बेहूदा सी परिचर्चा का अन्तिम पैरा लिखकर उससे निजात पाने की कोशिश कर रहा था, कि किसी ने कमरे का दरवाज़ा खटखटाया। दरवाज़ा खोला तो सामने अजीत खड़ा था और उसके साथ था, दीपांश, ‘डॉमनिक की वापसी’ का ‘डॉमनिक’।