Domnik ki Vapsi - 19 books and stories free download online pdf in Hindi

डॉमनिक की वापसी - 19

डॉमनिक की वापसी

(19)

बैटरी ख़त्म होने को आई थी पर स्टूल पर रखे फोन की घंटी बजती जा रही थी. खिड़की से आती धूप बिस्तर को छूती हुई फर्श पर फैल गई थी. भूपेन्द्र दीपांश को कई बार उठाने की कोशिश कर चुका था. अबकी बार उसने ज़ोर से झिंझोड़कर उठाया. तब तक फोन बजना बंद हो गया और एक बीप के साथ ऑफ हो गया. दीपांश ने आँखें खोलीं तो खिड़की के शीशे से टूटके बिखरती धूप आँखों में चुभती-सी लगी. सर चटक रहा था.

‘शिमोर्ग सुबह से कितनी बार फोन कर चुकी है.’ भूपेन्द्र ने अपना बैग उठाकर कंधे पर डालते हुए कहा.

दीपांश ने कोई उत्तर नहीं दिया. फिर जैसे कुछ याद आया हो, ‘और किसी का फोन भी था?’

‘हाँ किसी रेबेका का फोन था.’ भूपेन्द्र ने बड़ी लापरवाही से कहा और दरावाज़ा बंद करके सीढियां उतरता चला गया.

दीपांश ने एक झटके से उठते हुए ऑफ हो चुका मोबाइल उठाया. हड़बड़ी में चार्जर ढूँढ़ के कनेक्ट किया. कल रेबेका से क्या-क्या बातें हुई दीमाग पर बहुत जोर डालने पर भी याद नहीं आ रहा था. बस यही याद था कि उसने इति की फोटो रेबेका को दी थी. मोबाइल ऑन होते ही अंदाज़े से जो आख़िरी कॉल अटेंड हुई थी, जो शायद भूपेन्द्र ने सुनी होगी, पर डायल कर दिया. अंदाज़ा सही निकला. रेबेका का ही नंबर था. रिंग जाते ही फोन उठा लिया गया.

उसने बिना किसी औपचारिकता के सीधी सूचना दी, ‘लड़की अभी बची हुई है. मतलब ज़िन्दा भी है और अभी तक बाज़ार नहीं पहुंची है. दोपहर तक पता भी बता दूंगी. पुलिस की मदद के बिना कुछ नहीं हो पाएगा. किसी भरोसे के आदमी की ही मदद लेनी होगी.’

दीपांश को यूँ इति के बारे में यह जानकारी मिल जाने से ज्यादा आश्चर्य रेबेका के व्यक्तित्व और काम करने के तरीके पर हो रहा था. कल रात उससे हुई मुलाक़ात को याद करके उसे लग रहा था एक शहर के भीतर कितने शहर रहते हैं. जिन सड़कों-गलियों से कभी हम यूँ ही गुज़र जाते हैं वे अपने भीतर कितने राज़ जब्त किए ख़ामोश बैठी होती हैं. रेबेका की बातें एक रहस्य थीं पर और किसी तरह इति के बारे में कुछ भी पता नहीं चल रहा था. इसलिए दीपांश ने एक आखिरी उम्मीद की तरह ये जानकारी रमाकांत और इति की माँ से साझा की थी.

उसकी खबर और पता दोनों ही सही निकले थे. इति के साथ पुलिस ने मजनू का टीला इलाक़े की एक पुरानी दो मंज़िला इमारत से तीन और लड़कियों को छुड़ाया था, उनमें से दो को पंजाब से और एक को उड़ीसा से लाया गया था. इमारत से चार आदमियों को गिरफ्तार किया गया था. इति इतनी डरी हुई थी कि उसने किसी के खिलाफ़ कोई बयान नहीं दिया था. बस इतना ही बताया था कि उसे जबरन धकेल कर गाड़ी में बिठाकर किसी अनजान जगह पर ले जाया गया था. जहाँ पानी में मिली किसी दवा की मदद से बेहोश कर दिया गया था. इति और उसकी माँ से कहने के लिए, उन्हें ढांढस बंधाने के लिए किसी के पास कोई शब्द नहीं थे. माँ ने उसे वापस अपने साथ पटना ले जाने का निर्णय लिया था. रमाकांत और दीपांश के बहुत पूछने पर भी उसने इतना ही कहा था कि वे जो भी हैं बहुत ताक़तवर हैं और वो उनसे नहीं लड़ सकती. जब दीपांश ने पूछा कि उसे अपने किसी जानकार पर संदेह है तो वह बिना कुछ कहे फूटफूटकर रो पड़ी थी. दरअसल इति मिल तो गई थी पर असली इति खो गई थी.

इस घटना के बाद रमाकांत और दीपांश ने ख़ुद को सेतिया की फ़िल्म से अलग कर लिया था. वे नाटक के मंचन से भी उसे अलग ही रखने की बात विश्वमोहन से कह चुके थे पर ग्रुप का सेतिया की कंपनी से पहले ही क़रार हो चुका था जिसके चलते सभी सदस्य पचासवें शो तक पहले की ही तरह उसमें काम करने को बाध्य थे. विश्वमोहन और शिमोर्ग अभी भी सेतिया की फ़िल्म से जुड़े हुए थे. उन्होंने बिगड़े हुए हालात को सामान्य करने के लिए और सभी को यह समझाने के लिए कि इति के गायब होने में सेतिया या उसके किसी आदमी का कोई हाथ नहीं था, मिसेज भसीन से ग्रुप के सभी सदस्यों से बात करने के लिए कहा था. पर मिसेज भसीन ने बहुत पहले से ही इस मामले से अपना पल्ला झाड़ लिया था. वैसे भी वह इस बीच छतरपुर इलाके के एक नए फार्म हाउस में लड़कियों के लिए किए जाने वाले ब्यूटी कॉन्टेस्ट की तर्ज़ पर लड़कों के लिए की जा रही एक ऐसी ही प्रतियोगिता को आयोजित करने में व्यस्त थीं और इन दिनों संजू उस आयोजन का मुख्य संयोजक बना हुआ था.

रमाकांत के सेतिया की फ़िल्म से खुद को अलग कर लेने की सूचना उनके घर पर एक बुरे और दुर्भाग्यपूर्ण समाचार के रूप में पहुँची थी जिससे उनके घर में कलह पहले से और बढ़ गई थी. उनकी पत्नी अभि कई बार घर छोड़ के जाने की धमकी दे चुकी थीं. पहले ही अभिनय की दुनिया के बारे में उनके मन में ढेरों पूर्वाग्रह थे जो अब समय के साथ और पुख्ता होते जा रहे थे. वह अपने बेटे और उसकी पढ़ाई के दिनोंदिन बढ़ते जाते खर्चे को लेकर खासी चिंतित रहती थीं. वह अपने बेटे को ज़िन्दगी भर अभिनय और कला की दुनिया से दूर रखने की कसम खा चुकी थीं. रमाकांत की माँ यह सोचकर की रमाकांत के दिमाग पर किसी बुरी हवा का असर है, पहले से और ज्यादा टोना-टोटका करने लगी थीं. पर इस बार रमाकांत निर्णय ले चुके थे. उन्हें पूरा भरोसा था कि इस शो के बाद इस नाटक को आगे ले जाने के लिए सेतिया की कंपनी के बिना भी उससे इतर और प्रायोजक मिल सकते हैं. खर्चे की खाई को पाटने के लिए भी वे दिन में दो घंटे किसी स्कूल में ड्रामेटिक्स की क्लासिस लेने लगे थे.

इसी सबके बीच दीपांश और शिमोर्ग के अबोले के साथ ही प्ले की रिहर्शल चल रही थी. सैकड़ों बार दोहराए जा चुके प्रेम के संवाद बोलना एक चुनौती बन गया था. अभिनेता नाटक के भीतर और बाहर अपनी क्षमता भर अभिनय करते हुए शो की तैयारियों में लगे थे...

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