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युगांतर - उपन्यास
Dr. Dilbag Singh Virk
द्वारा
हिंदी सामाजिक कहानियां
हर अन्याय का अंत होता है, ग़लत कार्य करने वालों को सज़ा मिलती है। देर हो सकती है, लेकिन अंधेर नहीं चलता। गलत पर सत्य की जीत ही असली युगांतर होता है। इस उपन्यास में नशाखोरी राजनीति की शह पाकर फलती-फूलती है, लेकिन अंत इस उम्मीद से होता है कि युगांतर आ रहा है। धरातल पर यह अभी सपना है और युगांतर की उम्मीद हर कोई कर रहा है।
शहर से दूर, गाँव से बाहर, महलनुमा हवेली यादवेन्द्र की है। यह सिर्फ भूगौलिक रूप से ही गाँव व शहर से अलग नहीं है, बल्कि सामाजिक रूप से भी यह गाँव और शहर से कटी हुई है। क्यों कटी ...और पढ़ेहै ? शायद इसका कारण यही है कि समाज उनके लिए है, जो समाज के लिए हैं। जो समाज के विषय में नहीं सोचते, समाज उनके विषय में क्योंकर सोचे, लेकिन यादवेन्द्र को इसकी कोई चिंता नहीं। लोग उसके बारे में क्या सोचते हैं, इसकी उसे परवाह नहीं। वह तो अपनी धुन में मस्त है। वह अपने ढंग से कमाता
शिक्षा तो तपस्या है और तपस्या करनी ही पड़ती है, खरीदी नहीं जाती। धन पुस्तकें खरीद सकता है, ज्ञान नहीं। हाँ, कभी-कभार डिग्रियाँ भी पैसे के बल पर मिल जाती हैं, लेकिन डिग्रियाँ प्राप्त करने और शिक्षित होने में ...और पढ़ेका अन्तर है। जो लोग डिग्रियाँ खरीदते हैं, उनकी तो छोड़ो, जो पढ़कर डिग्रियाँ हासिल करते हैं, वे भी सारे-सारे शिक्षित हो गए हों, ऐसा नहीं होता। यदि किसी को सिन्धुघाटी, न्यूटन, त्रिकोणमिति आदि का ज्ञान है, तो इसका अर्थ यह नहीं कि वह बुद्धिमान है। परीक्षा में अंक प्राप्त करना और जीवन में सफल होना दो अलग-अलग बाते हैं।
स्कूल के अध्यापक को फटकारने के उद्देश्य से वह अगली सुबह स्कूल जा धमका। शिष्टाचार की रस्म को निभाना न तो बेटे ने उचित समझा और न ही बाप ने। मास्टर जी तब बैठे काम कर रहे थे। प्रतापसिंह ...और पढ़ेपास जाकर गरजे, "आपने मेरे बेटे को क्यों मारा?"मास्टर जी ने यादवेन्द्र की तरफ देखा, जो अपने पिता की ऊँगली पकड़े मुस्करा रहा था और फिर प्रतापसिंह को ओर देखते हुए बोले, "एक तो यह कभी भी घर से स्कूल का काम करके नहीं लाता, दूसरा इसने कल एक लड़के को मारा।""तो बच्चों की लड़ाई में आपको दखल देने की
जब जवानी का जोश और अमीरी का नशा हो, तब पढ़ना कौन चाहेगा? फिर यादवेन्द्र के लिए तो यह पढ़ाई आफत के सिवा और कुछ थी ही नहीं, इसलिए उसका बैल के सींग पकड़ना दुश्कर ही लग रहा था ...और पढ़ेउसने यह दुस्साहस भी कर ही लिया, क्योंकि उन दिनों 2 स्कूल और कॉलेज दोनों में होती थी और उसने सुन रखा था कि कॉलेज में स्कूलों की तरह न पढ़ने पर मार नहीं पड़ती, अनुशासन भी उतना सख्त नहीं होता और इसी बात को ध्यान में रखते हुए, उसने 10 1 के लिए कॉलेज में दाखिला ले लिया। कॉलेज
कॉलेज के चुनावों में आम चुनावों अर्थात लोकसभा, विधानसभा, नगरपालिका, पंचायत आदि के चुनावों की तरह वोट खरीदे नहीं जाते, क्योंकि कॉलेज के विद्यार्थी जागरूक होते हैं। वे वोट बेचने को अपनी शान और अपने अधिकार दोनों के खिलाफ ...और पढ़ेहैं, लेकिन कॉलेज के चुनावों पर भी अन्य चुनावों की तरह ही खूब खर्च होता है, क्योंकि वोटरों के लिए पार्टियों आदि का आयोजन होता है, इस प्रकार अप्रत्यक्ष रूप से वोट खरीदे जाते हैं। कुछ उन पागल विद्यार्थियों का, जो दूसरी पार्टी के समर्थक हैं, अपहरण भी करना पड़ता है। अपहृत किए हुए विद्यार्थियों से बुरा व्यवहार करना कॉलेज