युगांतर - भाग 18 Dr. Dilbag Singh Virk द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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युगांतर - भाग 18

यादवेंद्र के मन मुताबिक भूमिका बन चुकी थी या कहें कि जितना उसने सोचा था, उससे बेहतर प्लेटफार्म उसे मिल चुका था। वह भी रमन के पीछे ही चल पड़ा। रसोईघर के पास जाकर उसने पानी माँगा और साथ ही कहा, "रमन! मैं सोच रहा हूँ कि हम बेटी गोद ले लें।"
"क्यों, मुझे नहीं पालना किसी का बच्चा।" - रमन ने हैरानी और गुस्से भरे लहजे में कहा। थोड़ा चुप रहकर वह फिर बोली, "बच्चा गोद तो वे लें, जिनके अपने बच्चा न होता हो। हमारे तो बेटा है। अगर दूसरा बच्चा चाहिए तो वह अपना होगा। ऐसे नहीं कि दूसरा बच्चा कहीं से भी उठा लाएँ। फिर गोद लिया बच्चा अच्छे घर का तो होगा नहीं। न जाने किसकी नाजायज औलाद हो। हम क्यों पालें ऐसे बच्चे को।"
"तुम तो भड़क ही गई। बच्चा बच्चा होता है। कोई भी बच्चा नाजायज नहीं होता। नाजायज तो माँ-बाप होते हैं। बच्चे का क्या कसूर। वह तो भगवान की देन है। ऐसे बच्चों को तो ज़रूर अपनाना चाहिए।"
"मुझे नहीं करनी ऐसी समाज सेवा।" - रमन ने बात को सिरे से खारिज करते हुए कहा।
रमन की पहली प्रतिक्रिया ऐसी ही होगी, इसका अंदाज़ा यादवेंद्र को था और जब इंकार का अंदाज़ा हो तो झटका नहीं लगता। झटका तब लगता है, जब हम किसी से बहुत उम्मीद लगाकर रखते हैं और वह दो टूक जवाब दे देता है।
पहले से अंदाजा होने का फायदा यह भी था कि यादवेंद्र आगे की योजना पहले से बनाए हुए था या कहें कि असली योजना तो उसने पहले बताई ही नहीं थी। पहली बार तो वह सिर्फ बच्चा गोद लेने को लेकर रमन की सोच को देखना चाहता था और जानना चाहता था कि उसकी प्रतिक्रिया कैसी है। यादवेंद्र रमन की प्रतिक्रिया से निराश नहीं, उत्साहित ही था क्योंकि रमन का विरोध इस बात को लेकर ज्यादा था कि बच्चा न जाने किसका होगा। बच्चा अच्छे घर का है, यह बात रखने पर उसका इरादा बदल सकता है, ऐसी उम्मीद यादवेंद्र को दिख रही थी, वह बड़े प्यार से बोला, "पहले बात तो पूरी सुना कर।"
"इसमें पूरा और आधा क्या है। जब अपने बच्चा हो सकता है, तो हम किसी का बच्चा क्यों गोद लेंगे।"
"अपने बच्चे का तो यही रिस्क कि दूसरा भी बेटा हो सकता है जबकि मुझे दूसरे बच्चे के रूप में बेटी चाहिए।" - यह कहते हुए यादवेंद्र सोच रहा था कि वह कितना भाग्यशाली है, जो शांति ने बेटी को जन्म दिया है। अगर उसने बेटे को जन्म देता तो वह क्या तर्क देता।
"मुझे समझ नहीं आ रही कि आपको ये ख्याल आया कैसे?" - रमन यादवेंद्र की बात का कोई उचित उत्तर न पाकर इस प्रश्न के उठने पर प्रश्न उठाती हुई बोली।
"हर ख्याल के पीछे कोई कारण तो होता है।" - रमन ने गहरा श्वास लेते हुए कहा।
"मैं समझी नहीं?" - रमन ने प्रश्न किया।
"दरअसल बात यह है कि हमारी पार्टी के एक वर्कर और उसकी पत्नी का एक्सीडेंट में देहांत हो गया। कहते हैं ना 'जिसको राखे साईं, मार सके न कोई'। बस ऐसे ही इस भयानक एक्सीडेंट में उनकी तीन माह की बच्ची बच गई। समझ नहीं आ रहा था कि उसका क्या होगा, लेकिन दूसरे बच्ची को लेकर अपनी जो बातचीत हुई उससे ख्याल आया कि हम उसे गोद ले सकते हैं।
"अब कहाँ है वह?" - रमन का विरोधी रुख छूमंतर हो चुका था। यादवेंद्र उसके दयालु स्वभाव को जानता था। इसी का लाभ उठाते हुए उसने कहा, "फिलहाल तो वह मंत्री जी के फॉर्महाउस पर है। पार्टी की एक वर्कर ही उसे संभाल रही है, लेकिन वह अविवाहित भी है और नौकरी भी करती है। वह कितने दिन उसे संभालेगी। हमने उसे अनाथालय में भेजने का सोचा था, लेकिन इसके बाद उसका क्या बनेगा, यह राम जाने लेकिन अगर वह तुम्हारे पास आ जाएगी तो उसकी ज़िंदगी संवर जाएगी।
"ओह्ह..." - रमन ने लंबी श्वास छोड़ी, साथ ही कहा, "उसके दादा-दादी, नाना-नानी तो होंगे।"
"कोई नहीं है।"
"ऐसा कैसे हो सकता है।"
"उन्होंने घरवालों की मर्जी के खिलाफ प्रेम विवाह किया हुआ था। अब वे क्यों अपनाएँगे उनकी बच्ची।" यादवेंद्र ने स्पष्टीकरण दिया, साथ ही रमन को इमोशनली ब्लैकमेल करते हुए बोला, "चलो जो उसकी किस्मत, क्या पता उसे कोई ज़रूरतमंद माँ-बाप ही गोद ले ले और अगर कोई गोद नहीं लेगा तो वो कौन सा पहली बच्ची है, जो अभागिन हो।"
यादवेंद्र के इस प्रहार का त्वरित असर हुआ। रमन ने अपना इरादा बदलते हुए कहा, "अगर ऐसा है तो हम गोद ले लेंगे।"
"सोच ले, इतनी जल्दी फैसला लेने की ज़रूरत नहीं। अगर दिल और दिमाग दोनों कहें तभी निर्णय लेना। कई बार भावुक होकर लिया निर्णय बाद में परेशान करता है। अगर बाद में तुझे पछतावा हुआ तो उस बच्ची का छोड़ो, तुम्हारे लिए ही मुश्किल खड़ी हो जाएगी।" - यादवेंद्र ने ऐसा दिखाया, जैसा इस मामले में उसकी व्यक्तिगत रूचि नहीं।
"आप क्या समझते हो, बाद में मैं उसे अपनी बेटी न मानूँगी। मुझे नहीं पता था कि आप ऐसी बच्ची की बात कर रहे हैं वरना मैं पहले ही हाँ कर देती, लेकिन अभी भी देर नहीं हुई। हम कल ही बच्ची को गोद लेंगे। पूरी कानूनी कार्यवाही के साथ।"
"सोच लो।"
"सोच लिया, बस हम कल चलेंगे और गोदनामा भी लिखवाएँगे।
"ठीक है पर गोदनामा किससे लिखवाना। उसके माँ-बाप तो हैं नहीं। और न ही आगे-पीछे कोई और है। फिर गोदनामा से तो वह गोद ले बेटी बनेगी और हम या तो उसे अपनी बेटी ही बनाएँगे या हम उसे घर नहीं लाएँगे।
"गोदनामे का तो मैं ऐसे ही कह रही थी। जब बेटी को लाऊँगी तो वह मेरी बेटी ही होगी, यशवंत से भी बढ़कर अपनी।"
"ठीक है, मैं मंत्री जी को सूचित कर देता हूँ।"
यादवेंद्र मन ही मन अपनी चाल पर इतरा रहा था। शांति को फोन कर दिया गया। अगले सुबह वे मंत्री जी के फॉर्महाउस पहुँचे। रश्मि को देखकर रमन धन्य हो गई। शांति पर उसने विशेष ध्यान ही नहीं दिया, नहीं तो शक हो सकता था कि वह ही प्रसूता है। वैसे भी शक वे करते हैं जिनके खुद के मन मे खोट होता है, जो खुद पाक-साफ होते हैं, उनको सभी पाक-साफ ही दिखते हैं। बच्ची को शुरु से ही माँ का दूध नहीं पिलाया गया था क्योंकि माँ-बेटी को अलग-अलग करना है, यह तो निश्चित था ही। शांति बच्ची रमन को सौंप कर दूसरे कमरे में चली गई। अपने भविष्य के लिए, अपनी ईज्जत को बनाए रखने के लिए बेटी का मोह छोड़ना ज़रूरी था, मगर यह इतना आसान न था। कहीं आँसू राज़फाश न कर दें, इसलिए उसका बच्ची से दूर हो जाना जरूरी था।
बच्ची को घर लाने से पहले रमन उसे लेकर गुरुद्वारा साहिब में गई, अरदास करवाई और घर लाकर नौकरों को मिठाई बाँटी, केक काटा। यादवेंद्र यह सब देखकर भगवान का शुक्रिया अदा कर रहा था, जिसने उसकी गलती पर सिर्फ पर्दा ही नहीं डाला, अपितु बेटी के रूप में सुंदर तोहफा भी दिया। शांति का तबादला जिला कार्यालय में करवा दिया गया था। मिलते रहने के वायदे के साथ शांति को भी विदा कर दिया गया। यादवेंद्र को लग रहा था जैसे वह तो गंगा नहा लिया।

क्रमशः