Yugantar - 9 books and stories free download online pdf in Hindi

युगांतर - भाग 9

कारण जो भी हो, परिणाम यह है कि शादी का दिन आ गया। 'शादी पर खर्च न हो' यह हजम होने वाली बात नहीं । हम खर्च कम नहीं कर सकते, भले ही हमें इस खर्चे से निपटने के लिए चोरी करनी पड़े या डाका डालना पड़े। इस परिवार ने धन कैसे कमाया था, यह बात भूलकर खर्च, इस तर्क के साथ कि और कमाए किस दिन के लिए जाते हैं, बड़ी दरियादिली से किया जा रहा है। सारी हवेली बिजली के बल्बों से चमचमा रही है। लाईट का प्रबन्ध रहे, इसके लिए एक जरनेटर भी चल रहा है। जनरेटर के पास ही एक ड्रम डीजल का पड़ा है। छोटे-बड़े अनेक राजनीतिज्ञ पूरे दल-बल के साथ यहाँ पधारे हुए है और यह विवाह किसी राजनैतिक कांफ्रेंस सा माहौल लिए हुए है। बरात रवानगी की पूर्व संध्या पर मेहमानों को खुश करने के लिए अनेक जीवों को बलिबेदी पर चढ़ाया गया और इस जीव हत्या के गम को भुलाने के लिए अंग्रेज़ी शराब का मयखाना भी यहाँ पर खुला हुआ है। डी.जे. चल रहा है। रात भर खाने-पीने-नाचने का आलम रहा। अगली सुबह बारात रवानगी की तैयारी होती है। दुल्हा अपनी उसी कार में विराजमान होता है, जो उसके ससुराल वाले दो दिन पहले ही यहाँ छोड़ गए हैं। उस कार के पीछे अनेक कारों का काफिला निकलता है। उसे देख ऐसे लगता है मानो कोई मंत्री किसी सभा को संबोधित करने जा रहा हो। हाँ, इतना फर्क जरूर है कि इस काफ़िले को उस प्रकार अपने आप रास्ता नहीं मिलता, जैसे साइरन बजाती हुई मंत्री या किसी बड़े नेता जी की गाड़ी को मिल जाया करता है। थोड़ी ही देर बाद बारात अपने लक्ष्य पर यहुँचती है। दोनों तरफ़ से रस्मों की अदायगी हो रही है। बारात के लिए चाय मिठाई आदि का प्रबंध है। यहाँ से निवृत होकर शादी के मंडप में बारात आती है। धार्मिक निष्ठा के साथ सभी संस्कार पूरे किए जाते है । वर-वधू की यह जोड़ी बड़ी ही खूबसूरत लग रही है। वधू गुलाबी लहँगे में अप्सरा से कम दिखाई नहीं दे रही। वैसे उसका आधा मुँह चुनरी में छुपा हुआ है, मगर झीनी-सी चुनरी उस चाँद को भीतर छुपा पाने मे असमर्थ है। दुल्हन के गले में हीरों जड़ा सोने का हार पहना हुआ है। दोनों हाथ भी अंगूठियों और सोने की चूड़ियों से भरे हैं। यदि दुल्हन अप्सरा है, तो दुल्हा भी कम नहीं। गोरे शरीर परे नीले रंग का कोट-पैंट बडा ही आकर्षक लग रहा है। सिर पर दुल्हन के लहँगे के रंग से मिलती गुलाबी पगड़ी उसकी शोभा को और बढ़ाए जा रही हो। 'यह जोड़ी सदा सलामत रहे' सभी यह आशीर्वाद दे रहे हैं।
विवाह की धार्मिक रस्मों के पूर्ण होते ही खाने-पीने का कार्यक्रम फिर शुरू हो जाता है। जब तक कन्यादान नहीं होता, मीट-शराब का दौर थमा रहता है, लेकिन कन्यादान की रस्म होते ही मीट-शराब का दौर शुरु हो जाता है। अनेक जीवों को बलिदान आज भी हुआ है। शाम को बारात की विदायगी होती है, लड़की वालों के आँसुओं को पीछे छोड़ती कारें अपने घर की ओर वापिस लौट पड़ती है । 'सिद्धू निवास' पहुँचकर भी कुछ रस्में होती हैं। अगली सुबह सब रिश्तेदार रवाना होते हैं ।
विवाह के उत्सव का अन्त होकर फिर सामान्य जिन्दगी का आरम्भ होता है। घर में इस सामान्य जिन्दगी में खुशियाँ थोड़ी सी बढ़ गई हैं। बीमार रजवंत को तो एक बेटी मिल गई है। रमन के लिए भी इस घर में कोई परेशानी नहीं। वह आते ही घर की मालकिन बन गई है। सास-ससुर तो उसे अपने माँ-बाप से भी बढ़कर लगते हैं। खुशियाँ ही खुशियाँ है, मगर खुशियाँ अकेली नहीं आया करती, बल्कि दुखों को भी साथ लेकर आती है । जिन्दगी के आसमां पर खुशियों का चाँद सदा नहीं रहता और इसका छुपना भी सदा के लिए नहीं होता। अंधेरी और चाँदनी रातें अक्सर अपना रंग दिखाती रहती हैं और यही सब कुछ यादवेन्द्र- रमन की गृहस्थी में भी है। इस गृहस्थी में खुशियाँ तो अनेक है, दुख है तो इतना कि रमन उस रहस्य को जान गई है, जिसे उससे छुपाने की योजना घर के तीनों सदस्यों की थी। हुआ यह कि एक दिन घर के सभी नौकर पीछे वाले घर में थे। अचानक रजवंत कौर को चक्कर आ गया। घर में कोई न था। मजबूरन रमन को नौकर को बुलाने के लिए उधर जाना पड़ा, जिधर जाने की अघोषित पाबंदी थी। जब वह वहाँ पहुँची तो पोस्त का ट्रक आया हुआ था। सभी नौकर गट्टे उतार रहे थे। पोस्त का तो शायद उसे पता न चलता, लेकिन अफीम की थैलियों को देखकर उसे संदेह हुआ। दरअसल उसने सोचा तो यही था कि वह गेट पर जाकर आवाज़ देगी, लेकिन उसे यादवेन्द्र की आवाज सुनी तो वह आगे बढ़ गई और मौके पर जा पहुँची। रमन का वहाँ देखकर यादवेंद्र घबरा गया और उसकी घबराहट ने ही रमन को सजग होकर हालात देखने के लिए मजबूर किया। वह देखते ही कुछ -कुछ समझ गई, लेकिन सबके सामने सवाल करना उसे उचित न लगा। उधर यादवेंद्र ने खुद को संभाला और बोला, 'तुम यहाँ क्यों आई हो?"
"मम्मी को अचानक चक्कर आ गया वो गिर पड़ी हैं।"
"उन्हें ज्यादा चोट तो नहीं आई।"
"नहीं, लेकिन उनका बी.पी. कम हो गया लगता है, जल्दी से डॉक्टर को बुलाओ।"
"अच्छा तुम जाओ, मैं डॉक्टर को लेकर आ रहा हूँ।"
रमन हवेली की ओर चल पड़ी और यादवेन्द्र डॉक्टर की ओर । माँ ज्यादा बीमार नहीं थी। डॉक्टर ने आकर दवाई दी और आराम करने की बात कहकर चला गया। यादवेन्द्र भी जब बाहर जाने लगा तो रमन ने उन्हें रोकते हुए कहा, "जरा सुनना।"
"हाँ, बोलो।" - यादवेंद्र भीतर से घबरा गया, लेकिन वह अपनी घबराहट को छुपाते हुए बोला।
"मुझे आपसे कुछ पूछना है।"
बाद में पूछना, अभी मुझे काम है।"
"क्या काम है, यही तो जानना है मुझे।"
"हर बात औरतों को बताई नहीं जाती।"
"क्या पत्नी को इतना भी हक़ नहीं कि वह जान सके कि पति क्या काम करता हैं। पत्नी तो अर्धांगिनी होती है, फिर उससे कुछ भी क्यों छुपाया जा रहा है।"
"जो बातें छुपानी जरूरी हैं, सिर्फ उन्हें ही छुपाया जाता है।"
"ऐसी कौन सी बात होती है जिसे पत्नी भी जानने की हकदार नहीं?" - रमन की आवाज़ में अब तल्खी थी।
'जिन्हें छुपाना होता है, उनके बारे में बताना कैसा।" - यादवेंद्र पीछा छुड़ाने के चक्र में था।
"और जो कुछ मैने आज देखा है।" - रमन ने स्पष्ट करना चाहा कि वह उत्तर मिले बिना भी उत्तर जानतीहै।

"उसके बारे में तुम न सोचो, यही बेहतर होगा।"

"क्यों न सोचूँ, यह भी तो बताओ?"
"क्योंकि औरतों का काम घर संभालना होता है, और घर चलाने के लिए क्या करना होता है, इसे मर्दों पर छोड़ना ही उनके लिए अच्छा है।"
"जब मर्द के काम का असर उसकी पत्नी पर भी पड़ता है, तो पत्नी क्यों न सोचे।"
"कुछ असर नहीं पड़ने वाला। कमाई तो करनी ही होती है।"
'तो क्या कमाई ऐसे ही कामों से होती है।"
"मैंने तो तुमसे यह सलाह नहीं माँगी कि कमाई कैसे कामों से होती है।"
"आप माँगो-न-मांगो, मगर पत्नी के नाते मैं जरूरी समझती हूँ कि आपको गलत रास्ते से रोकूँ।"
"लेकिन मैं तुम्हारी सलाह सुनना जरूरी नहीं समझता और हाँ आगे से तुम अपनी सलाहों को अपने पास ही रखो, इसी में भलाई है।"
इतना कहते हए यादवेन्द्र वहाँ से चल पड़ा। रमन हाथ मलती रह गई। स्त्री को अपने मायके पर जितना गर्व होता है, उतना ससुराल पर नहीं होता। हर बात की तुलना अपने मायके से करना इनकी आदत है और इसी अनुसार जब वह तुलना करती है तो उसे अपने पति का का काम बड़ा हेय नजर आया। वह बी.एस.सी पास है। नैतिकता-अनैतिकता को समझती है। उसके पिता गाँव के सरपंच रह चुके हैं। गाँव में उनकी खूब इज्जत है। उनके बागों से उन्हें खूब आमदन होती है। उसका पति इतने निम्न स्तर का काम करता होगा, यह सोचकर उसे खुद पर शर्म आ रही है। ऊपर से पति ने जिस प्रकार से उसे डाँटा, उसका गुस्सा और बढ़ गया है। पत्नी के नाते वह पति के कंधे से कंधा मिलाकर चलने की सोच रखती थी, मगर उसके पति की नजर में वह घर में रोटियाँ पकाने तक सीमित है, यह सोच उसे परेशान कर रही और उसका मन कर रहा है कि वह अभी अपने मायके चली जाए।

क्रमशः


अन्य रसप्रद विकल्प

शेयर करे

NEW REALESED