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युगांतर - भाग 37

हर काम की शुरुआत मुश्किल होती है और जब किसी काम की शुरुआत हो जाती है, तो रास्ता अपने आप बनना शुरू हो जाता है। स्मैक के आम होने से हर आदमी दुखी था। सबको डर सताता था कि कहीं उनके बच्चे इसके आदी न हो जाएँ। बहुतों के हो चुके थे। स्मैक के कारण लूट-पाट भी बढ़ी थी। पुलिस को इसकी खबर न होगी, यह हो ही नहीं सकता, लेकिन वह चुप थी। चुप्पी का कारण भी सबको पता था कि पुलिसवालों तक उनका हिस्सा यथासमय पहुँच रहा था। इतना होने के बावजूद कोई खुलकर सामने नहीं आ रहा था। हर कोई डरा हुआ था। सबको पता था कि ऐसे धंधे सत्ता के आशीर्वाद के बिना नहीं चलते और बड़े लोगों से पंगा कौन ले, लेकिन जब यादवेंद्र ने ताल ठोंक दी, तो लोग उनके साथ खड़े होने लगे। पत्रकार भी ऐसे लोगों को ढूँढने लगे। हर रोज नशे के विरोध को लेकर समाचार प्रकाशित होने लगे। रश्मि ने युवाओं को जाग्रत करने की मुहिम छेड़ दी। 'जन चेतना मंच' जो पिछले लगभग दस साल से भ्रष्टाचार और नशे के खिलाफ बोलता आ रहा था, रश्मि के साथ आ जुड़ा। रश्मि को साथी चाहिए थे और 'जन चेतना मंच' को रश्मि जैसा सशक्त व्यक्तित्व।
'जन चेतना मंच' के पिछले दस वर्ष की मेहनत ने उनकी जड़ों को राज्य में जमाया था। पिछले चुनावों में उसे कुछ सफलता मिली थी और विधानसभा में पहुँचने के कारण यह पार्टी अपनी आवाज़ वहाँ भी बुलंद कर रही थी। इस बार भी वह लगातार अपना प्रभाव बढ़ा रही थी। चुनाव से लगभग साल पहले नशे के विरुद्ध इस प्रकार सबूत मिलना, उसके लिए सोने पर सुहागा था। हाई कोर्ट की दखलंदाजी के कारण सरकार को भी इस मुद्दे को गंभीरता से लेना पड़ा। यादवेंद्र को न्यायिक हिरासत में ले लिया गया। रश्मि ने तमाम सबूत प्रेस के माध्यम से जनता के सामने रख दिए और सभी लोगों को पकड़ने की माँग उठाई। देखते-ही-देखते नशे के व्यापारी सलाखों के पीछे जाने लगे। शंभूदीन हालांकि अग्रिम जमानत ले गया, लेकिन उसे मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा।
यह आंदोलन अब एक हल्के तक सीमित नहीं रहा। पूरे राज्य के नशे के व्यापारी आपस मे जुड़े हुए थे। पकड़े गए लोगों से जब सच उगलवाया जाता तो नए-नए नाम सामने आते और इनमें ऐसे-ऐसे नाम भी थे, जिन पर लोगों को विश्वास ही नहीं होता था कि ये भी ऐसा काम कर सकते हैं। शराफत के नकाबों के भीतर कितने दरिंदे छुपे हुए थे, यह उजागर होने से यहाँ शराफत से विश्वास उठता जा रहा था, वहीं 'जन चेतना मंच' से लोगों का जुड़ना बढ़ता जा रहा था। 'जन चेतना मंच' से जुड़ाव का कारण यही था कि लोग बाकी तीनों दलों का बार-बार आज़मा चुके थे। नशा बेचने वाले, भ्रष्टाचारी पहले भी पकड़े जाते लेकिन सरकार की मिलीभगत के चलते वे छूट जाते थे। इस बार नशे के जो सौदागर पकड़े जा रहे हैं, उन्हें वर्तमान सरकार चुनाव तक तो छोड़ेगी नहीं, लेकिन दोबारा सत्ता में आते ही वह उन्हें पहले की तरह ही छोड़ सकती है, इसलिए लोगों को लग रहा था कि जिस दल ने इसे एक मुहिम की तरह शुरू किया है, उसे ही मौका दिया जाए। 'जन चेतना मंच' के वर्कर पूरी तरह से सक्रिय हो गए थे। उनके प्रयासों से ऐसी जागरूकता की लहर आई हर क्षेत्र की बुराई को नेस्तनाबूद किया जाने लगा। भ्रष्ट लोगों को पकड़वाने की मुहिम भी शुरू हुई, गाँव-शहर में जुआ, सट्टा, वेश्यावृत्ति आदि से जुड़े लोगों को जनता पकड़कर मीडिया के सामने लाती। रंगे हाथ पकड़े गए लोगों पर पुलिस को कार्यवाही करनी पड़ती। अपने विधानसभा क्षेत्र में रश्मि तो नेता बनकर उभरी।
चुनावों की घोषणा होते ही पार्टी ने रश्मि को टिकट देने का फैसला किया। रश्मि झिझकी, क्योंकि राजनीति उसका उद्देश्य नहीं था। उसने तो इसलिए आवाज़ उठाई थी, क्योंकि उसने भाई के खोने के दुख को सहा था। वह जानती थी कि उन पर क्या गुजरती होगी, जिनके बेटे, भाई उनकी आँखों के सामने तड़प-तड़प कर मरते हैं। अपने पिता जी से जब उसने सुना था कि वह नेताजी के कहने पर नशा बेचता था, तब उसके मन में राजनेताओं और राजनीति की जो छवि बनी थी, वह अच्छी नहीं थी, इसलिए राजनेता बनना उसने सोचा ही नहीं था। वकालत के माध्यम से लोगों को न्याय दिलवाना, यही उसका उद्देश्य था, लेकिन जब उसको टिकट देने की बात आई तो वह दुविधा में पड़ गई। उसका दिल उसे इस झंझट से पड़ने से रोक रहा था, लेकिन जिन साथियों ने उससे मिलकर नशे के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी, वे उसे कह रहे थे कि यदि आप जैसे लोग राजनीति में नहीं आएँगे, तो राजनीति बदलेगी कैसे। माना राजनीति के तलाब में बहुत गाद जम गई है, लेकिन जब तक इस तालाब में अच्छे लोग उतरेंगे नहीं, तब तक इसकी सफाई कैसे होगी।
जब रश्मि ने अपनी माँ से इस बारे में विचार-विमर्श किया तो उसने भी यही कहा, "राजनीति बुरी नहीं। लोग राजनीति में आकर ताकत पाकर बिगड़ जाएँ तो राजनीति का दोष क्या? देश चलाने के लिए किसी को तो राजनीति में आना ही होगा और अगर अच्छे लोग इसमें आगे आएँगे, तो बदलाव ज़रूर होगा।"
वह रश्मि के थोड़ी को पर हाथ पकड़ते हुए बोली, "मेरी बेटी इतनी अच्छी है कि राजनीति में आकर वह राजनीति की दशा बदल सकती है, फिर भी एक वायदा मैं उससे चाहूँगी।"
"कैसा वायदा माँ।"
"यही कि ताकत पाकर तू बदलेगी नहीं, तू यह कभी नहीं भूलेगी की राजनेताओं के तुच्छ स्वार्थ किसी माँ, किसी बहन को कितने भारी पड़ सकते हैं। राजनेता का काम देश, राज्य को आगे ले जाना होता है, न कि जनता को लूटकर अपना घर भरना। राजनीति सेवा है, अगर इसे सेवा समझ सकोगी तो मेरे मन को शांति मिलेगी।"
"वायदा रहा माँ। भैया की मौत मुझे कभी भटकने नहीं देगी।"
माँ ने बेटी का माथा चूम लिया। बेटी ने बड़ी सादगी से नामांकन पत्र दाखिल किया। प्रचार के लिए न बड़ी रैलियाँ हुई, न शराब बाँटी, न पैसा पानी की तरह बहाया। रश्मि जिस गाँव में जाती, उस गाँव में उसका चर्चा पहले पहुँच जाता कि यह वही लड़की है, जिसने अपने पिता को गुनाह कबूलने के लिए प्रेरित किया और नशे के सौदागरों को जेल की हवा खिलाई। वह हर मुहल्ले में जाकर लोगों से बात करती, उनकी बातें सुनती। लोग ख़ुद-ब-खुद उससे जुड़ रहे थे।
चुनाव हुए और जब नतीजा आया तो उम्मीद के मुताबिक रश्मि बड़े अंतर से विधायक बनी। राज्य की आज तक की वह सबसे छोटी उम्र की विधायक थी। चुनाव में रश्मि तो जीती ही, उसकी पार्टी 'जन चेतना मंच' भी सत्ता में आई। बड़े-बड़े धुरंधर चुनाव हार गए। जनता ने युवाओं को इस विश्वास से सत्ता सौंपी कि ये लोग चली आ रही परिपाटी को तोड़कर युगांतर लाएँगे।
रश्मि अपनी माँ के साथ पिता जी से आशीर्वाद लेने जेल गई। पिता की आँखों में खुशी के आँसू थे। रमन कह रही थी, "मैंने कहा था ना, मेरी बेटी युगान्तरकारिणी है, वह युगांतर लाएगी।"
रमन को ही नहीं, सबको उम्मीद है कि युगांतर आकर रहेगा और उम्मीद पर ही दुनिया कायम है।

समाप्त


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