युगांतर - भाग 21 Dr. Dilbag Singh Virk द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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युगांतर - भाग 21

यादवेंद्र को सज़ा मिलने के डर से ज्यादा डर सताता है रमन की प्रतिक्रिया का। बात-बात पर उसके व्यवसाय को लेकर ताने मारने वाली रमन अब तो उसका जीना हराम कर देगी, लेकिन जब जमानत मिलने के बाद वह घर आया तो रमन ने कुछ नहीं कहा। दिन-पर-दिन बीत रहे थे और रमन इस मुद्दे को छेड़ नहीं रही थी। यादवेंद्र खुश होने की बजाए परेशान था, उसे लगता था कि न जाने कब विस्फोट हो जाए। वह चाहता था, जो भी होना है, वह जल्दी हो जाए, लेकिन रमन की तरफ से कोई पहल होती न देखकर एक दिन उसने खुद ही बात छेड़ी। रमन उसके शरीर पर तेल मालिश कर रही थी। तभी उसने कहा, "रमन, मैंने तुझे बहुत दुख दिए हैं।"
"दुख! सब कुछ तो है, आप हैं, बच्चे हैं और क्या चहिए मुझे।" - रमन ने सहजता के साथ कहा।
"ये तो है मगर तुम्हारी कद्र तो नहीं की, तुम्हारी बात नहीं मानी।"
"कौन सी बात।"
"नशा न बेचने की और इसलिए अब यह बदनामी झेलनी पड़ रही है।"
"जो हो गया, उसे जाने भी दो।"
"कैसे जाने दूँ। कितनी बदनामी हुई है, तुम भी अपनी बहन-भाभी के सामने सिर उठाने लायक नहीं रही, इसका दोषी तो मैं हूँ, मगर शर्मिंदा तुम्हें भी होना पड़ रहा है।"
"पति-पत्नी सुख-दुख के साथी हैं। शोहरत भी आपके कारण ही थी। अब अगर बदनामी मिलेगी तो भी क्या? फिर राजनेताओं पर तो आरोप लगते ही रहते हैं। नेता जी ने उसी दिन मीडिया के सामने आकर कह दिया था कि यादवेंद्र को सिर्फ इसलिए फँसाया जा रहा है कि वह हमारा सहयोगी है। बस यह काफी है बदनाम करने वालों को जवाब देने के लिए।"
"एक बार तो उन्होंने कहा दिया, लेकिन अगर सज़ा हो गई तो...।"
"तब की तब देखेंगे, वैसे भी सब जानते हैं कि राजनैतिक आदमियों पर झूठे मुकद्दमे चलना, झूठी सज़ा करवाना आम बात है। फिर यहाँ निर्दोषों को सज़ा होना और दोषियों के सरेआम बाहर घूमना आम बात है।"
"हूँ...।" - यादवेंद्र ने सहमति जताई। यादवेंद्र के मन से बड़ा बोझ उतर गया था। रमन उसके प्रति इतनी उदार होगी उसने सोचा ही नहीं था। हर आदमी यहाँ पूर्वाग्रहों को लेकर जीता है। हम अपने पूर्वाग्रह में जिसे अच्छा मान लेते हैं, उसकी बुराई को लाख दिखाए, हमें दिखती ही नहीं और जिसे बुरा मान लेते हैं, उसकी अच्छाई आँखों से देखकर भी अच्छाई कम, कोई चालाकी अधिक दिखती है। पूर्वाग्रहों से ग्रस्त होकर हम यह भी भूल जाते हैं कि कोई भी आदमी न सिर्फ अच्छा हो सकता है, न बुरा। यादवेंद्र भी इस पूर्वाग्रह से शिकार था कि रमन ने तो उसका सहयोग करना नहीं। उसकी भलाई के लिए कही गई बात भी उसे ऐसे लगता था, जैसे वह उस पर तंज कस रही है। यादवेंद्र को आज अपनी माता जी कि बात याद आ रही है कि पत्नियाँ टाँग नहीं अड़ाती, अपितु सहयोग करती हैं। आदमी जैसा देखना चाहता है मन वैसे चित्र दिखाना शुरू कर देता है। यादवेंद्र को आज रमन की अच्छाइयाँ दिख रही हैं। रमन ने उसके माँ-बाप की जितनी सेवा की, उतनी तो शायद असली बेटी भी न करे। सास-बहू में माँ-बेटी का नाता था। कोई भी रिश्ता तभी निभता है, जब दोनों पक्ष निभाना चाहें। आज तक उसे लगता था कि उसकी माँ बहुत अच्छी है, लेकिन आज वह महसूस कर रहा है कि माँ तो अच्छी थी ही, उसकी पत्नी भी कम अच्छी नहीं थी। दोनों अच्छी थीं, तभी उनमें इतना प्रेम था। रश्मि को लेकर भी जब वह सोचता है तो रमन उसे और अच्छी लगने लगती है। रश्मि को वह अपनी बेटी की तरह ही पाल रही है, यह कहना भी गलत लगता है क्योंकि बेटी की तरह में ऐसा एहसास होता है कि बेटी से अलग तरीके से। रमन के अपनी बेटी होती, तो वह उससे कैसा व्यवहार करती, यह तो अब नहीं कहा जा सकता, लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि वह उसे रश्मि से ज्यादा प्यार नहीं दे सकती थी।
मुसीबत और चिंता के इन दिनों में पत्नी का साथ पाकर यादवेंद्र हौसले से भर उठता है। उसे लगता है कि पत्नी की महिमा का गान यूँ ही नहीं किया जाता। गलत काम से रोकना उसका हक़ है, अपने लिए पति से समय माँगना उसका हक है और इसके लिए उसका पति से लड़ना भी जायज है, लेकिन मुश्किल भी जब सब साथ छोड़ देते हैं, तब वही पत्नी खड़ी होती है, जो बात-बात पर उलाहने देती है। यादवेंद्र सोच रहा है कि 'रमन बुरी है' ऐसा ख्याल भी उसे कैसे आया। वह तो सदा पत्नी धर्म निभाती रही है। उसे लगता है कि जब हम मन में किसी प्रति कोई राय बना लेते हैं, तब उससे मुक्त हो ही नहीं पाते। वह भी मुक्त नहीं हो पाया। वह भी रमन के विरोध को देखता रहा, यह नहीं देख पाया कि विरोध का कारण क्या है। शायद सत्ताधारी दल का वर्कर होने के कारण वह भी ताकत के नशे में डूबा हुआ था। 'जो होता है, ठीक ही होता है' का तर्क उसके दिमाग ने दिया। उसे लगा कि शायद रमन को सही तरीके से जानने के लिए ही उसे इतना बड़ा झटका मिला। उसने रमन को छोड़कर शांति के पहलू में सुख महसूस किया था, यह उसकी कितनी बड़ी नासमझी थी। शांति तो उथल-पुथल के दौर में विरोधी दल की गोद में जा बैठी, जिससे उससे उसका नाता टूट गया। उसने यह फैसला किया कि अब वह किसी शांति से संपर्क नहीं रखेगा। वह घर पर ज्यादा समय बिताएगा। बच्चों के साथ खेलेगा। रमन से बातें करेगा। उसे पतझड़ के बाद फिर बसंत आता दिखाई देने लगा।

क्रमशः