युगांतर - भाग 29 Dr. Dilbag Singh Virk द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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युगांतर - भाग 29

आदमी भी विचित्र जीव है। किसी सिद्धांत पर स्थिर रहना उसकी फितरत नहीं, अपितु वह तो सिद्धांतो को मनमर्जी अनुसार तोड़ता-मरोड़ता रहता है। यादवेंद्र भी इसका अपवाद नहीं। वह तो पेंडलुम की तरह एक छोर से दूसरे छोर तक घूमता रहता है। कभी उसे नशे का धंधा अनैतिक लगता है, तो कभी लगता है कि अगर वह यह धंधा न करेगा, तो कौन सा देश में नशा बिकना बंद हो जाएगा। जब किसी-न-किसी ने यह कार्य करना ही है, तो क्यों न वह ही बहती गंगा में हाथ धो ले। वह सिर्फ हाथ धोने में कहाँ यकीन रखता है, अपितु वह तो डुबकियाँ लगाता है और इसके लिए जेल जा चुका है। जेल जाने के बाद उसने सोचा था कि इस काम में बहुत बदनामी है और वह आगे से कभी ऐसा कार्य नहीं करेगा। जब दोबारा सरकार बनी तो उसने इस काम से इंकार भी किया और जब नेता जी ने उसे स्मैक बेचने के लिए मजबूर किया, तो उसे लगा कि मंत्री जी उस पर दवाब बना रहे हैं। सत्ता जाते ही जेल जाने का डर उसे फिर सताने लगा तो उसने विपक्षी नेता से भी दोस्ती गाँठ ली। उस समय उसकी सोच सिर्फ इतनी थी कि इस समय किए गए कामों के लिए अगली सरकार उसे सताए न, लेकिन विपक्षी नेता के बेटे सन्नी से उसका तालमेल ऐसा बैठा कि अब उसे लग रहा है कि वह अपने नशे के व्यापार को जारी रख सकता है, फिर इस बार उसके पास कोई माल नहीं रहता था। वह स्मैक के थोक विक्रेताओं से माल आगे पहुँचाता। बहुत से लोग इस कार्य को अंजाम देते। एक पूरी चैन बनी हुई थी, यादवेंद्र जिसकी महत्त्वपूर्ण कड़ी था। इस धंधे में पहले शंभूदीन भी शामिल था, लेकिन परोक्ष रूप से। दरअसल यादवेंद्र उसका प्रतिनिधि ही था। सत्ता परिवर्तन के बाद नेता जी निष्क्रिय हो गए, लेकिन यादवेंद्र ने कार्य को संभाले रखा। कमीशन पहले की तरह शंभूदीन तक पहुँचता रहा। शंभूदीन को अब भी कमीशन देना यादवेंद्र की दूरगामी सोच का परिणाम था। चुनाव के बाद दूसरे वर्करों के कान भरने से शंभूदीन को लगा था कि यादवेंद्र उसको छोड़ सकता है, लेकिन यादवेंद्र ने वादा किया था कि राजनीति के मामले में उसकी निष्ठा हमेशा शंभूदीन के साथ रहेगी। कमीशन भेजकर वह अपनी इसी निष्ठा का सबूत देता रहता, साथ ही वह इसे भी सुनिश्चित समझ लेता कि जब फिर शंभूदीन सत्ता में आएँगे तो उनकी कृपा दृष्टि उन पर बनी रहेगी। शंभूदीन यादवेंद्र के व्यवहार से खुश तो था, लेकिन समय-समय पर उसकी निष्ठा को आजमाता भी रहता था। जब भी सरकार के खिलाफ या विधायक के खिलाफ कोई धरना प्रदर्शन करना होता, यादवेंद्र की ड्यूटी अवश्य लगती और यादवेंद्र अपनी ड्यूटी पूरी निष्ठा के साथ निभाता। यादवेंद्र को इस प्रकार पार्टी के साथ खड़ा पाकर शंभूदीन सन्तुष्ट होता।
यादवेंद्र को एक तरफ पुराने नेता को विश्वास में लिए रखना था, वहीं नए नेता को भी विश्वास दिलाना था कि वह उनका भी वफादार है। उनकी जो डील हुई थी, उसमें यादवेंद्र ने स्पष्ट कहा था कि वह अपनी पार्टी के लिए कार्य करेगा। सन्नी ने इसे सहमति दी थी। धरने-प्रदर्शनों में यादवेंद्र की भागीदारी देख सन्नी को न हैरानी होती, न संदेह। स्मैक के धंधे के बारे में यादवेंद्र ने सन्नी को कुछ नहीं बताया था, लेकिन सन्नी को जानकारी न हो, ऐसा नहीं था। यादवेंद्र भी इस बात को जानता था। सन्नी ने न कभी हिस्सा माँगा, न उसे हिस्से के रूप में कुछ दिया गया, लेकिन समय-समय पर सन्नी को विभिन्न माध्यमों से उसका भुगतान किया जाता। यादवेंद्र दो किश्तियों की एक साथ सवारी बड़ी कुशलता से कर रहा था। सत्ता बदलने का कोई प्रभाव उस पर नहीं पड़ा था और इस बात को सोचकर यादवेंद्र अपनी पीठ खुद ही ठोंक लेता।
ऐसे लगता था कि इन दिनों भगवान की उस पर अपार कृपा थी, तभी इन दिनों यादवेंद्र की गृहस्थी भी बढ़िया चल रही थी। रमन को अब किसी प्रकार की शिकायत न थी। बेटा यशवंत दसवीं पास कर गया था और बेटी भी छठी कक्षा में थी। दोनों बच्चे आज्ञाकारी और मेहनती थी। रमन को लगता कि बुरा वक्त बीत चुका है। यादवेंद्र के गैरकानूनी नशा बेचने की उसे भनक तक न थी। सत्ता परिवर्तन के बाद भी वह पहले की तरफ शराब के ठेके लेता था। यादवेंद्र घर पर काफी समय बिताता था, लेकिन जब वह घर न भी होता, तब भी रमन को बुरा न लगता। यादवेंद्र ने अगर न आना होता या किसी दौरे पर बाहर जाना होता तो वह इस बारे में पहले से ही उसे बता देता था और इसी से उनमें आपसी समझ पैदा हो गई थी। इसके अतिरिक्त बच्चों के पास रहने से उसे अकेलापन महसूस नहीं होता था।
दसवीं पास करने के बाद बेटे ने नए स्कूल में दाखिला ले।लिया। उसके कुछ दोस्तों के कहने पर उसने घर पर बुलेट मोटरसाइकिल की माँग की। रमन इसके खिलाफ थी, वह उसे कहने लगी, "बेटा, तू अभी अठारह का नहीं हुआ। फिर वैन से आने जाने की सुविधा है।"
"लेकिन माँ मुझे कोचिंग लेनी है, मेरे सारे दोस्त बाइक लेकर जाते हैं।" - यशवंत ने तर्क रखा।
"फिर इलैक्ट्रिकल स्कूटी ले ले।"
"नहीं, वह तो लड़कियाँ चलाती हैं।" - यशवंत ने बात सिरे से खारिज कर दी।
रमन ने यादवेंद्र से कहा, "आप चुप क्यों हो। आप भी कुछ कहो।"
यादवेंद्र तो बेटे की हर ख्वाहिश पूरी करता आया था। यशवंत को लगा कि यह तो उसके पक्ष की बात हो गई, लेकिन यादवेंद्र ने रमन की नाराजगी देखते हुए कहा, "बेटा कोई और मोटरसाइकिल ले ले। बुलेट तुझे कॉलेज में ले देंगे।"
"आप भी पापा। मेरे सब दोस्त कहते हैं कि तेरे पिता जी का तो बिजनेस है, उनकी खूब चलती है, तेरे पास तो बुलेट होना ही चाहिए।"
बुलेट से ज्यादा बेटे के इस नजरिए ने रमन को ज्यादा आहत किया, इससे पहले भी उसने दसवीं में ही आईफोन यह कहकर लिया था कि मेरे दोस्त कहते हैं कि तेरे पास तो आईफोन ही होना चाहिए। वह पति से बोली, "सुनते हो। अब इसे लोगों को दिखाने के लिए बुलेट चाहिए।"
यादवेंद्र भी रमन से सहमत था। यशवंत का नजरिया बता रहा था कि उसके पर निकलने आरंभ हो गए हैं। दोनों ने उसे खूब समझाया, लेकिन वह ज़िद पर अड़कर बैठ गया। उसने खाना खाने से इंकार कर दिया। यशवंत जब स्कूल की बातें, पढ़ाई की बातें, दोस्तों से सुनी सुनाई बातें घर पर अपनी माँ से करता था, तो वह अपने आप को भगतसिंह का फैन बताता। अक्सर कहता, किताबें न जाने क्यों गाँधी की महानता दिखाती रहती हैं। चरखे से भी कभी आज़ादी मिल सकती है भला। ये तो भगतसिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, सुभाषचंद्र बोस के कारण हम आज़ाद हुए। रमन मुस्करा देती और कहती जैसे-जैसे तू बड़ा होगा, तुझे समझ आ जाएगी। जवानी में सबको भगतसिंह अच्छा लगता है, लेकिन जैसे-जैसे समझ आती है, तब पता चलता है कि अहिंसा ही सबसे अच्छा मार्ग है। वह उसे समझाती कि भगतसिंह भी वैसा नहीं था, जैसा तुम समझते हो। अगर वह हिंसावादी होता तो नकली बम की बजाए असली बम फैंकता, पर यशवंत इसे नहीं मानता था। वह कहता था कि वह जब बड़ा होगा तो भगतसिंह को गाँधी से ऊँचा स्थान दिलाएगा। आज जब उसने तब तक रोटी न खाने की बात कही, जब तक बुलेट मोटरसाइकिल नहीं मिलता, तो रमन ने उस पर तंज कसा, "गाँधी की तरह भूख हड़ताल क्यों कर दी। रोटी खा ले कल भगतसिंह की तरह लड़ना।"
यादवेंद्र बीच में कूद गया। उसने रमन को डाँटा, "ये कौन सा तरीका है बच्चे से बात करने का।"
वह खुद थाली लेकर बेटे के पास गया, लेकिन बेटा टस से मस नहीं हुआ। आखिर में पिता को हारना पड़ा। बुलेट का आश्वासन पाकर उसने खाना खा लिया, लेकिन इससे रमन नाराज़ हो गई। एकांत में उसने अपने पति से कहा, "आपको उसकी बात नहीं माननी चाहिए थी।"
"इकलौता बेटा है, अगर कुछ गलत कर बैठा तो कहीं के नहीं रहेंगे"
"अब तो उसका हौसला और बढ़ जाएगा। जिस तरीके से उसने आज अपनी बात मनवाई है, उस तरीके से वह कुछ भी मनवा लेगा।"
"और उसने क्या जहाज लेना है। बच्चों को या तो आई फोन चाहिए या बुलेट। ये दोनों उसे मिल गए। अब और क्या माँगेगा।"
"बात इन चीजों की नहीं, जिस तरह से वह दोस्तों के इशारे पर चल रहा है, वह भी ठीक नहीं।"
"हाँ, इससे तो मैं सहमत हूँ, यह अच्छी बात नहीं, लेकिन इस उम्र के बच्चे माँ-बाप से ज्यादा दोस्तों की ही मानते हैं।"
"दोस्त कल को न जाने क्या कहेंगे।"
"कुछ नहीं होगा, ज्यादा चिंता नहीं करते। जा, मेरे लिए भी खाना ले आ।"
यादवेंद्र ने विषय को टालते हुए कहा, लेकिन भीतर से वह भी डरा हुआ था। खासकर शहर जो उसके कारण ही स्मैक का अड्डा बना हुआ था, कहीं उसके बेटे को ही न निगल ले, इसकी चिंता भी उसे सताने लगी थी, लेकिन यह बात वह पत्नी से भी नहीं कर पा रहा था। बस भगवान से दुआ ही कर सकता था और वह वही कर रहा था।

क्रमशः