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युगांतर - भाग 27

यादवेंद्र को इंतजार था, महेश जैन के फैसले का। कई दिन बीत जाने के बाद वह दोबारा जाने की सोच ही रहा था कि उनकी तरफ से किसी का फोन आया कि विधायक जी आपको याद कर रहे हैं। मिलने का समय तय कर लिया गया और निश्चित समय पर वह उनकी कोठी पर जा पहुँचा, लेकिन इस बार उनका स्वागत महेश जैन की बजाए उनके पुत्र सन्नी ने किया। सन्नी ने बड़े अदब से उनके चरण स्पर्श किए, जिससे यादवेंद्र गदगद हो उठा। उसने कहा, "बेटा जी विधायक जी कहाँ हैं।"
"पापा को अचानक काम हो गया, इसलिए उन्होंने मुझसे कहा कि मैं आपसे बात कर लूँ, वे मुझे आपकी पुरानी बातचीत के बारे में बताकर गए हैं।" - सन्नी ने असली बात को छुपाते हुए कहा। दरअसल महेश जैन इस मामले में दुविधा में थे। उनका पुत्र सन्नी तो उनसे पहले ही कहता था कि जिस तरीके से आप राजनीति करते हैं, उस तरीके से हम बर्बाद हो जाएँगे, लेकिन महेश जी के सिद्धांत आड़े आ जाते। पिता-पुत्र में तकरार भी होती, लेकिन सन्नी पिता को उनके सिद्धांतों से डिगा न पाया। यादवेंद्र के जाने बाद महेश जैन ने अपने बेटे सन्नी से बात की। सन्नी तो यह उछलकर बल्लियों उछल पड़ा। वह यादवेंद्र को मिलकर देखना चाहता था कि वे कैसे शख्स हैं, जो वह कर गए जो वह पिछले पाँच से न कर स्का था। महेश जैन को अब भी लगता था कि राजनीति में नीति पर चलना चाहिए, लेकिन यादवेंद्र की बात भी उसे सच लगी थी। वह खुद अपने सिद्धांत नहीं छोड़ सकता था, इसलिए उसने बेटे को आगे कर दिया।
यादवेंद्र ने अपना एजेंडा समझाया कि अब वह सत्ताधारी दल के साथ है, इसलिए वे कुछ भी करेंगे तो वह उन पर कोई आँच नहीं आने देगा और जब आप सत्ता में आए तो आप मुझ पर आँच न आने देना, यानी वह आपकी मदद करेगा और जब आपकी सरकार बनेगी तब आप मदद करेंगे। सन्नी ने इस पर सहमति जताई। दोनों में न सिर्फ डील डन हुई , अपितु सन्नी की सोच ने दोनों को बहुत बड़ा लाभ पहुँचाया। यादवेंद्र तो सिर्फ नशे के व्यापार तक सीमित था, सन्नी ने बताया कि जब राज्य में नौकरियाँ निकलती हैं, तब कमाई का बड़ा अवसर होता है।
यादवेंद्र ने पूछा, "वो कैसे?"
सन्नी ने समझाया, "आपके मंत्री जी लोगों को जो नौकरियाँ दिलवाते हैं, वे मुफ्त में नहीं दिलवाते, अपितु मोटी रकम वसूलते हैं। नौकरी वाले सीधे मंत्री जी से तो मिल नहीं पाते, वे पार्टी के वर्करों के जरिए उन तक पहुँचते हैं। जो किसी को लेकर जाता है, वह अपना कमीशन भी लेता है। इस बार भी पुलिस की भर्ती निकली हुई है। मैं आपको कुछ लड़के उपलब्ध करवाऊँगा। आप उनकी सिफारिश लेकर जाना। जो रेट वे कहेंगे वह मुझे बताना। फिर हम तय करेंगे कि उम्मीदवारों से कितने-कितने लेने हैं।"
यादवेंद्र मंत्री जी के इस सच को सुनकर हैरान हुआ। मंत्री जी ने उनसे कभी नहीं कहा, लेकिन सन्नी के कहे अनुसार वह मंत्री जी के पास पहुँचा और बोला, "नेता जी एक काम है आपसे।"
"बोलो, यादवेंद्र।"
"पुलिस की भर्ती है ना।"
"हैं, पर तुम क्यों पूछ रहे हो?"
"दरअसल तीन-चार लड़के थे, उनकी सिफारिश आई थी, कुछ ले दे के उनको सलेक्शन करवानी है।"
नेता जी यादवेंद्र की इस बात को सुनकर हैरान हुआ। ऐसा नहीं कि यादवेंद्र पहले कोई काम लेकर नहीं आता था। शहर के सारे काम उसी के जरिए होते थे, लेकिन नौकरियों में भर्ती के काम से उसे दूर रखा गया था। इसके लिए दूसरे तेज-तर्रार वर्कर थे। उसे शुरू में ही बता दिया गया था कि वह इस-इस प्रकार के काम करवाने की हाँ भरेगा और उससे हटकर के कामों के लिए लोगों को फलां-फलां वर्कर के पास भेजेगा। नौकरी हेतु सिफारिश सुनकर मंत्री जी ने कहा, "ये तो अमित देखता है।"
"अमित भी तो आपको ही बताता है, ये कुछ खास लोग हैं और मुँह माँगा दाम देने को तैयार हैं।"
थोड़ी देर सोचने के बाद उसने दो लड़कों का काम सात लाख के हिसाब से करने की सहमति दे दी।
यादवेंद्र ने सन्नी से सम्पर्क साधा और उसने आगे दस लाख में बात करके चौदह लाख मंत्री जी को देने के लिए दिए और डेढ़-डेढ़ लाख खुद रख लिए।
यादवेंद्र को यह काम नशे के व्यापार से कहीं ज्यादा अच्छा लगा। अब सन्नी कभी किसी का तबादला करवाने, कभी किसी को सड़क आदि का ठेका दिलवाने, किसी को नौकरी पर रखवाने के काम बताता रहता और यादवेंद्र मंत्री जी से यह काम करवाता रहता। मंत्री जी यादवेंद्र में आए बदलाव से हैरान थे,लेकिन यादवेंद्र की ईमानदारी से वे शुरू से ही प्रभावित थे, इसलिए यादवेंद्र के इस नए रूप को उन्होंने स्वीकार कर लिया। उधर सन्नी न सिर्फ पैसे कमा रहा था, अपितु जनता में इस बात की भी पैठ बना रहा था कि काम वह करवा रहा है। यादवेंद्र के इस नए रूप से पार्टी के अन्य वर्करों को परेशानी होनी स्वाभाविक थी। उन्होंने मंत्री जी के कान भरने शुरू कर दिए। धीरे-धीरे मंत्री जी को इस बात का भी पता चल गया कि यादवेंद्र पूर्व विधायक महेश जैन के बेटे सन्नी के इशारों पर नाच रहा है, लेकिन जब तक यह बात पूरी तरह से साफ हुई तब तक पाँच साल की अवधि पूरी हो चुकी थी। चुनाव के दिनों में मंत्री जी ने चुप रहना ही ठीक समझा। हाँ, अब उनकी निगाह इस बात पर थी कि चुनाव के दिनों में यादवेंद्र का रुख कैसा रहेगा।
यादवेंद्र ने अपनी तरफ से पूरी ईमानदारी के साथ शंभूदीन के लिए प्रचार किया, क्योंकि सन्नी के साथ यह समझौता हुआ था कि चुनाव के दिनों में वे कट्टर दुश्मन ही रहेंगे, क्योंकि लोगों को धोखे में रखना ज़रूरी था, लेकिन जब मन में संदेह हो तो रस्सी साँप ही दिखती है। यादवेंद्र के ईमानदारी से किए गए प्रयासों में भी शंभूदीन को कमी नज़र आती और जब परिणाम आया और शंभूदीन चुनाव हार गया तो संदेह यकीन में बदल गया, हालांकि यादवेंद्र का कद इतना बड़ा नहीं था कि वह शंभूदीन को जीता या हरा सकता। जीत का सारा श्रेय कभी भी यादवेंद्र को नहीं मिला था, लेकिन हार का ठीकरा यादवेंद्र के सिर फोड़ा जा रहा था। दूसरे वर्करों के लिए यादवेंद्र की बुराई करने का खूबसूरत अवसर था। वे कह रहे थे, "नेता जी हम तो पहले ही कह रहे थे कि यादवेंद्र से सावधान रहो, वह आस्तीन का साँप बनता जा रहा है।"
शंभूदीन हैरान तो थे कि यादवेंद्र ऐसा नहीं कर सकता, लेकिन वह यह भी जानते थे कि राजनीति में कोई किसी का सगा नहीं। परिणाम की घोषणा के बाद यादवेंद्र गायब था। उन्हें लग रहा था कि पक्षी ने पेड़ बदल लिया है। वह अवश्य ही महेश जैन को बधाई देने वालों की लाइन में लगा होगा।


क्रमशः


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