Vah ab bhi vahi hai book and story is written by Pradeep Shrivastava in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Vah ab bhi vahi hai is also popular in फिक्शन कहानी in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
वह अब भी वहीं है - उपन्यास
Pradeep Shrivastava
द्वारा
हिंदी फिक्शन कहानी
समीना तुमसे बिछुड़े हुए तीन बरस से ज़्यादा होने जा रहा है। मगर ऐसा लग रहा है मानो अभी तुम इस रमानी हाउस के किसी कमरे से जोर-जोर से मुझे पुकारती हुई सामने आ खड़ी होगी और मुझे डपटते हुए कहोगी, 'ओए विलेन-किंग कुछ काम भी करेगा या ऐसे ही मतियाया (आलसियों की तरह) पड़ा रहेगा।'
तब तुम्हारी यह बात और आवाज़ मुझे बुरी लगती थी। तुम्हारी आवाज़ चीख लगती थी, एक कर्कश चीख। मगर इन बरसों में ऐसा कौन-सा दिन बीता होगा, जब तुम्हारी आवाज़, तुम्हारी वह बात सुनने का मन न हुआ हो और तुम्हारी वह आवाज़ घंटियों सी मधुर न लगी हो।
देखो यह भी कैसा संयोग है कि, बाकी सब कुछ तो याद है, लेकिन मुझे इस सिनेमा नगरी में आए हुए अब कितने बरस पूरे हो गए हैं, इसका ठीक-ठीक हिसाब नहीं लगा पा रहा हूँ । क्योंकि वह तारीख नहीं याद आ रही जिससे सटीक हिसाब लगा सकूँ। बस इतना याद है कि जब आया था तब अपना देश पड़ोसी पिस्सू जैसे कमीने देश पाकिस्तान को कारगिल युद्ध में जूतों तले कुचल चुका था।
देश अपने विजय का उत्सव मना रहा था। ट्रेन में विशेषज्ञ बहसबाज़ पिछली सरकारों को कोस रहे थे, गरिया रहे थे कि इन भ्रष्ट निकम्मी सरकारों ने अपनी झोली भरने, सत्ता सुख में देश को भी दांव पर लगाने के बजाय ईमानदारी से देश को सैन्य ताकत बनाया होता, तो दुनिया के फेंके टुकड़ों पर पलने वाला यह पिस्सू परजीवी जैसा देश चौथी बार धोखे से भी हमला करने का दुस्साहस नहीं कर पाता।
प्रदीप श्रीवास्तव कॉपी राइट:लेखक प्रथम संस्करण:२०२१ आवरण चित्र: धीरेन्द्र यादव 'धीर ' आवरण मॉडल: अधरा शर्मा आवरण सज्जा: प्रदीप श्रीवास्तव कम्प्यूटर टाइपिंग:धनंजय वार्ष्णेय ले-आउट:नवीन मठपाल समर्पित पूज्य पिता ब्रह्मलीन प्रेम मोहन श्रीवास्तव एवं प्रिय अनुज ब्रह्मलीन प्रमोद कुमार ...और पढ़ेसत्येंद्र श्रीवास्तव की स्मृतियों को पूज्य पिता श्री प्रिय प्रमोद प्रिय सत्येंद्र -------------- भूमिका एक मुट्ठी सपने के लिए हर उपन्यास, कहानी के पीछे भी एक कहानी होती है. जो उसकी बुनियाद की पहली शिला होती है. उसी पर पूरी कहानी या उपन्यास अपनी इमारत खड़ी करती है. यह उपन्यास भी
भाग - 2 मेरी भाभी असल में बहुत खुशमिजाज, खुले दिमाग वाली साफ ह्रदय महिला थीं। और मैं उनकी हंसी-मजाक का अर्थ कुछ और ही लगा बैठा था। विलेन बनने के अपने सपने को लेकर मैं उनसे बतियाता था। ...और पढ़ेजल्दी ही उन्होंने यह समझाना शुरू कर दिया कि, 'ये विलेन-ईलेन बनने का पागलपन छोड़ो, काम-धंधा आगे बढ़ाओ। वहां बड़े-बड़े जाकर ठोकरें खाते हैं। दर-दर भटकते हैं।' मैं कहता, 'सब खाते होंगे। मैं नहीं खांऊगा, क्योंकि मैं फ़िल्मों में जितने विलेन देखता हूं, उन सबसे शानदार है मेरा शरीर। मैं छः फिट से ज़्यादा लम्बा हूं।' फिर मैं उन्हें अपने
भाग - 3 कहने को वह धर्मशाला था, लेकिन वास्तव में वह शराबियों-मवालियों का अड्डा था। मैं जिस कमरे में था उसमें आमने-सामने छह तखत पडे़ थे, सब के सिरहाने एक-एक अलमारी बनी थी। सफाई नाम की कोई चीज ...और पढ़ेथी। अजीब तरह की गंध हर तरफ से आ रही थी। न जाने कितने बरसों से उसकी रंगाई-पुताई नहीं हुई थी। खैर बहुत थका था, तो पसर गया तखत पर। धर्मशाला का इंचार्ज बाबूराम को जानता था। इससे मुझे सिर्फ़ इतना फायदा हुआ कि, कहां पर सस्ता और अच्छा खाना मिल जाएगा, उसने यह बता दिया। मैंने शाम सात बजे
भाग - 4 समीना तुम मुझे हमेशा नहीं, बल्कि शुरू के दो-तीन सालों तक आए दिन ऐड़ा-टट्टू कहा करती थी। लेकिन नहीं-नहीं समीना, मैं हर वक़्त हर क्षण अपने सपने को पूरा करने के लिए बेचैन रहता था। अब-तक ...और पढ़ेजितने काम किए। जितने तरह के काम किए वह सब केवल अपने सपने को पूरा करने के लिए रास्ता बना सकूं, सिर्फ़ इसलिए किए। बाबूराम द्वारा ठगा जा रहा हूं, यह जानते हुए भी मैं अगले दिन सेठ के पास पहुंचा। क्योंकि मेरे पास और कोई रास्ता ही नहीं था। वहां पहुंचने पर अपने को और ठगा हुआ पाया। जानती
भाग - 5 मैंने देखा कि मैं संकुचा रहा था और वह बेखौफ, बिंदास थी। मैं अब-तक यह सोचकर परेशान होने लगा कि, आखिर ये इसकी दोस्त कैसे हो गई? रातभर दूसरे मर्द के साथ क्या कर रही है? ...और पढ़ेहै तो ये दोस्त क्यों बता रहा है। मुझे लगा फितरती बाबूराम कुछ नया खेल, खेल रहा है। वह मुझे ज़्यादा कुछ सोचने का मौका दिए बिना तेज़ी से बाहर गया और दो पॉलिथिन लिए हुए वापस लौट कर बोला, 'विशेश्वर मैं होटल से खाना लेकर आया हूं, आओ खाते हैं।' यह कहते हुए उसने बिना किसी संकोच के साथ