Vah ab bhi vahi hai - 41 books and stories free download online pdf in Hindi

वह अब भी वहीं है - 41

भाग -41

रमानी बहनें पार्टी में हम-दोनों के काम को लेकर दो दिन बाद बोलीं, 'तुम-दोनों ने बढ़िया काम किया। आगे से तुम-दोनों और भी ज़िम्मेदारियाँ निभाओगे।'

एक अपनी बात पूरी कर ही पाई थी कि तभी दूसरी बोली, 'अब से तुम-लोग हमेशा उसी तरह की ड्रेस पहनोगे जो उस दिन पहनी थी। तुम्हें और ड्रेस मिल जाएंगी।'

मैं दोनों बहनों की चालाकी पर भीतर-भीतर कुढ़ रहा था। चुपचाप उनकी बातें सुन रहा था। उनसे यह कहने की सोच रहा था कि, ड्रेस के साथ-साथ पगार में भी कुछ बढ़ोत्तरी करती तो कोई बात है। जितना और जिस तरह का काम करवाया और करवा रही हैं, उस हिसाब से तो पगार कुछ है ही नहीं। बल्कि उस अय्याशी भरी रात के लिए तो चार-छह महीने की पगार अलग से देनी चाहिए, दो सेट कपड़े देकर भरमा रही हैं। बेवकूफ समझ रखा है।

हमारी विवशता का जिस मासूमियत भोलेपन से तुम-दोनों फायदा उठा रही हो, हमारा शोषण कर रही हो, क्या यह सब हम समझ नहीं रहे हैं। मैं यह सब सोच ही रहा था, मुझ में भीतर ही भीतर बेतहाशा गुस्सा भर गई थी, मैं अपना गुस्सा निकालने के एकदम मुहाने पर पहुंचा ही था कि, तभी तुमने सीधे-सीधे अपनी बात बोल दी।

साफ-साफ बहुत विनम्रता से कह दिया कि फैक्ट्री में कच्चे माल की सप्लाई का थोड़ा अवसर तुम्हें और मुझे दिया जाए। कैसे हम-दोनों यह काम करेंगे, तुमने पूरी योजना दो मिनट में ही उन्हें बता दी। तुम्हारी बातों ने दो सेकेण्ड में मेरा गुस्सा एकदम दबा दिया। मैं जो कहने वाला था उससे बात निश्चित ही बिगड़ती, लेकिन खुद को मैंने तुरंत संभाला और लगे हाथ तुम्हारी बातों को और मजबूती से आगे बढ़ाया।

हमारी बातें सुनकर रमानी बहनों ने आश्चर्य से एक दूसरे को देखा। फिर हम-दोनों पर नजर डाली। बड़ी वाली कुछ देर तुमको देखने के बाद बोली, 'तुमने जितनी आसानी से कह दिया, उतनी आसानी से यह सब होता नहीं। ये काम करोगे तो यहां का काम कैसे होगा? कौन करेगा?'

उनकी इस बात से मुझे तुरंत सुन्दर हिडिम्बा की याद आ गई, मेरा गुस्सा फिर कुलबुलाने लगा, लेकिन तुमने बजाय हिचकने, बहकने के पूरे उत्साह के साथ कहा, 'आप लोग निश्चिंत रहिये। हम-दोनों काम आसानी से कर लेंगे।'

'अगर नहीं कर पाए तो ?'

'पहली बात तो ऐसा नहीं होगा। हम सारा काम संभाल लेंगे, और बदकिस्मती से ऐसा हुआ, तो हम अपना काम बंद कर देंगे। वैसे वह काम भी तो आप ही का है। वो फैक्ट्री का काम है। बाकी यहां का। आप दूसरों को जितना दीजियेगा, हमें उससे चार पैसा कम ही दीजियेगा। हम उसमें भी खुश रहेंगे। बस इतनी कृपा कर दीजिये।'

हम दोनों के बार-बार कहने का असर यह हुआ कि रमानी बहनों ने कहा, 'ठीक है, सोच कर बताएंगे।'

उनका यह कहना ही हमारे लिए बड़ी आशा की बात थी। रमानी बहनें हमारी उम्मीदों से कहीं ज़्यादा आश्चर्यचकित थीं। उस दिन जब हम-दोनों रमानी बहनों को प्रभावित करने के उद्देश्य से दिन भर जी-तोड़ मेहनत कर, रात को सोने अपने कमरे में पहुंचे तो मैंने तुमसे पूछा, 'तुम्हें क्या लगता है, ये दोनों हमें सप्लाई का काम दे देंगी ?'

'देख मैंने इतने दिन बहुत ऊँच-नीच, नरम-गरम देखा है। इन दोनों को भी बहुत दिनों से देख रही हूं। सही कहूं तो इनसे हमने यह बखूबी सीखा है कि, कैसे अपना काम निकाला जाए। मैंने बात तभी कही, जब मुझे सबसे सही मौका लगा। मैं तुमसे अभी से कह दे रही हूं कि, इन दोनों के पास हमें काम देने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है।'

'तुम इतने विश्वाश से कैसे कह रही हो? हमारे पास ऐसी कोई ताकत नहीं है जिससे वो हमें काम देने के लिए खुद को मजबूर समझें, बल्कि वो हमारी मजबूरी अच्छी तरह समझती हैं कि वो हमें कच्चे माल की सप्लाई का काम दें या न दें, लेकिन हम उनकी नौकरी करने के लिए विवश हैं।'

'बात तो तुम सही कह रहे हो, लेकिन हमें इसलिए यकीन है कि, इन दोनों ने जिस तरह से हम-दोनों को पार्टी में इस्तेमाल किया। अपने बाकी कामों में कर रही हैं, उससे उनको यह मालूम है कि, हम उनके बहुत से कामों के राजदार हैं । उनकी हिम्मत नहीं कि, हमें नाराज कर दें, हमारी बात ना मानें।'

'तुम भी क्या फालतू की बातें करती हो। ऐसा कौन सा राज हमने जान लिया है, जो ये हमारी बात मानेंगी, हमसे डरेंगी।'

'फालतू बात नहीं कर रही। मैं तुमसे बहुत पहले से इनको देख, जान रही हूं। मैंने अगर मुंह खोला तो इन बहनों को हथकड़ी लगते देर नहीं लगेगी।'

तुम्हारी इस बात से मैं खीझ उठा। मैंने मन ही मन कहा, ये लंतरानी की नानी कभी-कभी इतनी गप्पें क्यों मारने लगती है। लेकिन मन की इस बात को मन में ही दबाये मैंने तुम से पूछा, 'अच्छा, ऐसी कौन सी बात है? हमें भी बताओ ना।'

'वक्त आएगा तो, तुम्हें भी बताऊँगी।'

'हद हो गई, ऐसे तो दुनिया भर की बातें करोगी, ज़िंदगी भर साथ रहने की बात करोगी, और हमीं से सारी बात भी छिपाओगी। ये कौन सी बात हुई।'

मैं थोड़ा झल्ला उठा, तो तुम प्यार दिखाती हुई बोली, 

'अरे शक काहे कर रहा है। कह रही हूं ना, एक नहीं बहुत सी बातें हैं। बताऊँगी धीरे-धीरे सब। मैं तो कहती हूँ कि सबसे बड़ी बात ये है कि, अगर तुम चाहो तो अब इन बहनों को अपने इशारे पर नचाओ। तुम्हारे अकल तो है नहीं। तुम्हें एक-एक बात बतानी पड़ती है।'

तुम्हारी इन बातों से मैं गुस्सा होते हुए बोला, 'ऐसा है, तू बिना पिए ही बौरा गई है। वे बहनें मुर्ख हैं कि, मेरे, तुम्हारे इशारे पर नाचेंगीं। हम-दोनों इतने ही शेर-बहादुर होते, तो ये बहनें हमारी नौकरानी होतीं और हम इनके मालिक। अरे काम किस तरह आगे बढ़े ये सोच, यही कोशिश कर। इतना ऊंचा ना उड़ कि नीचे उतर ही न पाए। नीचे देखे भी तो पृथ्वी ही ना नजर आए।'

'बाप रे, तू ना एकदम मगज से खाली आदमी है। तभी जहां का तहां पड़ा है। अरे सिर्फ इतना ही सोच कि, उस दिन पार्टी में उन दोनों ने हम-दोनों को नौकर से ऊपर उठाकर ऑफ़िस का कर्मचारी बनाया, रात-भर मेहमानों को खुश करने के लिए हमीं से उनके बिस्तर तक गरम कराए, क्या इतना बहुत कुछ नहीं है। उस दिन का तुझे और भी बहुत कुछ मालूम है, लेकिन जो मैंने देखा वह तुझे नहीं मालूम है। वो ऐसी बातें हैं कि, तू उसे जान ले और मैं जो कहूँ वो करे, तो रमानी बहनों से एक वही काम नहीं, जो चाहेगा, वो करा लेगा।'

'पता नहीं तुम कौन सी पहेली बुझा रही हो। रात-भर उस दिन ऐसा क्या हुआ, जो खाली तुम्हें मालूम है, मुझे नहीं। हम जान लेंगे, तो कैसे इन दोनों को नचाएंगे कम से कम यही बताओ।'

'तुम को तो एक-एक चीज अंगुली पकड़ कर बतानी पड़ती है। सुनो तुम तो उस मेहमान के साथ चले गए रात-भर के लिए। सब तो नशे में थे। एक बहन भी नशे में धुत्त पड़ी थी। मगर दूसरी वाली ने बस कहने भर का नशा किया था, ड्रामा ज्यादा कर रही थी। वह एक-एक आदमी पर नजर रखे हुए थी। तुझ पर तो कुछ ज़्यादा ही। तू जब उस अधिकारी के साथ कमरे था, तो वहां जिस तरह वह नजर लगाए हुए थी, उससे एकदम साफ था कि, वह अधिकारी औरत ना होती, तो वह खुद ही तुम्हें अपने कमरे में ले जाती। उस समय तेरे लिए उसका उतावलापन मैं सब देख-समझ रही थी। औरत हूँ, एक औरत कब क्या चाह रही है, यह मैं तुमसे ज्यादा पढ़ती हूँ, और वह भी जो तुम पढ़ भी नहीं सकते, समझे।'

'ऐसा है तू अपने काम के चक्कर में एकदम पागल हो गई है, समझी।'

'मैं पगला नहीं गई हूं। यह सच फिर कह रही हूँ कि, एक औरत हूं, और दूसरी औरत जो कुछ कर रही है, उसका मतलब क्या है? वह तुमसे ज़्यादा जानती-समझती हूं। यह भी बता दूं कि, वैसा ही एक मौका जल्दी ही फिर आने वाला है, क्योंकि तू तो कुछ समझ पाता नहीं, इसलिए जैसा कहूं, वैसा करते जाना। मैं तेरे को इस बार किसी बाहरी औरत के नहीं, इसी रमानी बहन के आगे कर दूंगी। एक बार तेरा साथ पा जाएगी, तो काम बनते देर नहीं लगेगी।'

तुम्हारी बातें मुम्बई की मेट्रो की तरह चलती जा रही थीं, और मैं तुम्हें आश्चर्य से देख रहा था। सोच रहा था कि अब-तक यही सुना था कि कोई बीवी, प्रेमिका अपने आदमी या जिसे वह चाहती है उस मर्द को, दूसरी औरत के साथ देखना तक बर्दाश्त नहीं करती और एक ये है जो अपने ही हाथों से, मुझे दूसरी औरत की बाहों में भेज रही है।

उस दिन भी इसी ने जोर डाला था। ये इतना पीछे ना पड़ती, तो भले ही रमानी बहनें आधी रात को सड़क पर निकाल देतीं, लेकिन मैं उस औरत के पास जाता नहीं। अब ये आगे रमानी बहन के ही सामने मुझे खड़ा कर रही है। ये जैसा कहती है क्या वाकई मुझसे वैसा ही प्यार करती है ?

ये कैसी औरत है? बीवी है नहीं। जो हरकतें कर रही है, उसे देखकर तो प्रेमिका भी नहीं कह सकते। होती तो वह नहीं करती जो किया, और आगे जो करने की सोचे बैठी है। ये तो रमानी बहनों की ही तरह मुझे मोहरा बना कर अपना उल्लू सीधा कर रही है। मुझे बिल्कुल कोई औजार समझ कर यूज कर रही है।

अपना काम निकालने के लिए रमानी बहनों के सामने मन हुआ तो खुद और जरूरत हुई तो मुझे ही लिटाने को तैयार है। वाकई इसके सामने तो मैं बिल्कुल भोंदू ही साबित हो रहा हूं। लेकिन जो भी हो, कारोबार तो मेरे बिना खिसकेगा ही नहीं। ठीक है तू रमानी बहनों की तरह मुझे औजार बना। शुरू कर कारोबार। चाबी तो मेरे ही हाथ में रहेगी। तेरी भी और तेरे धंधे की भी। डाल मुझे रमानी बहनों के सामने।

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