वह अब भी वहीं है - 36 Pradeep Shrivastava द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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वह अब भी वहीं है - 36

भाग -36

'सच में पुलाव तूने बड़ा बढ़िया बनाया है। पता नहीं कितनी बार सुना था लोगों से खयाली पुलाव बनाना। हवाई किले बनाना। आज दोनों ही देख लिया दो मिनट में। जब मैं विलेन बनने की बात करता था घर पर, तो बाबू जी कहते थे, ''ढंग से पढाई कईके, काम-धंधा संभाला, जेसे कुछ मनई बन जाबा। सोहदन के नाहीं हवाई किला, बनाए-बनाए के जिंदगी बरबाद ना कर।'' तब उनकी बात ठीक से समझ में नहीं आती थी। मगर तूने समझाने को कौन कहे, दो मिनट में बना के दिखा दिया। जा, जा के सो, मुझे भी सोने दे। बेवजह इतनी देर से परेशान करके रख दिया है।'

'सुन-सुन, मैं सच कह रही हूं, बहुत सोच-समझ कर कह रही हूं। खयाली पुलाव नहीं बनाया है।'

'अरे बस कर। ये रमानी बहनें हम-तुम जैसों को घास नहीं डालने वालीं । वो अपने काम का नुकसान कराकर, हमें खुद अपना काम करने के लिए काहे टाइम देंगी। एक बार मान भी लें कि, तुम्हारी बात मानकर काम दे देंगी, तो ये लाखों रुपये की गाड़ी कहा से खरीदेंगे? है कुछ दिमाग में। चली है काम-धंधा करने, रमानी की तरह अरबपति बनने।'

मेरी इस बात पर तुम तमक कर बोली, 'गाड़ी भर का पैसा है मेरे पास, ऐसे ही नहीं बोल रही हूं समझे, और इस काम में गाड़ी के अलावा और कुछ चाहिए नहीं।'

तुम्हारी इस बात ने मुझे एकदम हैरान कर दिया कि, तुम्हारे पास इतने पैसे कहां से आ गए। मैं कुछ देर तुम्हें देखता रहा, तो तुम आगे बोली, 'देखो ये मत समझना कि मैंने कोई चोरी-वोरी की है। बारह-चौदह साल तो हो ही गए हैं नौकरी करते हुए। खाना-पीना मालिकों से चल जाता है, और कपड़ा भी। सारी पगार तो जमा करती आई हूँ।

पहले यह सोचकर जमा करती रही कि, जब काम-धाम लायक नहीं रहूंगी, तब इन पैसों से दो-जून की रोटी का इंतजाम कर लूंगी। लेकिन इन बहनों को देख कर सोचा कि, खाली दो जून की रोटी खाकर पेट भर लेना ही तो ज़िंदगी नहीं। ऊपर वाले ने दुनिया में इतना कुछ बनाया है, आखिर किस लिए। खाली पेट भर देना ही, उसने सोचा होता, तो खाली खाना बनाता, बाकी सब कुछ काहे बनाता। यही सोचकर मैंने सोचा कुछ और भी हाथ-पैर मारूं। शायद ऊपर वाला यही चाहता है। तभी तो उसने इन बहनों की बातें समझने, और कुछ आगे करने की सलाहियत हममें दी। तुमको साथ लूं यह भी उसी की मंशा होगी। तभी तो तुम आए मेरे दिमाग में। जितना पैसा है मेरे पास, उतने में नई ना सही, काम लायक पुरानी गाड़ी आसानी से आ जाएगी। इतना मुझे पक्का यकीन है। अब बताओ, मैंने खयाली पुलाव पकाया था या सच में संजीदगी से सोचा समझा, और तुम से बात की। बोलो।'

तुम्हारी बात सुन कर मैंने सोचा जब इसने इतनी तैयारी कर ली है, तो काम शुरू करने में कोई नुक्सान नहीं। ये सही कह रही है, दोनों मिल कर काम कर लेंगे। बिजनेस को लेकर इसकी समझ भी अच्छी है। पूरी तैयारी किए बैठी है। मैं सोच ही रहा था कि, तुम फिर बोली। 'कुछ बोलोगे। मैं तुम्हीं से बात कर रही हूँ, दिवारों से नहीं।'

तुम्हारे हाव-भाव से मुझे विश्वाश हो गया था, कि तुम यह समझ चुकी हो, कि मेरे पास हाँ कहने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है, तो मैंने कहा, 

'हां, ठीक है। तुमने सोचा तो अच्छा है। लेकिन सब-कुछ इन बहनों की ''हां'' या ''ना'' पर ही निर्भर है।'

'तुम इसकी चिंता मत करो। उनसे मैं ''हां'' करा ही लूंगी। इन दोनों बहनों की बहुत सी चावियां हैं मेरे पास। कौन सा काम कराने के लिए, कौन सी चावी कहां लगानी है, यह मैं अच्छी तरह जानती हूं। तुम खाली अपनी बताओ कि, तुम्हारी ''हां'' है कि नहीं, बस।'

'जब तुम इतना कर चुकी हो तो, मुझे ''हां'' करने में कोई मुश्किल नहीं है। काम बढ़िया है। पैसा आएगा तो और आगे बढ़ेंगे। जब कहना तब शुरू कर देंगे।'

मेरे ''हां'' कहने पर तुम बहुत खुश हो गई। मुझे कुछ देर एक-टक देखने के बाद अचानक ही कमरे से बाहर गई और मिनट भर में वापस आकर, अपना हाथ कुर्ते की बगल से सलवार में ले गई, और नेफे से एक छोटी सी बोतल निकाल कर मुझे देती हुई बोली, 'ले, तेरे लिए लाई हूं। मजा कर।'

मैंने अंग्रेजी शराब की बोतल देख कर कहा, 'तू ये कहां से लाई।'

'ले ना। बोतल पर ना जा। बोतल सस्ती वाली है। लेकिन इसके अंदर माल वही है, जो ये दोनों बहनें गटकती हैं। बहुत महंगी वाली है। पिएगा तो मस्त हो जाएगा।' तुमने बोतल मेरे हाथों में पकड़ाते हुए कहा।

मुझे यह पता था कि, रमानी बहनों के बाद जो बचती है उसे अक्सर तुम गटक लेती हो। मैंने तुम्हें छेड़ते हुए कहा, 'मुझ पर आज इतनी मेहरबानी क्यों? रोज तो पूरी गटक जाती हो । पता तक नहीं चलने देती।'

'मेहरबानी-एहरबानी कुछ नहीं। कभी-कभी थकान के मारे कमर फटने लगती है, तो इन बहनों की बोतलों में से थोड़ा सा ले लेती हूं। आज भी लेने लगी तो सोचा, तेरे से बात करनी है। लेती चलूं तेरे लिए भी। तू भी तो काम करके पस्त हो जाता है। बस यही सोच कर ले आई।'

'अच्छा! चलो बढ़िया किया। आज मैं वाकई रोज से ज़्यादा थका हूं। तेरा भी यही हाल है । इसको पीकर नींद अच्छी आएगी। आ पीते हैं, फिर सोते हैं तानकर। सवेरे जल्दी उठना भी है।'

फिर हम-दोनों पूरी बोतल खत्म कर दी। एक के हिस्से में मुश्किल से दो पैग ही आया। मगर फिर भी बढ़िया लगी। नींद अच्छी आई। रमानी हाउस में आने के बाद वह पहली रात थी जब मैं खूब अच्छी, निश्चिंत नींद सोया। एक और बात यह भी थी, कि छब्बी के जाने के बाद यह पहली रात थी जब मैं छब्बी की याद में उदास होकर नहीं सोया। बल्कि ऐसी रात थी, जब मैं तुमको अपनी बाहों में समेटे सोया तो खुशी से चूर था।

छब्बी को याद कर मन ही मन कहा कि, छब्बी तू परेशान न हो, अब मैं अकेला नहीं हूं। लगता है भगवान ने तुझे समीना के रूप में फिर मेरे पास भेज दिया है। तुम्हारे माथे को चूम कर मैंने मन ही मन कहा था, 'छब्बी-छब्बी मेरी छब्बी।' तब-तक तुम गहरी नींद सोने लगी थी।

रमानी बहनों की नई फैक्ट्री खुलने के कुछ ही दिन बचे थे। इस बीच तुम बराबर सही मौके़ की तलाश में थी कि, अपनी बात रमानी बहनों से कहो। दोनों बहनों की जी-तोड़ सेवा में लगी थी। सेवा से ज़्यादा उसे मशकाबाजी कहना ठीक है। तुम्हारे साथ-साथ मैं भी लगा था।

दोनों बहनों के व्यवहार से हम-दोनों को बहुत उम्मीद हो गई थी।

फैक्ट्री के उद्घाटन से ठीक दो-दिन पहले, हम-दोनों को बहनों ने बड़ी उलझन में डाल दिया यह कहते हुए कि, 'यहाँ एक पार्टी अरेंज की है, जिसमें खा़स मेहमान आ रहे हैं। सारा अरेंजमेंट एक होटल संभालेगा। लेकिन उस समय किसी तरह की कोई कमी ना रहे। किसी भी गेस्ट को किसी तरह की कोई असुविधा ना हो, इसका ध्यान रखना है। साथ ही कम से कम एक दर्जन गेस्ट ऐसे होंगे जो नाइट में रुकेंगे भी।'

हम-दोनों ने सोचा यह कौन सा बड़ा काम है, खुशी-खुशी कह दिया जी हम सब देख लेंगे। पूरा विश्वास दिलाकर हम-दोनों अपने कामों में लगे ही थे कि, हमें फिर बुला लिया गया। पहुंचे तो एक बहन ने यह बताया कि, मेहमानों के सामने हमें कौन से कपड़े पहनने हैं। मुझे जो बताया गया वह किसी शैडो की ड्रेस थी। साहब के यहां मैं यह सब देख ही चुका था। तुमको साड़ी ब्लाउज पहनने को कहा।

जिस ढंग से पहनने को कहा वह किसी बड़े होटल की रिसेप्सनिस्ट ही पहनती हैं। तुमने बड़े संकोच के साथ अपनी समस्या बताते हुए कहा भी कि, 'मैंने कभी साड़ी नहीं पहनी। इसलिए साड़ी पहन कर जल्दी-जल्दी काम नहीं कर पाऊँगी।' लेकिन तुम्हारी एक ना सुनी गई। पहनना है बस, आदेश दे दिया। तुम्हारे पास मैंने एक साड़ी देखी थी। न चाहते हुए भी अपने धंधे को ध्यान में रख कर हम-दोनों ने बहनों के आदेश को सिर-आंखों पर लिया। हम अपना काम कराने के लिए उन दोनों को खुश देखना चाहते थे। हर हालत में।

उस रात तुम अपनी साड़ी-ब्लाउज लेकर आई। उसे पहन कर जल्दी-जल्दी चलने की कुछ देर कोशिश भी की। लेकिन साड़ी उस तरह नहीं पहन पाई, जिस तरह रिसेप्सनिस्ट पहनती हैं। तुम्हारी बार-बार असफल कोशिश पर मैं एक बार हंस दिया, क्योंकि तुम साड़ी को ठीक से बांध तक नहीं पा रही थी।

मेरे हंसने पर तुम थोड़ा ताव दिखाती हुई बोली, 'ऐ विलेन राजा, तुम्हें जरा सा वो तो है नहीं। बैठे-बैठे हंस रहे हो। ये नहीं कि थोड़ी मदद कर दें। साड़ी पहन कर जिस तरह लफड़-लफड़ हो रहा है मेरा पैर, मुझे तो डर लग रहा है कि, कहीं मेहमानों के ऊपर ही ना गिर पड़ूं, और अगर गिरी तो नौकरी गई समझो। साथ जितना ख्वाब है गाड़ी, पैसा कमाने का ना, उस पर भी पानी फिर जाएगा।'

मैंने तुम्हें छेड़ते हुए कहा, 'तू घबड़ा नहीं। साड़ी में तू रमानी बहनों से भी ज्यादा खूबसूरत लग रही है। उन्हें ऐसी सेक्सी वर्कर इतने कम पैसों में ढूंढ़े नहीं मिलेगी। तू एक नहीं दस बार उन मेहमानों पर गिर पड़ेगी, तो भी वो तुझे छोड़ेंगी नहीं। एक बार मुझे भले ही निकाल दें, लेकिन तेरे को तो सवाल ही नहीं उठता।'

'हां-हां, काहे नहीं। सवेरे से बनाने के लिए हमीं तो मिले हैं तुम को। कहां वो गोरी चिट्टी बहनें, कहां हम। हमें सेक्सी बता रहे हो। फिल्मों वाली नौटंकी हमसे ना बतियाया करो समझे।'

तुमने एक मीठी सी झिड़की दी तो मैंने कहा, 'मैं सच कह रहा हूं, एक बात और बताऊँ, मैं तो समझ रहा था कि, जिस स्टाइल से साड़ी पहनने को कहा है उन्होंने, उस तरह से तुम भले ही ना पहन पाओ, लेकिन एक औरत होने के नाते साधारण ढंग से तो पहन ही लोगी। साड़ी रखी है तो पहनना भी जानती ही होगी। मुझे क्या मालूम था कि इस मामले में तुम एकदम ''लिख नाम लोढ़ा हो''।'

मेरी आखिरी बात पर तुम अजीब सी नाक-भौं सिकोड़ कर बोली, 'क्...क्या.. काहे के नाम पर, लोढ़ा क्या बोले?'

'कुछ नहीं, तुम्हारी समझ नहीं आएगा। बस इतना समझ लो कि तुम...छोड़ो जाने दो, तुम इतना ही समझो कि साड़ी पहनना इतना आसान है कि, काम भर की तो मैं ही पहना दूँ।'

यह कह कर मैं हंसने लगा तो तुम थोड़ा बिदकती हुई बोली, 'अच्छा! तो विलेन राजा, साड़ी भी पहना लेंगे। चलो आओ। अगर ना पहना पाए तो...

इसके साथ ही तुमने कई बेहद फूहड़ बातें बोलीं, और अस्त-व्यस्त सी जो साड़ी पहन रखी थी, उसे उतार कर मेरी तरफ फेंकते हुए कहा, 'लो, जानते हो तो पहनाओ, सिखाओ। काहे को मेरी नौकरी खतरे में डाल रहे हो।'

यह कहते हुए तुम थोड़ा गंभीर हो गई। तब मुझे लगा कि अब तुम्हें छेड़ना ठीक नहीं। मगर यह कह कर मूर्खता तो कर ही चुका था कि, काम भर की साड़ी पहना सकता हूं। मैंने सोचा जैसी भी आती है, ना पहनाई तो तुम वाकई नाराज हो जाओगी। यह सोचकर मैं साड़ी लेकर उठा और तुम्हें पकड़ कर कहा, 'चल मेरी हिरोइन तेरे को साड़ी पहनाता हूं। पता नहीं इन रमानी बहनों के हिसाब से पहना भी पाऊँगा कि नहीं।'