वह अब भी वहीं है - 38 Pradeep Shrivastava द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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वह अब भी वहीं है - 38

भाग -38

दोनों बेली नर्तिकियों के शरीर की थिरकन इतनी तेज़ थी कि बिजली भी शरमा जाए। वे पेट, नितंबों, स्तनों को ऐसे थिरका रही थीं, खासतौर से स्तनों, नितम्बों के कम्पन्न इतने तेज़ थे कि, आंखों की पलकें बंद होना ही भूल गईं। दोनों डांस करती-करती मेहमानों के करीब जातीं, कभी उनके ऊपर ही एकदम झुक जातीं, कभी थिरकते स्तन करीब-करीब चेहरे पर लगा देतीं।

कई मेहमान भी उनके साथ उठ-उठ कर थिरकने लगते। कुछ महिलाएं भी उठ-उठ कर थिरकती रहीं। उन्हें देख कर मेरे मन में आया कि, इन दोनों ने कपड़ों के नाम पर एक सूत भी नहीं पहना है, तन पर मेकअप के सिवा कुछ भी नहीं है। फिर भी इतने लोगों के सामने कितना निसंकोच नृत्य कर रही हैं, इसे इनकी बेशर्मी कहूं, इनकी कला कहूं, या पैसे के लिए तन बेचना।

फिर सोचा चाहे जो भी हो, ये जो भी कर रही हैं, ये कोई आसान काम नहीं है। इतनी तेज़ वाद्य-यंत्रीय संगीत पर जिस तेज़ी, कुशलता से ये शारीरिक भावभंगिमाएं प्रस्तुत कर रही हैं, यह निश्चित ही इनकी शानदार कला है। और शानदार कला की प्रशंसा की ही जानी चाहिए। तुम्हें देखते ही मैंने छेड़ने की गरज़ से तुमसे पूछा कि, 'ये दोनों बिना कपड़े उतारे नहीं नाच सकतीं क्या ?'

तो तुम फुसफुसाती हुई बोली, 'तू उनके तन पर कपड़े क्यों ढूँढ रहा है, उनका नाच देख बस। कपड़े पहन लेंगी तो तुम सब आँखें फाड़-फाड़ कर जो देख रहे हो वो कहाँ दिखेगा? और वो नहीं दिखेगा तो तुम सब उनका नाच देखोगे क्या? मैं भी सब देख-समझ रही हूँ, नाच नहीं सब उनका बदन देख रहे हैं बस। बात करता है नाच की।' यह कहते हुए तू एक महिला मेहमान के पास चली गई, शायद उसने संकेत से बुलाया था। तभी मेरा ध्यान इस ओर भी गया कि सबसे ज्यादा वही तुम्हें बुला रही थी।

यह सब रात दो बजे तक चला। इसके बाद कुछ मेहमान चले गए। उनके जाने के बाद रमानी हाउस में जो कुछ हुआ, वह हम-दोनों के लिए आश्चर्यजनक था। हर पल हम-दोनों की आंखें आश्चर्य से फैली जा रही थीं। मैं यह भी देख रहा था कि तुझे आश्चर्य तो जरूर हो रहा था, लेकिन तुम कहीं से अटपटा नहीं महसूस कर रही थी, न ही तुम्हें बुरा लग रहा था।

मुझे सबसे बड़ा आश्चर्य तो तब हुआ, जब देखा कि तुम भी कुछ नशे में हो। जबकि तुमने पहले कहा था कि पार्टी में हम-दोनों को नशा छूना भी नहीं है। लेकिन तुम ना जाने कब हाथ साफ कर गई, मुझे पता तक नहीं चला। मैंने जब तुमसे कहा तो तुम बहुत इठलाती हुई बोली, 'अरे मेरे विलेन-राजा ज़िंदगी का मज़ा ले, ऐसा मज़ा, ऐसा मौक़ा जल्दी-जल्दी नहीं मिलता।'

मेरे कुछ बोलने से पहले ही तुम आगे बढ़ गई। तुम शुरू से ही रमानी बहनों के साथ ज्यादा से ज्यादा चिपक रही थी, फिर एक अधेड़ से मेहमान के साथ लग गई। तभी मैंने साफ़-साफ़ महसूस किया कि तुम मुझसे अलग-थलग रहने की पूरी कोशिश कर रही हो। और तब मेरे दिमाग में यह प्रश्न उठे बिना नहीं रहा कि, तुमने मुझे अलग कर अपने बिजनेस के लिए कोई दूसरा रास्ता, दूसरा साथी ढूँढ लिया है क्या ? दूसरा रास्ता न मिलने तक मुझे बेवकूफ बना कर इस्तेमाल कर रही थी।

मैंने मन ही मन सोचा कि, यदि तुमने मुझे धोखा दिया, तो मैं तुम्हें इस लायक नहीं छोड़ूंगा, कि बिना मेरे तुम एक कदम भी आगे बढ़ सको। मैं तुम्हें रमानी बहनों की ही तरह बहुत होशियार समझने लगा, जो उस समय अच्छे-खासे नशे में थीं, लेकिन तब भी हर काम पर तगड़ी नजर बनाये हुए थीं।

खाने-पीने के बाद मेहमानों को दो-ढाई बजते-बजते आराम करने, सोने के लिए अलग-अलग कमरों में पहुंचा दिया गया। हर कमरे में एक जोड़ा। एक रमानी बहन भी, एक मेहमान के साथ एक कमरे में बंद हो गई। दूसरी इतनी पस्त थी कि, उसे तुम पकड़ कर उसके कमरे में पहुंचा आई। रमानी बहनों ने बड़ी अजीब सी खुली-खुली ड्रेस पहनी हुई थी।

जब तुम उन्हें, उनके कमरे तक पहुंचा रही थी, तो उनका छोटा कपड़ा भी, उनके तन पर संभल नहीं रहा था। तुम जिस तरह उन्हें लेकर गई, उसे देख कर मुझे छब्बी की याद आ गई। वह सुन्दर हिडिम्बा को उसी तरह संभालती थी। दोनों बहनों ने मेहमानों के साथ डांस भी किया था।

जब मैं सारे ताम-झाम समेटवाने लगा, तभी तुम कुछ लहराती हुई सी भागी-भागी मेरे पास आई, और जो अधेड़ सी महिला मेहमान तुम्हें ज्यादा बुला रही थी, उसके बारे में बताते हुए कहा, 'वह तुम्हारे साथ रात बिताना चाहती है।'

मैंने आश्चर्य से तुमको देखते हुए कहा, 'तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है क्या? जिसे जानता तक नहीं, उसके साथ मैं सोऊंगा।'

वह मेहमान करीब-करीब सुन्दर हिडिम्बा जैसी ही थी, मगर उसका रंग काफी हद तक मुझसे मेल खा रहा था।

मैंने मना कर दिया तो तुम पता नहीं क्या भुनभुनाती हुई, लहराती हुई ही चली गई। मगर पांच मिनट भी नहीं बीता कि फिर अफनाई हुई सी लौटी, और रमानी बहन का हवाला देकर बात दोहराई। कहा, 'दोनों बहनें बहुत जोर देकर कह रही हैं, जाओ। वह एक बहुत बड़ी हस्ती है, अधिकारी है।'

अब मेरा दिमाग हत्थे से उखड़ गया। मैंने झल्लाते हुए कहा, 'उनके लिए होगी बड़ी हस्ती, अधिकारी। काम उनके करेगी मेरे नहीं। मैं इनका नौकर हूं, दास नहीं। अब समझा मुझे, तुम्हें सूट, साड़ी पहनाने का मतलब क्या है ? अभी मुझे उस औरत के पास भेज रही हैं, मेरे जाते ही तू भी तैयार हो जा, तुझे किसी मर्द के पास यह कह कर भेजेंगी कि, वह आदमी बड़ी हस्ती है, अधिकारी है, वह तुझे बुला रहे हैं, रात भर साथ सोने के लिए।'

'अरे नहीं, ऐसा नहीं करेगी। तू मर्द है इसलिए कह दिया।'

'बड़ी मूर्ख है तू। अरे जब औरत होकर उसने मुझे बुला लिया। तो जो मर्द आए हैं, उनमें से कोई तुझे नहीं बुलाएगा क्या? क्या मैंने देखा नहीं कि, साले किस तरह तेरे को घूर रहे थे, ऊट-पटांग हरकतें कर रहे थे।'

'सब देख-समझ मैं भी रही थी। तू तो खाली इतना ही देख पाया। पूरा तो देख ही नहीं पाया।'

'पूरा नहीं देख पाया! क्यों? कुछ और भी किया क्या?'

'इसीलिए तेरे को लापरवाह कहती हूं। एक नहीं दो ने मुझे कई बार पकड़-पकड़ कर खींचा। बदन को कई जगह मसला, सहलाया। यह सब रमानी बहनें देख भी रही थीं, और मुस्करा भी ।'

'हद हो गई, तूने मना भी नहीं किया।'

'मना क्या करती? जब देख रही हूं कि, सब उनकी आंखों के सामने हो रहा है, वो कुछ कहने के बजाय मुस्करा रही हैं। तो मैं समझ गई कि, उनकी भी यही मंशा है, इसलिए चुप रही।'

'अरे उनकी मंशा थी ना, तेरी तो नहीं, तू तो साफ मना कर सकती थी। उन सालों का हाथ झटक सकती थी।'

'तेरी कमी यही है, कि तू कभी दिमाग से कोई काम करना नहीं जानता। बस दिल की बातें मानता है। मना करने पर ये बहनें तुरंत मुझे और तुझे भी नौकरी से निकाल, धक्के देकर घर से बाहर कर देतीं। इस समय हम यहां नहीं, बाहर कहीं सड़क पर फटे-पुराने कपड़ों में भटक रहे होते। और सुन, मेरी चिंता मत कर। मैं देख चुकी हूँ, सारे मर्द किसी ना किसी औरत के साथ हैं। इसलिए मुझे कोई बुलाने वाला नहीं।'

तुम्हारी इस दलील से मेरा गुस्सा और बढ़ गया, मैंने कहा, 'तू तो बिल्कुल उनकी वकील बनकर, मुझे उस कमीनी औरत के पास भेजने पर तुली हुई है। मैं दूसरी औरत के साथ सोऊंगा, तेरे को बुरा नहीं लगेगा?'

'ओफ्फो! ये बहस करने का टाइम नहीं है। जो करना है जल्दी कर। मैं तेरी ही बात दोहरा रही हूँ, कि इस समय सिर्फ़ इतना समझ कि उसके पास जाएगा तो अपना भी कारोबार चल पड़ेगा। नहीं जाएगा तो सड़क पर इसी समय चलने की तैयारी कर ले। हां, मैं तेरे साथ थी, तेरे ही साथ रहूंगी। कारोबार की ओर ले चलेगा तो वहां भी, सड़क पर ले चलेगा तो वहां भी। मैं उनकी वकील नहीं हूं, इसलिए जिधर ले चलना है, उधर ले चल, मगर जल्दी चल।'

'एक बात बता, यदि तू मेरी जगह होती तो क्या करती? सड़क की ओर चलती या कारोबार की ओर। चल बता, जल्दी बता?'

मैंने सोचा था कि ऐसे तुम उलझ जाओगी, और मुझे उस सांवली हिडिम्बा के पास जाने के लिए नहीं कहोगी। तब मेरे लिए भी मना करना आसान होगा। मगर तुमने जो कहा, उससे मैं सेकेंड भर में चारों खाने चित्त हो गया। मेरे पूछने पर तुमने पल भर को मेरी आंखों में देखा, और पूरी सख्ती से बोली, 'मैं तुझे लेकर कारोबार की ओर जाती, क्योंकि कारोबार ही सही मायने में ज़िंदगी देगा। बाकी बातें तो ढकोसले हैं, जो कीड़े-मकोडों की तरह सड़क पर रेंगने, लोगों की ठोकरें खाने, उनके पैरों तले कुचल कर मरने के लिए धकेल देंगी ।'

तुमने बड़ी चालाकी से मुझे भी समेटते हुए अपनी बात कही, और मुझ पर जाने का पूरा दबाव बना दिया। तुम्हारी बात से मुझे यह समझते देर नहीं लगी कि, यदि मैं निकाला गया तो तुम बिलकुल भी मेरे पीछे आने वाली नहीं। उस समय ऐसी ही कोई बात कह कर तुरंत पीछे हट जाओगी, मेरा साथ छोड़ दोगी।

मैं तुम्हारी बात का बहुत कठोर जवाब देने जा रहा था, कि तभी एक रमानी बहन, बहकती चाल में हमारी तरफ आती दिखाई दी। मुझे समझते देर नहीं लगी कि, मामला गंभीर हो चुका है। वह सांवली हिडिम्बा खा-पीकर एकदम बऊरा चुकी है, अब वह किसी की सुनने वाली नहीं। उसके मन का न हुआ तो वह मदमस्त हथिनी की तरह सब को रौंद डालेगी। तुम्हारा जवाब मुझे मिल ही चुका था। रमानी बहन मुझ तक पहुचनें से सात-आठ क़दम पहले ही रुक कर बोली, 'बासू, सैमी यहां क्यों टाइम पास कर रहे हो। मैंने कहा था गेस्ट को कोई प्रॉब्लम नहीं होनी चाहिए?'

मैं कुछ बोलता कि उसके पहले ही तुमने कह दिया, 'कोई प्रॉब्लम नहीं होगी मैडम। आप जाइए।'

यह सुनते ही वह जैसे झूमती हुई आई थीं, वैसे ही झूमती हुई चली गईं। उनके जाते ही तुम बोली, 'देख, दिमाग से काम ले। जो करना है जल्दी कर। अब टाइम नहीं है। वो औरत एकदम बौखलाई हुई है। और वैसे भी, ऐसा तो है नहीं कि तू किसी औरत के पास पहली बार जा रहा है।'

दिमाग से काम ले, यह कह कर तुमने मुझे एक तरह से आदेश ही दिया था कि, मैं किधर जाऊं। तुमने सिर्फ़ कहा ही नहीं, बल्कि हल्के हाथ से मुझे उधर ही जाने के लिए धकेल भी दिया। कोई रास्ता ना देख मैं उधर ही बढ़ता हुआ बोला, 'ठीक है, दिमाग से ही काम लेता हूं। ऐसी सेवा करूंगा कि जीवन में दुबारा इतनी मस्ती में नहीं आएगी। मर्द की छाया से भी कांपेगी।'

कुछ कदम ही आगे बढ़ा था कि तुम लपक कर मेरे पास आई, कान में फुसफुसा कर कहा, 'देख कुछ गड़बड़ ना करना। मैं फिर कह रही हूं, कि दिमाग से काम ले, दिमाग से।'

तुम इसके आगे कुछ बोलती कि, मैं फिर पलटा और तुम्हें खा जाने वाली नजरों से देखते हुए कहा, 'दिमाग से ही काम ले रहा हूं, दिखाई नहीं दे रहा। चल जा अपना काम कर, जा भाग यहाँ से।'