वह अब भी वहीं है - 45 Pradeep Shrivastava द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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वह अब भी वहीं है - 45

भाग -45

मेरे इस असमंजस से तुम खीझती हुई बोली, 'तेरे मगज में भी कब क्या भर जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता। अरे आदमी तो गलती करता ही रहता है। तभी तो बार-बार भगवान के पास जाकर माफी मांगता रहता है, और भगवान इतने दयालु हैं कि, उसे माफ करते रहते हैं। उसे गलतियों को समझने, सुधारने के लिए अकल देते रहते हैं । बार-बार उसे ठोकर भी देते रहते हैं कि गलतियों से तौबा कर ले। लेकिन जब वह नहीं मानता, तब भगवान उसे ऐसी ठोकर देते हैं कि फिर वह कभी भी संभल नहीं पाता।

सुन, अपने साथ हो रहे अन्याय को सहना भी उतना ही बड़ा अन्याय करने जैसा पाप होता है। यह तो मैंने महाभारत सीरियल में देखा-सुना था। मैं तो समझती हूं कि, हम-दोनों ने जो भी किया, वह उन दोनों बहनों ने हमारे साथ जो जुल्म किया, उसी का हमने जवाब भर दिया है बस। तेरा तो कुछ समझ में ही नहीं आता कि, कब क्या करेगा, क्या नहीं करेगा। छोड़ जाने दे, ज़्यादा माथा-पच्ची ना कर। जब मन हो तब चले चलना।'

इतना कह कर तुम मटकती हुई चली गई। तुम्हें कुछ काम याद आ गया था। तुम्हारी एक ख़ास आदत थी कि, जब कोई बात तुम्हारे मन की नहीं होती थी, तब तुम अपनी बात कह कर पैर पटकती हुई फट से चल देती थी। उस समय भी तुमने यही किया। ऐसे में तुम्हारे भारी कूल्हे बड़ी तेज़ी से बल खाते थे। जब से तुमने साड़ी बांधनी शुरू की थी, तब से वो मुझे कुछ ज़्यादा ही बल खाते दीखते थे।

उस समय भी जब-तक तुम दिखती रही, तब-तक मैं तुम्हें देखता रहा। तुम पर बड़ा प्यार आ रहा था। तुम जब भी तुनक कर सामने से ऐसे जाती थी, तो कितना भी भूला रहूं, मुझे छब्बी की याद आ ही जाती थी। वह भी जब गुस्सा होती थी, तो तुम्हारी ही तरह पैर पटकती हुई जल्दी-जल्दी चलती थी।

छब्बी के साथ ही उसकी कही एक बात भी लगी चली आई, जिसने मुझे अपने घर बड़वापुर से जोड़ दिया, बड़ी तेज़ याद आ गई वहां की। इतनी कि, जी किया भगवान हनुमान जी की तरह पलक झपकते उड़ कर पहुँच जाऊं वहाँ। बहुत दिन बाद ऐसी याद आई थी। पूरा बड़वापुर, जंगीगंज, गोपीगंज, ज्ञानपुर सब एकदम आंखों के सामने नाचने लगे।

ज्ञानपुर के पुरानी बाज़ार का पोखरा, उसके बगल में स्थित भगवान हरिहर नाथ मंदिर, वहां स्थापित बाबा भैरवनाथ से लेकर भगवान गणेश तक। कॉलेज में हमको हिंदी साहित्य पढ़ाने वाले प्रोफ़ेसर साहब जब कोर्स के अलावा बात करते तो ज्ञानपुर का इतिहास भी बताते, कहते ''यह बड़ा पवित्र, प्राचीन स्थान है। यहाँ शिवलिंग की स्थापना तो द्वापर युग में जब धर्मराज युधिष्ठिर आये, तो उन्होंने की थी।''

मुझे लगा जैसे गणपति बप्पा ने मुझे वहीं ले जा कर खड़ा कर दिया, कि जहां अपराध किया, क्षमा-याचना भी वहीं करो। मैं अचानक ही बड़ा भावुक होने लगा। ज्ञानपुर क्या पूरे भदोही की ही पिक्चर आंखों के सामने चलने लगी। ''चकवा महावीर मंदिर'' पर हर साल लगने वाला मेला और वहां अपने साथ घटी एक घटना याद आई।

हुआ क्या था कि एक बार तमाम दोस्तों के साथ मेला गया था। ''चकवा महावीर यानी'', हनुमान जी के दर्शन किए, प्रसाद चढ़ाया, फिर घंटों मेला घूमने के बाद दोस्तों के साथ ही साइकिल से घर वापस आ रहा था। सात-आठ साइकिलों पर कई दोस्त थे। आपस में तेज़-तेज़ बतियाते मस्ती करते सब चले आ रहे थे। हम-सब आधी सड़क घेरे चल रहे थे। पीछे से आने वाली गाड़ियों को रास्ता नहीं दे रहे थे।

जब वो हॉर्न दे-देकर एकदम सिर पर आ जाते, तभी हम उन्हें रास्ता देते। ऐसे ही एक ट्रक वाला बड़ी देर से रास्ता मांग रहा था, और हम-सब शरारत में किनारे नहीं हट रहे थे, तो उसने अचानक ही ट्रक की गति एक-दम तेज़ कर दी। जब-तक हम कुछ समझते वह चार-पांच साइकिलों में ठोकर मारता हुआ आगे निकल गया।

सभी सड़क किनारे जिस गढ्ढे में गिरे, उसमें पानी था, जलकुंभियां थीं, जो हम गिरने वालों के लिए स्पंज जैसी बन गईं। हम कीचड़-मिट्टी में नहा तो गए लेकिन चोट किसी को नहीं आई। इतना ही नहीं, ट्रक वाले को भी ना जाने क्या हुआ कि, कुछ ही मीटर आगे जा कर वह भी किनारे गढ्ढे में पलट गया। वहां लोगों का मजमा लग गया। टक्कर मारने वाला ड्राइवर, क्लीनर दोनों ही पकड़ कर पुलिस के हवाले कर दिए गए। आश्चर्य तो यह कि, उन दोनों को भी खरोंच तक नहीं आई थी।

जब-तक मैं घर पहुंचा तब-तक अम्मा का रो-रो कर बुरा हाल हो गया था। उनको सूचना पहले ही मिल चुकी थी। छोटी जगहों में यही होता है, कि कोई घटना हुई नहीं कि आदमी से पहले घटना की सूचना पहुँच जाती है। अगले दिन अम्मा हमें लेकर परिवार सहित बाबा हरिहरनाथ और चकवा महावीर मंदिर प्रसाद चढ़ाने गईं, कि भगवान ने हमारे प्राणों की रक्षा की।

समीना जब आदमी बीते दिनों में खोता है, तो वह किन-किन यादों में खो जाए, क्या-क्या सोचने लगे, इसकी कोई सीमा नहीं होती। मैं भी इन्हीं सारी यादों में खोया सोचने लगा कि, यदि सब ठीक-ठाक रहा तो तुमको लेकर इन जगहों पर एक बार जाऊँगा जरूर। और घर भी। हो सकता है भाई-भाभी सब माफ कर दें, अपना ले हमें।

मैं अपने सपनों की दुनिया में खोया ही था, कि तभी तुम अचानक ही आ धमकी। आते ही मेरे कंधे पर हाथ मारती हुई बोली, 'अरे तू अभी तक यहीं बैठा है, चल काम कर। तू कभी तय नहीं कर पाएगा कि जाना है कि नहीं। मैं ही कभी तेरे को ले चलूंगी।'