वह अब भी वहीं है - 13 Pradeep Shrivastava द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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वह अब भी वहीं है - 13

भाग -13

उसी दिन मैंने देखा कि अपने लक्ष्य के लिए कैसे जुनूनी होकर कोशिश की जाती है, और लक्ष्य पाने के लिए कैसे अपने को फिट रखा जाता है। मैडम केवल सप्ताह के दो-दिन खूब जम के खाती-पीती थीं। मस्ती करती थीं। सप्ताहांत होने की पहले वाली शाम और रात, अगले दिन पूरी छुट्टी, बाकी दिन यदि रात में दो-तीन पैग शराब को छोड़ दें, तो बड़ा संयम से रहती थीं, कड़ी मेहनत करती थीं।

समीना दो-चार दिन बाद मेरा मन वहां लगने लगा। साहब के यहां की तरह यहां एक खास तरह का भय हावी नहीं रहता था। यहां आए दस दिन बीता होगा कि, जो नौकर अपने घर गया था उसका फ़ोन आया कि, अपने घर की नाजुक हालत के कारण अब वह कभी नहीं आ पाएगा। साथ ही उसने मैडम से यह भी प्रार्थना की, कि उसका जो भी थोड़ा बहुत सामान, कपड़ा-लत्ता है, वह और उसकी पगार पार्सल, मनीऑर्डर से भिजवा देंगी तो बड़ी कृपा होगी।

अगले ही दिन तोंदियल के माध्यम से मैडम ने यह सब करा दिया। पार्सल का खर्चा भी उस नौकर की पगार से नहीं काटा। जबकि पांच अलग-अलग बड़े पैकेटों में पार्सल भिजवाया था। इतना ही नहीं, उसका जो पैसा बन रहा था, उसमें एक महीने की तनख्वाह और बढ़ा कर भेजी। समीना यह सब देख कर मैं एकदम दंग रह गया कि, जिस शहर में मरते हुए को एक गिलास पानी देने के लिए भी नहीं रुकते, क्षणभर को किसी के पास टाइम नहीं कि, धंधे का खोटी होगा। उसी शहर में एक यह भी हैं। मेरे मन में उनके लिए बड़ा सम्मान उभर आया साथ ही स्वार्थ भी कि, मैडम से कहूंगा कि मुझे कहीं एक्टिंग का एक मौका दिला दें।

समीना नौकर का वापस न आना आगे चल कर मेरे, छब्बी के लिए बहुत घटनापूर्ण साबित हुआ। मुझे, छब्बी को वहां स्थाई रूप से रुकना पड़ा, क्योंकि छब्बी की तरह मैं भी मैडम की अपेक्षाओं पर खरा उतर रहा था। इस बीच एक दिन बड़ी समस्या आ खड़ी हुई। मैडम ने बताया कि, नियमानुसार मेरा पुलिस वेरिफिकेशन कराना है, जिसके लिए होम डिस्ट्रिक का पता चाहिए। मैंने टालने की कोशिश की, तो वह और पीछे पड़ गईं।

अंततः मैंने विलेन-किंग बनने की सारी बात बताते हुए कहा, 'इतने दिन हो गए हैं घर से गायब हुए, मैं किसी भी सूरत में वहां कोई खबर नहीं होने देना चाहता। इसलिए वह ऐसा कुछ ना करें, भले ही मुझे नौकरी से निकाल दें।' साथ में मैंने एक्टिंग का मौका दिलाने की बात भी कह दी। अपना सपना पूरी तरह चूर होता देख मेरा रोंया-रोंया क्रोध से भड़का हुआ था, मेरा शरीर साफ़-साफ़ थरथराता हुआ दिख रहा था। उन्होंने कुछ देर मुझे घूरने के बाद कहा, 'ओ.के. गो।'

इसके बाद मुझसे कई दिन तक कुछ नहीं कहा। मैं बड़े असमंजस में पड़ा रहा कि, वह क्या करेंगी? जब बर्दाश्त नहीं हुआ तो पांचवें दिन मैंने विनम्रतापूर्वक पूछ ही लिया कि उन्होंने क्या फैसला लिया। इस पर वह अपेक्षा के विपरीत थोड़ा रूखे स्वर में बोलीं 'तुमने कहा घर तक बात नहीं जानी चाहिए तो नहीं जाएगी। परेशान होने की जरूरत नहीं।'

उनकी इस बात से मेरे जान में जान आ गई। मैंने उन्हें कई बार धन्यवाद दिया। फिर एक-एक करके मैडम के यहां आठ महीने गुजर गए। इस बीच मैं मैडम के साथ ध्यान, प्राणायाम, सूर्य-नमस्कार आसन में पारंगत हो गया। इससे कम से कम स्वास्थ्य, इच्छाशक्ति, मनोबल, चुस्ती-फुर्ती में मैं बहुत ही ज़्यादा अच्छा महसूस करता था। छब्बी के साथ अब मेरी नजदीकियां बहुत ज़्यादा बढ़ गई थीं। अब हम एकदम खुल कर हंसी-मजाक करते थे। इतना खुलकर कि, उससे ज्यादा खुलने के लिए एक और सीमा गढ़नी पड़ती। हमारी नजदीकियां अब साथी से आगे निकल कर प्रेम के स्तर तक पहुंच गई थीं।

यह बात तोंदियल को बहुत अखरती थी, और अपना यह गुबार वह मौका मिलते ही किसी न किसी बहाने मुझे झिड़क कर निकालता। मैडम के सामने मुझे फंसाने, ज़्यादा से ज़्यादा काम मुझ पर लादने की कोशिश करता। इस बीच क्योंकि मैडम का विश्वास मैंने जीत लिया था, सो मेरी भी हिम्मत अब बढ़ चली थी, तो मैंने धीरे-धीरे उसे यह समझा दिया कि, 'छब्बी तेरी जागीर नहीं है। अगर वो मुझे चाहती है, तो मैं इसमें क्या कर सकता हूं? तुम उसे रोक सकते हो तो रोक लो, मैंने तुम्हें मना किया है क्या?' फिर मैंने एक पाशा और फेंका, और यह पाशा इतना सटीक पड़ा कि मैं खुद दंग रह गया।

मैंने कहा, ' देखो तुम्हारे बीवी-बच्चे हैं, हंसता-खेलता परिवार है। तुम एक भाग्यशाली आदमी हो। मुझे देखो सब कुछ होकर भी कुछ नहीं है। मूर्खता में अपने हाथों अपनी खुशियों में आग लगा ली। आज मर जाऊं तो कोई पूछने वाला नहीं। सरकार लावारिस लाश कहकर कहीं कुछ कर देगी। यह भी तब जब भाग्य कुछ साथ देगा। नहीं तो अंतिम वस्त्र तक नसीब नहीं होगा। कहीं पड़ा, सड़-गल कर खत्म हो जाऊंगा। कोई आंसू बहाने वाला होगा यह छोड़ो, किसी की आंखें भी गीली न होंगी। ऐसे में तुम भी अपनी बसी-बसाई ज़िंदगी में अपने हाथ क्यों आग लगा रहे हो। छब्बी तुम्हारा कोई मेल नहीं है। इसलिए क्यों नाहक अपना जी जलाते हो। हंसी-मजाक तक तो बात समझ में आती है, लेकिन उसे इतनी गंभीरता से लेना तुम्हारे परिवार को नष्ट कर देगा।'

मेरे तर्क काम कर गए और तोंदियल सिमट गया अपने खोल में। अब मैं बिना रुकावट छब्बी के साथ मजे लेने लगा। समीना क्या है कि, जब व्यक्ति को उसका मनचाह नहीं मिलता, उसे लगता है कि यह संभव नहीं है, तो उसका मोह भंग हो जाता है, और वह फिर जिस ओर मुड़ता है, उसी ओर चलता चला जाता है। तो तोंदियल भी जब मुड़ा तो वापस मुड़कर नहीं देखा। वह छब्बी हमारे बीच अब एक मित्र तक ही रह गया। वह भी वैसा मित्र जो एक जगह काम करने के कारण एक दूसरे को जानते हैं। उसकी हंसी-मजाक भी अब पहले जैसी नहीं होती थी। छब्बी तो उससे पहले ही खिंच चुकी थी।

समीना जल्दी ही वह दौर भी शुरू हो गया, जब मैं मौका मिलते ही छब्बी को बांहों में भर लेता। उसे जी भर के प्यार कर लेता। चौबीस घंटे में यह मौका एक बार निश्चित मिलता था। लंच टाइम में। जो मात्र तीस मिनट का ही होता था। उस समय ऐसे कोने में उसे लेकर जरूर पहुंचता था, जहां कैमरे से बच कर छब्बी को पा सकूं। वह भी जैसे इस पल का इंतजार करती थी।

समीना यह सब चल रहा था, और ज़िंदगी रोज नए रंग दिखा रही थी, लेकिन फिर भी मेरा विलेन-किंग बनने का सपना कहीं से टूटा नहीं था। हां समय के किसी छोटे से हिस्से में कभी पलभर को कुहासा सा आ जाता था। मैडम मेरी उम्मीद बनी हुई थीं। मैं कैसे अपनी बात उनके सामने मज़बूती से रख सकूं, इसका एक जरिया छब्बी के रूप में अब मेरे सामने था। मगर उनके सामने अपनी बात रखने से पहले मैं मैडम को अच्छे से समझ लेना चाहता था, उनके विचारों को पढ़ लेना चाहता था। वह भी छब्बी के माध्यम से। क्योंकि छब्बी उनके ज़्यादा करीब थी, और मुंह लगी भी। उनके बेडरूम में भी वह लंबे समय तक उनकी सेवा करती थी। जैसा वह बताती थी, उससे यह भी साफ था कि, वह उनसे हल्का-फुल्का मजाक भी कर लेती थी।

अब क्योंकि वह मेरे बेहद करीब थी, तो मैं बेहिचक उससे मैडम के बारे में पूछताछ करने लगा। खुलकर बात करने का मौका हमें छुट्टियों वाले ही दिन मिलता था। और बॉलकनी हमारा ठिकाना होती थी। तोंदियल से मिन्नत कर मैं उसे अलग कर देता था। वह अंदर टी.वी. देखता या तान के सो जाता। कैमरों के कारण हमारी मन-पसंद जगह बॉलकनी ही थी। शुरू में मैडम की बात बताने से हिचकने वाली छब्बी बाद खुलकर सब बताने लगने लगी। बल्कि तमाम बातें तो खूब चटखारे ले-लेकर बताती। हालत यह हो गई थी कि, बाद के दिनों में मैं पूछूं, उससे पहले वह खुद ही शुरू हो जाती।

उसने साफ बताया कि, मैडम डेली रात में साहब से बात करती हैं। मेरे सामने सारी बातें अंग्रेजी में करती हैं, इसलिए मुझे कुछ पल्ले नहीं पड़ती। हां दो-चार बातें ऐसी हैं, जिसे वह रोज कई बार बोलतीं हैं। जैसे नॉटी ब्वाय, बाओ, ओ.के., कूल, ओह नो, नोनो इन बातों का तात्पर्य मैं निकाल लेता था।

उसने यह भी बताया कि, मैडम अंदर लगे टी.वी. पर काफी देर तक अलग-अलग न्यूज चैनल देखने की आदी हैं। उन्हें पुराने फ़िल्मी गाने पसंद हैं। जो हल्के वॉल्यूम पर चलता है। मुकेश, किशोर, हेमंत कुमार, मन्ना डे को जरूर सुनती हैं। इसके अलावा हॉलीवुड की ऐक्शन मूवी भी देखती हैं। मगर अजीब आदत यह है कि, इन मूवी को देखते समय वह टी.वी. की आवाज़ बिल्कुल बंद कर देती हैं। इधर हिंदी गाने सुन रही होती हैं, और उधर टी.वी. देख रही होती हैं। छब्बी ने इसे अजब-गजब तमाशा नाम दिया था।

उसने यह भी बताया था कि, मैडम एक बजे से पहले कभी नहीं सोतीं। सोने से ठीक पहले वह मॉनिटर पर पूरे घर को चेक करतीं हैं। सोने के आधे घंटे पहले अपनी पसंदीदा ब्रांड की व्हिस्की के दो पैग लेना उनकी नियमित आदत है। उनकी आदतों में चौंकाने वाला एक तथ्य यह भी था कि वह शराब पीने से पहले पूजा करतीं थीं। बेडरूम में ही बेड के सिरहाने एक बेहद छोटी सी चंदन की लकड़ी की बहुत खूबसूरत नक्काशीदार अलमारी थी। जिस पर चांदी के सिंहासन पर ''मां वैष्णों देवी'' की चांदी में ही मढ़ी हुई एक फोटो रखी थी । जिसके सामने वह आंख मूंद कर ग्यारह बार गायत्री मंत्र का जाप करती थीं।