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महामाया - उपन्यास
Sunil Chaturvedi
द्वारा
हिंदी सामाजिक कहानियां
आधी रात से ही हरिद्वार के कनखल घाट पर लोगों की आवाजाही शुरू हो गई थी। गंगाजी के ठंडे पानी में जैसे ही लोग नहाने के लिये उतरते ‘डुबुक’ की आवाज के साथ ही ‘हर्रऽऽ हर्रऽऽ गंगेऽऽ’ का कंपकपाता स्वर वातावरण में फैल जाता। रात सिमटने के साथ ही घाट पर भीड़ बढ़ती जा रही थी।
पौ फटते ही घाट के ऊपर की तरफ बने विशाल परकोटे का द्वार खुला और सैकड़ों साधुओं की जमात घाट की ओर बढ़ने लगी। लम्बी दाढ़ी-जटाएँ, शरीर पर भस्म, अंगारों सी दहकती आँखें, किसी के हाथ में चिमटा, किसी के हाथ में त्रिशूल तो किसी के हाथ कमंडल। वस्त्र के नाम पर ज्यादातर सिर्फ कोपिन धारण किये हुए थे। कुछ एकदम नंग-धडं़ग थे। इनके बीच एक दैदीप्यमान साधु भी था।
महामाया सुनील चतुर्वेदी अध्याय – एक आधी रात से ही हरिद्वार के कनखल घाट पर लोगों की आवाजाही शुरू हो गई थी। गंगाजी के ठंडे पानी में जैसे ही लोग नहाने के लिये उतरते ‘डुबुक’ की आवाज के साथ ...और पढ़े‘हर्रऽऽ हर्रऽऽ गंगेऽऽ’ का कंपकपाता स्वर वातावरण में फैल जाता। रात सिमटने के साथ ही घाट पर भीड़ बढ़ती जा रही थी। पौ फटते ही घाट के ऊपर की तरफ बने विशाल परकोटे का द्वार खुला और सैकड़ों साधुओं की जमात घाट की ओर बढ़ने लगी। लम्बी दाढ़ी-जटाएँ, शरीर पर भस्म, अंगारों सी दहकती आँखें, किसी के हाथ में चिमटा,
महामाया सुनील चतुर्वेदी अध्याय – दो प्रवचन हॉल के पीछे वाला दरवाजा सीढ़ियों की तरफ खुलता था और सीढ़ियां एक लम्बे गलियारे में जाकर समाप्त होती थी। गलियारे में विलायती रेड कार्पेट बिछा था। गलियारे के अंत में एक ...और पढ़ेसा दरवाजा था। दरवाजे के उस पार एक वातानुकुलित सुसज्जित कमरा था। कमरे में सामने की ओर सिंहासन नुमा कुर्सी पर बाबाजी बैठे थे और नीचे दस पंद्रह भक्तगण। बाबाजी की आँखे बंद थी। इतने लोगों की मौजूदगी के बावजूद कमरे में निस्तब्ध शांति थी। अखिल दूर से ही बाबाजी को प्रणाम कर पीछे की पंक्ति में बैठ गया। बाबाजी
महामाया सुनील चतुर्वेदी अध्याय – तीन अखिल ने खिड़की के सामने लगा परदा हटाया और खिड़की खोल दी। ताजी ठंडी हवा का एक झोंका कमरे में प्रवेश कर गया। हवा के झोंके के साथ ही खिड़की के रास्ते धूप ...और पढ़ेएक टुकड़ा भी कमरे में उतरा और लंबाई में फैल गया। अखिल ने महसूस किया कि सुबह के नौ बज चुके हैं लेकिन धूप में अभी भी गर्माहट नहीं हैं हल्का सा कुनकुनापन जरूर है। अखिल दोनों हाथ बांधे खिड़की के सामने खड़ा हो गया। खिड़की गंगा घाट की तरफ खुलती थी। खिड़की से बाहर का दृश्य किसी सुंदर लैंडस्केप
महामाया सुनील चतुर्वेदी अध्याय – चार भोजनशाला में अखिल की अनुराधा से मुलाकात हुई। दोनों बहुत देर तक भोजनशाला में ही खड़े-खड़े बतियाते रहे। सामान्य परिचय से शुरू हुई बातचीत व्यक्तिगत रुचियों और अनुभवों तक पहुंच गयी। ‘‘आप यहाँ ...और पढ़ेसे आ रही हैं’’ ‘‘पाँच-छः साल से’’ ‘‘आपकी बाबाजी से मुलाकात कैसे हुई?’’ ‘‘मेरी बाबाजी से मुलाकात.......यह एक लम्बी कहानी है। चलो कहीं बैठकर बात करते हैं।’’ अखिल और अनुराधा भोजनशाला के पास ही आम के पेड़ के नीचे एक बैंच पर बैठ गये। अनुराधा ने बातचीत शुरू की। ‘‘हाँ तो आप पूछ रहे थे कि मेरी बाबाजी से मुलाकात
महामाया सुनील चतुर्वेदी अध्याय – पांच ‘‘व्हाट इज यूअर नेम.....?’’ आश्रम की रिसेप्शन कुर्सी पर बैठे-बैठे ही स्वामी दिव्यानंद ने सामने खड़ी विदेशी महिला से पूछा। ‘‘काशा’’ ‘‘आऽऽशा’’ स्वामी दिव्यानंद ने महिला का नाम जोर से दोहराते हुए रजिस्टर ...और पढ़ेलिखा। ‘‘नो..नो.. काशा’’ ‘‘ओके...काशा नाॅट आशा।’’ दिव्यानंद ने रजिस्टर में नाम दुरस्त करते हुए पूछा ‘‘कन्ट्री नेम।’’ ‘‘आस्ट्रीया’’ ‘‘कन्ट्री....आस्ट्रेलिया’’ ‘‘नो...नो...नाॅट आस्ट्रेलिया । आ....स्ट्री....या....’’ काशा ने देश के नाम के सभी हिस्सों को अलग-अलग करके बोला। ‘‘दुनिया में कितने सारे देश हैं और उनके कितने अजीब-अजीब नाम हैं। अब पहले दुनियाभर के देशों के नाम याद करो यही तुम्हारा सन्यास है