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महामाया - 19

महामाया

सुनील चतुर्वेदी

अध्याय – उन्नीस

मंदिर में दिनभर तरह-तरह की बातें होती रही। शाम को चार बजे पत्रकार वार्ता हुई। बाबाजी की तरफ से विज्ञप्ति अखिल और अनुराधा ने तैयार की थी। एक दो पत्रकार जो ज़्यादा आड़े-तिरछे सवाल कर रहे थे उन्हे निर्मला माई और श्रद्धा माई बहुत देर तक समझाती रही।

रात को समाधि स्थल पर कड़ा पहरा था। बाबाजी की स्थायी मंडली के सदस्य अपना बिस्तर लेकर समाधि स्थल पर ही आ गये।

थोड़ी देर इधर-उधर की चर्चाएँ होती रही फिर शुरू हो गये किस्से।

‘‘क्यों संतु महाराज तुम्हे सांसाराम वाली निर्मला माई की समाधि याद है। जसविंदर ने संतु महाराज की जांघ पर हाथ मारते हुए कहा।

‘‘हाँ वो समाधि मैं कैसे भूल सकता हूँ। निर्मला माई अंधेरे से कितनी डर रही थी। उन्होंने मेरे सामने बाबाजी से कहा था कि गड्डे में एक बल्ब लगवा दो। बाबाजी ने बल्ब तो नहीं लगवाया पर क्या फार्मूला निकाला था।’’ संतु महाराज अपनी रौ में और आगे बढ़ते इसके पहले कौशिक ने संतु महाराज पर लगाम कसी।

‘‘संतु तुझे बात करते समय जरा भी होश नहीं रहता है’’

संतु महाराज ने कान पकड़े। ‘‘गलती हो गई। अब सुबह तक कुछ नहीं बोलूंगा’’ कहते हुए चुपचाप बिस्तर पर लेट गये।

‘‘अब कोई कुछ नहीं बोलेगा’’ कौशिक किसी हेड मास्टर की तरह कहते हुए संत निवास की ओर चले गये। कौशिक के जाते ही फिर जग्गा, संतु महाराज और जसविंदर आपस में खुसुर-फुसुर करने लगे।

मंदिर में सन्नाटा पसर गया था। पठारे के लोग यहाँ-वहाँ संत निवास के बाहर, प्रवचन हॉल में और यज्ञ मण्डप में अधलेटे ऊंघ रहे थे। रात करीब डेढ़ बजे के आस-पास बाबाजी, वानखेड़े जी और कौशिक के साथ समाधि स्थल पर पहुँचे। कौशिक के हाथ में पूजा की थाली और वानखेड़े जी के हाथ में एक बड़ा सा त्रिशूल था। समाधि के गड्डे में एक सीढ़ी के सहारे बाबाजी अंदर उतरे। गड्डे के चारों और कौशिक , जसविंदर , जग्गा, संतु महाराज और वानखेड़े जी सजग प्रहरी की तरह खड़े थे।

करीब बीस मीनिट बाद बाबाजी गड्डे से बाहर आये। उनके बाहर आते ही जग्गा ने सीढ़ी बाहर खींच ली और कौशिक, संतु महाराज और जसविंदर ने गड्डे को लोहे के चद्दरों से ढ़ककर उस पर एक त्रिपाल डाल दी। वानखेड़े जी ने अपनी आदत के अनुरूप दोनों हाथ माथे तक ले जाकर जोड़े और बुदबुदाये ‘‘जय गुरूदेव....।कौशिक को धीमें स्वर में कुछ हिदायतें देकर बाबाजी संत निवास की ओर लौट गये। उनके पीछे-पीछे वानखेड़े जी भी थे।

उधर अखिल अपने कमरे में बैठा डायरी लिख रहा था।

डायरी: ‘‘आज कुछ लोगों ने समाधि कार्यक्रम को बाजीगरी बताते हुए प्रशासन से इस कार्यक्रम को प्रतिबंधित करने की मांग की। इन लोगों का तर्क है कि गड्डे के आकार के अनुसार उसमें एक आदमी के एक सौ चालीस घंटे तक जीवित रहने के लिये आवश्यक आॅक्सीजन रहती हैं। उसे भी यह बात तार्किक लगती है। पर यह बात भी सही है कि हम भारतीय अंधविश्वासी हो सकते हैं लेकिन विदेशी नहीं। यदि वास्तव में यह कार्यक्रम सिर्फ एक बाजीगरी होता तो शायद ये विदेशी इतनी दूर से चलकर यहाँ नहीं आते।

मेरे अंदर का द्वंद्व पूरी तरह समाप्त तो नहीं हुआ है लेकिन कम होता जा रहा है। आज बाबाजी ने हिमालय के रहस्यों के बारे में जो भी कुछ बताया है। उससे अध्यात्म को गइराई से जानने की मेरी उत्कंठा बढ़ती जा रही है। अनुराधा का भी तो कहना है कि पूर्वाग्रहों को छोड़कर किसी नये प्रयोग में शामिल होना चाहिए। उससे प्राप्त अनुभवों के आधार पर कुछ कहना ही वैज्ञानिकता होगी। अनुराधा की बात सही है। फिर वो खुद डाॅक्टर होकर भी तो इस प्रयोग में पिछले पाँच सालों से शामिल है। अनुराधा ने उस दिन चाय की गुमटी पर कहा था कि वो अपना सर्वस्व दांव पर लगाकर भी सत्य को जानना चाहती है। इस सत्य को जानने के आगे जीवन भी छोटा है।

मैं इस नये प्रयोग को करूँगा। मुझे भी हिमालय के गर्त में छुपे इन महान रहस्यांे को जानने-समझने के लिये प्रयास करने होंगे। मैं जीवन नहीं तो कम से कम अपने अंदर उठने वाले द्वंदो को तो समाप्त कर ही सकता हूँ। समाधि कार्यक्रम में आया छोटा व्यवधान दिनभर की गहमागहमी के बाद अब लगभग समाप्त हो चुका हैं। मीडिया को दोदोनों माताओं ने बड़ी खूबसूरती के साथ हेंडिल कर लिया। दो एक तेज तर्रार पत्रकार जो पहले काबू में नहीं आ रहे थे। वो अब दोनों माताओं के भक्त हैं। किशोरीलाल ने प्रशासन को मैनेज कर लिया है। बाकि काम पठारे के बाउंसर संभाले हुए हैं।

आज भी बाबाजी ने उसके और अनुराधा के द्वारा तैयार की गई विज्ञप्ति को देख उसके लेखन की प्रशंसा की। उन्होंने कहा- बेटे समाधि कार्यक्रम के बाद आप दोनों सीधे नैनीताल आ जाइये और पत्रिका का काम करिये। मैंने तो पत्रिका का नाम भी सोच लिया है ‘महामाया ’। लगता है जल्दी ही मेरा संपादक बनने वाला सपना पूरा होने वाला है। अनुराधा भी साथ में होगी। मुझे आजकल अनुराधा का साथ अच्छा लगने लगा है। एक बात और मैंने नोटिस की है कि मैं अनुराधा जी की हर बात बिना तर्क किये मानने लगा हूँ। वो जब कुछ कहती है तो मेरे अंदर कोई द्वंद्व खड़ा नहीं होता। उनके साथ सहमति ही होती हैं। ऐसा क्यों हो रहा है? नहीं पता। लेकिन हो रहा है। यह एक सच्चाई है।

संत निवास के बाहर एक टेबिल पर आज के सारे अखबार रखे हुए थे। लगभग सभी अखबारों ने प्रथम पेज पर ही बाबाजी के फोटो के साथ समाधि कार्यक्रम की खबरें प्रमुखता से छापी थी।

आज मंदिर परिसर में पिछले दिनों की तुलना में आज ज़्यादा चहल-पहल थी। भीड़ को नियंत्रित करने के लिये समाधि स्थल के चारों ओर बेरिकेटिंग थी। गड्डे को आगे की ओर से तीन फुट खुला छोड़ा गया था। खुली जगह से नीचे उतरने के लिये एक सीढ़ी लगी थी। गड्डे के अंदर बीचों बीच एक तखत पर फोम का गद्दा डालकर सफेद चादर बिछायी गई थी। तखत के एक ओर बड़ा सा पीतल का त्रिशूल गड़ा था। तखत की नीचे एक पीतल की थाली में पाँच सेवफल, नारियल और कुछ सूखे मेवे रखे हुए थे। एक पानी का कलश था। पूजा के नाड़े के दस-बारह छोटे-छोटे टुकड़े और कुछ पाॅलीथिन की खाली थैलियाँ रखी हुई थी।

बाकि गड्डे को टीन की चद्दरों से ढं़ककर ऊपर मिट्टी चढ़ा दी गई थी।

प्रवचन हॉल के ठीक सामने तीन-तीन टेबलों को जोड़कर सफेद चाद्दरों से कुछ अस्थायी स्टॉल बनाये गये थे। एक स्टॉल पर बाबाजी के प्रवचनों का प्रकाशित साहित्य बिक्री हेतु उपलब्ध था। किताबों के साथ ही जगदीश एक बड़े बैग से बाबाजी, निर्मला माता, श्रद्धा माता, श्रीमाता, और सूर्यानंद महाराज के लेमिनेटेड फोटो निकाल-निकालकर स्टाॅल में सजा रहा था। कुछ बड़े साईज के फोटो भी थे। जिनमें बाबाजी हिमालय में तपस्या करते दिखाई दे रहे थे।

इसके पास वाले स्टॉल पर बाबाजी के प्रवचनों के आॅडियो कैसेट और सीडी रखी हुई थी। इस स्टॉल पर बैठाने के लिये जग्गा किसी लड़के को पकड़कर लाया था। कौन सी कैसेट और सीडी किस कार्यक्रम की है। उसे कितने में बेचना है। जैसी मोटी-मोटी बातें लड़के को समझाकर जग्गा खुद विडियो कैमरा कंधे पर टांगे समाधि स्थल की ओर बढ़ गया।

तीसरे स्टॉल पर सामने की तरफ रूद्राक्ष, स्फटीक, चंदन, कमलगट्टा, तुलसी और रंग बिरंगे मोतियों की मालाओं को एक रस्सी पर टांगा गया था। इसी स्टाॅल में मालाओं के अलावा बाबाजी के फोटो लगे लाॅकेट, बाबाजी के फोटो वाले चाबी के छल्ले, अंगुठियाँ, रंग-बिरंगे नग, तांबे के टुकड़ों पर उकेरे गये यंत्र, वास्तुशांति के लिये विभिन्न आकारों के कांच के टुकड़ों से बने पिरामिड, लाॅफिंग बुद्धा, फैंगसुई के ढेरों सामान, शेर का नाखून, सियार सिंगी, उल्लू की आँख, सफेद आंकड़े की जड़, आंबी हल्दी, राई के दानों के छोटे-छोटे पैकिट और भी न जाने क्या-क्या सामग्री छोटी-छोटी ट्रे में रखकर स्टॉल की टेबल पर सजाई गई थी। यह संतु महाराज और कौशिक का स्टॉल था। इन सामग्रियों को बेचने के लिये टेबल के पीछे खुद खप्पर बाबा बैठे थे। जिन्हे देखकर ऐसा लग रहा था मानो हिमालय का कोई तपस्वी अध्यात्म को इन वस्तुओं में रूपांतरित कर बांटने आया है।

चैथा स्टॉल वैद्यजी का था। यहां कई जड़ी बूटियां छोटी-छोटी कांच की बरनियों में रखी हुई थी। बरनियों के ऊपर उन जड़ी बुटियों के नाम भी लिखे थे। सफेद मूसली, जटामासी, निर्गुडी, अकरकरा, सफेद चंदन, सर्पगंधा, अश्वगंधा, जंगली प्याज, हठजोड़, शिलाजीत, अर्जुन की छाल। छोटी-छोटी प्लास्टिक की डिब्बियों में मधुमेह, ब्लडप्रेशर, दाग, कब्जियत, एसीडिटी, हार्ट प्राॅब्लम, दाद खाज खुजली, पेशाब से धातु गिरना, नपुंसकता, सफेद पानी का स्त्राव, अनियमित मासिक धर्म, जैसी कई बीमारियों की तैयार दवाईयां थी। अभी इस स्टाॅल पर कोई नहीं था। शायद वैद्यजी कुछ और दवाईयां लेने अपने कमरे में गये थे। तभी कौशिक और संतु महाराज आपस में बात करते हुए वैद्यजी के स्टॉल के पास आकर खड़े हो गये। संतु महाराज के हाथ में बहुत सी रूद्राक्ष और स्फटिक की मालाएँ थी वह कौशिक को बता रहे थे।

‘‘अभी साठ के लगभग मालाएँ बिकी है’’

‘‘बहुत कम है’’ कौशिक चिंतित थे।

‘‘क्या करें...? मालाओं का उठाव नहीं हो रहा है’’ संतु महाराज ने चिंता व्यक्त की।

कौशिक ने कुछ सोचते हुए कहा ‘‘मकसूदनगढ़ वाला फार्मूला लगाओ’’

‘‘बहुत अच्छा’’ कहते हुए संतु महाराज तत्काल समाधि स्थल की और दौड़ पड़े और माइक पर उद्घोषणा करने लगे।

‘‘सभी श्रद्धालु माताओं-बहनो और भाइयों के लिये एक महत्वपूर्ण सूचना है। अभी से ठीक तीन घंटे बात परमपूज्य, प्रातः वंदनीय, महायोगी, महामण्डलेश्वर बाबाजी के परम शिष्य श्री सूर्यानंद महाराज समाधि लेंगे। यदि आप लोग अपनी समस्याओं से छुटकारा पाना चाहते हैं तो स्फटिक या रूद्राक्ष की माला, खरीदकर समाधि में सिद्ध करवा सकते है। कोई भी माला समाधि की ऊर्जा से सिद्ध होने के बाद अभीष्ट फल प्रदान करती है। जो भी भक्त अपने या परिवार के कल्याण के लिये माला समाधि में रखवाना चाहते हैं वो संतु महाराज यानी मुझसे से संपर्क करें।

यह उद्घोषणा थोड़ी-थोड़ी देर से लगातार की जा रही थी। मालाओं वाले स्टॉल पर भीड़ बढ़ रही थी।

क्रमश..

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