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महामाया - 12

महामाया

सुनील चतुर्वेदी

अध्याय – बारह

मंदिर के पास ही जुगाड़ टेक्नाॅलाजी से चाय की गुमटी तैयार की गई थी। एक पुरानी सी टेबल पर भर्रऽऽ.. भर्रऽऽ... कर जलने वाला स्टोव रखा था। हवा को रोकने के लिये एक पुराने कनस्तर को काटकर चद्दर से स्टोव के तीन तरफ आड़ की गई थी। पुरानी सी गंदी प्लास्टिक की तीन चार बरनियों में बिस्कुट, खारी और पाव रखे हुए थे।

टेबल के सामने दो पुरानी बैंचे रखी थी। जिन पर बैठते ही वो चऽऽ चूं... की आवाजें करने लगती थी। ग्राहकों को धूप से बचाने के लिये दो बांसों पर एक पुरानी चद्दर को पीछे वाले मकान का सहारा लेकर बांधा गया था। आठ-दस साल की उम्र का लड़का भी था जो चाय के झूठे गिलासों को धोते हुए फिल्मी गीत गुनगुना रहा था। टेबल के पीछे बीच की उम्र का आदमी पतीली में उबल रही चाय को कलछी से ऊपर उछाल रहा था।

अखिल और अनुराधा बैंच पर दोनों तरफ पैर करके आमने सामने बैठे थे। झूठे बरतन धोने में मस्त बच्चे को देख अखिल के मन मे स्नेह उमड़ा। उसने बच्चे को हाथ के ईशारे से अपने पास बुलाया-

‘‘एईऽऽ छोटू, दो चाय और एक पैकेट बिस्कुट’’

छोटू ने कंधे पर लटके गंदे से कपड़े से अपने हाथ पोंछते हुए कहा ‘‘हओ साहब’’ और पलकटर वहीं खड़े-खड़े चाय बनाने वाले से बोला-

‘‘दो कट, कम शक्कर कड़क और एक पारले’’

चाय बनाने वाला कुछ नहीं बोला। लड़का गुनगुनाते हुए फिर से गिलास धोने लगा। अखिल और अनुराधा बातों में व्यस्त हो गये।

तंत्र से लोगों की परेशानियाँ दूर होती है। बिना किसी भूमिका के अखिल ने संशय प्रकट किया। अनुराधा ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा फिर मुस्कुराते हुए पूछा -

‘‘क्यों आपको कोई समस्या है क्या?’’

‘‘नहीं.......अंजन स्वामी जैसे कईं लोगों को मैं जानता हूँ। खुद मेरी मौसी को तंत्र-मंत्र पर बहुत भरोसा है। वह अपनी हर छोटी-बड़ी परेशानी के लिये तांत्रिकों के पास जाती रहती है। मुझे यह बात समझ में नहीं आती कि किसी एक व्यक्ति के मंत्र पढ़ने से दूसरे की समस्या कैसे हल हो सकती है ? इसका कोई वैज्ञानिक पक्ष है क्या ?

‘‘मैं एक डाॅक्टर हूँ। सिरदर्द को ठीक करने के लिये एक छोटी सी सफेद गोली तुम्हें देती हूँ। तुम्हारा दर्द ठीक हो जाता है। गोली खाने के पहले हम गोली और सरदर्द के बीच कार्य-कारण संबंध नहीं ढूंढते। ना ही उसका वैज्ञानिक प्रमाण मांगते हैं।’’

अखिल पहले तो थोड़ा हकलाया फिर उसने थोड़ा सोचकर अपनी बात रखी।

‘‘गोली खाने से सरदर्द ठीक होता है। यह सभी दवाई खाने वालों का अनुभव है। यही अनुभव प्रमाण है।’’

‘‘ठीक.......बिलकुल ठीक......। यदि आपकी मौसी कहती है कि फलां मंत्र जाप या फलां तांत्रिक क्रिया से उनकी समस्या दूर होती है तो फिर आप उनके अनुभव को कोई मूल्य क्यों नहीं देते? अनुराधा ने मंझे हुए तार्किक की तरह कहा।

अखिल ने थोड़ा आगे की ओर झुकते हुए कहा ‘‘ठीक है मैंने माना लेकिन यहाँ अनुभव के साथ वैज्ञानिकता भी है। कईं प्रयोगशालाएँ हैं। जहाँ सिद्ध किया जा सकता है कि गोली दर्द में कैसे काम करती है।’’ ‘‘जी हाँ.....तंत्र की भी प्रयोगशालाएँ है। लेकिन भौतिक रुप में उसका कोई अस्तित्व नहीं है। क्योंकि तंत्र-मंत्र भौतिक विज्ञान की विषय-वस्तु ही नहीं है। तंत्र-मंत्र पराविज्ञान है। जिस विज्ञान पर तुम्हे भरोसा है वो विज्ञान भी पराविज्ञान के क्षेत्र में कईं अनूठे अनुभवों पर काम कर रहा है......’’ अनुराधा बोलते-बोलते थोड़ा सा रुकी और उसने फिर से कहना शुरू किया -

‘‘अमेरिका में एक आदमी हुआ है टेड सीरियो। ओशो ने भी इस व्यक्ति का जिक्र किया है। इस आदमी में ऐसी क्षमता थी कि वो हजारों किलोमीटर के किसी भी दृश्य को देख सकता था। वैज्ञानिकों ने उसके साथ कईं प्रयोग किये। इन प्रयोगों में यह तो सिद्ध हुआ कि ऐसा हो रहा है। लेकिन क्यों हो रहा है? इसका जवाब वैज्ञानिकों के पास नहीं है। बताओ तुम्हारे पास इसका है जवाब?’’

अखिल कुछ पलों के लिये गहरे सोच में डूब गया। फिर उसने अपनी नजरें अनुराधा के चेहरे पर गड़ाते हुए धीमें स्वर में पूछा -

‘‘तो इसका मतलब यह हुआ कि आप इन सब बातों में यकीन करती हैं’’

‘‘मैं ओपन हूँ। मैंने अपने आपको किसी भी धारणा के साथ नहीं बांधा है। हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता।’’ अनुराधा प्लेट से एक बिस्किट उठाकर उसे धीरे-धीरे कुतरने लगी।’’ एक बात कहूँ अखिल, असल में हम सभी पूर्वाग्रह से ग्रस्त हैं। पश्चिम से आये ज्ञान को ही विज्ञान मानते हैं। अगर पश्चिम का कोई वैज्ञानिक कहता कि एलियन पृथ्वी पर आते हैं, तो हम स्वीकार कर लेते। यदि हमारे साधु-संत कहते हैं कि हिमालय में कईं दिव्य आत्माएँ प्रकट होती है तो हम उसे अंधविश्वास कहकर नकार देते हैं.......।’’ अनुराधा बोल रही थी, अखिल लगातार अनुराधा के चेहरे की ओर देख रहा था। अखिल का मन हो रहा था कि वो अनुराधा की बात का जवाब दे। धर्मगुरुओं के पास एक ही हथियार है ‘लोगों की आस्था’ और यह आस्था बनी रहे इसके लिये तर्क भी है। यह तर्क लोगों की सोचने-समझने की शक्ति सुन्न कर देते हैं। उसकी दिशा बदल देते हैं। धीरे-धीरे आदमी इन्हीं तर्कों को सच मानने लगता है। एक व्यक्ति का अनुभव कथा किवदंतियों का रूप लेकर लोक का सच बन जाता है। फिर लोग अपनी आँखें बंद कर इस सुने-सुनाये, रटे-रटाये तर्क को अपना बनाकर दूसरों के सामने प्रस्तुत करने लगता है। इस तरह मानने और विश्वास करने वालों की भीड़ बढ़ती जाती है। कहीं तुम भी उसी भीड़ का हिस्सा तो नहीं हो अनुराधा ? पर वह अनुराधा को ठेस नहीं पहुंचाना चाहता था। इसलिये माहौल को हल्का करने की गरज से कहा -

‘‘आपकी बात में दम है मैडम। लीजिए इसी बात पर नाचीज का तोहफा कबूल कीजिए’’ अखिल ने कमर को थोड़ा झुकाते हुए प्लेट से एक बिस्कुट उठाकर अनुराधा की ओर बढ़ा दिया।

अनुराधा ने बिस्कुट ले लिया। वह गंभीर बनी रही। अनुराधा बिस्कुट हाथ में पकड़े-पकड़े कुछ सोच रही थी। अखिल ने बात आगे बढ़ायी -

‘‘मैं बिना किसी पूर्वाग्रह के एक बात पूछना चाहता हूँ पुर्नजन्म के बारे में आप क्या सोचती हैं?’’

‘‘मेरा पुर्नजन्म में विश्वास है? एक माँ से जन्मे, एक परिवेश में पले-बढ़े बच्चे अलग-अलग क्यों होते हैं? जबकि जीव विज्ञान की दृष्टि से तो उन सभी के दुनिया में आने का कारण एक ही है, अब तो पुर्नजन्म की इस अवधारणा की पुष्टि के लिये हमारे सामने कईं उदाहरण है। ऐसी कईं घटनाएँ हैं जिनमें बच्चों को उनके पिछले जन्म की बातें याद हैं। कईयों ने तो अपने पिछले जन्म के माता-पिता और पत्नि तक को पहचान लिया है। अनुराधा के स्वर में हल्की सी उत्तेजना थी।

‘‘पर पिछले तीन जन्मों के बारे में जानने वाली बात पर मुझे विश्वास नहीं होता।’’ अखिल ने असहमति भरे स्वर में कहा।

‘‘अब तक चैदह दलाई लामाओं को उनके पूर्वजन्म के आधार पर ही खोजा गया है। यदि गुरू सक्षम है तो उसके लिये किसी के भी पूर्वजन्म के बारे में जान लेना आश्चर्य की बात नहीं है। चैदहवें दलाई लामा पर तो कईं फिल्में बनी हैं.....। सब फिल्में विदेशियों ने बनाई है। किस तरह उस बच्चे को खोजा गया जिसने दलाई लामा के रूप में जन्म लिया था। यह विदेशियों ने लिखा है। किसी हिन्दुस्तानी धर्मगुरू ने नहीं। विदेशियों की बात को तो आप विज्ञान सम्मत मानेंगे न! अंतिम बात कहते-कहते अनुराधा का स्वर व्यंग्यात्मक हो गया था।

अनुराधा के कटाक्ष पर तिलमिलाने के बजाय अखिल खिलखिलाकर हँस दिया।

‘‘आपको तो डाॅक्टर नहीं तर्कशास्त्री होना चाहिये था। आप वामपंथियों के विचार भी बदल सकती हैं।’’

अखिल की इस बात से अनुराधा को गलती का एहसास हुआ। उसने सहज होकर -

‘‘क्यों? आपमें कोई बदलाव आ रहा है क्या?’’

‘‘मैं कहाँ वामपंथी हूँ........मैं तो फिलहाल पंथखोजी हूँ।’’

‘‘तो चलिये पंथखोजी जी, यह वक्त भोजनालय का पंथ खोजने का है।’’

दोनो जालपादेवी मंदिर की ओर चल दिये। तभी जग्गा गाड़ी लेकर मंदिर से बाहर निकला। उसने दोनों को देखकर जोर से ब्रेक लगाये। चींऽऽ की आवाज के साथ गाड़ी दोनों के बिल्कुल बाजू में आकर रूक गई।

‘‘नमो नारायण दीदी। सूर्यानंद जी से मिलने केलकर भवन चलणा है के ?’’

जग्गा का प्रस्ताव सुन अनुराधा ने अखिल की ओर देखा। अखिल को सूर्यानंद जी से मिलने की बड़ी उत्सुकता थी। उसने तपाक से अपनी सहमति दी -

अखिल और अनुराधा दोनों गाड़ी में बैठ गये। गाड़ी केलकर भवन की ओर रवाना हो गई।

क्रमश..

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