Hone se n hone tak book and story is written by Sumati Saxena Lal in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Hone se n hone tak is also popular in सामाजिक कहानियां in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
होने से न होने तक - उपन्यास
Sumati Saxena Lal
द्वारा
हिंदी सामाजिक कहानियां
एम.ए. का रिज़ल्ट निकला था। मैं यूनिवर्सिटी जा कर अपनी मार्कशीट ले आई थी। पैंसठ प्रतिशत नम्बर आए हैं। इससे अधिक की मैंने उम्मीद भी नहीं की थी। इससे अधिक मेहनत भी नहीं की थी। अपनी डिवीज़न और नम्बरों से मैं संन्तुष्ट ही थी। किन्तु जब सुना था कि डिपार्टमैन्ट में मुझसे अधिक सिर्फ एक लड़के के नम्बर हैं तब बुरा लगा था। अपने ऊपर झुंझलाहट भी हुयी थी कि थोड़ी सी मेहनत और कर ली होती तो फर्स्ट पोज़ीशन आ जाती। पर चलो कुछ तो है ही, फिर बुरा भी नहीं। मैंने यश को फोन करके बताया था। यश ने मुझसे हज़रतगंज क्वालिटी में मिलने के लिए कहा था।
क्वालिटी की कालीन पड़ी नरम सीढ़ियॉ चढ़ कर मैं ऊपर पहुची थी तो यश वहॉ पहले से इन्तज़ार कर रहे थे। बैरा हम दोनों को पहचानता है। उसने यश के सामने की कुर्सी मेरे बैठने के लिए खींच दी थी।
होने से न होने तक 1. एम.ए. का रिज़ल्ट निकला था। मैं यूनिवर्सिटी जा कर अपनी मार्कशीट ले आई थी। पैंसठ प्रतिशत नम्बर आए हैं। इससे अधिक की मैंने उम्मीद भी नहीं की थी। इससे अधिक मेहनत भी नहीं ...और पढ़ेथी। अपनी डिवीज़न और नम्बरों से मैं संन्तुष्ट ही थी। किन्तु जब सुना था कि डिपार्टमैन्ट में मुझसे अधिक सिर्फ एक लड़के के नम्बर हैं तब बुरा लगा था। अपने ऊपर झुंझलाहट भी हुयी थी कि थोड़ी सी मेहनत और कर ली होती तो फर्स्ट पोज़ीशन आ जाती। पर चलो कुछ तो है ही, फिर बुरा भी नहीं। मैंने यश
होने से न होने तक 2. खाने की मेज़ पर बैठे ही थे कि कुछ ख़ास सा लगा था, विशेष आयोजन जैसा। सबसे पहले निगाह सलाद की प्लेट पर पड़ी थी। प्याज टमाटर और खीरे के चारों तरफ लगाई ...और पढ़ेसलाद की पत्तियॉ, बीचो बीच मूली और गाजर से बने गुलाब के दो फूल-सफेद और नारंगी रंग के। पहला दोंगा खोला था-गरम गरम भाप निकलते हुए कोफ्ते, टमाटर वाली दाल,दही पकौड़ी और मिक्स्ड वैजिटेबल। श्रेया खाना देख कर चहकने लगी थी। बुआ हॅसी थीं ‘‘क्या बात है दीना आज तो तुमने अपनी पूरी कलनरी स्किल्स मेज़ पर सजा दी हैं।’’
होने से न होने तक 3. दूसरे दिन मैं सारे सर्टिफिकेट्स की प्रतिलिपि लेकर डिपार्टमैंण्ट गई थी। उन पत्रों पर सरसरी निगाह डाल कर हैड आफ द डिपार्टमैण्ट डाक्टर अवस्थी ने उन पर दस्तख़त कर दिए थे। ‘‘थैंक्यू सर’’ ...और पढ़ेकर मैं पलटने लगी थी कि उन्होंने सिर ऊपर उठाया था, ‘‘आगे क्या इरादा है अम्बिका?’’ मैं रुक गई थी,‘‘जी नौकरी ढॅूड रही हूं।’’ उन्होने भृकुटी समेटी थी,‘‘क्यो रिसर्च नहीं करना चाहतीं?’’ ‘‘जी। जी करना चाहती हॅू।’’ मैं हकला गई थी ‘‘पर..पर सर नौकरी तो मुझे करनी है।’’ मैं चुप हो गई थी। आगे उन्होने फिर सवाल किया तो क्या
होने से न होने तक 4. देहरादून में मेरा जल्दी ही मन लग गया था। यश दून स्कूल में पढ़ रहे थे। उसकी कज़िन मेधा मेरे साथ मेरे ही क्लास और सैक्शन में वैल्हम में। हम तीनों के एक ...और पढ़ेलोकल गार्जियन। वीक एण्ड पर अक्सर मिलना होता। मॉ के रहते यश को जानती भर थी पर अब वह मेरा बहुत ख़्याल रखते। वह घर से दूर एक ही शहर और पुराने परिचित होने की निकटता तो थी ही पर साथ ही मुझे लगता मॉ के न रहने के कारण यश मेरे प्रति कुछ अधिक ही संवेदनशील हो गए थे।
होने से न होने तक 5. बाबा दादी से कई बार पहले भी मिल चुकी हॅू मैं। कभी उनको देखा भर था और कभी उनके साथ एक दो दिन के लिए रहना हुआ था। उतना थोड़ा सा समय तो ...और पढ़ेके लिए ही काफी नही होता फिर उसको जानना तो कहा ही नही जा सकता। अब की से पहली बार काफी दिनों के लिए एक साथ लग कर रहना हुआ है। दो हफ्ते से हैं वे लोग। दिन मेरा नीचे अपने ही कमरे मे उन लोगों के साथ ही बीतता है, फिर मेरे कपड़ों की अल्मारी,किताबें वगैरा सब इसी कमरे