होने से न होने तक
44.
पूरे आफिस में और सभी टीचर्स के बीच दीपा दी की तन्ख़ा रोक लिये जाने की यह ख़बर फैल गयी थी। जो टीचर्स दमयन्ती के खेमे के थे उन्हें दमयन्ती ने बताया था और दीपा वर्मा के शुभ चिन्तकों को रामचन्दर बाबू ने। विद्यालय में एक तनाव फैल गया था जैसे सब स्तब्ध हों। वे भी जो विजित महसूस कर रहे थे और वे भी जो अपने आप को पराजित। क्या हो गया इस कालेज को। यही सब लोग तो थे पहले...एक दूसरे के सुख में ख़ुश होने वाले...एक दूसरे के दुख में साथ खड़े होने वाले। दो खेमों में क्यों बट गए सब...एक दूसरे से नफरत करने वाले...दूसरे की हार देख कर उल्लसित होने वाले। लगा था जैसे कुछ लोग गढ्डे खोद रहे हैं और कुछ उनको पाटने की कोशिश में लगे हैं...पर कब तक ?
शायद ज़्यादातर लोग न पूरी तरह से अच्छे होते हैं न बुरे। वे हाशिए पर होते हैं। माहौल अच्छा हुआ तो अच्छे हो गए...बुरा हुआ तो बुरे। धारा के विपरीत तैरने की ताक़त भला कितनों में होती है? उतनी आफत मोल लेने की इच्छा भी नही होती। शायद उतनी बुद्धि और उतनी गुडनैस भी नही होती। इसीलिए बुरा प्रशासन ताक़तवर होता जाता है और अन्याय फलता फूलता है।
उस दिन मैं, नीता,मानसी और केतकी देर तक इसी बदले हुए माहौल के बारे में बात करते रहे थे। मानसी दुखी होने लगी थीं,‘‘आश्चर्य तो यह होता है कि एक साथ सारी टीचर्स कैसी हो गयीं। बहुत से पुराने भी कैसे हो गए। कुछ करने की तो बात ही छोड़ो,कोई कुछ सोचने वाला तक नहीं। शायद मन में भी सहानुभूति रखने वाला नहीं। सब से ज़्यादा ताज्जुब यह मैथ और बैट को ले कर होता है। कभी हर मुद्दे पर साथ खड़ी होती थीं। अब बात शुरु करो तो उससे पहले ही रजिस्टर उठा कर कमरे के बाहर चल देती हैं। लगता है अकेले कमरे में दीवारों तक से डर रही हैं कि कही वे सुन न लें। इसलिए मौन धारण कर लिया है दोनो ने।’’ मानसी जी कभी उन दोनों से बहुत अंतरंग थीं इसलिये उन को ले कर सबसे अधिक मुखर और दुखी हैं।
नीता के चेहरे पर अफसोस है। वह विचार भरी मुद्रा में कुछ देर तक सोचती रही थी,‘‘नही मानसी यह सिर्फ इक्तफाक नहीं है। सब कुछ सकारण है। शास्त्रों में कहा गया है कि राजा पापी होता है तो प्रजा भी पथ भ्रष्ट हो जाती है। शायद इसी लिए परिवार का ही नहीं संस्थाओं का भी अपना एक निश्चित पैटर्न होता है...सबका अपना अलग अलग। व्यक्ति की तरह ही उनका भी चारित्रिक उत्थान और पतन होता है। शशि कान्त भटनागर अंकल विरोध का स्वर सुनते थे। अपने सत्य के साथ तन कर खड़ी हुई टीचर्स की इज़्ज़्त करते थे। उन्हें बिना रीढ़ के चापलूस लोग रिपल्स करते थे। तब टीचर्स अपना सत्य स्वयं खोजती थीं और जब तब हम लोग उस सच के साथ एक जुट हो कर खड़े हो जाते थे। सही को सही और ग़लत को ग़लत कहने की ताक़त और अकल रखते थे। उस समय हमारे साथ पूरा स्टाफ होता था क्योंकि सब लोग जानते थे कि साथ होने में ही शायद उनका हित और सम्मान है। कोई एक बार किया हम लोगों ने वैसा ?दर्जनों बार किया था। तभी तो शहर में चन्द्रा सहाय कालेज की टीचर्स के चेहरे अलग दिखते थे। लोग स्टाफ के लिए दीपा वर्मा और शशि कान्त भटनागर का ब्यूटी बाक्स पुकारते थे। सच बात यह है कि हम सब साधारण ही तो थे। केतकी और मीनाक्षी की बात छोड़ दो। बाकी तो कोई भी सुन्दर नही था। ख़ुश और कान्फीडैन्ट थे इसलिए चेहरों पर रौनक लगती थी।’’
‘‘अब मानी हुयी बात है कि इस चापलूसी पसंद तंत्र के आस पास चापलूस ही तो मिलेंगे।’’रोहिणी दी ने कहा था,‘‘हाथ बॉध कर खड़े हीं हीं करते लोगों में क्या तो स्मार्टनैस दिखेगी और कौन सा क्लास।’’ वे बड़बडायी थीं,‘‘इस मैनेजमैन्ट को ‘को वर्कर’ ,साथी और फालोवर नहीं इन्हें तो चमचे चाहिए। वही जमा कर रहे हैं। देख तो रही हो सबके चेहरों पर चापलूसी पुती हुयी। दीपा दी का बुरा कर सकते थे सो कर दिया। पर सोचो इनमें से किस के लिए रियासत लिख देंगे जो आगे पीछे घूम रहे हैं।’’
मैनेजमैंण्ट में भी तो कोई भी तो ऐसा नही जिससे बात की जा सके। इस स्टाफ मे कोई ऐसा नहीं जिससे साथ चलने के लिए कहा जा सके। सिर्फ हम कुछ लोग हैं। नये स्टाफ में पूनम रावत और सबा सिद्दकी हैं। अभी प्रोबेशन में ही हैं पर इस लड़ाई में पूरी तरह से दीपा दी के प्रति संवेदनशील हैं।
‘‘हम टीचर्स को दीपा दी के साथ सालिडैरिटी दिखाने के लिए स्ट्राइक कर देना चाहिए।’’ सबा ने राय दी थी।
मानसी को यह सब से सही और कारगर रास्ता लगा था।
नीता हॅस दी थीं,‘‘यहॉ लोग साथ खड़े हो कर बात तक करने से डर रहे हैं तुम स्ट्राइक की बात कर रही हो सबा।’’
‘‘दीदी जो भी जैसा भी आप लोग तय करें। हम दोनो आपके साथ हैं।’’पूनम ने कहा था।
मानसी एकदम ख़ुश हो गयी थीं। जो भी पत्र हम प्रबंधतंत्र को भेज रहे हैं उसमें दस्तख़्त करने वालों की संख्या बहुत महत्वपूर्ण है। किन्तु नीता बहुत धीर गंभीर और व्यवहार बुद्धि सम्पन्न है। उन्होने दोनो को ही इस पूरे प्रकरण से अलग रहने के लिए कह दिया था,‘‘यह बदला लेने वाला तंत्र है। हम लोग इन दोनों को किसी झंझट मे नही डाल सकते।’’नीता ने हम लोगों की तरफ देखा था, ‘‘इन दोनो की नौकरी अभी उन लोगों की कलम की नोक पर है।’’ हम सब को भी नीता की बात सही ही लगी थी। इसलिए उन्हे मना कर दिया गया था।
हम पॉच छॅ लोग मिसेज़ चौधरी से मिले थे। वे हॅसी थीं,‘‘भई आपकी दीपा वर्मा अभी तक हमें अपनी पावर्स बताती रही थीं। वे समझती हैं कि उन्हें रूल्स की बहुत नालेज है। अब उनके समझ आ गया होगा कि केवल उन्हीं की नहीं, पावर्स मैंनेजमैंण्ट की भी होती हैं।’’ और उनकी ऑखों में एक शिकारी आनंद झांकने लगा था।
हम लोग समझ गए थे कि हम सब यहॉ बेकार आए हैं। इस स्त्री से किसी न्याय की आशा नही की जा सकती। इतने समय तक प्रबंधतंत्र की अध्यक्षा रहने के बाद उन्हें इतना तगड़ा शिकार करने का मौका पहली बार मिला था। वह रसास्वादन कैसे छोड़ सकती हैं वह।
मानसी ने कहा था कि क्या एक बार स्टाफ से एक जुट हो जाने की अपील की जाये। स्टाफ की मीटिंग बुलाई जाए क्या ? पर हम सब ही जानते थे कि उससे कुछ नही होना है।
‘‘अरे यार हम सब इन मूर्खो के अपने साथ आने का इंतज़ार क्यों कर रहे हैं। हम क्यों चाह रहे हैं कि हमारी बात सुन कर ये सब ख़ुद हमारे साथ आ कर खड़े हो जाऐं। चलो एक एक के पास अलग से और सीधा पूछो कि वे दीपा दी के साथ हैं या नहीं-बोलो हॉ या न-मुह खोल कर कहने की हिम्मत रखें ये लोग कि नहीं हमसे मतलब नहीं। यह क्या कि मूह बचाए घूम रहे हैं। इन सालों को सीधा बेनकाब करो और फिर कह कर लज्जित करो कि नालायक हो तुम,’’ मानसी जी का बोलने का और सोचने का एक अलग ही अंदाज़ है-एकदम सीधा और तीखा-कुछ कुछ मर्दाना।
केतकी हालॉकि स्वयं हर मुद्दे के लिए और उसके सही और ग़लत के लिए सबसे पहले खड़ी होती है पर उसने हम लोगों की नाराज़गी को कोई महत्व ही नही दिया था,‘‘अरे यार ये नौकरी करने के लिए निकले साधारण से दुनियावी लोग हैं। इनसे कुछ उम्मीद क्यों रखते हो तुम लोग। ये दुनिया को सुधारने नहीं निकले हैं। वह इनका मकसद नही है। इसलिए इन्हें नौकरी में कोई झंझट नही चाहिए। छोटा या बड़ा कैसा ही नहीं। फिर चाहे उसमें किसी अपने का इन्ट्रैस्ट निहित हो या किसी पराए का। दैट्स इट। बड़ी सिम्पल सी बात है। ये अपने दिमाग में बिल्कुल क्लीयर लोग हैं। तुम्हारी बकवास में, तुम्हारी नेतागिरी में इन्हें अपनी इनर्जी वेस्ट नहीं करनी। अपनी तरह से वे सही हैं।’’
नीता ने कुछ कहने को मुह खोला ही था कि केतकी ने उनकी बात पहले ही काट दी थी,‘‘नीता मैं तुम लोगों को कहॉ ग़लत कह रही हॅू। दीपा दी के साथ मेरी भी पूरी सहानुभूति है इसीलिए साथ खड़ी हूं। तुम लोग न भी होतीं तब भी उनके साथ होती मैं। पर नीता हमें अपनी हर लड़ाई में इकला चलने के लिए तैयार रहना चाहिए नही तो तकलीफ और बढ़ जाती है। वैसे भी सारी दुनिया का मारैल कोड आफ कन्डक्ट तय करने वाले हम कौन होते हैं।’’
संदर्भ कोई भी हो अल्हड़ और मस्त दिखने वाली यह केतकी हमेशा ही सिनिकल होने लगती है।
‘‘हैं तो इन्फीरियर लोग ही। कल तक दीपा दी के आगे पीछे घूमते थे आज जब उनको ज़रूरत है तो उन से बचते घूम रहे हैं।’’
केतकी हॅस दी थी,‘‘चलो यार वैसा मानने से ख़ुशी मिलती है तो वही सही। पर सिर्फ हम लोगों के लिए। हमारे लिए वे घटिया हैं। उनके लिए हम सब मूर्ख। हर समय परेशान हाल। हर समय तनाव में। सोचो कितने सुखी हैं यह सब। इनके लिए मित्रता का मतलब है,‘‘हैलो हाय, थोड़ा सा ही ही,खी खी,थोड़ी सी पिक्चर की बातें, थोड़ी सी बुनाई सिलाई खाना पकाने की बातें। सोचो इनके लिए ज़िदगी कितनी आसान कितनी मज़ेदार हें। कितना कुछ है लुक फारवर्ड करने को। आई रीयली एन्वी दैम।’’ वह अपना रजिस्टर पकड़ कर अगले क्लास में जाने के लिए उठ कर खड़ी हो गयी थी। वह चली गई थी। हम लोग उसके जाने के बाद भी बहुत देर तक चुपचाप बैठे रहे थे। लगा था केतकी हमारे वार्ताक्रम पर पूर्णविराम लगा कर चली गई है। हमारी सोच पर भी। लगा था कि अब आगे की योजना बनाने के लिए हमारे पास कुछ बचा ही नही है।
बाकी सब लोग परेशान होते रहे थे और उस स्थिति से निबटने के रास्ते ढॅूडते रहे थे पर केतकी ने एक तरह से इस लड़ाई के सूत्र को अपने हाथों में संभाल लिया था। वह उसी दिन मानसी और मुझ को ले कर टैगोर लाइब्रेरी गयी थी और वहॉ के हैड लाइब्रैरियन से मिली थी और उन्हें अपने आने का मकसद बताया था। उन्हें पूरा प्रकरण बताने की आवश्यकता नही पड़ी थी। वह किस्सा उन्हें पहले से पता था। शायद पूरे शहर में ही उसके चर्चे हैं। मुॅह में पान को दबाए वे सस्वर हॅसे थे,‘‘कैसे कैसे बेवकूफ लोग आपके मैनेजमैंण्ट में आ कर बैठ गए हैं। अरे भई ऐसे तन्ख़ा रोकी जाए तब तो पूरे शहर के किसी भी कालेज के प्रिंसिपल को तन्ख़ा ही न मिले। यूनिवर्सिटी के वाइसचान्सलर को भी न मिले तन्ख़ा। लाइब्रेरी में किताबें कम हैं तो कोई प्रिसिंपल ने तो ले कर खोयी नहीं हैं। इस पूरे मसले का प्राचार्या से क्या मतलब?’’ फिर वे बड़ी ज़ोर से हो हो कर के हॅसने लगे थे, ‘‘इन बेवकूफों का बस चले तो यह तो चॉन्सलर की तन्ख़ा भी रोकने की बात करने लगें।’’ आस पास बैठे हुए लोग भी हॅसने लगे थे। उन्होंने केतकी की तरफ देखा था ‘‘अरे उन बेवकूफों से कहिए कि सिर्फ लाइबरेरी का ही फिसिकल वैरिफिकेश क्यों करा रहे हैं? इतना बड़ा कालेज-उसकी इतनी सारी प्रापर्टी है-फर्नीचर है...हर डिपार्टमैंट के लैब हैं, जहॉ जहॉ जो जो कम मिले काट लें प्रिंसिपल की तन्ख़ा से। तन्ख़ा से पूरा न पड़े तो उसका घर बिकवा दें।’’ वे कुछ क्षण को मौन रहे थे ‘‘एफिलिऐटेड कालेजेस प्रिंसिपल एसोसिएशन क्यों चुप बैठा है ? कुछ करता क्यों नही ?’’
हम लोगों को लगा था कि अचानक ही उन्होने हमे एक सूत्र पकड़ा दिया है। सोचा था आज ही पता करेंगे कि प्रिंसिपल एसोसिएशन के आफिस बीयरर कौन हैं। जिस तरह से वहॉ बैठे सब लोग कालेज पर हॅस रहे थे उससे अचानक यह भी दिमाग में आया था कि इस पूरे प्रकरण की पब्लिसिटी की जानी चाहिए। सोचा था यहॉ के टाइम्स आफ इण्डिया और एच.टी. जाऐंगे। इन मूर्ख घटिया लोगों को एक्सपोस किया जाना ज़रूरी है। पर यहॉ आये हैं तो पहले यहॉ का काम तो निबटा लें। उनसे बात की थी तो कहने लगे ‘‘हॉ मिसिंग किताबों के बारे में कुछ नोटिफिकेशन है तो। आप एक दो दिन का समय दीजिए तो हम आपको दे देंगे।’’
Sumati Saxena Lal.
Sumati1944@gmail.com