Hone se n hone tak - 23 books and stories free download online pdf in Hindi

होने से न होने तक - 23

होने से न होने तक

23.

आज इतवार है। यश को गए आज सात हफ्ते हो गए-एक महीना अठ्ठारह दिन। मैं तो यश के जाने के दूसरे दिन से ही दिन गिन रही हूं। गिनती दिन से चल कर माह तक पहुच चुकी है। क्या ऐसे ही वर्षो की आमद शुरू हो जाएगी? साल...दो साल...दस साल। जब तक जीयूंगी क्या यूं ही हिसाब लगाती रहूंगी...बे मतलब। जानती हूं उससे कुछ भी हासिल नहीं होना है...फिर भी। फिर भी क्या कहे अपने आप को ? मूर्ख। उससे भी क्या होना है। यह मूर्खता तो एकदम लाइलाज है। उस दिन कहॉ सोचा था कि कभी ऐसा दिन भी आएगा कि मैं गिनती करना बंद कर दूंगी-बस अभाव का एक एहसास किसी स्थायी भाव की तरह हमेशा के लिये मेरे पूरे वजूद का हिस्सा बन जाएगा।

यश के पत्र और फोन आते रहते हैं।

आज कल गर्मियों की छुटियॉ हैं। रात में खाना खा कर और थोड़ी देर टी.वी. देख कर मैं सोने की तैयारी ही कर रही थी कि नीता का हड़बड़ाया हुआ फोन मिला था। मैंने फोन उठाया ही था कि उधर से आवाज़ आयी थी,‘‘सो गयी थीं अम्बिका?’’

कौन बोल रहा है यह समझ पाने मे मुझे कुछ क्षण लगे थे,‘‘नहीं तो। पर तुम इस समय कैसे फोन कर रही हो? तुम्हारे सोने का समय तो हो ही चुका है।’’

‘‘हॉ’’नीता ने थोड़ा अटकते हुए जवाब दिया था,‘‘हॉ सो ही गये थे समझो पर सुबह का इंतज़ार नही किया गया इसलिए फोन कर रहे हैं।’’उस के स्वर में दुख है।

‘‘क्या हुआ ?’’मैंने उत्सुकता से पूछा था,‘‘सब ख़ैरियत तो?’’

‘‘नहीं न। अभी कौशल्या दी का फोन आया था।’’ नीता कुछ क्षण को अटकी थीं। मैं कुछ पूछ पाती उससे पहले ही नीता ने अपनी बात फिर शुरु की थी,‘‘अम्बिका शशि अंकल को मैनेजमैंण्ट में से हटा दिया गया है।’’

‘‘अरे...ऐसे कैसे? ऐसा कैसे हो सकता है?’’मेरे मुह से अपने आप निकला था। उन्हें भी कभी हटाया जा सकता है ऐसा तो हम लोग सोच भी नही सकते थे।

‘‘ऐसा ही हुआ है अम्बिका। कौशल्या दी आज उनसे मिलने गयी थीं। वहॉ से लौट कर ही उन्होंने मुझे फोन किया था।’’

‘‘बहुत परेशान होंगे वे?’’ मैंने पूछा था।

‘‘बट आफ कोर्स। अब हम लोगों को क्या करना है।’’ नीता ने पूछा था।

‘‘हम लोग क्या कर सकते हैं?’’ मैंने पूछा था।

नीता के स्वर में झुंझलाहट है,‘‘हम लोग कर तो कुछ नही सकते पर उनसे मिलने तो चलना ही होगा। जितने लोग चले उतना अच्छा है। केतकी और मीनाक्षी से मैं बात किये ले रही हूं पर मानसी से तुम तय कर लो। ठीक है ?’’

‘‘हॉ ठीक है।’’मैंने जवाब दिया था।

‘‘तो फिर हम लोग दस बजे कौशल्या दी के घर मिलते हैं। उनसे राय भी हो जाएगी...फिर उसी रास्ते पर ही तो है अंकल का घर।’’

‘‘ठीक है नीता।’’

फोन रखने के बाद मैं न जाने कितनी देर तक वहीं बैठी रही थी। न जाने कैसा तो लगता रहा था जैसे मेरा कुछ छिन गया हो। इतना समय हो चुका इस कालेज में पर इतनी निकटता तो मैंने शशि अंकल से पहले कभी महसूस नहीं की थी।

दूसरे दिन सुबह दस बजे मैं और मानसी जी कौशल्या दी के घर पहुंच गये थे। मानसी ने रुपाली और अंजलि सक्सेना को भी फोन कर के बुला लिया है। नीता, केतकी,मीनाक्षी सब उन्ही के घर पर मिले थे। मीनाक्षी यहॉ तो आ गयी थी पर अंकल के घर जाने के नाम से ही उसकी ऑखो में ऑसू भरने लगे थे और उसने उनके घर जाने से साफ मना कर दिया था।

कौशल्या दी ने अपने विशिष्ट अंदाज़ मे अपने दाहिने हाथ की उंगली हिलाते हुए डॉटा था,‘‘यह क्या बात हुयी मीनाक्षी। अगर सारी दुनिया तुम्हारी जैसी हो जाए तब तो कोई किसी के दुख मे शामिल ही नही होगा। अरे भई दुख में चार लोग मिलने आते हैं तो आराम लगता है और’’

कौशल्या दी की बात को बीच में काटते हुए मानसी जी बोली थीं,‘‘अरे दीदी दुख भी काहे का। सालों से मैनेजर थे अब कोई और बना दिया गया उनकी जगह-तो ठीक है।’’ उन्होंने मीनाक्षी की तरफ देखा था,‘‘यार बिल्कुल नार्मल ढंग से चलो जैसे किसी के घर सोशल कॉल देने जाते हैं..अच्छी तरह से समझ कर चलो कि न हम लोग कोई मातम मनाने जा रहे हैं न कोई मातमी सूरत ही बनाने की ज़रुरत है। यह सब तो ज़िदगी में पार्ट आफ द गेम है। बीसियों साल तक रहे हैं वे मैनेजर। अब नहीं हैं तो इसमें इतने हाहाकार करने की कोई बात नहीं है। हॅसते हुए चलो। हॅसते हुए बात करेंगे।’’

कौशल्या दी एकदम ख़ुश हो गयी थीं,‘‘बिल्कुल सही कह रही है मानसी। दैट्स इट विच आई लाइक इन हर।’’

भारी हुआ माहौल कुछ हल्का लगने लगा था। पर घर से बाहर निकलते तक मीनाक्षी फिर परेशान होने लग गयी थी,‘‘अब यह उनके घर पहुॅच कर ज़्यादा ही खी,खी न करने लगें कि अंकल को लगे कि हम लोग तो उनके जाने का जश्न मना रहे हैं।’’ मीनाक्षी ने धीमे से फुसफुसाया था।

केतकी ने डॉटा था‘‘मीनाक्षी बच्चों की तरह बिहेव मत करो। अंकल भी कोई मूर्ख नही हैं जो हम लोगों के दिल की बात न समझें।’’

बाहर निकलते तक मीनाक्षी जैसे मचल गयी थी,‘‘दीदी आप हमारे साथ चलिए।’’

कौशल्या दी ने समझाया था,‘‘कल रात मैं उनके घर कई घण्टे बैठ कर आयी हूं। आज तुम लोग जाओ।’’

शशि अंकल बहुत अपनेपन से मिले थे। अपने प्रति स्टाफ की यह आत्मीयता उन्हें अच्छी लगी थी। रास्ते भर हम सब यह सोचते हुए आए थे कि उनका सामना कैसे कर पाऐंगे और बात कैसे शुरू करेंगे। पर चीज़े दूर रह कर जितना अधिक डराती हैं सामने आ जाने पर उतनी ही सहज स्वभाविक हो जाती हैं। सो सहज ही हम सबने शशि अंकल का सामना भी कर लिया था और बहुत ही स्वभाविक ढंग से बातचीत भी शुरू हो गयी थी। अनायास विद्यालय से हटा दिए जाने के प्रसंग पर एक दो बार उनकी आवाज़ भर्राई थी...पता नही सच में या हम लोगो को ही वैसा लगा था। पर वे सरला महेश्वरी को लेकर बहुत प्रसन्न थे। लगा था उनके आघात को जैसे उस संतोष ने ठक लिया था। बहुत ही प्रसन्न मन से काफी देर तक वे उस विषय में बात करते रहे थे,‘‘अभी तीन महीने पहले ही उसकी नौकरी के बीस साल पूरे हो गए। पूरे पौने चार साल मैंने किसी तरह उसकी बीमारी को सबसे छिपा के रखा। अब यह लोग कहते हैं मैने बेईमानी की। उसकी तन्ख़ा अपनी जेब में रखता रहा मैं। इतनी गन्दी बात वे लोग सोंच भी कैसे सकते हैं। कुॅवर देवेन्द्र सिंह भटनागर का बेटा शशिकान्त भटनागर इतनी गिरी हुयी हरकत कर सकता था क्या?’’ उनके स्वर में आवेश था। उन्होने निगाह घुमा कर बारी बारी से सबकी तरफ देखा था। कमरे में सन्नाटा छा गया था। किसी के समझ ही नही आया था कि हम क्या बोलें। फिर वह बात भले ही प्रश्न की तरह बोली गयी थी किन्तु निश्चय ही वह प्रश्न नही थी इस लिए हम लोग बोलते भी तो आख़िर क्या। पर उस मौन को मानसी ने संभाला था,‘‘पर अंकल सरला जी तो इतने समय से बिना कालेज आए यहॉ के पे रोल पर चल रही थीं। यह बात अब अचानक उन लोगो के पास कैसे पहुंच गयी और मैनेजमैंट में इसकी चर्चा हो गयी?’’

शशि कान्त अंकल काफी देर तक चुप रहे थे जैसे कुछ सोच रहे हों। उनका स्वर मद्धिम हो गया था,‘‘स्टाफ में से या आफिस में से किसी ने पहुंचायी होगी। वैसे तो कहीं से भी पहुच सकती थी उन तक यह ख़बर।’’वे हॅसे थे,‘‘भई झूठ के पॉव होते हैं या नही होते पर सच के तो पॉव हो ही सकते हैं।’’ वे कुछ क्षण के लिए फिर चुप हो गए थे ‘‘जिस ने भी बतायी यह बात मुझे उस से कोई शिकायत नही हैं। हो सकता है उस इंसान का कोई भी बुरा मकसद न रहा हो। कम से कम मैं ऐसा ही सोंचता हॅू। गुस्सा तो इस बात का है कि सोच लिया गया कि मैने सरला से रुपया ले लिया। शशि कान्त इतना गिरा हुआ इंसान नही है कि अपने कालेज की बच्चियों से पैसा खाएगा।’’ वे थोड़ी देर के लिए फिर चुप हो गए थे,‘‘रही कालेज के पैसों की बात,ग्रान्ट्स का हिसाब किताब? किसी को उससे कोई मतलब नही होना चाहिए। वह कालेज मेरी बहन ने बनाया था। करोड़ों का लैण्ड उन्होने डोनेट कर दिया कालेज को। आज एक एक पैसा मैं लाता था। कालेज को प्रायमरी से पोस्ट गै्रजुएशन तक मैंने पहुचाया था। किसी को हिसाब नही देना मुझे उसका।’’

सब चुप रहे थे। वैसे भी क्या बोलते पर शायद सभी को लगा था कि शशि अंकल ने स्वयं ही अपने बारे में बहुत कुछ बोल दिया है।

वे हॅसे थे। एक गर्व मिश्रित संतोष,एक उपलब्धि का उल्लास उनके पूरे चेहरे से झांकने लगा था,‘‘बहुत तसल्ली है मुझे इस बात की कि सरला की सर्विस के बीस साल पूरे हो गए। चार्ज देने से पहले मैंने उसका रिटायर्मैट के लिए इस्तीफा ले कर उसे रिलीव कर दिया है। कागज़ी काम पूरा कर दिया ताकि किसी और के लिए अच्छा या बुरा करने के लिए कुछ भी न बचे। रीजनल कार्यालय से मैंने ख़ुद जा कर सारी फार्मेलिटीज़ पूरी करा ली हैं। दीपा ने अभी तक बहुत साथ दिया। हालॅाकि कभी कभी साइन कराने के लिए सरला के घर रजिस्टर भेजते बहुत डरती थी। पता नही मेरे जाने के बाद नए लोगों के प्रैशर को झेल पाती या नही। इसलिए मैंने कोई झंझट ही नही छोड़ा। चाहें तो भी अब यह लोग उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते। कम से कम पूरी ज़िदगी पैंशन पा सकेगी अब वह।’’ थोड़ी देर के लिए लगा था जैसे वह चहकने लगे थे,‘‘बताओ मेरे कालेज की एक बच्ची पर मुसीबत आ गयी तो क्या उसे मैं डस्ट बिन में फेंक देता? पर उन लोगों के पास यह बात समझ पाने का दिमाग नही है, दिल भी नही है।’’

अंदर से सबके लिए चाय बन कर आ गयी थी। मानसी केटली में से चाय ढालती रही थीं। मानसी की बातचीत के हल्के फुल्के लहज़े से माहौल काफी कुछ सहज होने लग गया था। थोड़ी बहुत इधर उधर की बातचीत...थोड़ी बहुत हॅसी भी।

हम लोग उठ कर खड़े हो गए थे तो अंकल बाहर तक छोड़ने आए थे। अचानक ही सब लोग भावुक होने लगे थे। बोलने लगे तो शशि अंकल की आवाज़ भर्रा गयी थी, ‘‘दीपा बहुत अकेली हो जाएगी। मैंने ही एपायन्ट किया था उसे। हमेशा मेरे ही साथ काम किया है उसने।’’ कुछ क्षण चुप हो कर लगा था वे अपने आप को संभाल रहे हैं,‘‘ख़ैर तुम सब हो उसके साथ। कौशल्या है।’’वे कुछ क्षण के लिए फिर चुप हो गए थे,’’टेक केयर आफ हर। उसका ख़्याल रखना। कालेज को संभाल कर रखना।’’ मानसी उनके बगल में ही खड़ी हैं। उन्होने बड़े अपनेपन से मानसी की पीठ थपथायी थी और मानसी की ऑखो में तैरते ऑसू गालो पर दिखायी देने लग गए थे। वहॉ खड़े सभी लोगो की ऑखों मे उस क्षण ऑसू थे।

वहॉ से निकलते ही हम सब को लगा था कि हमें दीपा दी से भी मिलने जाना चाहिए शायद। आख़िर उनके लिए भी अनायास शशि अंकल का हटा दिया जाना बहुत बड़ा आघात है। वैसे भी सब लोग परिवार ही तो हैं। नीता के घर पहुच कर इस बारे में कौशल्या दी से फोन पर बात की थी और अगले दिन दीपा दी के घर चलने की बात तय हुयी थी। उसके बाद जितनी भी देर हम लोग बैठे उतनी देर शशि अंकल,दीपा दी और कालेज की ही बातें चलती रही थीं। सारी पीड़ा के बीच भी थोड़े बहुत शशि अंकल के करप्शन के चर्चे और प्रसंग भी।

Sumati Saxena Lal.

Sumati1944@gmail.com

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