Hone se n hone tak - 33 books and stories free download online pdf in Hindi

होने से न होने तक - 33

होने से न होने तक

33.

डा.ए.के.जोशी दम्पति के आते ही सब लोग बाहर के कमरे में आ गए थे। मीनाक्षी रो रही है। कुछ क्षण तक सब लोग चुपचाप बैठे रहे थे। एक असहज सा सन्नाटा कमरे में फैल गया था। सबसे पहले डा.जोशी बोले थे। अपने से केवल एक साल छोटे भाई को उन्होंने जैसे एकदम से दुत्कारना शुरू कर दिया था। फिर चाचा बोले थे। फिर प्रदीप। वह बातचीत भर नहीं थी। लगा था कमरे में गोला बारूद फटने लगे थे। कई कई ज्वालामुखी एक साथ लावा उगलने लगे थे। उदय जी चुपचाप सिर झुकाए बैठे रहे थे। उनके पास शायद बोलने के लिए कुछ था भी नहीं। तभी प्रदीप आपे से एकदम बाहर हो गया था और उसने हाथ उठा लिया था। हम सब स्तब्ध से बैठे रहे थे जैसे जड़ हो गए हों। समझ ही नहीं आया था कि क्या हो रहा है...आगे क्या हो सकता है...और हमे क्या करना चाहिए। लगा था प्रदीप उदय जी पर वार करेगा कि अचानक मीनाक्षी उछल कर खड़ी हो गई थी। उसने लपक कर उस का हवा में उठा हाथ कस कर पकड़ लिया था और चीखी थी ‘‘ख़बरदार’’...फिर उसने ज़ोर ज़ोर से बोलते डा.ए.के.जोशी की तरफ आग्नेय नेत्रों से देखा था और बहुत ज़ोर से चीखी थी ‘‘चुऽऽऽप्प’’ उसकी ऑखों में उन्माद उतर आया था।

अगले दिन मीनाक्षी समय से ही कालेज आयी थी। चेहरा एकदम उतरा हुआ। थकी हुयी सी चाल जैसे मीलों चल कर। उसे देखकर बेहद तरस आया था। अभी कुछ महीने पहले ही तो एकदम चहकती हुयी दिल्ली से लौटी थी, जैसे सारे संसार की ख़ुशियॉ पा ली हों। इस समय एकदम लुटी पिटी हारी हुयी लग रही है। क्या हुआ? क्या घर वालों का विरोध नही सह पा रही या उन्हे आहत करने का अपराध बोध है या बचपन के अपमान को इस उम्र मे एक बार फिर से नए सिरे से पूरी समझ के साथ महसूस करने की पीड़ा। जो भी हो बिना पूरी नज़र किसी की तरफ देखे हुए वह अपने नोट्स खोल कर उन पर झुकी पढ़ती रही थी।

नीता उसकी तरफ मुड़ कर बड़े सहज भाव से मुस्कुरायी थीं जैसे कुछ भी न हुआ हो,‘‘मैं तुम्हे ही याद कर रही थी मीनाक्षी। आज तुम और उदय जी डिनर पर आओ। अभी तुम्हारे घर फोन तो लगा नही है सो उदय जी के लिए लैटर लिख कर तुम्हे ही दे देंगे।’’

मीनाक्षी ने उदास निगाहों से नीता की तरफ देखा था,‘‘वह आज दिल्ली जा रहे हैं नीता दी।’’

‘‘अरे अभी दो दिन पहले ही तो आए हैं ?’’

‘‘हॉ पर कुछ काम है वहॉ।’’

‘‘वह तो रिटायर हो चुके हैं न ?’’नीता के मुह से अनायास फिसला था। फिर वह एकदम खिसिया सा गयी थी जैसे कुछ ग़लत कह बैठी हो।

‘‘मीनाक्षी मुस्कुराई थी, ‘‘हॉ रिटायर हो गए हैं पर डिपार्टमैंट के कई प्रोजैक्ट देख रहे हैं।’’

‘‘अब कब आऐंगे?’’नीता और मैं ने एक साथ पूछा था।

‘‘पता नही।’’ मीनाक्षी अपने पर्स के अन्दर हाथ डाल कर उसमें झुकी हुयी कुछ ढॅूडती रही थी।

अब जब भी आऐं पहले दिन मेरे घर पर सैलिब्रेशन। पहले से ही तय किए दे रही हू मीनाक्षी।’’ नीता ने भरसक चहकने की कोशिश की थी।

केतकी ने साथ दिया था,’’उसके अगले दिन मेरे घर पर।’’

‘‘तुम्हारे घर तो जा भी चुके हैं और खा भी चुके है। उसके बाद मेरा नम्बरं।’’ स्वर में भरसक उत्साह भर कर मैं ने कहा था।

‘‘कम आन अम्बिका तुम्हे पता है मेरे घर उनका ऐसे ही आना हुआ है। वह वैल्कम डिनर बिल्कुल नही था। उसमें तो तुम दोनो भी शामिल होगे। ऐसे ही थोड़ी हो जाएगा वह।’’

‘‘चलो अच्छा है बारी बारी से सब लोग।’’नीता ने जैसे निबटारा किया था।

लगा था जैसे मीनाक्षी ही नही सब लोग अपने आप को संभालने की कोशिश कर रहे हैं पर बातचीत बार बार जैसे पटरी से उतर जा रही है। साधारण से संवाद भी न जाने क्यो बनावटी से लगते रहे थे। बेहद नाटकीय। केतकी और मीनाक्षी के चले जाने के बाद भी नीता और मैं कालेज में ही रुके रहे थे। आजकल हम दोनो के पास बातचीत का प्रायः एक ही विषय है।

हम तीनो लोग ही उदय जी को अपने घर आमंत्रित करने के लिये उत्सुक थे पर वह वर्ष ऐसे ही लगभग पूरा बीत गया था। उदय जी बीच में कई बार आ चुके हैं पर हम सबसे मिलने जुलने का मौका नही आया था।

अध्यक्षा का पत्र डाक्टर दीपा वर्मा को मिला था जिसे ले कर वे सीधे टीचर्स स्टाफ रूम में आ गयी थीं। नए साल की शुभ कामनाऐं दे कर उन्होने वह सर्कुलर सबको पढ़ कर सुना दिया था,‘‘मलिन बस्ती की स्त्रियो के उद्धार की योजना’’ पर एक तीन दिन की वर्कशॉप दिनांक बारह जनवरी से विद्यालय के आडिटोरियम में आयोजित की जा रही है। उद्घाटन और समापन सत्र में सभी टीचर्स को उपस्थित रहने के आदेश दिए गए थे। सजावट और मंच संचालन के लिए कमेटियॉ बनाने के लिए कहा गया था। इसमें प्रायमरी से लेकर पोस्ट ग्रैजुएट तक सभी विभागों की भागीदारी होनी है। हॉल भरने के लिए हर दिन ढाई सौ छात्राओं का वहॉ होना सुनिश्चित किया जाना था। लड़कियॉ केवल डिग्री विभाग से ही आऐंगी।

नीता और मिसेज़ द्धिवेदी दोनों के मुह से एक साथ निकला था,‘‘और क्लासेज़ ?’’

दीपा दीदी ने मौन धारण कर लिया था।

‘‘दीदी क्या कालेज तीन दिन बंद रहेगा?’’पुष्पा ने पूछा था।

‘‘नहीं पुष्पा कैसी बात कर रही हो। छुट्टियों की लिस्ट यूनिवर्सिटी से बन कर आती है।’’

‘‘तो दीदी स्टूडैन्ट्स को चुपचाप आने से मना कर दें क्या?’’ पुष्पा ने फिर अपनी बात कही थी।

डाक्टर दीपा वर्मा एकदम घबड़ा गयी थीं,‘‘कैसी बात कर रही हो पुष्पा? वैसे भी उन्हे हर दिन हाल भरने के लिए ढाई सौ लड़कियॉ चाहिए।

‘‘पर दीदी बाकी लड़कियॉ...’’

मानसी हॅसी थीं,‘‘पुष्पा की सुई लड़कियों पर अटक गयी।’’ पुष्पा ने गुस्से से मानसी की तरफ देखा था,‘‘अरे तुम लोगों को समझ नहीं आ रहा है कि हम लोग चले जागे तो लड़कियॉ कालेज में क्या करेंगी। वैसे भी कितनी बुरी बात है कि बच्चे आऐं और क्लासेज़ न हों।’’

‘‘सब देख रहे हैं बहन। यहॉ तो अब यह सब चलता ही रहेगा। जैसा अभी तक चल रहा है। महीने में चार बार मीटिंग। दो महीने में एक बार कोई लंबा चौड़ा आयोजन। उसके बाद डॉट फटकार। डॉटने के लिये मीटिंग्स, पूछे जाने वाले सवाल। फिर उसके जवाब देने की तैयारी करो और उसके बाद अगले प्रोग्राम की तैयारी के लिये मीटिंग्स।’’

पुष्पा नें सॉस भरी थी,‘‘कुछ तो करना होगा। कुछ तो करना चाहिए न हम लोगों को।’’

‘‘करो न। कौन मना करता है। पर एक जन के कहने से कुछ नही होगा। कहा तो था उस दिन रुपाली ने। जवाब भी सुन ही लिया था।’’

दीपा दी नें चांक कर मानसी की तरफ देखा था,‘‘क्या हुआ?’’

‘‘दीदी उसने कहा था कि वह अगले दिन की मीटिंग में नहीं आ पाएगी क्योकि उन दिनों वह डिपार्टमैंण्ट में अकेली थी सो मिसेज चौधरी ने उसे झिड़क दिया था कि उन्हें पता है कि आप सब के पास समय नही है क्योंकि आप सब बड़े भारी ‘‘बिज़ी बी’’ हैं।’’

‘‘इसका क्या मतलब हुआ ?’’पुष्पा ने बहुत ही भोलेपन से सवाल किया था।

‘‘इसका मतलब यही हुआ कि हम सब बड़े भारी ठलुए हैं और हमारे पास कोई काम धाम नहीं है बस हम सब काम के नाटक करते रहते हैं।’’मानसी ने कहा था।

दीपा दी झुक कर कुछ लिख रही थीं। उन्होने क्षण भर के लिए कागज़ पर से निगाह उठायी थी और पुष्पा की तरफ देखा था,‘‘हॉ इसका यही मतलब हुआ पुष्पा।’’ और वे फिर से लिखने में व्यस्त हो गयी थीं। स्टाफ के इस तरह के संवाद में आज वे पहली बार शामिल हुयी थीं उसके बाद तो वे प्रायः टीचर्स के साथ अपनी हताशा बॉटने लगी थीं।

उस समय तो मुख्य समस्या हॉल भरने के लिए ढाई सौ लड़कियों को जुटाने की थी। वहॉ बैठी सभी टीचर्स हड़बड़ा गयी थीं,‘‘यह बहुत कठिन काम है। एक तो आडिटोरियम यहॉ से दूर है। फिर वहॉ की भाषण बाजी में लड़कियो को रोक कर रखना आसान काम है क्या ?’’रोहिणी दी ने कहा था।

डाक्टर दीपा वर्मा एकदम परेशान हो गयी थीं,‘‘देखो तुम लोग मुझे कठिनाईयॉ मत बताओ। मुझे रास्ते सुझाओ और कोआपरेट करो।’’

काफी देर तक उसी विषय पर बात होती रही थी।

तभी मानसी ने सुझाया था,‘‘हमारे पास एन.एस.एस. की पॉच यूनिट्स हैं। उसी की पॉचो यूनिट्स का चार दिन का सोशल सर्विस कैम्प नाट्य सभागृह में लगा दिया जाए। तीन दिन की वर्कशाप है। एक दिन पहले लड़कियॉ हाल की साफ सफाई कर लें और बाकी तीन दिन सुबह नौ बजे से कैम्प लगेगा और वर्कशाप का समय ग्यारह बजे से है सो रोज़ दो घण्टे डस्टिंग हो जाया करेगी और बाकी समय लड़कियॉ हाल की कुर्सियॉ भरेंगी।’’

सभी को यह निदान सरल और संभव लगा था। दीपा दी की जान में जान आ गयी थी। एन.एस.एस. की पॉचों टीचर्स को बुला कर उन्हे यह काम सौप दिया गया था और लड़कियों को बताने के लिए कह दिया गया था।

Sumati Saxena Lal.

Sumati1944@gmail.com

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